Aemi - 3 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | एमी - भाग 3

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एमी - भाग 3

भाग -3

जब उन्होंने प्रेयर ख़त्म की तो मैं एकदम उनके सामने आ गई। ऐसा मैंने यह सोचकर किया कि इससे वह जान जाएँगी कि मैंने उनकी सारी बातें सुन ली हैं, इसलिए वह कुछ छुपाने का प्रयास ना करें। मुझे अपने सामने देखकर वह चौंकी। उनकी आँखों में नाराज़गी उभर आई। मैंने तुरंत सारी विनम्रता उड़ेलते हुए उनसे माफ़ी माँगी कि मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई। मुझे ऐसे समय में आपके पास नहीं आना चाहिए था। अपनी विनम्रता से मैंने उनका ग़ुस्सा एकदम शांत कर दिया। उन्हीं के कमरे में उनको बैठा दिया, बेड पर ही। फिर दो कप कॉफ़ी बनाकर ले आई। उन्हें कॉफ़ी बहुत पसंद है। कप उनके हाथों में पकड़ा कर मैंने फिर माफ़ी माँगी।

जब उन्होंने पहला सिप लिया तो मैंने पूछा मॉम कॉफ़ी कैसी बनी है? उन्होंने जो जवाब दिया वह मैं पहली बार सुन रही थी। क्योंकि वह हमेशा कहती थीं कि, "तुम अच्छी कॉफ़ी नहीं बना सकती। तुम्हें कम से कम कॉफी, चाय, पेस्ट्री, केक बनाना तो आना ही चाहिए।" लेकिन उस दिन उन्होंने कहा कि, "बढ़िया बनी है।" मैं जानती थी कि वह मेरी झूठी प्रशंसा कर रही हैं। लेकिन मैं अनजान बनी रही। मैंने थैंक्यू बोला। कुछ इधर-उधर की बातें तब-तक कीं जब-तक कि कॉफ़ी ख़त्म नहीं हो गई। 

उसके बाद कप किचेन में रख कर मैं वापस उनके पास आ कर बैठ गई। फिर स्टेट फ़ॉरवर्ड बात करने की अपनी आदत के अनुसार ही उनसे पूछा कि जस्टिन से आपका क्या झगड़ा हुआ था, मुझे बताइए। मैं सही बात जानकर जस्टिन से बात करूँगी, उसे समझाऊँगी, मैं कल कॉल करूँगी, मैटर सॉल्व करूँगी, यह कोई तरीक़ा नहीं हुआ कि जस्टिन मामूली सी बात के कारण हमेशा के लिए घर छोड़ दे। अपनी मॉम, सिस्टर को हमेशा के लिए छोड़ दे।

मेरे क्वेश्चन पर मदर चुप्पी साधे रहीं। फिर एक बार वह सामने दीवार पर लगी प्रभु जीसस के कैलेंडर को देखने लगीं। मैंने सोचा यह तो अच्छी बात नहीं है। मदर को बोलना चाहिए कि वह हम सब बच्चों से, अपने बच्चों से, इतनी दूरी बनाकर कैसे रह सकती हैं। मैंने पूरा ज़ोर देकर फिर प्रश्न रिपीट किया। तब वह नाराज़गी भरे स्वर में बोलीं, "प्लीज़ मुझे परेशान नहीं करो। मैं इस टॉपिक पर कोई बात नहीं करना चाहती। तुम लोग बड़े हो गए हो, जो ठीक समझो करो, मैं कहीं भी किसी के बीच में नहीं हूँ। मुझे, और तुम दोनों को भी अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहिए। प्रभु जीसस ने हमें यह राइट दिया है। हमें किसी के बीच में नहीं आना चाहिए।" मदर ने इसी तरह कई बातें बिना रुके ही कह डालीं। उन्होंने जो बातें, जिस टोन में कहीं उस टोन में उन्होंने पहले कभी घर में बात नहीं की थी। मैं बेहद आश्चर्य में थी। मदर को क्या हो गया है। इतने रफ़टोन में क्यों बात कर रही हैं। हम दोनों भाई-बहन इनकी किसी बातचीत में कब आए हैं। यह नौकरी के अलावा कौन सा काम कर भी रही हैं कि हम इनके बीच में आते हैं।

