Ranjana in Hindi Classic Stories by Narayan Menariya books and stories PDF | रंजना

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रंजना

रंजना - एक सच्ची घटना पर आधारित एक अधूरे प्यार की कहानी है, जिसको मैने दिनाँक 26 जुलाई, 2015 को लिखा था। अधूरा प्यार इसलिए क्योंकि, इस कहानी का एक पात्र अब हमारे बीच इस दुनियां में नही रहा। इस कहानी को लिखने से पहले में इसके एक मुख्य किरदार से मिला लेकिन उसकी मंजूरी नही मिलने की वजह से मैने इस कहानी के सभी पात्रों के नाम एवं जगह का नाम बदल दिया है। नाम बदलने के बाद मुझे इस कहानी को प्रकाशित करने की अनुमती मिल गईं है। इसलिए में इस पूरी कहानी को बिना किसी झूठ मूठ के ज्यों का त्यों आपके सामने प्रस्तुत करता हु। ये इस कहानी का प्रथम भाग है, इसके दो अन्य भाग अभी प्रकाशित करने बाकी है।

 

आज मौसम काफी अच्छा था, और हॉस्टल की पिकनिक थी। जिसमे सभी अध्यापक एवं कक्षा 11वी एवं 12वी के विज्ञान के बच्चे थे। सभी लोग अपने अपने साथियों के साथ ग्रुप बनाकर भ्रमण कर रहे थे । तो रंजना के ग्रुप ने कहा की हम तो उस शिव मंदिर पर चलेंगे। लड़कियों के इस ग्रुप के साथ राजस्थान अध्यन के अध्यापक रवि और हिंदी की अध्यापिका भी चली गईं। रंजना 12वी कक्षा की बायोलॉजी की छात्रा थी जो कोई 18-19 साल की थी और रवि भी कोई 22-23 साल का होगा। 
सब लोग भगवान के आगे हाथ जोड़कर कुछ ना कुछ प्रार्थना कर रहे थे। लेकिन जब रवि की नजर रंजना पर पड़ी तो देखा वो उससे ही देख रहि थी। देखते तो सभी छात्र - छात्रा है, लेकिन आज रवि को रंजना कुछ बदली बदली सी लग रही थी। झूला झूलते हुए फिसलते हुए बाकी सब अपने-अपने हाल में मस्त थे लेकिन न जाने क्यों और रंजना रवि को ही देखे जा रही थी। कुछ दो-तीन बार जब-जब भी रवि की नजर रंजना पर पड़ी, तो वह उसे ही देख रही थी। और जैसे ही रवि देखता तो रंजना नजरे चुरा लेती।


सब पिकनिक से लौट आए। दो दिन बाद जब सोमवार को वापस कक्षाएं प्रारंभ हुई तो रंजना की क्लास में राजस्थान अध्ययन का रवि का छठ कालांश था। आज रंजना बार-बार रवि से प्रश्न पर प्रश्न करती जा रही थी, तो रवि ने भी पूछ ही लिया क्या बात है रंजना आज तो ऐसा लग रहा की मुझे पूरा इतिहास याद करके आना चाहिए था। रवि ने पूछा - "क्यों रंजना, डॉक्टरी का ख्याल छोड़ कर तुम कोई RAS की परीक्षा की तैयारी तो नहीं कर रही हो, जो आज इतने प्रश्न कर रही हो।" ऐसा कह कर रवि हंस पड़ा तो रंजना और बाकी सारे छात्र छात्राएं भी हंस पड़े तब तक सातवीं कालांश की घंटी बज चुकी थी।


