भाग 29
खुशियों के उन हसीन पलों को याद करती हुई प्रीति वर्तमान में वापस आई और यथार्थ के धरातल पर अपने आपको फिर से बहुत तन्हा महसूस किया।
“चलो देर से ही सही तुझे अपने पति का प्यार मिल ही गया। ये सुन बहुत खुशी हुई मुझे।” कविता ने प्रीति की आँखों में सच को जानने की कोशिश करते हुए कहा। उसके दिल में प्रीति के लिए सांत्वना ज़रूर थी पर साथ ही गुस्सा भी। जब उसके और प्रमोद के बीच में सब ठीक था तो अमोल उसकी ज़िन्दगी में वापस क्यों आया? अपने पति को वो धोखा क्यों दे रही थी?
“बहन, प्यार शायद मेरे नसीब में है ही नहीं।” प्रीति का ये कहते हुए गला भर आया।
“मतलब? तू कहना क्या चाहती है?” कविता ने पूछा।
“जब मुझे लगा कि सब कुछ सही चल रहा है तभी, एक कड़वी सच्चाई पता चली मुझे। प्रमोद का इस तरह मेरे पास आना, उनका स्वार्थ था ना कि उनका प्यार। बिज़नेस जगत में उनका बहुत नाम है, रुतबा है। बस उसी रुतबे को कायम रखना था। यदि उनकी माताजी के देहांत के बाद हम अलग हो जाते तो उनकी छिपी हुई हकीकत बाहर आ जाती।” प्रीति की आवाज़ में दर्द साफ झलक रहा था।
“कैसी हकीकत?” कविता ने प्रश्न किया।
“प्रमोद के अक्सर बाहर के टूर लगते थे। और वहाँ, वो बिजनेस के साथ-साथ…. अय्याशी भी करते थे। हर रात किसी अप्सरा जैसी खुबसूरत बला के साथ गुज़ारते थे। शादी करने के पीछे का मकसद भी यही था। पत्नी के देहांत के बाद जब वह बाहर रहते थे तो यहाँ घर में उनकी माताजी उन्हें जल्द वापस आने को कहती थीं। मुझसे शादी के बाद माताजी का ध्यान मेरी ओर चला गया, और प्रमोद आज़ाद हो गए।”
“ये सब तुझे कैसे पता चला?” कविता ने पूछा।
प्रीति उठी और अलमारी से एक लिफाफा निकाल कर लाई और कविता की ओर बढ़ाते हुए कहा,”बिजनेसमैन के दुश्मन बहुत होते हैं कविता। ये लिफाफा मुझे उनके किसी राइवल ने भेजा था। शायद ये सोच कर कि प्रमोद को मैं एक्स्पोज़ कर दूंगी।”
“तो…तूने किया क्यों नहीं?” कविता ने प्रीति के हाथ से लिफाफा लेते हुए पूछा। लिफाफे में प्रमोद की बहुत सी लड़कियों के साथ आपत्तिजनक स्थिति में तस्वीरें थीं। उन्हें देख कविता सोच में पड़ गई कि मर्द केवल एक आकर्षक शरीर चाहते हैं? प्यार, अपनापन उनके लिए मायने नहीं रखता क्या? उसे प्रीति के लिए भी बहुत बुरा लगा।
“कविता, प्रमोद को एक्स्पोज़ करके मुझे क्या मिलता? तलाक हो जाता। एलिमनी मिलती। पर मुझे फिर से सब कुछ शुरू करना पड़ता। दिल्ली, पिता के घर तो मैं कभी भी नहीं जाती, जब अकेले ही रहना है तो मैंने सोचा यहां क्यों नहीं? इतना बड़ा बंगला है, बैंक बैलेंस है , नौकर-चाकर हैं। तो ये सब क्यों छोड़ना!” प्रीति ने उत्तर दिया।
कविता ने सोचा कि बात तो प्रीति की भी सही थी। दोबारा सब शुरू करना बहुत मुश्किल होता है। अब कविता को ये जानना था कि अमोल की एंट्री कैसे हुई?
