Shuny se Shuny tak - 9 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 9

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शून्य से शून्य तक - भाग 9

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मिसेज़ सहगल यानि रीना आँटी के भाई की अच्छी खासी कंपनी चलती थी | इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट के काम में खासा नाम था उनका! लेकिन उन्हें कोई भी ऐसा नहीं मिल पाया था जो उनका ‘राइट हैंड’बन पाता | लगभग चालीस-पैंतालीस लोगों की सहायता से शुरू किया गया काम आज हज़ार से भी ऊपर की रोजी-रोटी हो गया था| वे खूब मेहनत करते और सबसे मिलकर व्यवसाय की प्रगति कर रहे थे | पर---मिसेज़ सहगल के भाई अमर सहगल हमेशा अकेलापन महसूस करते थे | शायद इसका कारण उनका अविवाहित होना था | 

कितनी बार उनका घर बसाने की कोशिश की गई लेकिन उनके पास समय ही कहाँ था कि वे शादी के बारे में सोचते | पिछले वर्ष विदेश-यात्रा पर जाते समय ‘एयरक्रेश‘में उनकी मृत्यु हो गई थी | अब क्या? डॉ.सहगल अपनी डॉक्टरी के पेशे से ही ऊपर नहीं आ पाते थे और न ही उनका यह विषय था| मिसेज़ सहगल के अलावा और कोई था ही नहीं जो उस व्यापार को संभालता| पति से सलाह करके उन्होंने भाई का व्यापार संभालने की कोशिश की| 

मनु उन दिनों अपनी पढ़ाई पूरी करके इंग्लैंड में ही किसी कंपनी में काम करने लगा था | मामा की मृत्यु की सूचना पाकर उसने मम्मी-पापा के कहने से ‘रिज़ाइन’ कर तो दिया था परंतु बॉंड के अनुसार उसे पूरे एक वर्ष और वहीं रहना था| वह मामा की मृत्यु पर कुछेक दिन के लिए बड़ी मुश्किल से आ सका था| अपने ‘बॉन्ड’ का समय पूरा करके वापिस बंबई आ गया था और मम्मी के साथ मिलकर मामा की कंपनी को संभालने के प्रयास में लगा हुआ था| बड़ी मुश्किल से उसे अपने मनोरंजन के लिए थोड़ा-बहुत समय मिल पाता तो माता-पिता उसे दीना अंकल के यहाँ खींच लाते| दरअसल वह भी अब बहुत बोर होने लगा था| 

‘आखिर चाहते क्या हैं उससे ये लोग? ’वह सोचता | 

क्यों उसे बार-बार यहाँ लाना चाहते हैं? जहाँ उसकी कोई पूछ ही नहीं है| 

क्या बताएँ रीना सहगल बेटे को कि वे लोग क्या चाहते हैं? उनकी सहेली सोनी और उन्होंने अपने बच्चों यानि मनु और आशी के लिए न जाने क्या-क्या सपने सजाए थे जो अब धूलि-धूसरित होते दिखाई दे रहे थे| आखिर ऐसी बद् दिमाग लड़की से कोई किस प्रकार संबंध बना सकता है? फिर मनु जैसे सुंदर, स्वस्थ, बुद्धिमान, स्मार्ट लड़के की तो बात ही क्या थी? एक से एक अच्छे घर के लोग उसके रिश्ते में दिलचस्पी दिखा रहे थे लेकिन वह अभी किसी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था| उधर माँ आशी के प्रति अपनी सहेली सोनी की इच्छा पूरा करना चाहती थी| लेकिन उनके हाथ में अपने बेटे और आशी की डोर ही नहीं आ रही थी | 

मनु को अपने मामा की कंपनी की चिंता थी जिसका भविष्य डगमगा रहा था | वह कंपनी अभी मामा के पच्चीस परसेंट के पार्टनर के हाथ में चल रही थी, जिसे मामा जी को मजबूरन साथ में अपनी सहायता के लिए रखना पड़ा था| कोई संतान न होने के कारण वे चाहते थे कि मनु कंपनी का हिसाब-किताब संभाल ले लेकिन वह इंग्लैंड से आ ही नहीं पाया था| अब वह रात-दिन एक कर रहा था लेकिन चार भागों में विभाजित कंपनी का काम अभी तक उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था | उन चारों शाखाओं में कुल मिलाकर लगभग एक हज़ार कर्मचारी काम करते थे जिससे वह वैसे ही परेशान रहता था| कंपनी इतना नुकसान दिखा रही थी कि उसकी मम्मी भी परेशान हो गई थी और अब उसे भी समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कर्मचारियों को लेकर चलने वाली कंपनी अभी तक आखिर इतने नुकसान में चल कैसे रही है ? कहीं न कहीं बहुत बड़ी साजिश थी जिसकी वजह अभी तक समझ में नहीं आ रही थी | वह और उसकी मम्मी दोनों ही थकने लगे थे इस कंपनी का काम करते-करते | घर में पापा-मम्मी से भी उसकी चर्चा होती थी लेकिन अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं आ पाया था| 

“पापा ! मैं सोचता हूँ कब तक इस काम में जुड़ा रहूँगा? ”

“क्यों अभी तक स्थिति संभल नहीं रही है क्या? ”डॉ.सहगल ने पिछली बार पूछा था| 

“कुछ क्लीयर नहीं हो पा रहा है| अब इतने दिन तो हो गए हैं| उधर कुछेक मल्टीनेशनल कम्पनीज़ के अच्छे ऑफ़र मैं ठुकरा चुका हूँ | अब तक इसका फ़्यूचर कुछ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है ---”

मिसेज़ सहगल यानि रीना चाहती थीं कि भाई की निशानी के तौर पर कंपनी खूब ऊंचाइयों पर पहुँचे इसीलिए वे खुद भी इस काम में जुट गईं थीं | उनके भाई अक्सर कहा भी करते थे ;

“भई! मनु के लिए बैकग्राउंड तैयार कर रहा हूँ | जब आएगा तब संभाल लेगा सब कुछ | मुझे उससे बहुत आशा है---| ”

डॉक्टर उन्हें बहुत समझाते थे कि अकेले इंसान को इतना टूटने की आखिर ज़रूरत ही क्या है पर उन्होंने शरीर तोड़ मेहनत की और बारह/तेरह साल में काम इतना अधिक बढ़ गया कि उन्हें एक ‘वर्किंग पार्टनर’लेना ही पड़ा| उसके बाद गड़बड़ियों की शुरुआत होने लगी और जब तक मनु वापिस आया तब तक बहुत कुछ गड़बड़ हो चुका था –

“मनु! बस अब तुम आ जाओ | तुम्हारी वहाँ पढ़ाई की इच्छा थी, वो पूरी हो गई | अब संभालो आकर—”

“नहीं मामा जी मैं थोड़ा एक्सपीरियंस ले लूँ ---”

“पर बेटा, वहाँ का एक्सपीरियंस यहाँ कुछ काम नहीं आ पाएगा ---वहाँ और यहाँ ---”

“अरे! मामा जी कुल दो साल की ही तो बात है| यहाँ कैंपस सिलेक्शन हुआ है और इतनी अच्छी ऑफ़र आई है| ठुकराते नहीं बनता---| ”