पथरीले कंटीले रास्ते
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बग्गा सिंह पिछले दस दिन से गवाह जुटाने के लिए कोशिश कर रहा था पर इकबाल सिंह का आतंक बिना कहे ही इतना था कि कोई भी गवाही के लिए तैयार नहीं हो रहा था । जिससे भी बात की जाती , वही कहता कि उसने कुछ नहीं देखा । उसे तो पता ही नहीं चला कि कब कितना बङा कांड हो गया । वह तो जब सारे लोग दुकानों से निकल निकल कर बस अड्डे की ओर भागे तब वह भी देखने गया था । वहाँ पर खून में लथपथ शैंकी सङक पर पङा था । लोग उसे उठाकर अस्पताल ले गये । इससे ज्यादा उसे कुछ पता नहीं । लोगों को बग्गा सिंह से हमदर्दी थी । वे शैंकी के मर जाने को इकबाल सिंह के करमों का फल मान रहे थे । रविंद्र पर उन्हें तरस आता । बेचारा सीधा सादा लङका था । बेगानी आग में कूद पङा । अब पता नहीं कितने दिन जेल में बंद रहना पङेगा । पर यह सारी हमदर्दी लोगों के मन में ही घूम रही थी । वे खुल कर बग्गा सिंह या रविंद्र का साथ भी नहीं दे पा रहे थे । हर रोज बग्गा सिंह बस अड्डे पर आता । लोगों से इधर उधर की बातें करता और हर रोज निराश लौट जाता । उधर वकील बार बार गवाह जुटाने पर जोर दे रहा था ।
आखिर में एक दुकानदार को बग्गा सिंह की हालत पर तरस आ गया और वह गवाही देने को तैयार हो गया ।
चल मैं दूँगा तेरे लिए गवाही । अगर मेरी गवाही से तेरा बेटा छूट जाए तो ।
बग्गा सिंह की खुशी का टिकाना न था । वह उसी समय बस पर चढ गया और सीधा कचहरी में आ पहुँचा । वकील साहब किसी केस के सिलसिले में जज साहब के केबिन में थे । मुंशी ने उसे बैठाया । पानी का गिलास पीने को दिया और अपने काम में जा उलझा । बग्गा सिंह थोङी थोङी देर बाद पूछ बैठता – भाई साहब , वकील साहब कितनी देर में आ जाएंगे ।
बस थोङी देर में । आप थोङी देर यहाँ आराम से बैठो । बस आते ही होंगे ।
करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया था बग्गा सिंह को आए हुए । वहाँ प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे वह थक गया । ऊबने लगा । इंतजार करना मुश्किल लगा तो वह बाहर निकल कर टहलने लगा कि सामने से वकील साहब फाईलों का ढेर बगल में दबाये हुए आते दिखाई दिये ।
वह लपक कर उनके पास पहुँच गया ।
सत श्री अकाल वकील साहब ।
सत श्री अकाल .,.सत श्री अकाल बग्गा सिंह । कैसे हो ।
वह कैबिन की ओर बढ चले । पीछे पीछे बग्गा सिंह भी आया । वकील साहब ने फाइलें मुंशी को संभाल कर रखने को पकङाई । जेब से रुमाल निकाल कर माथे पर आया पसीना पोंछा । मेज से बोतल उठाकर गिलास में पानी उडेला और दो गिलास पानी पीकर प्रकृतिस्थ हुए ।
हाँ भई , बग्गा सिंह , और सुनाओ क्या हाल है ।
बग्गा सिंह इससे पहले सारी बातें कह चुका था । उसने हैरानी से वकील की ओर देखा – क्या वह अब तक खुद से ही बातें कर रहा था । वकील साहब उसी की ओर देख रहे थे तो फिर से बोलना शुरु किया – वकील साब मैं बिल्कुल ठीक हूँ । वो ऐसा है जी कि बस अड्डे का एक दुकानदार हमारे फेवर में गवाह बनने को तैयार हो गया है । बस आप जल्दी से उसे जज साहब के सामने पेश करा दो ।
यह तो अच्छी खबर है कि हमें कोई गवाह मिल गया । मैं भी एक दो बार वहाँ घटनास्थल पर गया था , कुछ सबूत मिले हैं । पेशी पर काम आएंगे ।
अब तो रविंद्र छूट जाएगा न ।
देखते हैं क्या कर सकते हैं । जो बन पङेगा , करेंगे । अपनी तरफ से पूरी पूरी कोशिश करेंगे पर मेरे भाई कर सकने में और हो जाने में बहुत फर्क होता है । जब तक हो न जाए , कुछ नहीं कहा जा सकता । अब दस दिन बाद तारीख है , देखते हैं क्या होता है । हाँ एक बात सुन , गाँव में किसी को भी यह पता नहीं चलना चाहिए कि हमें गवाही के लिए आदमी मिल गया है और उस आदमी का नाम पता तो किसी भी सूरत में किसी को भी नहीं ।
वो क्यूँ जी
वह इसलिए कि उसकी जान को खतरा हो सकता है । कोई डरा धमका देगा तो वह गवाही से मुकर भी सकता है , समझे ।
जी समझ गया ।
और सुन , कल मैंने जज साहब से तुम्हारी मुलाकात का टाईम ले लिया है । तुम कल दोपहर में दो बजे से चार बजे तक जेल जाकर बेटे से मिल सकते हो । अकेले तुम्हें ही मिलने की इजाजत मिली है । यह लो चिट्ठी । ले जाकर जेलर को दिखा देना वह तुम्हें रविंद्र से मिलवा देगा ।
बग्गा सिंह को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ – सच्ची वकील साहब । कल मैं अपने बेटे को मिल सकूँगा ।
हाँ बिल्कुल ।
उसकी माँ
नहीं इस बार नहीं । हाँ अगली बार इजाजत ले लेंगे ।
पक्का न वकील साहब ।
वकील ने स्वीकृति में सिर हिलाया और किसी फाईल में डूब गया । बग्गा सिंह के लिए यह संकेत था कि अब जाओ यहाँ से ।
बग्गा सिंह के पाँव आज जमीन पर नहीं पङ रहे थे । वह यह दोनों खुशखबरियाँ जल्द से जल्द अपनी पत्नि को सुनाना चाहता था । कचहरी से वह बाहर आया और आटो लेकर बस अड्डे जा पहुँचा । वहाँ काऊंटर पर बहुत सारी बसें जाने के लिए तैयार खङी थी पर उसके रामपुरा के लिए कोई बस नहीं थी । कोई चारा नहीं । वह वहीं खङा होकर बस का इंतजार करने लगा । करीब आधा घंटा इंतजार के बाद एक प्राइवेट बस काऊंटर पर लगी तो वह भाग कर बस में चढ गया पर अभी इंतजार की घङियां खत्म ही नहीं हुई थी । बस में आठ दस ही सवारियाँ थी । कंडक्टर यात्रियों को पुकार रहा था । उनकी टिकट काट रहा था । करीब पंद्रह मिनट में बस खचाखच भर गयी । कंडक्टर ने सीटी बजाई तो बस चल पङी । एक ठंडी हवा का झोंका खिङकी के रास्ते उस तक आ पहुँचा । बस में जितने लोग सीटों पर बैठे थे , उससे दुगने लोग खङे थे । वह खिङकी से बाहर सङक पर आते जाते लोगों को देखने लगा । अभी भी आधे घंटे का सफर बाकी था । वक्त इतना धीरे धीरे क्यों चलता है ।
बाकी फिर ...