उधर दिल्ली में मनोज के बारे में तिहाड़ जेल से मिली जानकारी के हिसाब से मनोज भी बादली गांव में रहता था। इंस्पेक्टर राठोर अपनी टीम के साथ मनोज के घर पहुंचा।
“मनोज घर पर हैं?” उसके घर जाकर उसने बाहर बैठी एक बूढ़ी औरत से पूछा।
पुलिस को देख बूढ़ी औरत घबरा गई और थरथराती आवाज़ में बोली, “साहब, अब क्या किया है मेरे बेटे ने? अब तो वो सुधर गया है साहब।”
“अम्मा, आप परेशान ना हों। मनोज ने कुछ नहीं किया। एक पुराने केस के सिलसिले में उससे पूछताछ करनी है, उसकी बताई जानकारी शायद हमारे काम आ जाए। बस, इसलिए बुला रहे हैं।” विक्रम ने उसकी बूढ़ी माँ को सांत्वना देते हुए कहा।
आवाज़ सुन मनोज बाहर निकल कर आया। दरवाज़े पर पुलिस खड़ी देख उसके चेहरे का रंग उड़ गया। विक्रम ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा और पास आकर फुसफुसाते हुए बोला,
“चुपचाप हमारे साथ चल ले। तेरी बूढ़ी माँ के सामने मैं कोई हंगामा नहीं करना चाहता।”
मनोज ने डरते हुए अपनी माँ की तरफ देखा और बोला, “माँ मैं…अभी आया। इंस्पेक्टर साहब को कुछ जानकारी चाहिए।” ये कह वो पुलिस जीप में बैठ गया।
थोड़ी दूर एक खुले मैदान में जीप रुकी। हवलदार ने मनोज को उतरने का इशारा किया। मनोज के चेहरे पर पसीने की बूंदें दिख रहीं थीं।
विक्रम ने उसके पास आकर तंज कसते हुए पूछा,
“क्या बात है इतनी तेज़ हवा चल रही है और तेरे पसीने छूट रहे हैं? हवा टाइट हो गई क्या तेरी?”
“साहब, ऐसा क्यों लग रहा है कि आप मेरा फेक एनकाउंटर करने के लिए यहां लाए हो?” मनोज ने डरते हुए कहा।
“अबे! चुप! मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो बेकसूर का फेक एनकाउंटर कर मैडल हासिल कर लूँ। तुझसे सच में कुछ जानना है। नीलम को जानता है ना तू?”
“नीलम? कौन नीलम?” मनोज ने अंजान बनने की कोशिश करते हुए कहा।
“अबे! होशियारी दिखाने की ग़लती मत कर। वो नीलम जिसके पीछे कॉलेज में तू दीवाना था। और उससे ज़बरदस्ती करने के जुर्म में अंदर भी गया था। याद आया अब?” विक्रम ने उसके सिर पर चपत मारते हुए कहा।
“जी साहब, जानता हूं। पर नीलम से उसके बाद कभी नहीं मिला मैं।”
“साले! झूठ बोलता है। नीलम के माता-पिता यहीं तेरे गांव के हैं, ये बात नहीं पता तुझे क्या? और, तेरे कॉल रिकार्ड बताते हैं कि तू नीलम से उसके दूसरे नम्बर पर पिछले छह महीने से लगातार संपर्क में था। जिस दिन नीलम गायब हुई उस दिन भी उसने तुझे फोन किया था।” विक्रम ने उसके कॉलर को खींचते हुए कहा, “झूठ मत बोलना मनोज। झूठों की मैं वो हालत करता हूँ कि फिर कभी सच बोलने लायक भी नहीं रहेगा। क्या चल रहा था तेरे और नीलम के बीच? कहाँ गायब कर दिया उसे? चल, अब सच बता।”
मनोज घबरा गया, “कया? नीलम गायब है? साहब सच में इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है साहब। साहब, कॉलेज के बाद कुछ साल मैं यूं ही गुंडागर्दी करते रहा। एक गैंग से भी जुड़ गया था। बहुत बार जेल भी गया। पर साहब, फिर अचानक मेरे पिता का देहांत हो गया और घर की सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई। बुराई का रास्ता छोड़ काम-काज में लग गया। नौकरी तो कहीं मिल नहीं रही थी साहब इसलिए ऑटोरिक्शा चलाने लगा। इस गरीबी की हालत में शादी भी हो गई साहब। घर परिवार बढ़ा तो ज़िम्मेदारियां भी बढ़ गई साहब। ऑटो के धंधे में कितना कमा लेता साहब? इसलिए कुछ जुगाड़ ढूंढ रहा था। तभी एक दिन अचानक मेरे ऑटो में जो सवारी आकर बैठी वो नीलम थी।
क्रमशः
आस्था सिंघल