........दिन बहुत तेजी से चल रहे थे।
और साथ ही एक दूसरे के लिए दिलों में काफी तूफान भी मचल रहे थे।
पिछले चार दिन से राजेश को राधिका दिखाई नही थी।
हर रोज 10 बजे वह उसके दुकान के ठीक सामने होती थी।
अपने कॉलेज के लिए।
एक दूसरे को देखने भर से ही उन दोनो को सुकून मिलता था।
उसके पास मोबाइल ना होने के कारण ,वह उससे बात भी नही कर सकता था।
राधिका की राजेश को अब आदत सी हो गई थी।
जब वह उसके घर पर पानी देने जाता था तो,
उसकी नजर उसे ही खोज रही होती थी।
अब उसका मन उसके काम में नही लग रहा था।
मानो किसीने उसकी मुस्कुराहट ही छीन ली हो।
अकसर हम देखते है की,
जो हमारा अजीज होता है ,उसकी जरा सी भी गैर मौजूदगी हमे बेचनी की उस दौर का सामना करवाती है,
जिसकी हमे कभी उम्मीद नहीं होती।
और यह बेहद कष्टप्रद सा समय होता है।
जो बीतता भी नही।
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शाम के आठ बज रहे थे।दिन भर के काम का हिसाब राजेश के पिता उससे ले रहे थे।
मगर वह गुम सा था
उसके चेहरे की रौनक गायब थी।
तभी उसके मोबाइल पर नोटिफिकेशन बजता है।
राधिका का मेसेज होता है।
हेलो..
उसका मेसेज पढ़कर उसके चेहरे की रंगत बढ़ जाती है।
पापा ..
हां
मैं घर जा रहा हु ।
हा जाओ कहकर वह उसे जाने की इजाजत देते है।
लेकिन वह घर न जाकर निरंजन के घर के तरफ चल पड़ता है।
राधिका के hlo जवाब देकर अपनी बाइक को दौड़ता है।
निरंजन उसे रास्ते में मिलता है।
दोनो मिलकर चाय के दुकान पर चले जाते है।
जहां दोनो के लिए चाय की ऑर्डर दी जाती है।
🌼
बहुत दिनों के बाद दोनो बातचीत कर रहे थे।
राधिका उसके बात न होने का कारण बता रही थी,
कैसे उसे अचानक से उसके मौसी के घर जाना पड़ा था।
जिस वजह से दोनो में कुछ दूरियां थी।
राजेश..मैने तुम्हारा बहुत इंतजार किया।
राधिका .. हां लंबी सांस भरते हुए राधिका कह रही थी।
सुनो ना...
राजेश : हां कहो...
राधिका : दूरियां ,नजदीकियों की कीमत बताती है..ना।
राजेश : बिलकुल सही।
राधिका : तो क्या तुम खुश हो..?
राजेश : हां। मैं आज सबसे ज्यादा खुश हूं।
मैं नही जानता मेरा क्या खो गया था,
मगर मुझे अब किसी बात का कोई मलाल नहीं।
मैं अपने आप को इस दौर से गुजरता हुआ देख रहा हूं ,
जहा हर तरफ आनंद की तरंगों की बौछार है।
राधिका : हंसते हुए...कहती है।
तुम खुश होते हो तो मुझे भी खुशी महसूस होती है।
जैसे दोनो की अंतरात्मा का अपनी आप चलने वाला संवाद हो।
बात करते करते बहुत समय बिता जाता है।
राजेश ,जो की निरंजन को साथ ले आया था।
राधिका के बात करने के खुशी में वह उसे भूल ही गया था।
वो उसे देख रहा था ,
मगर राजेश को मोबाइल में बिजी देखकर वह सामनेवाले दुकान पर चला जाता है।
जहा पर कुछ खरीदारी कर रहा था।
राजेश की नजर उस पर पड़ जाती है।
वह दौड़कर रास्ता पार करके उसके पास चला जाता है।
और अपने खुशी का कारण बताता है।
जिसे सुनकर निरंजन भी एक मुस्कान से उसके तरफ देखता है।
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अब राजेश घर न जाते हुए,
निरंजन को घर छोड़कर खुद शॉप पर चला आता है।
जहा उसके पापा उसे कहते है,..
अरे.... तू तो घर गया था न।
नही...
मैं चाय पीने गया था ।
अच्छा ....ठीक है।
ये समाने वाले अंकल को इतने रुपए देकर आ।
कहते हुए उसके पिताजी ,
उसके हाथ में कुछ रुपए थमा देते है।
जो राज्य उन्हें देकर आता है।
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शमसू चाचा.।
राजेश के पड़ोसी थे।
जिनकी जगह राजेश ने अपनी गाड़ियों को पार्क करने के लिए ,
किराए के तौर पर ले रखी थी।
क्योंकि अब वे बड़े शहर में जाकर बसे थे।
तो जगह वैसे ही पड़ी थी।
खाली दिमाग शैतान घर होता है।
वैसे ही खाली जगह पर घास उग आती और ,
कोई मालिक न होने का कारण गंदगी भी होती है।
जिसके चलते शमशु चाचा ने राजेश के पिता जी कहा था ,
की आप चाहे तो वैसे ही यनहा अपनी गाड़िया पार्क कर सकते है।
मगर राजेश के पापा बहुत व्यवसायिक दृष्टि रखने वाले व्यक्ति थे।
जिन्होंने उनके सुझाव को बड़ी विनम्रता के साथ नकारते हुए ,
उन्हें कहा कि,
बेशक मुझे जगह कम पड़ रही है।
मगर मैं आपकी जगह वैसे ही नही ले सकता ।
इसका कुछ दाम और नाम रख लिया जाए।
ठीक है कहकर शमशू चाचा हसने लगे।
और कुछ दाम तय होकर पिछले कई महीनों से यह जगह राजेश इस्तेमाल करते आ रह है।