रवि अपने घर से दूर जयपुर के इस स्कूल के हॉस्टल में वार्डन था जहां वह पुलिस कोंस्टेबल की तैयारी कर रहा था एवं राजस्थान अध्यन पढ़ात था। रंजना भी कही बाहर दुसरे जिले से थी इसलिए वह भी गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी। उसी दिन शाम को रवि अपने ब्लॉक के बच्चों को खाना खिलाकर नीचे आ ही रहा था कि रंजना भी अपनी लेडीज वार्डन के साथ एवं दूसरी अन्य लड़कियों के साथ खाना खाने जा पहुंची। रंजना बोली गुड नाइट सर तो रवि जाते-जाते रुक गया, और सभी को गुड नाइट कह कर चल दिया। अब रवि भी कुछ बदला बदला सा लग रहा।


रंजना अब कक्षा में हमेशा रवि से कुछ ना कुछ सवाल करती रहती थी, धीरे-धीरे दोनों जान चुके थे कि अब वह शायद एक दूसरे को समझने लगे हैं। 10 दिन बाद फ्रेंडशिप डे था तो दोनों को इसका बेसब्री से इंतजार था। अब कल जब फ्रेंडशिप डे है, तो रंजना अपनी फ्रेंड्स के लिए फ्रेंडशिप डे बेल्ट लाई थी जिसमें एक सबसे अलग लाल कलर का बेल्ट था जिस पर R लिखा था इधर रवि का भी शायद कुछ ऐसा ही हाल था। शाम को जब रंजना खाना खाने आई तो रवि वहीं पर खड़ा था। रविं ने रंजना से कहा - रंजना कल तो फ्रेंडशिप डे है तो मेरे लिए कुछ लाई कि नहीं। रंजना हंस पड़ी और जल्दी-जल्दी से वह बेल्ट निकाला जिस पर R लिखा था और रवि के हाथ में थमा दिया। खैर वह तो हाथ पर बांधना चाहती थी लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई। आज भले ही उन्होंने सिर्फ फ्रेंडशिप डे बेल्ट बांधा लेकिन दोनों ही रात भर सो नहीं पाए। शायद आज उनके दिल के धागे भी बन गए थे।


लेकिन रंजना अंदर तक कांप रही थी वह अपने पापा से बहुत डरती थी। बाद में उसने रवि को भी में अपने पापा के बारे में और उनके व्यवसाय के बारे में बताया। वह जानती थी कि उसके पापा कभी राजी नहीं होंगे फिर भी अब वह रवि को बहुत चाहने लगी थी। उनकी दोस्ती न जाने कब दिल के रिश्तों में बदल गई मालूम ही नहीं पड़ा। लेकिन आज रंजना ने थोड़ी हिम्मत जुटाई और आगे बढ़कर रवि से कहा कि रवि मैं तुमसे... रवि समझ चुका था तो रवि ने भी रंजना से कहा रंजना मैं भी तुम्हें बहुत पसंद करने लगा हूं। बात अब कुछ और आगे बढ़ने लगी थी। धीरे-धीरे अब रवि रंजना के लिए गिफ्ट लाने लगा था तो वह उसे खाना परोसने वाले नीरज को दे देता था। और नीरज रंजना को पहुंचा देता था। रवि और रंजना एक दूसरे से प्यार करते हैं यह बात अब नीरज भी बहुत अच्छे से जानता था। लेकिन नीरज ने कभी किसी से नही कहा। रंजना अपनी हर बात अपनी बड़ी बहन के साथ साझा करती थी लेकिन फिर भी डरती थी कि कहीं रवि के बारे में उसके पापा को पता नहीं चल जाए इसलिए अपनी बड़ी बहन को भी कभी रवि के बारे में नहीं बताया। लेकिन रवि अपनी सारी बातें अपनी छोटी मम्मी के साथ साझा करता था। उसने रंजना के बारे में भी अपनी छोटी मम्मी को बताया था और उसे रंजना की फोटो भी दिखाई।

