भाग 30
बैंगलुरू प्रीति का बंगला
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कविता जानने के लिए उत्सुक थी कि प्रीति अमोल से मिली कैसे?
“तो, तेरे पति की बेवफाई तुझे अमोल तक ले गई? हैं ना?” कविता ने पूछा।
“नहीं, ऐसा नहीं था कविता। अमोल से मिलना महज एक संयोग था। तुम राकेश को जानती हो? वो जिसके फादर आई एस थे! वो एक बार मुझे एक पार्टी में मिला। दरअसल प्रमोद अपने सर्किल में होने वाली पार्टियों में मुझे ले जाता था। या ऐसे कहें कि ले जाना उसकी मजबूरी थी। ऐसी ही एक पार्टी में मेरी मुलाकात राकेश से हुई। बातों-बातों में उसने अमोल का ज़िक्र छेड़ दिया। फेसबुक पर उसकी और उसकी फैमिली की तस्वीरें दिखाईं। तब मैंने उससे अमोल का नम्बर ले लिया।” प्रीति बोलती जा रही थी। कविता ने उसे बीच में टोकते हुए पूछा,
“अमोल को बीवी - बच्चों के साथ खुश देख जलन तो हुई होगी तुझे? अमोल की पत्नी है भी बहुत खूबसूरत!”
प्रीति कुछ पल चुपचाप शून्य में ताकती रही। फिर बोली, “जलन तो बहुत हुई थी। पर, मैंने मन को संयमित कर लिया, ये समझाते हुए कि ये अमोल की अच्छी किस्मत थी।”
“फिर क्या हुआ?”
“तीन साल पहले चाचाजी का देहांत हो गया। मैं उनकी क्रिया पर दिल्ली गयी थी। लगभग आठ साल बाद दिल्ली में कदम रखा था। मन किया एक दो दिन रुक जाऊं। क्रिया समाप्त होने के बाद मैंने अपनी सहेली सोनिया से मिलने की सोची। ये जानकर कि मैं दिल्ली में हूँ सोनिया ने एक पार्टी करने की सोची। तुम तो जानती हो सोनिया को, शोशागिरी करने का बहुत शौक है उसे। मैं जब उस पार्टी में पहुंची तो अमोल को वहां देख हैरान हो गई।” ये कह प्रीति का मन अतीत में तीन साल पहले की उस पार्टी में चला गया।
“हैलो….अमोल! कैसे हो तुम?” प्रीति अमोल को देखते ही बोली। उसके मन में तो द्वंद्व चल रहा था पर उस द्वंद्व को वो अपने चेहरे पर नहीं आने दे रही थी।
“हैलो…प्रीति! कैसी हो तुम? वैसे मैं भी क्या पूछ रहा हूँ, तुम तो बढ़िया ही दिख रही हो! डिज़ाइनर साड़ी, मंहगे जेवर! और जीवन में चाहिए ही क्या?” अमोल ने प्रीति को देखते ही तंज कसते हुए कहा।
प्रीति का दिल अंदर तक झलनी हो गया। इतने साल उसपर क्या गुजरी इससे बेखबर अमोल की तंज भरी वाणी उसके ह्रदय को चीर गई। प्रीति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सही कहा जैसे मेरे लिए पैसा ज़रूरी है वैसे ही तुम्हारे लिए खूबसूरती। इतनी सुन्दर पत्नी पा कर दिल और क्या ही चाहेगा? है ना अमोल?”
