Bundle of Feelings - Book Review in Hindi Book Reviews by Sudhir Srivastava books and stories PDF | पोटली..... एहसासों की - पुस्तक समीक्षा

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पोटली..... एहसासों की - पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
भावों की पोटली है : पोटली ...एहसासों की
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पिछले दिनों जब अनुजा भारती यादव 'मेधा' का एकल कविता संग्रह "पोटली ...एहसासों की" स्नेह स्वरुप प्राप्त हुई थी, तो बतौर कलमकार से अधिक अग्रज के तौर पर मुझे अतीव प्रसन्नता का बोध हुआ था, तब मन के कोने में यह जिज्ञासा, उत्सुकता अब तक बनी रही कि मुझे कुछ तो अपने विचार व्यक्त करने ही चाहिए।
वैसे भी काफी समय से भारती से आभासी संवाद और आभासी मंचों, पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने सुनने का अवसर जब तब मिल ही जाता है। सबसे अधिक प्रसन्नता तब हुई, जबसे यह ज्ञात हुआ कि मेधा के पिता (श्री राम मणि यादव जी) स्वयं एक वरिष्ठ कवि साहित्यकार हैं। तब से लेकर अब तक उनका स्नेह आशीर्वाद मिलता रहने के साथ संवाद भी जब तब हो ही जाता है।
गद्य, पद्य दोनों विधाओं में सतत् सृजनशील संवेदनशील मेधा पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए साहित्य साधना में सक्रिय हैं। साहित्य के प्रति उनका रुझान ही है कि तुलसी साहित्य अकादमी रायपुर की अध्यक्षा का दायित्व भी निभा रही हैं।
30 से अधिक विभिन्न साझा संकलनों में मेधा की कविताएं तथा कहानियों के साथ उनके संपादन में जय जोहार जय गाथा तथा आख्यान लघु कथा व कहानी संग्रह का संपादन उनकी उपलब्धियां बताने के लिए काफी हैं। मेधा की रचनाएं विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती रहती हैं ।अनेक साहित्यिक सम्मानों से सम्मानित श्रीमती भारती यादव 'मेधा' की सद्य : प्रकाशित "पोटली...एहसासों की” काव्य संग्रह में भारती की 120 चुनी हुई कविताएं हैं। जिसकी भूमिका में प्रसिद्ध भाषाविद् समीक्षक डॉ विनय कुमार पाठक (पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग एवं कुलपति थावे विद्यापीठ गोपालगंज बिहार) के अनुसार कविता वस्तुतः एहसासों की पोटली है ,जिसमें संवेदना से संचरित जीवन- अनुभूति बद्ध होती है।
जबकि शुभकामना संदेश में दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह के समूह संपादक डा. शिवेन्द्र दत्त पाण्डेय जी के अनुसार आपकी कविताओं में अधुनातन समाज में पसरती जा रही अमानवीयता को लेकर चिंताएं साफ झलकती हैं।
वहीं रेडियो दूरदर्शन प्रस्तोता एवं साहित्यकार शुभ्रा ठाकुर महसूस करती हैं कि भारती के एहसासों की पोटली में समाहित हैं मन के भाव, कहीं नारी के विविध रूप तो कहीं माँ की ममता का बखान, कहीं माँ से ही सृष्टि होने की बात तो कहीं नारी को सृष्टि की जननी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। उन्होंने कवयित्री की ही पंक्तियों-
"सुलझ जाती हैं कई उलझनें,संवाद अगर हो आपस में,"
और
"खुद से खुद का भी संवाद होना चाहिए"
को उद्धृत करते हुए ही अपना संदेश शुरू किया है।
"मेरी अभिव्यक्ति" में मेधा स्पष्ट करती हैं कि प्रस्तुत काव्य संग्रह मेरा प्रथम काव्य संग्रह भर नहीं सचमुच के एहसासों की पोटली है, जिसमें मेरे मनोभावों के साथ ही मेरे आस पास होने वाली घटनाओं तथा लोगों की भावनाओं को महसूस कर शब्दों में पिरो कर कविता के रूप में कागज पर उतारने का प्रयास मेरे द्वारा किया गया है।
अपने प्रथम काव्य संग्रह को मेधा ने अपने माता पिता ( श्रीमती लीला यादव जी, श्री राम मणि यादव जी) संग जीवनसाथी सी. ए. ऋषिकेश यादव, पुत्री वेदांशी, पुत्र रेयांश और अपने सभी परिजनों को समर्पित कर एक उदाहरण पेश किया है।

संग्रह की रचनाओं के प्रथम पायदान पर गणपति आराधना और द्वितीय पायदान पर सरस्वती वंदना के बाद विविध रंगों में सराबोर काव्य रचनाएं हैं।

'माँ की ममता' में भारती ने माँ की विशालता को रेखांकित करते हुए लिखा है-
क्या लिखूँ माँ मैं आपके लिए
शब्द कम और आप विशाल वजूद लिए
नहीं कर पायेगा कोई वर्णन शब्द लिए
माँ तो बस माँ है ममता की छाँव में बच्चों के लिए....

'छपास रोग' में व्यंग्य भाव से आप लिखती हैं-
उफ्फ.. ये कैसा रोग छपास
बढ़ा देता है जो छपने की प्यास
स्वांत सुखाय का यह प्रयास
अद्भुत जाल है रोग छपास....

लिखने की उत्सुकतावश 'क्या लिखूं' में भारती स्वयं से संवाद करती हैं तभी तो वे लिखती हैं -
मेरा मन कहता है कुछ ना कुछ तो आज लिखूं
सोच रही हूं आखिर आज ... क्या लिखूं.....

जीवन की विसंगतियों की चिंता करते हुए लेखिका सोचती है-
"जीवन में ऐसा क्यों होता है
सोचें कुछ और कुछ होता है "

देश प्रेम के जज्बे को रेखांकित करती रचना झांकी हिंदुस्तान की ये पंक्तियां दुश्मनों को चेतावनी है-
हिंदुस्तान की सीमा पर, बुरी नजर जो डालेंगे।
हम उसका संसार करेंगे, प्रतिकार करेंगे, संहार करेंगे।

इसी प्रकार अपने पहले काव्य संग्रह में मेधा जी ने अपने चिंतन के व्यापक फलक का दर्शन कराया है और जीवन, पारिवारिक, सामाजिक, व्यवहारिक, रिश्ते, नाते, परिवेश, माहौल, राष्ट्रीयता, देशप्रेम, देशभक्ति, सामाजिक कुरीतियों, बुराइयों, विडंबनाओं के विभिन्न आयामों पर अपनी लेखनी चलाई है। मेधा की रचनाएं वास्तव में गहराई तक उतरे एहसासों की पोटली, कोमल भावनाओं और चिंतन की अभिव्यक्ति है। जो पुस्तक के नामकरण की सार्थकता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। जैसे रचनाओं को पढ़ते हुए ये महसूस होता है कि सब कुछ जाना पहचाना, अपना और अपने जीवन, अपने आसपास और अपने/अपनों का ही चित्रण शब्दों में प्रस्तुत किया गया हो।
मैं मधुशाला प्रकाशन से प्रकाशित मेधा के "पोटली....एहसासों की" कविता संग्रह की सफलता के प्रति आश्वस्त होने और निकट भविष्य के संग्रह की प्रतीक्षा के साथ अनुजा मेधा को स्नेहाशीष प्रदान करता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की असीम कामना प्रार्थना करता हूँ।

समीक्षक:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१