Shuny se Shuny tak - 27 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 27

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शून्य से शून्य तक - भाग 27

27 ====

आशी ने अपने सिर को एक झटका देकर यादों के गुबार से निकलने की कोशिश की| परंतु याद तो वह चिड़िया है जो एक डाली से उड़कर दूसरी डाली पर जाकर चीं चीं करने लगती है| 

उसकी मम्मी सोनी बताया करती थी कि’बड़े या ऊँचे वर्ग’ की महिलाओं की किटी पार्टियों में अक्सर इसी बात की चर्चा हुआ करती थी कि किसका पति, कहाँ से, क्या लाया है? जेवर, कपड़ा या जो भी कुछ पत्नी की डिमांड होती| 

सोनी के हाथ में नई डायमंड रिंग देखकर मिसेज़ आलूवलिया ने पूछा;

“इस बार करवाचौथ पर रिंग ही लाए हैं सेठ जी ? ”

सोनी मुस्कुरा दी | क्या मतलब इन सब बातों से ? 

“मिसेज़ दीनानाथ आप लोग कब अपनी मिडल क्लास मैन्टेलिटी से ऊपर आएंगे | क्या कमी है? मुँह खोलकर अच्छी से अच्छी मंहगी चीज़ें माँग लीजिए न ! ”अपने नए हार पर हाथ फिराते हुए बोलीं;

“मेरे मुँह से निकलने की देर हुई नहीं कि मेरे सामने वो चीज़ हाज़िर---आप लोग भी ऐसा ही क्यों नहीं करतीं? आखिर हमारा हक है जी| बताइए, कब से रख रही हैं अपनी डिमांड? ”उन्होंने इतराते हुए फिर से पूछा| 

हर किटी पार्टी में मिसेज़ अहलूवालिया सब पर छाई रहती थी| इस बार सोनी और मिसेज़ सहगल ने उन्हें सबक सिखाने की ठानी थी| 

“कभी से नहीं ---”दोनों ने एक सुर में कहा तो आलूवलिया के चेहरे का रंग उतर गया | 

“तभी तो ऊपर नहीं आ पाते तुम लोग? ”

“कहाँ ऊपर? ”मिसेज़ सहगल ने उन्हें छेड़ा| 

“ओफ़ो---आप लोग भी न----! ”मिसेज़ आलूवलिया खीजने लगीं| उनका मूड खराब होने लगा| 

“लेकिन ऊपर ऐसी उठने की भी क्या ज़रूरत है मिसेज़ आलूवलिया? पति-पत्नी के बीच में ऊपर-नीचे की क्या बात आ गई है? क्या आप---”

“क्या सोनी, तुम मुझ पर रिमार्क पास कर रही हो ? ”वह भुनभुनाई| 

“रिमार्क पास करने की ज़रूरत क्या है ? वह तो स्पष्ट कह रही हैं| ”मिसेज़ सहगल ने कहा तो मिसेज़ आलूवलिया अपना मानसिक संतुलन खो बैठीं---| 

“आप तो उसकी चमची ही हैं, आप तो वही कहेंगी जो वो कहती हैं| ”उन्होंने अपने कटे हुए बालों में उँगली फिराते हुए कहा| 

“माइंड युअर लेंग्वेज मिसेज़ आलूवालिया| यह भाषा ऊपर उठने की नहीं, नीचे गिरने की है| वैसे भी किसी को किसी पर पर्सनल रिमार्क पास करना कोई सभ्यता नहीं है| ये सब छिछोरेपन की बातें हैं| थर्ड रेट की बातें –”मिसेज़ चंद्रा बोलीं| 

घर आकर जब इन सब बातों की चर्चा में मशगूल थीं तभी दीनानाथ जी और डॉ.सहगल आ गए| उन्होंने जब किट्टी पार्टी में होने वाली बातें सुनीं तो हँसते-हँसते सबके पेट दुख गए| 

“तो यह सब होता है आपकी किटी पार्टीज़ में---? ”हँसी को रोकते हुए डॉ.सहगल ने पूछ ही लिया| 

“यही तो होता है, टाइम पास---”सोनी ने भी हँसकर कहा| 

“इस बार तो गजरा भी लगाकर जाऊँगी और सबको बताऊँगी कि गिफ़्ट के साथ गजरा भी लगाते हैं मेरे बालों में, मेरे पति—“हँसते हुए उन्होंने कहा| 

दीनानाथ पुराने पृष्ठ पलटते हुए रुक गए और उन्होंने पत्नी की तस्वीर पर माला टाँग दी| उन्हें ऐसा लगा मानो सोनी के सिर में गजरा लगाकर उसके सिर को सहला रहे हों | 

“क्यों किया तुमने मेरे साथ ऐसा---क्यों ? ”वे फूट-फूटकर रोने लगे, उनकी आँखों से आँसु टपटप उनके गालों पर से फिसलकर नीचे गिरने लगे थे| आहट सुनकर उन्होंने अपने आँसु पोंछे और ‘नॉर्मल’होने का प्रयास करने लगे| 

“साब ! गाड़ी तैयार है---”ड्राइवर था| 
‘तुम चलो, मैं आता हूँ---” दीना जी ने कहा | 

“आप अकेले कैसे चले जाएंगे मालिक? मैं दो मिनट में आता हूँ सरकार फिर चलेंगे| आप अकेले थोड़े ही जाएंगे? मैं आपके साथ चलूँगा मालिक---”

“तू वहाँ क्या करेगा ? ”दीनानाथ ने पूछा| 

“जो यहाँ करता हूँ, वो ही वहाँ करूँगा और क्या साहब –मुझे तो आपके साथ-साथ रहना है | मुझे सब बता दिया डॉक्टर साहब ने ? ”दीनानाथ हँसने लगे, कुछ देर रुके फिर बोले ;

“अच्छा चल, जल्दी कर---”

नीचे उतरने लगे तो माधो बिना बोले ही चुपचाप उनके साथ इस प्रकार नीचे उतरने लगा कि ज़रा सा लड़खड़ाने पर उन्हें संभाल सके|