A Perfect Murder - 26 in Hindi Thriller by astha singhal books and stories PDF | ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 26

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 26

भाग 26

फ़्लैश बैक
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“अंकल मुझे एक अच्छी कम्पनी में जॉब मिल गई है। अब तो मैं प्रीति का हाथ मांग सकता हूँ।” अमोल ने मिठाई का डिब्बा प्रीति के पिताजी के सामने रखते हुए कहा।

प्रीति के पिताजी व्यंग्यात्मक लहज़े में बोले, “तन्खवाह कितनी है।”

“जी पच्चीस हजार रुपए। और हर साल इंक्रीमेंट भी होगा।” अमोल ने मुस्कुराते हुए प्रीति की तरफ देखते हुए जवाब दिया।

प्रीति के पिताजी हँसने लगे, “बस, पच्चीस हजार रुपए! इसमें तुम मेरी बेटी को क्या सुख दोगे? आधा पैसा तो किराए में निकल जाएगा।”

“अंकल शुरुआत में पच्चीस हजार भी बुरे नहीं होते। और किराए की चिंता क्यों करनी है। वहाँ मेरठ में अपना घर है अंकल।” अमोल ने‌ गर्व महसूस करते हुए कहा।

“क्या? मेरठ? तुम्हारी नौकरी मेरठ में लगी है?”

“जी अंकल…क्यों मेरठ से आपको कोई परेशानी है?”

“मेरी बेटी मेरठ जैसी घटिया जगह पर रहेगी। कहाँ दिल्ली कहाँ मेरठ! कोई मेल नहीं है दोनों में।” प्रीति के पिताजी ने अपनी मूंछों को ताव देते हुए कहा।

“पर अंकल, बात तो नौकरी हासिल करने की हुई थी। ये बीच में मेरठ और दिल्ली कैसे आ गया? और अंकल, मेरठ में हमारा बहुत बड़ा घर है। और…अच्छी जगह है मेरठ।” अमोल ने अपनी बात रखते हुए कहा।

“अच्छा, तो बेटा जी इतनी ही अच्छी जगह है मेरठ तो तुम मेरठ छोड़कर दिल्ली क्यों आए पढ़ने?” प्रीति के पिताजी भी जल्द हथियार फैंकने वालों में से नहीं थे।

“क्योंकि…. दिल्ली की शिक्षा ज़्यादा बेहतर है इसलिए।” अमोल ने तुरंत जवाब दिया।

“बस यही बात तो सुनना चाहता था मैं। तुम्हारे हिसाब से दिल्ली की शिक्षा बेहतर है, तो जब तुम्हारे बच्चे होंगे तो क्या करोगे? उन्हें मेरठ की शिक्षा दिलाओगे? अरे! मेरे बड़े बेटे का बेटा अमेरिका के स्कूल में पढ़ता है, और बड़ी बिटिया ने अभी अपने बेटे को दिल्ली के सबसे उच्च स्कूल में दाखिला दिलाया है, और मेरी प्रीति के बच्चे तुम से शादी के बाद मेरठ की किसी गली के स्कूल में पढ़ेंगे? बिल्कुल नहीं।” प्रीति के पिता ने अपना अंतिम फरमान सुनाते हुए कहा।

“पर…पापा, मैं अमोल के साथ मेरठ में भी …खुश रहूंगी।” प्रीति ने डरते हुए कहा।

“चुप कर जाओ प्रीति। एक तो इस लड़के के चक्कर में तुमने अपना सारा करियर बर्बाद कर दिया। पढ़ाई करने के समय में महारानी इश्क लड़ा रहीं थीं। अरे! अच्छे से पढ़ाई की होती तो आज बढ़िया नम्बर आए होते। जॉब ऑफर की कमी नहीं होती तुम्हारे पास। ऊपर से भगवान ने नाचने का इतना अच्छा टेलेंट दिया था, वो भी महारानी छोड़कर बैठ गई। इस बात का जवाब आज तक नहीं मिला कि उस्ताद जी की क्लास क्यों छोड़ दीं। कितना पीछे पड़ी थी कि उनसे ही नृत्य सीखना है, कितने जतन करने के बाद तो वो माने थे, कितना भरोसा था उन्हें कि तू उनका नाम रौशन करेगी, पर अचानक सब छोड़ दिया। अब ज़िद पकड़ ली है कि इस लड़के से शादी करनी है। अरे, क्या दे सकता है ये तुझे? एक आराम की ज़िंदगी भी नहीं दे सकता।” प्रीति के पिताजी बोलते ही चले जा रहे थे।

“पापा, मैं अमोल के साथ खुश रहूंगी। हम दोनों मिलकर अपने लिए एक बढ़िया ज़िन्दगी बना ही लेंगे।” प्रीति बोली।

“देखो लड़के, मेरा फैसला पत्थर की लकीर है। ये अब नहीं बदलेगा। अब तुम्हारी मर्ज़ी है कि तुम्हें यहाँ रुक कर अपनी और बेइज्जती करानी है या…बाहर का रास्ता वो रहा। और प्रीति…चुपचाप अपने कमरे में चली जाओ। मैं दोबारा बोलूंगा नहीं….तुम जानती हो मेरे गुस्से को।” प्रीति के पिताजी ने अपने कड़क स्वर में कहा।

प्रीति ने अमोल‌ को देखा और नज़रें झुकाते हुए अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। वो जानती थी कि अब उसके पिताजी कौन सा दूसरा रूप अपना सकते हैं। अमोल‌ प्रीति को जाते हुए देखता रहा। जब वह अपने कमरे में चली गई तब वह उठा और प्रीति के पिताजी को नमस्कार कर वहाँ से निकल गया।