रंजना की 12वीं कक्षा की बोर्ड एग्जाम के लिए सिर्फ एक महीना बचा था तो रवि ने उसे थोड़ा मिलना जुलना कम कर दिया था। और यह बात रंजना बहुत अच्छी तरीके से जानती थी और अपनी तैयारियां जोरों से शुरू कर दी। लेकिन अंदर ही अंदर रवि और रंजना यह बात बहुत अच्छे से जानते थे कि शायद अब उनकी सिर्फ दो या तीन ही मुलाकात होगी क्योंकि जैसे ही बोर्ड एग्जाम खत्म होंगे रंजना को तो घर जाना है। रंजना की परीक्षा अब खत्म होने वाली थी तो लास्ट एग्जाम से पहले रंजना ने अपने पिताजी को कॉल किया और कहा - "हेलो पापा मुझे लेने कल मत आना, आप बुधवार को आना", पापा ने कहा - "बेटा तुम्हारे एग्जाम तो सोमवार को ही खत्म हो जाएंगे"। लेकिन रंजना ने कहा - "नहीं पापा मैं अपनी सभी सहेलियों के साथ एक रात और रहना चाहती हूं पता नहीं फिर हम कब मिलेंगे। तो पापा इस बात के लिए राज़ी हो गए।"

आज सोमवार की शाम को सभी लड़कियां खाना खाने के बाद जब रवि वहीं पर खड़ा था तो गुड नाइट कह कर कैंटीन से हॉस्टल की तरफ जा रही थी। तो रंजना वहीं रुक गई और कहां मैडम, में सर से 2 मिनट बात करके आ रही हूं। रंजना आज कुछ बोल नहीं पा रही थी उसकी आंखे भर आई थी। उसने धीरे से रवि से कहा - "रवि यदि कही हम कल वापिस मिल नही पाए, तो मैं अपनी डायरी नीरज को मंगलवार की शाम को दे दूंगी। उसमें मेरे घर का पता है और मेरे घर का लैंडलाइन नंबर भी है।" रंजना शायद अब अपने आंसू रोक नहीं पाती इसलिए सिर्फ इतना सा का कर वह कैंटीन से हॉस्टल की तरफ चली गई। आज रंजना ने रवि को गुड नाइट भी नहीं कहा, भला वह गुड नाइट कैसे कह पाती। 


सोमवार दोपहर को रंजना जब अपना लास्ट एग्जाम देकर हॉस्टल पहुंची तो हॉस्टल के बाहर आते ही उसके होश उड़ गए। वह घबरा गई थी, मन में सोचा कि जी भर के रोलू। सामने एक लाल कलर की कार खड़ी थी जो उसके पापा की थी। पापा और उसका छोटा भाई उसे लेने आ पहुंचे थे। रंजना अपने पापा के पैर छूती उससे पहले ही पापा से पूछ लिया - "पापा आप आज क्यों आए हो, मेने कहा था ना की बुधवार को आना?"  पापा ने कहा- "तेरा भाई बहुत जिद कर रहा था। कहने लगा की चलो दीदी को लेने में एक भी दिन नही रुक सकता अब। इसलिए हम आज ही आ गए।"


सामान पैक करने के बाद रंजना ने बहुत देर इंतजार किया लेकिन वह नीरज से मिल नहीं पाई। नीरज कहीं बाजार के काम से बाहर गया हुआ था। जीभर कर रोने के बाद, अपनी डायरी को बैग में रख कर छोटे भाई एवं पिता के साथ घर को निकल गईं। शाम को रवि - कैंटीन के बाहर रंजना का इन्तजार करता रहा लेकिन रंजना नही आइ। रवि कांप रहा था, लेकिन बार-बार मन को समझा रहा था की नही रंजना बिना मिले घर नही जा सकती। फिर बार-बार हर आने जानें वाले से नीरज के बारे में भी पूछ रहा था की- "नीरज कहा है? क्या वो आज काम पर नही आया, क्या वो घर चला गया है ?"

(कहानी को आगे पढ़ने के लिए कृपया इसके दूसरे भाग पर जाए। धन्यवाद।)