Love and Tragedy - 12 in Hindi Love Stories by Urooj Khan books and stories PDF | लव एंड ट्रेजडी - 12

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लव एंड ट्रेजडी - 12







बहुत तेज बारिश हो रही थी तब ही एक शख्स ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था कोई है मुझे बचाओ, कोई है मुझे बचाओ। सब लोग दूर खड़े उसे अपना हाथ दे रहे थे लेकिन कोई भी उस तक नही पहुंच पा रहा था।

बारिश थी की थमने का नाम नही ले रही थी। आसमान काले स्याह बादलों से घिरा हुआ था बिजली कड़क रही थी। चारो ओर पानी ही पानी था मानो सैलाब आ गया हो

ओर वो शक्स अभी भी जोर ज़ोर से चीख रहा था और कही दूर खड़ा एक दूसरा शख्स जो धुंधला धुंधला दिखाई दे रहा था उसे बचाने की कोशिश कर रहा था। अचानक पानी का तेज बहाव उसे अपने साथ ले गया और चीखे आना बंद हो गई

रूपाली जी घबरा कर जोरदार चीख मारकर उठी । पास सो रहे हंसराज जी उठे और बोले " क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा"

पानी, पानी,,,,, रूपाली जी ने कहा



हंसराज जी ने पास रखे जग से गिलास में पानी लोट कर दिया।

रूपाली जी का हलक खुश्क हो गया था। उन्होंने एक ही सास में सारा पानी पी लिया।

"आप ठीक तो है क्या हुआ" हंसराज जी ने पूछा

"बहुत ही डरावना ख्वाब था एक लड़का पानी के बीचों बीच फसा है और ऊपर से मूसलाधार बारिश हो रही थी। वो मदद को चिल्ला रहा था लेकिन अचानक पानी आया और उसे अपने साथ बहा ले गया मैं बहुत डर गई थी।" रूपाली जी ने कहा

हंसराज जी ने उन्हे अपने सीने से लगाया और कहा " डरये नही सोने से पहले हम लोग मानसून की जो बाते कर रहे थे ये उसी का नतीजा था आप आराम से आंखे बंद कीजिए और सो जाइए सब ठीक है"

मुझे बहुत डर लग रहा है हंशित भी इतनी दूर पहाड़ों पर जा रहा है और ऊपर से मानसून की भी आमद हो रही है कही कोई अनहोनी ना होने वाली हो मेरा दिल डर रहा है कही ये ख्वाब कोई अनहोनी का इशारा ना हो कहने को तो अब हंशीत उस हादसे के बाद नॉर्मल हो गया है लेकिन बरसात देख कर वो बिदक सा जाता है और डरने लगता है यहां तो मैं हू तो उसे संभाल लेती हूँ


ना जाने वहा अगर बारिश हुई तब वो क्या करेगा कोन उसे डर पर काबू रखने का हौसला देगा बस इसी वजह से डर रही हू और सुबह का सपना हकीकत होता है बड़े बुजुगों को कहते सुना है मेने" रूपाली जी ने कहा

"तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा, और रही बात हंशित की तो वो भी खुद को संभाल लेगा जो कुछ भी उस रात हुआ था वो एक हादसा था जिसे निबटा दिया गया है और वो सब कुछ तुम्हारे बेटे की बेवकूफियों की वजह से हुआ था अगर मेरी बात मान लेता तो वो सब नही होता जो उस रात हुआ था उस मूसलाधार बारिश में। जिसका खामयाज़ा हम सब ने भरा था और सबसे ज्यादा तुम्हारे उस बेटे ने जिसने MBA छोड़ कर फोटोग्राफी को अपना करियर बना लिया हे " हंसराज ने कहा

" आपको ज़रा सी भी हमदर्दी नही अपने बेटे से नही बनना था उसे आप जैसा कारोबारी उसको कुछ और पसंद था, तो अब उसमे उसका क्या कसूर नही बन सका वो आप जैसा कामयाब इंसान नही हे उसका दिल ऐसा की वो चंद नोटों के इवज़ किसी के अश्याने गिराता फिरे रजत ने भी आपके कहने पर सिंगिंग क्लास छोड़ दी थी क्यूंकि आपको गाना बजाना पसंद नही था। आप हर किसी को अपने हिसाब से नही चला सकते हे वो आपकी औलाद हे आपकी कंपनी में काम करने वाले कोई मुलाजिम नही जिन्हें आप अपनी मर्ज़ी से चलाएंगे" रुपाली जी ने कहा




मैं कोई उन दोनों का दुश्मन नही हूँ और हर बाप चाहता हे की उसका बेटा उससे भी ज्यादा तरक्की करे और मैं भी यही चाहता था, नही चाहता था की वो कुछ और काम करे जब मैंने करोडो का कारोबार खड़ा किया है तो उन दोनों को उसी कारोबार को आगे बढ़ाना चाहिए आखिर कैसे लोगो के मुँह से सुन सकता था कि वो देखो अरबपति बाप की औलाद केसा सड़को पर गाना गाती फिर रही हे और या वो देखो कैसे वो इतने अमीर बाप का लड़का तस्वीरे निकालता फिर रहा है जानवरो की।

