Fagun ke Mausam - 29 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 29

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फागुन के मौसम - भाग 29

तारा भी अभी अपने केबिन में पहुँचकर अपने अगले काम के विषय में सोच ही रही थी कि तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी।

उसने मेज़ पर रखा हुआ मोबाइल उठाया तो उसकी स्क्रीन पर राघव का नया फ़ोन नंबर फ़्लैश हो रहा था।

तारा के फ़ोन उठाते ही दूसरी तरफ से राघव ने चहकते हुए कहा, "तारा... तारा... ओह तारा यू आर ग्रेट, रियली।"

"अच्छा, ऐसा क्या कर दिया मैंने?" तारा ने हैरत से पूछा तो राघव बोला, "तुमने बस ये किया है कि तुम मेरे लिए वर्ल्ड की बेस्ट असिस्टेंट ढूँढ़कर लायी हो।"

"ओहो, क्या बात है। जानकी ने एक ही दिन में ऐसा क्या किया भाई कि तुम इस तरह उसका गुणगान कर रहे हो?"

"एक तो ये कि वो अपने काम को लेकर बहुत ही समर्पित है। मुझे उसे बताना ही नहीं पड़ता कि उसे क्या करना है क्योंकि उसे पहले से ही सब कुछ पता होता है।
उसने हमारे फील्ड की तकनीकी पढ़ाई नहीं की है फिर भी उसका जो नॉलेज है न सचमुच हमारे बहुत काम का है।"

"देखा, मैंने कहा था न तुमसे कि वो तुम्हें निराश नहीं करेगी।"

"निराश छोड़ो, मुझे तो पूरा यकीन हो गया है कि हमारा ये नया गेम हमारे पिछले सारे गेम्स के रिकॉर्ड ब्रेक कर देगा।"

"अरे वाह राघव, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?"

"हाँ तारा। पता है जब मैंने इस गेम के बारे में सोचा था तब एक बार के लिए मुझे लगा कि कुछ अलग करने की चाहत में मैं कहीं कोई गलती तो नहीं करने जा रहा हूँ क्योंकि स्कूल लाइफ में मैं और तुम इतिहास में कितने मार्क्स लाते थे ये हम दोनों ही अच्छी तरह जानते हैं।
लेकिन जानकी जो अकेले हम दोनों के मार्क्स मिलाकर उससे भी ज़्यादा मार्क्स लाती रही होगी इस प्रोजेक्ट में उसके साथ ने मेरी सारी शंकाओं को मिटा दिया है।"

"अच्छा, वो कैसे?"

"देखो लेकर तो उसे मैं आया था लुंबिनी लेकिन यहाँ बहुत ही बारीकी से इतिहास की सैर वो मुझे करवा रही है।
हमें कब कहाँ जाना है ये वही तय कर रही है।
और वहाँ जाने के बाद जो भी हम देखते हैं उसके विषय में वो मुझे इतने रोचक तरीके से बताती है कि आज जीवन में पहली बार मुझे पता चला है कि इतिहास एक्चुअली में इतना बोरिंग भी नहीं है जितना आज तक मुझे लगता आया था।"

"ओहो अब तो मुझे लग रहा है कि मैंने इस ट्रिप पर न आकर गलती कर दी। मुझे भी वहाँ तुम दोनों के साथ होना चाहिए था।"

"नहीं, अच्छा हुआ तुम नहीं आयी।" राघव के मुँह से निकला तो तारा बोली, "क्यों? क्यों अच्छा हुआ मेरा न आना?"

"क्योंकि हम यहाँ साइकिल से घूम रहे हैं और तुम्हें तो साइकिल चलानी आती नहीं है। ऐसे में मुझे अपनी साइकिल पर तुम्हारा बोझ ढ़ोना पड़ता न।"

"ये क्यों नहीं कहते कि मैं कबाब में हड्डी बन जाती। दुष्ट कहीं के तुम बस वापस आओ तब मैं तुम्हें देख लूँगी।"

"हाँ-हाँ ठीक है, और अब से तुम्हारा नया नाम जलकुकड़ी।" राघव ने हँसते हुए कहा तो तारा चिढ़कर बोली, "रखो फ़ोन, मैं अपने दफ़्तर में काम कर रही हूँ।"

"ठीक है, अब मैं कल सुबह ही तुम्हें फ़ोन करूँगा क्योंकि आज शायद रिसॉर्ट वापस लौटने में हमें देर रात हो जायेगी।"

"हम्म... ठीक है।" कहते हुए तारा ने जब फ़ोन रख दिया तब राघव सोचने लगा कि अगर तारा सचमुच इस ट्रिप पर आयी होती और उसके सामने ही जानकी के रोकने पर वो बाँसुरी की धुन बर्दाश्त करते हुए रुक जाता तब तारा इस बात पर कैसी प्रतिक्रिया देती? और क्या वो अभी जानकी के साथ जितना सहज है उतना ही तारा की मौजूदगी में भी रह पाता?