मैं उनके कठोर व्यवहार से नाराज़ तो तभी से थी जब से वह जस्टिन से लड़ी थीं। जिसके कारण भाई ने हमेशा के लिए घर छोड़ दिया और उन्हें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं थी। इनका बिहेवियर तो ऐसा हो रहा है जैसे कि यह हम दोनों की मदर हैं ही नहीं। कोई बाहरी हैं।

इन्हें देख कर तो लगता ही नहीं कि अभी जल्दी ही हमारे फ़ादर, उनके हस्बैंड की एक्सीडेंट में डेथ हो गई है। ओह... जीसस कितनी दर्दनाक थी उनकी डेथ। कितनी भयानक चोटें थीं उनके चेहरे, सिर, सारे शरीर पर। क्या फ़ादर की इतनी दर्दनाक मौत का इन पर कोई असर नहीं है। इन्हें दुख नहीं है। मुझे वह दृश्य एकदम आँखों के सामने चलता हुआ सा दिखा। ऐसा लगा जैसे दृश्य मेरे सामने से गुज़रते हुए आगे जा रहा है। जब मैंने हॉस्पिटल में उन्हें ख़ून से लथपथ पट्टियों से भरा देखा था। कितना भयावह हो चुका था उनका चेहरा। यह सब याद आते ही मेरा ग़ुस्सा एकदम बढ़ गया।

मैंने कहा आप कैसी बातें कर रही हैं? आज तक आप ने जस्टिन और मेरे किसी काम में और हम दोनों ने कभी आपके किसी काम में कोई बात कहाँ की है। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। फिर आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं। हम लोग आपके लिए अचानक इतने डिस्टर्बिंग एलिमेंट कैसे बन गए, हाँ फ़ादर को लेकर जो बात है उसे आप खुलकर साफ़-साफ़ बताइए। मेरा टोन भी थोड़ा नाराज़गी से भरा था। मैंने पहले कभी भी भाई, पैरेंट्स से इतने ख़राब टोन में बात नहीं की थी। इसलिए मदर को भी शॉक लगा। वह बड़ी देर तक मुझे देखती रहीं। फिर कहा, "तुम्हें मुझसे इतनी बदतमीज़ी के साथ बात करने का हक़ किसने दिया। क्या तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि मुझसे क्वेश्चन करो।"

मॉम बहुत नाराज़ हो गईं। लेकिन मैंने भी वह रीज़न जान लेने की ठान ली थी, जिसके कारण वह परिवार से इतना नाराज़ थीं। हमारी उनकी बहस लंबी होती गई। बहुत ही गर्म भी। आख़िर जब मुझे लगा कि मदर मानसिक रूप से सच बताने की स्थिति में आ गई हैं, तो मैंने पूरा प्रेशर देकर कहा, मॉम आप प्रभु जीसस को मानती हैं। उन पर आपका अटूट विश्वास है, मेरा भी है, वह हमारे अच्छे-बुरे सारे कामों को देखते रहते थे, उनसे हम कुछ भी छुपा नहीं सकते हैं। हमारे दुखों का कारण ही यही है कि हम छुपाने का प्रयास करते हैं।

प्रभु यीशु शरण में आए व्यक्ति का दुख दूर करते हैं, जब आप उनसे अपने पाप को माफ़ करने के लिए प्रार्थना कर रही हैं। आप उनके शरण में है, तो फिर परेशान होने की क्या ज़रूरत है। वह सब ठीक करेगा। आप जिस पाप की बात कर रही हैं। जिसके कारण आप इतना परेशान हैं। उसे बताइए ना, आख़िर हमने क्या किया है, कि आप मुझसे, जस्टिन से, फ़ादर से इतना नाराज़ हैं। जस्टिन ने घर से रिलेशन ख़त्म कर दिए हैं। आप बार-बार गॉड से माफ़ी माँग रही हैं। सोचिए, सोचिए कितने दुख की बात है कि डैड की डेथ हो गई है। प्लीज़ बताइए, बताइए क्या बात है? आप बता कर ही प्रॉब्लम सॉल्व कर सकेंगी।