आखिर क्या इज़्ज़त रह जाती मेरी, रजत समझदार था जिसे मेरी बात समझ आ गयी लेकिन तुम्हारा दूसरा बेटा बागी निकला उसने अपने सपने के खातिर मेरे करोडो के कारोबार को लात मार दी लूज़र कही का, एक दिन पछतायेगा और घुटनों के बल चल कर आएगा मेरे कारोबार को सभालने के लिए जब फोटोग्राफी का भूत सर से उतर जाएगा। हंसराज जी ने कहा



"आपकी गलत फ़हमी है, उसकी रंगो में भी त्रिपाठी खानदान का खून बह रहा है, वो अपने सपने को तोड़ कर कभी भी आपके पास नहीं आएगा बल्कि एक दिन आपको अपनी गलती का एहसास होगा तब आप उसको गले लगाकर शब्बाशी देना चाहेंगे पर वो आपसे बहुत दूर जा चुका होगा, भगवान के लिए उससे एक बार बाप बन कर मिल लीजिये अपनी इस अना को एक तरफ रख कर उसे उसके सपने के साथ एक बार गले लगा लीजिये" रुपाली जी ने कहा

हरगिज़ नही मैं उसका बाप हूँ वो मेरा नही ये बात आप ज़हनशीन कर लीजिये रुपाली जी, और अब आप भी सो जाइये सुबह होने में अभी समय बाकी है हंसराज जी करवट बदल कर सो गए

"एक दिन ज़रूर आपको मेरी बात समझ आएगी लेकिन जब तक शायद बेहद देर हो चुकी होगी" रुपाली जी ने भी करवट ली और आँखे बंद कर ली

अगली सुबह आरती के बाद सब लोग नाश्ते की मेज पर मिले जहाँ हंशित को छोड़ कर सब ही लोग मौजूद थे ।




रुपाली जी के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ नज़र आ रही थी वो ऊपर से तो खुश दिखाई दे रही थी लेकिन अंदर से वो कल रात वाले सपने को लेकर उदास थी कहने को तो वो सबके साथ बैठी नाश्ता कर रही थी लेकिन उनका ध्यान बार बार उस बारिश में फसे उस लड़के पर जा रहा था जो मदद को चिल्ला रहा था लेकिन पानी का बहाव उसे बहा ले गया ।

बहु, बहु,,,,, हेमलता जी ने आवाज़ दी। लेकिन रुपाली जी ने सुना नही उनका ध्यान उस तरफ था ही नही।

"रुपाली,, रुपाली कहा खोयी हो माँ कब से आवाज़ दे रही है " हंसराज जी ने उनके कंधे पर हाथ मार कर कहा

रुपाली जी चौक कर बोली" क्या हुआ सब ठीक तो हैं ॥

"यहाँ तो सब ठीक है लेकिन तुम कौन सी गहरी सोच के समंदर में डुबकी लगा रही हो, माँ तुमको कब से आवाज़ दे रही है " हंसराज जी ने कहा

"ओह, माँ मुझे माफ करना मैंने सुना नही " रुपाली जी ने कहा अपनी सास से



"कोई बात नही बेटा, अगर कोई परेशानी है तो साँझा करो हमारे साथ शायद कोई हल निकाल सके यूं इस तरह दिल में रखने से सिवाय तकलीफ होती है किसी भी बात को " हेमलता जी ने कहा

"ऐसा कुछ नही है माँ, बस ऐसे ही थोड़ा कुछ सोच रही थी " रुपाली जी ने कहा

"तुम जरूर उस कल रात वाले सपने के बारे में सोच रही हो, माँ समझाओ इसको कि सपने हकीकत नही होते है वो तो बस एक छलावा होते है जो आँख खुलते ही गायब हो जाते है " हंसराज जी ने कहा

"सपने हकीकत नही होते है मानती हूँ लेकिन कभी कभी हकीकत से रूबरू करा देते हैं और भविष्य में होने वाली अनहोनी का आभास दिला देते है बस इस वजह से चिंतित हूँ कि कही ये स्वप्न भी किसी अनहोनी का आभास ना हो" रुपाली जी ने कहा




"नही बहु इतना मत परेशान हो, मैं नही जानती की तुमने कल रात क्या देखा, लेकिन तुम्हारे चेहरे की चिंता बता रही है की तुमने कुछ ज़रूर ऐसा वैसा देखा होगा तब ही तो तुम इतना परेशान दिख रही हो, लेकिन भगवान पर भरोसा रखो और अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाओ बुरा सोचोगी तो बुरा होगा अच्छा सोचोगी तो अच्छा होगा" हेमलता जी ने कहा अपनी बहु को समझाते हुए