"जानकी... आख़िर तुममें ऐसा क्या है कि मुझे तुम्हारी हर बात ही अच्छी लगने लगी है?" राघव आँखें बंद करते हुए बुदबुदाया और फिर धीरे-धीरे उसका शरीर नींद की आगोश में समा गया।

अभी-अभी राघव ने एक मीठा सा सपना देखा ही था कि तभी उसके मोबाइल की लगातार बजती हुई घंटी ने उसे हकीकत की दुनिया में ला खड़ा किया।

मोबाइल की स्क्रीन पर फ़ोन करने वाले का नाम देखे बिना ही राघव ने उसे उठाकर कान से लगाया तो दूसरी तरफ से जानकी ने कहा, "मिस्टर राघव, उठ भी जाइये। सोने के लिए पूरी रात पड़ी है।"

"हम्म... उठता हूँ, रुको न।"

"ओहो तुम दुनिया के इकलौते ऐसे बॉस होगे जिसे उसकी एम्पलॉयी काम पर चलने के लिए कह रही है।"

"अच्छा बाबा, अब ताने मारना बंद करो। मैं बस पाँच मिनट में तुमसे मिलता हूँ।"

"गुड बॉय।" जानकी ने हँसते हुए कहा और फ़ोन रखकर राघव की राह देखने लगी।

राघव के आते ही जानकी उसके साथ कपिलवस्तु की तरफ निकल गयी जिसे तिलैराकोट के नाम से भी जाना जाता है और प्राचीन युग में यह स्थान शाक्य वंश अर्थात उस वंश की राजधानी थी जिसमें भगवान बुद्ध का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था।

लगभग एक घंटे के सफ़र के बाद जानकी और राघव 'चुरे क्षेत्र' में 'बाणगंगा नदी' के तट पर स्थित प्राचीन कपिलवस्तु पहुँच चुके थे।

गाड़ी से उतरने के बाद जानकी ने कहा, "पता है राघव कपिलवस्तु को 'खुला संग्रहालय' कहा जाता है क्योंकि यहाँ सबसे अधिक पुरातात्विक स्थल मिले हैं जिनकी कुल संख्या एक सौ छत्तीस है।"

"ये तो बढ़िया है। मुझे तो इतनी जानकारी ही नहीं थी यहाँ के विषय में।" राघव ने नदी को निहारते हुए कहा तो जानकी ने सहसा उसका हाथ थाम लिया और उसे कपिलवस्तु में मिले हुए महल के अवशेष की तरफ लेकर चल पड़ी।

महल की बची रह गयी निशानियों को देखते हुए जानकी ने कहा, "सोचो कभी ये जगह कितनी खूबसूरत रही होगी। कैसा आलीशान महल खड़ा रहा होगा यहाँ ।
आख़िरकार, यह वह जगह है जहाँ सिद्धार्थ गौतम का जन्म और पालन-पोषण हुआ था।
आज जहाँ हम खड़े हैं कभी यहाँ नन्हा राजकुमार सिद्धार्थ अपने छोटे-छोटे पैरों से चलता होगा, दौड़ता होगा और सारा राजमहल उसे देखकर मुस्कुराता होगा।" कहते-कहते जानकी ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

इस क्षण जब राघव ने उसके चेहरे को देखा तब उसे महसूस हुआ कि शायद जब रानी प्रजापति गौतमी अपने पुत्र सिद्धार्थ के बचपन को जीती होंगी तब उनके चेहरे पर भी ममत्व की ऐसी ही रंगत बिखर जाती होगी जैसी वो इस समय जानकी के चेहरे पर देख रहा था।

सहसा उसने सोचा भविष्य में एक दिन जानकी का भी परिवार होगा, उसके बच्चे होंगे जिन्हें वो इसी तरह स्नेह और दुलार भरी नज़रों से देखा करेगी और तब... तब मैं कहाँ होऊँगा?
हमेशा की तरह अपनी दुनिया में अकेला?

इन ख़्यालों ने यकायक राघव को इतना बेचैन कर दिया कि उसने जानकी से कहा, "हम यहाँ से चलें? अभी और भी कुछ बचा होगा न देखने के लिए।"

"हाँ-हाँ अभी तो बहुत कुछ है, आओ चलो।" जानकी वापस गाड़ी की तरफ बढ़ी तो राघव ने मानों राहत की साँस ली।

अब वो दोनों यहाँ से लगभग ढाई किलोमीटर दूर स्थित 'निग्रोधराम' पहुँचे जो बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है और जिसे 'कुडन' के नाम से भी जाना जाता है।

