Shuny se Shuny tak - 4 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 4

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शून्य से शून्य तक - भाग 4

4===

वैसे तो दीनानाथ के महल से घर में सेवकों की फौज की कोई कमी नहीं थी परंतु उनकी लाड़ली बेटी आशी बड़ी मुश्किल से किसी के बस में आ पाती थी | लाड़-प्यार की अधिकता के कारण आशी बड़ी होने के साथ-साथ ज़िद्दी होती जा रही थी | यहाँ तककि वह अपनी ज़िद में घर के सेवकों से दुर्व्यवहार कर जाती | माँ-बाप कितना समझाते, धीरे से डाँटते भी पर उसकी ज़िद घर भर को सिर पर उठा लेती | आखिर में आशी को पार्क में घुमाने के लिए भेजा जाता | वहाँ वह दूसरे बच्चों और माधो के साथ खूब खेलती और इतनी थक जाती कि गाड़ी में ही सो जाती | फिर आधी रात को उसे भूख लगती और माँ सोनी आधी नींद में ही खिलाकर फिर से उसे सुला देती| 

जीवन का चक्र इसी प्रकार चलता रहता है | दिन, रात और फिर दिन किसी के जीवन में उजाला लेकर आता है तो किसी के लिए घोर अँधकारयुक्त होकर आता है | इस दुनिया में पैसे, धन, संपत्ति को ही अधिक आदर दिया जाता है, उसे ही सम्मान प्राप्त होता है जिसके पास भरपूर हो या फिर उन्हें जो मुहफट और बेशर्म होते हैं, उनसे दुनिया डरकर उन्हें आदर, सम्मान देने का दिखावा करती है| लेकिन दोनों के आदर, सम्मान में जमीन–आसमान का फ़र्क होता है| हाँ, एक और भी है, वो यह कि जो वास्तव में सम्मान का अधिकारी होता है, जिसने अपने जीवन को किसी विशेष कार्य के लिए समर्पित किया हो| ऐसे इंसान को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं क्योंकि न तो वह किसी के पीछे-पीछे घूमकर सम्मान पाने की आकांक्षा करता है और न ही उसे किसी सम्मान की ललक रहती है| 

आशी के पिता सेठ दीनानाथ इसी श्रेणी के व्यक्ति थे | समाज के लिए उन्होंने अपना जीवन ही समर्पित कर दिया था| शहर के सर्वोच्च अमीरों में शुमार दीनानाथ जितने बाहर से सीधे-सादे थे, उतने ही भीतर से सरल एवं गुणवान ! मालूम नहीं उन पर ईश्वर की कौन सी अलौकिक दृष्टि की वर्षा होती रहती थी कि एक बार पूरी तरह टूट जाने के बाद भी वे उसी स्थिति में आ गए थे जिसमें पिता के घर में रहते थे, जिसमें उनका बचपन बीता था| कहा जाता है कि घर की स्त्री ही लक्ष्मी एवं शारदा होती हैँ, यह बात उनके परिवार पर सदा ही खरी उतरी है| धन, वैभव, ऐश्वर्य के मालिक होने के उपरांत उन्हें जो यश और गरिमा प्राप्त हुई थी, वह बहुत कम लोगों के भाग्य में आ पाती है| जैसा गरिमामय सादगीपूर्ण व्यक्तित्व दीनानाथ का था, वैसा सादा, शीलयुक्त रूप उनकी पत्नी सोनी का ! 

सूरज की पहली किरण सी आभा से युक्त पत्नी का मुख दीनानाथ उठते ही देखते, बिस्तर में ही प्रभु का स्मरण करके, उसे अपने लौकिक सुखों की प्राप्ति के लिए पुन:पुन: धन्यवाद देते और फिर अपनी दिनचर्या में लिप्त हो जाते | घर के सेवक, महाराज, शोफर--–सभी उनके समक्ष स्वस्थ व प्रफुल्लित रहते थे| उनके घर आने वाले किसी भी मेहमान को यही आभास होता था कि स्वर्ग अगर है तो यहीं है | ईश्वर के कोटिश:शुभाशीर्वादों की दृष्टि मानो दीनानाथ ऊपर से ही लिखवाकर लाए थे| कहा जाता है कि कोई भी मनुष्य सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता | विधाता कुछ न कुछ खोट तो मनुष्य के भाग्य में लिख ही देता है| हाँ, चाहे वह उसकी परीक्षा करने के लिए ऐसा करता हो| संभवत:ईश्वर कहना चाहता है कि उसने मनुष्य को आँख, नाक, हाथ, पैर, मस्तिष्क और सभी अवयव और इंद्रियाँ प्रदान की हैं अब इतना प्राप्त करने के पश्चात् मनुष्य का काम रह जाता है कि वह उनका सकारात्मक उपयोग करे| कुछ लोग इन सब आशीर्वादों का उपयोग सही ढंग से कर पाते हैं और कुछ गलत! अब यहाँ पर सही और गलत की व्याख्या और परिभाषा का प्रश्न उत्पन्न हो सकता है अत:इसकी विशेष चर्चा में न पड़कर हम यही कह सकते हैं कि विधाता ने प्रत्येक मनुष्य के प्रारब्ध को पहले से ही लिखकर रखा है| ’उसने’ भी सोचा नहीं होगा कि दीनानाथ उसके द्वारा दिए गए अवयवों का, धन का, संपत्ति का, इतना अधिक सही उपयोग करते रहेंगे | अत:शायद ईश्वर ने भी उनकी परीक्षा लेने के बारे में कुछ योजना बना ली हो जिनमें वह अभी तक तो खरे ही उतरते रहे थे| एक प्यारी सी बिटिया और उसके चारों ओर परिवार का हरेक सदस्य ! हाँ, उस परिवार के सारे सेवक भी तो दीनानाथ के परिवार के सदस्य ही तो थे |