लगभग एक घंटे बाद प्रीति के मोबाइल पर मैसेज आया, “प्रीति, तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता। कल स्टेशन पर सुबह छह बजे तुम्हारा इंतज़ार करुंगा। मैंने बहुत सोच-समझकर ये फैसला लिया है। हम बालिग हैं और अपने निर्णय खुद ले सकते हैं। तुम्हारे पिताजी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम किसी भी तरह छह बजे स्टेशन पहुंच जाना। तुम्हारी मदद के लिए मैंने तुम्हारी सहेली सोनिया से बात कर ली है। वो और मेरा दोस्त प्रथम, मिलकर तुम्हें मेरे पास ले आएंगे। बस तुम्हें हिम्मत करके घर से बाहर निकलना है। प्रीति अब हमारे प्यार को बचाना है या डूबने देना है, ये तुम्हारे हाथों में है। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा। तुम्हारा, सिर्फ तुम्हारा, अमोल।”

ये मैसेज पढ़ते ही प्रीति की आँखें नम हो गईं। उसने ठान लिया कि उसे अमोल चाहिए और कुछ नहीं। उसने सोनिया को मैसेज किया और सारा प्लान तैयार कर लिया। पर किस्मत को कुछ और‌ ही मंजूर था। प्रीति और सोनिया द्वारा बनाए जा रहे प्लान की भनक सोनिया के बड़े भाई को लग गई। सोनिया का बड़ा भाई प्रीति के बड़े भाई का बहुत अच्छा दोस्त था। उसने सारी बात प्रीति के पिताजी को बता दी।

“राहुल, तू सोनिया से कुछ मत कहना। उनका प्लान जैसे चल रहा है चलने दे। प्रीति को मैं देख लूंगा। मेरे मुँह पर कालिख पोत कर जाना चाहती है। इसको तो सबक मैं सिखाऊंगा।” प्रीति के पिताजी ने सोनिया के भाई राहुल को समझाते हुए कहा।

अगली सुबह जब प्रीति घर से भागने के लिए निकली तो दरवाज़ा खोलते ही सामने अपने पिता को खड़ा देख हैरान हो गई।

उसके पिता ने उसके गाल पर तमाचा जड़ते हुए गुस्से से कहा, “तेरी पहली गलती थी, अपने हुनर को अपनी कला को बेवजह बंद कर देने की। मैं तेरे उस निर्णय पर भी चुप रहा। तेरी दूसरी गलती थी, पढ़ाई पर ध्यान ना देकर उस लड़के के साथ घूमना फिरना और इश्क लड़ाना। मैंने तेरी उस गलती को भी माफ कर दिया। तेरी तीसरी गलती थी, उस लड़के से शादी के सपने देखना। वो भी मैं सहन कर गया। पर बेटा, ये जो तू आज करने जा रही थी, घर से भागने की, ये मैं कतई माफ़ नहीं करुंगा।”

प्रीति घुटनों के बल फर्श पर बैठ गई और हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए बोली, “पापा, मैं अमोल से बहुत प्यार करती हूँ। प्लीज़ पापा, मुझे उसके साथ जीने दो।”

“प्रीति, तेरे रंग-रूप को लेकर बचपन से सब मुझे बहुत सुनाते थे। लेकिन मैंने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। बल्कि तुझे अच्छी शिक्षा दी, तेरी नृत्य कला को अपने परिवार के विरुद्ध जाकर भी प्रोत्साहन दिया। क्योंकि, मैं चाहता था कि तेरी पहचान तेरे काम से बने। तेरा रंग-रूप कभी तेरे सामने दीवार ना बने। लेकिन तूने मेरे भरोसे, मेरे यकीन को चकनाचूर कर दिया। अब तेरी मनमानी नहीं चलेगी। तू आज, अभी, दुबई जाएगी, अपनी मौसी के पास। और अब इस बात पर कोई बहस नहीं।” प्रीति के पिता ने ये कह उससे उसका मोबाइल छीन लिया और दरवाजा बंद कर दिया।

उधर जब प्रीति बहुत समय तक घर से बाहर नहीं निकली, ना ही फोन उठाया और ना मैसेज का जवाब दिया, तो सोनिया और प्रथम निराश होकर वहां से चले गए।

स्टेशन‌ पर अमोल बेसब्री से प्रीति के आने का ऐइंतज़ार कर रहा था। सोनिया और प्रथम को वहां आते देख वो खुशी से उछल पड़ा। पर प्रीति उनके साथ नहीं थी।

“अरे! प्रीति कहां है? तुम…तुम दोनों लाए नहीं उसे?” अमोल ने हैरत भरे स्वर में पूछा।

“वो…भाई…वो आई ही नहीं। फोन भी नहीं उठा रही और ना मैसेज के जवाब दे रही है।” प्रथम ने कहा।

“ऐसे कैसे…नहीं आई। रुक मैं फोन करता हूँ।” ये कह अमोल ने दो-तीन बार प्रीति का नम्बर मिलाया। पर, उसने नहीं उठाया।

“शायद बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गई होगी। मुझे कुछ दिन यहां रुक कर उसका इंतज़ार करना चाहिए।” ये कह अमोल स्टेशन से वापस अपने कमरे पर जाने के लिए चल पड़ा। और उधर प्रीति का प्लेन दुबई के लिए उड़ान भर चुका था।

क्रमशः
आस्था सिंघल