जानकी ने राघव को बताया कि जब राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन गये तब इसी स्थान पर उन्होंने प्रथम बार अपने पिता राजा शुद्धोदन से मुलाकात की थी और यहीं पर उन्होंने अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल सहित अपने वंश के अन्य लोगों को अपना पहला उपदेश दिया था।

ये सारी जानकारी अपनी स्मृति में संरक्षित करते हुए अब राघव जानकी के साथ 'सगरहवा' की तरफ बढ़ चला जो शाक्यों के नरसंहार का स्थल है।

राघव ने जब इस जगह की डिटेल्स जानकी से पूछीं तब उसने बताया कि पुरातत्वविदों के अनुसार कोसल के राजा प्रसेनजित के पुत्र राजा विरुधक ने बदला लेने के लिए यहाँ सतहत्तर हज़ार शाक्यों की हत्या कर दी थी।

यहाँ मौजूद स्तूपों में घूमते हुए जानकी ने आगे बताया कि ये सारे स्तूप शाक्य जनजाति के उन सदस्यों की स्मृति में बनाये गये हैं जिनका वध कर दिया गया था।

"ओह, पता नहीं निर्दोष लोगों का खून बहाकर किसी को क्या मिलता है?" राघव ने उदास होकर कहा तो जानकी प्रतिउत्तर में कुछ कहने की जगह अब उसे 'धमनिहावा स्तूप' की तरफ ले चली जिसके विषय में माना जाता है कि इसे गौतम बुद्ध के माता-पिता 'राजा शुद्धोदन' और 'रानी मायादेवी' की स्मृति में बनाया गया था।

इन जुड़वां स्तूपों को देखते हुए जानकी में कहा, "वैसे यहाँ एक स्तूप रानी प्रजापति गौतमी को भी समर्पित होना चाहिए था जिन्होंने महारानी माया की मृत्यु के बाद बिना किसी भेदभाव के सिद्धार्थ का बिल्कुल अपने सगे पुत्र की तरह पालन-पोषण किया था।"

राघव भी उसकी इस बात से सहमत था और उसने मन ही मन ये पक्का कर लिया कि अपने नये गेम की बैकग्राउंड स्टोरी में वो रानी प्रजापति गौतमी से मिलते-जुलते चरित्र को एक महत्वपूर्ण स्थान देगा।

अब तक शाम ढ़लने लगी थी और इसी के साथ जानकी को साथ लेकर राघव इस यात्रा के अंतिम पड़ाव 'जगदीशपुर झील' की तरफ बढ़ चला जो यहाँ से लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर था।

इस झील के किनारे टहलते हुए जानकी ने कहा, "तुम्हें पता है राघव सर्दियों की शुरुआत में साइबेरिया, चीन, रूस, मंगोलिया, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों से यहाँ हज़ारों पक्षी आते हैं जो फरवरी तक यहाँ रहते हैं।
काश हम भी यहाँ सर्दियों में आये होते।"

"पर सर्दियों के मौसम में तुम मेरे साथ कहाँ थी जो हम यहाँ आते?" राघव ने कहा तो जानकी अपने माथे पर एक चपत लगाते हुए बोली, "ओह हाँ। अच्छा कोई बात नहीं पर तुम एक वादा करो हम अगली सर्दियों में दोबारा यहाँ आयेंगे।"

जानकी के आगे बढ़े हुए हाथ पर बेहिचक अपना हाथ रखते हुए राघव ने कहा, "पक्का वादा।"

"फिर कितना मज़ा आयेगा न। हम दोनों तब यहाँ गैडवाल, लेसर व्हिस्लिंग बत्तख, टफ्टेड बत्तख, फेरुगिनस बत्तख, नॉर्दर्न पिंटेल, नॉर्दर्न शॉवलर, यूरेशियन विजन, कॉमन पोचार्ड जैसे पक्षियों को देखेंगे और तुम उनके साथ मेरी ढ़ेर सारी तस्वीरें भी खींच देना।"

"जैसी आपकी आज्ञा मैडम। वैसे अगर हमें कल सुबह बनारस लौटना है तो क्या हम यहाँ से प्रस्थान करें क्योंकि हमें लुंबिनी बाज़ार में शॉपिंग भी करनी है।" राघव ने मुस्कुराते हुए कहा तो जानकी भी हँसते हुए बोली, "हाँ-हाँ चलो, फिर मुझे नोट्स भी तो बनाने हैं।"

"ओह गॉड जानकी, अच्छा है कि मैं तुम्हारा बॉस हूँ न कि तुम मेरी बॉस वर्ना तुम तो काम करवा-करवाकर न जाने मेरा क्या हाल करती।"

"वेरी फनी मिस्टर राघव, चलिये अब स्टीयरिंग व्हील सँभालिये।" जानकी ने मुँह बिचकाते हुए गाड़ी का दरवाजा खोला तो उसकी इस भावभंगिमा पर राघव एक बार फिर बेलौस खिलखिला उठा।
क्रमश: