A Perfect Murder - 28 in Hindi Thriller by astha singhal books and stories PDF | ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 28

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 28

भाग 28

प्रमोद प्रीति के सामने आकर खड़ा हो गया। प्रीति बिना पलक झपके उसे देखती रही।

“मैं…मैं मानता हूँ कि कल जिस तरह मैं आपसे पेश आया वो ग़लत था। पर…” इससे पहले की प्रमोद आगे बोलता प्रीति बोल पड़ी, “पर अपनी मर्दानगी साबित करने का एक अलग ही मज़ा है। है ना?”

प्रीति का इस तरह बेबाकी से बोलना प्रमोद को बहुत अखर गया। वो तुनक कर बोला, “आपसे शादी मेरी मजबूरी थी। माँ का दबाव था मुझ पर। उन्हें आपसे भी एक वारिस चाहिए। इसलिए मुझे कल रात आपके साथ…”

“मेरे रंग-रूप को लेकर कल रात आपने मुझे जिस तरह अपमानित किया, क्या आपको लगता है वो ठीक था?” प्रीति ने भी उसी मिज़ाज में दूसरा प्रश्न पूछा जिस अंदाज़ में प्रमोद‌ ने जवाब दिया था।

ये प्रश्न सुन, प्रमोद कुछ देर प्रीति के हाव-भाव पढ़ता रहा। उसने प्रीति के स्वभाव के बारे में जो कल्पना की थी प्रीति उससे विपरीत निकली। उसे लगा था कि प्रीति एक सीधी गाय की तरह है, बिना कुछ बोले चुपचाप रहेगी। इसलिए प्रीति का सवाल-जवाब करना उसे अखर रहा था। फिर उसने जेब से अपना पर्स निकाला और उसमें लगी तस्वीर प्रीति को दिखाते हुए बोला, “ये मेरी पत्नी, मेरे बचपन का प्यार मनोरमा है।‌ प्रीति, मनोरमा से ज़्यादा खूबसूरत औरत मैंने जीवन में नहीं देखी। उसका रंग-रूप, नैन-नक्श किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं था। मेरा और मनोरमा का प्यार तब से था जब हम दोनों तेरह साल के थे। पच्चीस साल की उम्र में हमने शादी कर ली। एक साल बाद भगवान ने हमारी झोली में आर्यन को‌ डाल दिया। खुशहाल परिवार था। मनोरमा को पा मैंने जीवन में कुछ और पाना ही नहीं चाहा। पर…केंसर ने उसे मुझसे छीन लिया।

देखिए प्रीति, बुरा मत मानिएगा, पर आप किसी भी लिहाज़ से मनोरमा को टकर नहीं दे‌ सकतीं। ना शक्ल में, ना रंग में, और ना एजुकेशन में। शी वॉज ए स्कॉलर इन साइंस। इसलिए आपका मुझसे उस तरह का प्यार एक्सपेक्ट करना लाज़मी नहीं है। मैं आपको मनोरमा की जगह नहीं दे सकता।”

“तो शादी क्यों की?” प्रीति ने तुनक कर पूछा।

“बताया तो आपको, माँ की वजह से। देखिए इस घर में आपको हर सुख-सुविधा मिलेगी, आप जहां चाहें घूमें, आप स्वतंत्र हैं। पर मुझसे कुछ उम्मीद ना करें।” फिर प्रमोद‌ ने अपनी जेब से एक ए.टी.एम कार्ड निकाल कर उसे देते हुए कहा, “ये रखिए आपका कार्ड। आप स्वतंत्र है जितना मर्ज़ी घूमें, खरीदें। कोई नहीं पूछेगा आपको।”

प्रीति ने चुपचाप उसके हाथ से कार्ड ले लिया। ऐसी ज़िन्दगी तो नहीं चाहती थी उसने। पैसा, घर, गाड़ी, नौकर-चाकर सब उसके पास था, पर पति का प्यार नहीं। पर इसे अपनी किस्मत समझ कर उसने अब इस सत्य को अपना लिया था।

वर्तमान समय
**************

“प्रीति, मुझे बहुत दुख हो रहा है तेरे लिए। क्या कहूँ, शब्द नहीं मिल रहे। फिर उसके बाद कभी तेरे और प्रमोद के बीच संबंध नहीं बनें? उसकी माँ को तो एक बच्चा चाहिए था ना तुझसे?” कविता ने पूछा।

