अब आगे,
रूही के पिता अमर अब छत की सीढ़ियों से ऊपर की ओर बढ़ गए और जैसे ही वो ऊपर पहुंचे तो उनके मुंह यही शब्द निकले, "रूही, मेरी बच्ची, क्या हुआ तुझे..!"
और वो चिल्लाते हुए रूही के पास पहुंच गए और उस को उठाने की कोशिश करने लगे मगर रूही तो भूख से बेहाल होकर गिरी थी इसलिए अब उस को होश नही आ रहा था..!
और जब रूही के पिता अमर ने देखा कि रूही को होश ही नही आ रहा था तो वो छत पर से ही अपनी दूसरी पत्नी कुसुम का नाम पुकारने लगे..!
और जब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपने दूसरे पति अमर की आवाज सुनी तो पहले तो वो सोचने लगी, "मुझे आज सुबह से ही रूही के बाप की आवाज क्यू सुनाई दे रही है और ये करमजली रूही अभी तक छत से आई क्यू नही, जरूर अपने किसी यार से बाते करने बैठ गई होगी, आज तो मै इस को रंगे हाथ पकड़ कर इस के बाप के द्वारा ही घर से निकलावा दूंगी...!"
और जब रूही की सौतेली मां कुसुम शर्मा निवास की दहलीज आई और अपनी सौतेली बेटी रूही को वही खड़े होकर करमजाली बोलने ही वाली थी तभी उस की नजर छत पर खड़े रूही के पिता अमर पर चली गई और उन को देख कर तो अब रूही की सौतेली मां कुसुम के मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था और वो वही बुत बनी खड़ी रह गई..!
जब रूही के पिता अमर ने रूही की सौतेली मां कुसुम को ऐसे खड़ा देखा तो रूही की सौतेली मां कुसुम पर गुस्सा करते हुए कहा, "अब क्या वही खड़ी रहोगी, आकर मेरी बेटी रूही को उठाओ, वो छत पर बेहोश पड़ी हुई है..!"
रूही की पिता अमर की बात सुन कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम अपने होश में वापस आ गई और जल्दी से भागते हुए छत पर आ गई..!
और अब रूही के पिता अमर के सामने नाटक करते हुए अपनी सौतेली बेटी रूही को प्यार से उठाने की कोशिश करते हुए कहने लगी, "क्या जरूरत थी तुझे इतने सारे कपड़ो को धोने की, मना किया था ना मैने और ये भी कहा था कि तेरी बड़ी बहन रीना धो लेगी पर तू मेरी सुनती ही कहा है, रूही बेटा उठ जाओ, देखो तुम्हारी मां (सौतेली मां कुसुम) का क्या हाल हो गया है..!"
रूही की सौतेली मां कुसुम की ऐसी बाते सुन कर अब रूही के पिता अमर ने अपनी दूसरी पत्नी कुसुम के के कंधे पर हाथ रखते हुए उस से कहा, "हमारी बच्ची को कुछ नही हुआ है कुसुम वो बस गर्मी की धूप में बेहोश हो गई है..!"
रूही के पिता अमर की बात सुन कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपने दूसरे पति अमर से कहा, "तो देख क्या रहे हैं उठाए ना मेरी फूल सी बच्ची को..!"
रूही की सौतेली मां कुसुम की बाते सुन कर रूही के पिता अमर ने अपनी पहली पत्नी से कहा, "मुझे अपनी बच्ची रूही को उठाने में कोई परेशानी नही है पर ये छत का जीना खड़ा होने की वजह से मुझे डर लग रहा था कि कही मेरी बच्ची रूही को चोट न आ जाए..!"
रूही के पिता अमर की बात सुन कर रूही की सौतेली मां कुसुम को न चाहते हुए भी अपने दूसरे पति अमर से कहना पड़ा, "बस इतनी सी बात मै हू ना तो भला मै अपनी फूल सी बच्ची रूही को एक भी खरोच भी आने दूंगी क्या..!"
रूही की सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही के पिता अमर ने अपनी दूसरी पत्नी कुसुम से कहा, "मुझे पता था कि तुम यही कहोगी और मेरी बच्ची रूही को सबसे ज्यादा प्यार भी तो तुम ही करती हो न, तुम सारी परेशानी और तकलीफे अपने ऊपर ले लोगी मगर मेरी बच्ची रूही को एक खरोच भी नही आने देगी..!"
रूही के पिता अमर की बात सुन कर अब रूही की सौतेली मां कुसुम बेमन से अपना सिर हां मे हिला दिया और नौटंकी करते हुए अपने दूसरे पति अमर से कहा, "अब चलिए भी, क्या अब इतनी धूप में यही खड़े रहेंगे..?"
रूही की सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही के पिता अमर ने अपनी बच्ची रूही को सिर की तरफ से उठा लिया और रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही के पैरो की तरफ से पकड़ लिया और अब रूही की सौतेली मां कुसुम पहले नीचे उतरने लगी और फिर रूही के पिता अमर उतरने लगे..!
और ऐसे उतरते उतरते उन दोनो ने रूही को लेकर आधा जीना पार कर लिया, ऐसे ही जब वो दो सीढ़ियां रह गई उस खड़े जीने की तब रूही की सौतेली मां कुसुम का पैर लड़खड़ा गया जिस से रूही की सौतेली मां कुसुम को लगा वो अपनी सौतेली बेटी रूही को अपनी ढाल बना कर बच जायेगी..!
मगर ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि रूही के पिता अमर ने अपनी बच्ची रूही को कश के पकड़ लिया और खुद को संभालते हुए अपनी बच्ची रूही को लेकर वही खड़े जीने पर बैठ गए और रूही की सौतेली मां कुसुम धड़ाम से जमीन पर जाकर गिर गई और उस के मुंह से निकलता है, "हाय राम, मेरी कमर टूट गई...!"
To be Continued......
हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।