“आप सबका यहां आने के लिए शुक्रिया। आज हमारी दोस्त प्रीति बहुत सालों बाद दिल्ली आई है। बहुत बड़े बिजनेसमैन प्रमोद गुप्ता की पत्नी हैं, बहुत व्यस्त रहती हैं। आज मौका मिला तो मैंने सोचा कि क्यों ना एक गैट टुगेदर रखा जाए। प्रीति, वैलकम बैक टू दिल्ली।” सोनिया ने माइक थामते हुए कहा।
सब लोगों ने तालियों के साथ प्रीति का स्वागत किया। तभी एक दोस्त बोला, “हम तो कॉलेज के ज़माने से प्रीति के डांस के दीवाने रहे हैं। आज हो जाए प्रीति तुम्हारे साथ एक डांस!” बाकी सबने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए तालियां बजाने शुरू कर दीं।
प्रीति ने तिरछी नजरों से अमोल को देखा। अमोल शांत खड़ा था। प्रीति को ये देख बहुत आश्चर्य हुआ। गुस्से में उसने सबकी फरमाइश मान ली।
सब डांस फ्लोर पर चढ़ गए और गाना बजा
“बदन पे सितारे लपेटे हुए” प्रीति सभी के साथ उस गाने पर झूमने लगी। बीच-बीच में वो अमोल पर नज़र डाल रही थी। अमोल एक कोने में खड़ा हो अपने गिलास से चुस्कियां ले रहा था। अमोल की ये बेरुखी उसे अंदर ही अंदर तोड़ रही थी।
फिर पार्टी में शुरू हुआ सिलसिला दारू पीने का। प्रीति अमोल के व्यवहार से इतनी परेशान थी कि तीन - चार पैग पी गई। अमोल प्रीति को यूँ पीता देख हैरान था। वो जानता था कि प्रीति को शराब से नफ़रत थी। आज प्रीति को शराब के नशे में चूर देख वो असमंजस में पड़ गया।
धीरे -धीरे सब घर जाने लगे। प्रीति को नशे में यूँ चूर देख सोनिया अमोल से बोली, “अमोल, प्रीति अकेले होटल जाने की हालत में नहीं दिख रही है। यहां बस एक तुम हो जिसपर मैं भरोसा कर सकती हूं। प्लीज़, इसे होटल छोड़ दो।”
अमोल भी प्रीति की हालत देख रहा था। उसे इस हालत में देखना उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। इसलिए उसने सोनिया की बात मान ली।
अमोल ने प्रीति के पास जाकर कहा, “प्रीति चलो, मैं तुम्हें होटल छोड़ देता हूं।”
प्रीति ने नशे की हालत में अमोल की तरफ देखते हुए कहा, “क्यों? तुम…क्यों छोड़ोगे? तुम जाओ..अपनी खूबसूरत बीवी के पास। मैं चली जाऊंगी। प्रीति गुप्ता….ओह! सॉरी मिसेज प्रीति प्रमोद गुप्ता को किसी के…सहारे की ज़रूरत नहीं है।” ये कह जैसे ही प्रीति खड़ी हुई वो लड़खड़ा कर गिर गई।
उसकी ऐसी हालत देख अमोल हैरान हो गया। वो इतना तो समझ चुका था कि प्रीति किसी मानसिक तनाव से गुज़र रही थी। तभी सोनिया एक गोली लेकर आई, “प्रीति ये लो, इसे खा लो। तुम…सही फील करोगी।”
“ये क्या है सोनिया?” अमोल ने पूछा।
“नशा भगाने की गोली। मतलब, इससे पूरी तरह नशा खत्म नहीं होगा, पर प्रीति थोड़ी देर में चलने और उठने लायक हो जाएगी। यार! ऐसे होटल में घुसेगी तो लोग बातें बनाएंगे। उसकी इज़्ज़त का सवाल है। ले प्रीति का ये गोली।” सोनिया बोली।
गोली खाने के कुछ पल बाद प्रीति थोड़ा उठने लायक हो गई।
“सोनिया मैं खुद चली जाऊंगी।”
“प्लीज़ ज़िद्द नहीं प्रीति। ये दिल्ली है, यहां रात औरतों का यूं नशे की हालत में निकलना सही नहीं है। बहन, मैं तुझे अपने घर ले जाती, पर सास-ससुर वाला घर है मेरा। इसलिए प्लीज़, अमोल तुझे होटल छोड़ देगा।” सोनिया ने आग्रह किया। प्रीति मान गई।
वो अमोल के पीछे लिफ्ट तक चलते हुए गई। अचानक उसका पैर मुड़ गया। इससे पहले की वो गिरती अमोल ने उसे अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ लिया। कुछ पल के लिए सब थम सा गया। अमोल की बाहों में प्रीति अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही थी। वो एकटक अमोल की आंखों में देख रही थी। अमोल उसे सहारा देते हुए लिफ्ट के अंदर ले गया। लिफ्ट के अंदर भी प्रीति ने अमोल का हाथ नहीं छोड़ा। अमोल ने भी छुड़ाने की कोशिश नहीं की। इतने सालों बाद दोनों एक दूसरे का थोड़ा सा सानिध्य पा खुश थे।
फिर अमोल उसे अपनी गाड़ी की तरफ ले गया। दरवाज़ा खोल उसे सम्मानपूर्वक बैठाया। अमोल का अपनापन देख प्रीति की आंखें डबडबा गई।
अमोल गाड़ी चालू कर होटल की तरह बढ़ गया।
क्रमशः
आस्था सिंघल