प्रीति ने एक आह भरते हुए कहा, “वैसे तो प्रमोद मेरे कमरे में कभी नहीं आते थे, पर जब उनकी माताजी उन्हें खूब सवाल करती कि वो उसे एक पोता या पोती क्यों नहीं दे पा रहा? क्या वो मुझे स्वीकार नहीं कर पा रहा? तब प्रमोद को गुस्सा आ जाता था। उस गुस्से में और शराब के नशे में चूर हो, वो मेरे कमरे में आते थे और मेरे साथ एक अनचाहा संबंध स्थापित कर चले जाते थे।”

“तो तू प्रेगनेंट नहीं हुई कभी?” कविता को आश्चर्य हुआ।

“कविता, जो इंसान काले रूप-रंग से इतनी घृणा करता हो, सोच अगर मेरे द्वारा पैदा किए बच्चे का रूप-रंग मेरे जैसा होता तो प्रमोद उसे कभी नहीं अपनाता। अपने पति का तिरस्कार, मैं तो सहन कर गयी पर मेरे बच्चे को ये तिरस्कार मिलता तो क्या मैं सहन कर पाती? इसलिए मैंने सोचा कि क्यों एक नन्ही सी जान को इस दुनिया में तिरस्कार, अपमान और घृणा का बोझ उठाने के लिए लाऊं। यह सोच मैंने ऑपरेशन करा लिया। अब मैं कभी माँ नहीं बन सकती।” प्रीति ने सच्चाई का खुलासा करते हुए कहा।

कविता हैरानी से प्रीति को देखती रही। निसंदेह प्रीति का कहना उसे भी ठीक लगा। पर प्रीति ऐसा कदम भी उठा सकती है, इसका उसे अंदाज़ा नहीं था।

“फिर जब तू इतने साल उन्हें बच्चा नहीं दे पाई तो घर में हंगामा नहीं हुआ?” कविता ने पूछा।

“हुआ, क्यों नहीं हुआ। पर प्रमोद की हिम्मत नहीं हुई मुझसे आकर पूछने की। क्योंकि वो जानता था कि यदि मैंने ये बता दिया कि किस तरह वो मुझे नशे की हालत में एक ज़िंदा लाश की तरह नोच कर चला जाता है, तो उसकी माँ उसकी अच्छी खबर लेगी। इसलिए वो सारा दोष अपने ऊपर ले लेता था।” प्रीति ने बताया।

कविता ने नज़रें घूमाते हुए इधर-उधर देखा फिर पूछा, “अब तुम्हारी सास कहाँ हैं?”

“चार साल पहले वो चल बसीं।” प्रीति ने कहा।

“तो अब तुम प्रमोद को डिवोर्स क्यों नहीं दे देती?” कविता ने उससे कुरेदते हुए कुछ उगलवाने की कोशिश की।

“मैंने ऐसा सोचा था और यही सोच मैं उसकी माँ के देहांत के एक माह बाद उसके पास बात करने गयी।” ये कह प्रीति फिर अतीत में खो गई।

“देखिए अब चूंकि माजी भी नहीं रहीं तो आप चाहें तो इस अनचाहे रिश्ते से आज़ाद हो सकते हैं। वैसे भी आर्यन को कभी मेरी ज़रूरत नहीं पड़ी। तो उस तरफ से भी आप आज़ाद हैं।” प्रीति बोली।

“प्रीति, व्यापारी संघ में मेरी एक प्रतिष्ठा है। यदि तुमसे अलग हो जाऊंगा तो बेवजह के सवाल खड़े होंगे। क्या तुम इस शादी से निकलना चाहती हो?”

“शादी? ये शादी तो कभी थी ही नहीं। आपने मेरा बहुत तिरस्कार किया है इस बंधन में। अपने बिस्तर पर आपकी ज़ोर आजमाइश सहन की है मैंने। एक ज़िंदा लाश बनकर रह गई हूँ मैं। इस शादी ने मुझे और दिया ही क्या है?” प्रीति ये कह रो पड़ी।

प्रमोद प्रीति के करीब आया और उसके आँसू पोंछते हुए बोला, “प्रीति मुझे माफ़ कर‌ दो। मैंने तुम्हारे साथ बहुत नाइंसाफी की है। मैं तो माफी मांगने लायक भी नहीं हूं।” ये कह उसने प्रीति को अपनी बाहों में समेट लिया।

उसके बाद प्रमोद ने वो‌ किया जिसकी कल्पना प्रीति ने कभी नहीं की थी। उसने प्रीति के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। प्रीति हैरान थी पर वो इस तरह के अपनेपन और‌ प्यार को तरस रही थी। इसलिए विद्रोह करने की जगह उसने भी समर्पण कर दिया।

उस रात दोनों ने पहली बार एक पति-पत्नी के रूप में एक दूसरे को सम्मान दिया था। दोनों खुश थे।

क्रमशः
आस्था सिंघल