"हाँ माँ दादी सही कह रही है, आप चिंता मत कीजिये और आराम से नाश्ता कीजिये मैं जानती हूँ आप भईया के जाने की वजह से खौफ जदा है लेकिन ऐसा वैसा कुछ नही होगा" काव्या ने कहा जो अब तक अपनी माँ से नाराज़ थी लेकिन उसकी चिंता को देख वो अपनी नाराज़गी भूल गयी

"बेटा काव्या तू मुझसे नाराज़ तो नही है ना, मुझे पिछले दिनों इतनी फुर्सत भी नही मिली की मैं तुझसे उस दिन नाश्ते की मेज पर किए बर्ताव की माफ़ी मांग सकूँ, और तू ऐसे ही कॉलेज चली गयी, बेटा मुझे माफ कर देना क्या करू मजबूर हो जाती हूँ कभी कभी समझ नही आता किस का साथ दू और किसका नही" रुपाली जी ने कहा




"अरे माँ वो बात तो मैं कब की भूल गयी और भला कोई बेटी कैसे अपनी माँ से नाराज़ रह सकती है, मैं ही उस दिन कुछ ज़्यादा बोल गयी थी मुझे माफ कर देना" काव्या ने कहा

"बंद करो अब ये माफ़ी नामा कोई मुझ गरीब को भी देख ले मैं भी इसी मेज पर बैठा हूँ और कब से ब्रेड पर जैम लगाने के लिए छुरी का ख्वाहिश मंद हूँ लेकिन आप लोगो की बाते खत्म नही हो रही, रजनी जरा वो छुरी तो पकड़ाना " रजत ने कहा माहौल में बदलाव लाने के लिए

रजत की बात सुन सब लोगो के चेहरे पर मुस्कान की झलक आ गयी और सबने नाश्ता किया उसके बाद हंसराज और रजत दफ्तर चले गए रास्ते में ही हंसराज जी ने रजत से उन झुग्गी झोपडीयों वालों के बारे में पूछा ।

"पापा वो नही मान रहे है अपनी जगह छोड़ने के लिए, कल भी हमारा एक आदमी गया था लेकिन नाकाम लोट आया " रजत ने कहा



"ठीक है अब घी सीधी ऊँगली से नही निकलेगा अब ऊँगली टेड़ी करने का समय आ गया है, ये लोग ऐसे नही मानेंगे इन्हे इन्ही की जुबान में समझाना होगा तब ही ये उस जगह को खाली करेंगे " हंसराज जी ने अपनी जेब से मोबाइल निकालते हुए कहा ।

और उसमे एक नंबर डायल किया और कुछ बात की और फ़ोन रख दिया।

"कौन था पापा, किससे बात की आपने " रजत ने पूछा

"समझो काम हो गया, हमें जो करना था करके देख लिया अब उनकी बारी है अब हम सिर्फ तमाशा देखेंगे तमाशबीन बन कर " हंसराज जी ने हस्ते हुए कहा

"पापा कोई ऐसा वैसा काम मत करना जिससे उन बेचारो की जान को नुकसान हो जाए" रजत ने कहा


"तुम चिंता मत करो बस बैठ कर देखना की कैसे वो लोग उस जगह को खाली करते है, और अगर एक आद को कुछ हो भी जाएगा तो कुछ नही। ये उन्ही की ज़िद्द का नतीजा होगा हमने तो उनसे पहले ही इंसानियत से वहा से जाने का कहा था बेवजह वो ही हम से उलझ रहे है अब उसका नतीजा उनके सामने आ ही जाएगा जब अपने आशयाने टूटते देखेंगे " हंसराज जी ने कहा

"पापा ये गलत नही होगा उनके साथ " रजत ने कहा

"कारोबार में कुछ सही या गलत नही होता, कही तुम भी अपने उस नाकारा भाई की बातो में तो नही आ गए हो जो हो रहा है उसे बस शांति पूर्वक देखते रहो कुछ दिन का शोर होगा उसके बाद सब सही हो जाएगा अगर मैंने भी अपना दिल नर्म रखा होता तो आज मैं इतना बड़ा आदमी ना बनता बल्कि किसी लूज़र की तरह किसी दफ़्तर में काम कर रहा होता सुबह से लेकर शाम तक ना ये गाड़ी होती, ना नौकर ना ऐशो आराम " हंसराज जी ने कहा।




रजत के पास कोई जवाब नही था अपने पिता की उन बातो का वो खामोश रहा वो डरता भी था अपने पिता से उसके अंदर हंशित जैसी हिम्मत नही थी सही को सही और गलत को गलत कहने की दफ्तर आ चुका था और वो बाप बेटे अंदर चले गए।


क्रमशः