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आज वे बहुत दिनों बाद नीचे नाश्ता करने से पहले माँ के मंदिर में आए थे,
“प्रसाद लो दीना---”माँ ने दीनानाथ के हाथ में प्रसाद रखा और ज्यों ही माँ के चरण स्पर्श करने के लिए झुके पैर पीछे की ओर हट गए|
“क्या कर रहे हैं साब ---? ”माधो बुरी तरह बौखला गया था|
दीना मानो नींद से जागे हों, ऐसे चौंक उठे|
“ओह! ”उनकी आँखों से फिर गंगा-जमुना बहने लगीं|
इतने दिनों के बाद नीचे उतरने पर बीच का समय मानो उन्हें भूल सा गया था| सब कुछ पुराने चलचित्र की भाँति उनके सामने से जैसे गुजरने लगा था|
प्रसाद को माथे से लगाकर उन्होंने मुँह में रख लिया और हॉल में पहुँच गए, पीछे–पीछे छाया की भाँति माधो| डाइनिंग-टेबल पर नाश्ता करीने से लगा हुआ था| महाराज और रघु हाथ बाँधे खड़े थे| उन्हें थोड़ा सा नाश्ता करना था, वे कर चुके थे| और भी तो लोग हैं घर में----
“मौसमी का जूस---ताज़ा निकाला है मालिक---”महाराज कह रहे थे|
“नाश्ता कर लिया, अब नहीं”
“बहुत कम खाया है आपने---”
महाराज ने ज़बरदस्ती उन्हें एक छोटे ग्लास में जूस पकड़ा दिया| उसका मन रखने के लिए वे टेबल पर बैठ गए|
“ओके, महाराज लाओ---माधो ! तुमने नाश्ता कर लिया? ”
“जी सरकार, बस दो मिनट में आया ---”वह ऊपर की ओर भागा|
“अब कहाँ ---”? आगे के शब्द उनके मुँह में भरे हुए ही रह गए और वे चुपचाप जूस पीने लगे|
“हैलो पापा, गुड मॉर्निंग ---”जूस का ग्लास उनके होंठों से छलककर अलग हो गया |
दीना बेटी को देखकर आश्चर्यचकित रह गए;
“कैसी हो बेटा ? ”उनके मुँह से निकला| आशी उन्हें विश करने आई थी!
“मैं ठीक हूँ पापा, आप ऑफ़िस जा रहे हैं? विश यू ऑल द बेस्ट---”उसने हाथ आगे बढ़ाया| उन्होंने आगे बढ़कर ग्लास मेज़ पर रख दिया, बेटी का हाथ कसकर पकड़ लिया और उसका सपाट चेहरा देखने लगे|
“बहुत स्ट्रेस मत लीजिएगा और जल्दी घर आकर रेस्ट कीजिएगा| आफ्टरनून में मैं ऑफ़िस चली जाया करूँगी मगर अभी नहीं –दो-चार दिन बाद --”
“एज़ यू विश एंड थैंक्स ---थैंक यू वेरी मच---” अपने मन की भावनाओं को छिपाने के लिए वे फिर से अपना जूस पीने लगे|
“नाश्ता ---”आशी ने उसी सपाट स्वर में महाराज को ऑर्डर दिया |
आशी के सामने बिजली की सी फुर्ती से महाराज ने नाश्ता लगा दिया|
वे कनखियों से बेटी को नाश्ता करते हुए देख रहे थे| खाते समय बिलकुल उसके मुख का आकार बिलकुल सोनी जैसा हो जाता| छोटा सा मुँह था उसका, वैसा ही आशी का भी और छोटे-छोटे ग्रास खाते हुए वह बिलकुल माँ जैसी लगती| अचानक उसे जाने क्या हुआ, नाश्ता खाना बंद करके बैठ गई|
वे कहीं और खो गए थे---
एक बार गोलगप्पे खाते हुए दीनानाथ ने एक बड़ा सा गोलगप्पा सोनी के मुँह में रखने की कोशिश की तो आधा गोलगप्पा टूटकर उसके मुँह में गया और आधा नीचे गिर गया था | दोनों खाते-खाते हँस पड़े तो रहा सहा गोलगप्पा भी मुँह से बाहर उछलकर कूद आया| अब खुलकर, ठहाका लगाने की बारी थी|
“वैसे महाराज, इनके लिए छोटे गोलगप्पे लाया करो, बिलकुल छोटे-छोटे से---”
“मालिक ! इतने छोटे गोलगप्पे मिलते भी तो नहीं हैं | घर पर ही बनाया करूँगा, जब मेमसाहब कहेंगी| ”
“हाँ महाराज, आप मेरे लिए तो घर पर ही बनाया करें---जब कभी बाहर खाने का मन हुआ तब पूरा तो मैंने शायद कभी ही खा खाया हो---अक्सर तो टूट ही जाता है--”सोनी ने मुस्कुराते हुए कहा|
सोनी को चाट पकौड़ी खाने का बहुत शौक था और दीना को भी| सो अक्सर इन खाद्य पदार्थों का सेवन होता ही रहता | फिर महाराज इतने एक्सपर्ट थे कि जो चाहें, जब चाहें कुछ भी बनवा लें | सच बात तो यह थी कि महाराज को लगता था कि मेमसाहब के जाने के बाद उन्हें जंग ही लग गया है | मेमसाहब के जाने के बाद न तो पार्टीज़ ही हुई थीं और न ही बेबी आशी ने कुछ चाट-पकौड़ी जैसी कोई चटपटी फ़रमाइश की थी | कैसा हो गया है रूख-सूखा सा सब –एकदम ड्राय---!
“भई, आप लोग भी तो कुछ खा-पी लिया करो| जो इच्छा हो घर में बनाया करो| ”पर मन किसका होता कुछ चटपटा ज़ायकेदार बनाने का ? घर के मालिक जब रूखा-सूखा खाते हों ----तब ---!
“पापा, अगर आपने नाश्ता कर लिया हो तो आप निकलें ---”
“तुमने क्यों बीच में ही छोड़ दिया---? ”
“नाश्ता करने ही आई थी पर अब मन नहीं है, मैं आराम से करूंगी---और अभी कहीं जाना भी तो नहीं है–”आशी के मूड का कोई ठिकाना तो होता नहीं था, जैसे उसकी मर्ज़ी!
“ओ—के –”दीना कुर्सी से उठे तो माधो ने आगे बढ़कर कुर्सी पीछे कर दी|
“बाय पापा---बेस्ट ऑफ़ लक---अगेन---”
“बाय बेटा, थैंक यू वेरी मच---”दीनानाथ जी बाहर की ओर बढ़े| पीछे-पीछे पता नहीं क्या-क्या लादे माधो भी| उन्हें मालूम था माधो के भानुमती के पिटारे में पानी से लेकर खाना, दूध, दवाइयाँ और तो और हाज़माहज़म की गोलियाँ तक सब व्यवस्थित होंगी| उनको किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो सकती है---डॉ.सहगल का दिया हुआ दवाइयों के समय का चार्ट भी अपनी जेब में रखता था|