मैं बिल्कुल पीछे पड़ गई। मैंने कन्फ़ेशन की बात भी फिर उठाई। इसके बाद मॉम को लगा कि मैं बहुत कुछ जान चुकी हूँ तो अंततः सच बता दिया। जिसे सुनकर मैंने सोचा जस्टिन ने जो किया सही किया। मुझे भी उसी के रास्ते पर जाना चाहिए। ग़ुस्सा इसलिए भी मेरा और ज़्यादा बढ़ रहा था कि मैं यह भी समझ रही थी कि मदर को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है।

फ़ादर की डेथ का एकमात्र कारण वही निकला जिसका आरोप फ़ादर बराबर लगाते थे। और मदर पूरी ढिठाई के साथ झूठ पर झूठ बोलकर उन्हें ही झूठा, शक्की स्वभाव का अनकल्चर्ड आदमी कहकर उनकी इंसल्ट करती थीं। जो सच अब यह स्वीकार करने की हिम्मत कर पाई हैं, यदि यह उसी समय कर लेतीं, प्यार से फ़ादर से माफ़ी माँग लेतीं तो वह निश्चित ही माफ़ कर देते। वह कितने दयालु, कितने लिबरल थे। कितनी बार रिक्वेस्ट करते थे कि प्लीज़ सच बता दो मैं कुछ नहीं कहूँगा। ग़लतियाँ इंसान से हो ही जाती हैं। हम दोनों एक अच्छे कपल की तरह अपने बच्चों के साथ रहेंगे। 

लेकिन मदर ने जो एक बार झूठ को सही कहने की रट लगाई थी तो सच स्वीकार करने से पहले तक लगाती ही रहीं। इनका जो सच है उससे भले ही फ़ादर की यह बात ना सच हो कि जस्टिन और मैं उनके बच्चे नहीं हैं, लेकिन इस बात के सच होने की पूरी संभावना है कि अपने जिस तीसरे चाइल्ड को अबॉर्ट करा दिया था वह फ़ादर का नहीं था। इसीलिए फ़ादर ने ज़िद करके अबॉर्ट कराया था। और मदर की हरकतों के कारण ही परेशान होकर उन्होंने अंधाधुंध शराब पीनी शुरू कर दी थी। एक तरह से वह शराब के ज़रिए ख़ुद को ख़त्म करने पर तुले हुए थे।

बेचारे हम सब को कितना प्यार करते थे, मदर को भी। लेकिन जब से वह हॉस्पिटल में किसी के साथ जुड़ीं तब से सब कुछ बदलता चला गया। इस तरह की बातें छुपी नहीं रहतीं तो फ़ादर से कैसे छिप जातीं। उन तक पहुँच ही गईं। जिसे मदर बार-बार झूठ बताती रहीं। अंततः फ़ादर उनके इस झूठ की बलि चढ़ गए। ऐसी बातें परमाणु विखंडन से भी कहीं तेज़ एक से दो, दो से चार, चार से आठ से भी ज़्यादा तेज़ी से लोगों तक पहुँचती हैं। जस्टिन तक भी पहुँचीं। फ़ादर से तो हम बराबर सुनते ही रहते थे। उनके ना रहने पर आए लोगों में ही वह व्यक्ति भी था जिसकी वाइफ़ मदर के साथ हॉस्पिटल में है। उसकी वाइफ़ उससे सब कुछ बताती थी। इस कपल ने फ़ादर की दर्दनाक मौत पर ग़ुस्से में जस्टिन को साफ़-साफ़ सच बता दिया था।

वह दोनों को पनिश कराना चाहते थे। पता नहीं उसकी मंशा पूरी हुई कि नहीं लेकिन जस्टिन सच को माँ से ही जानना चाहता था। उसे झटका लगा था कि फ़ादर की जिन बातों को वह झूठ समझता था, एक ड्रिंकर का बेतुका अनर्गल प्रलाप समझता था। वास्तव में वही सच था, सच्चा था। मदर पर लगाए गए उनके एक-एक आरोप सही थे। मदर से उसने बहुत ही अग्रेसिव होकर बात की थी। मदर उस कपल से झगड़ने को तैयार हो गई थीं, जिसने जस्टिन को सब कुछ बताया था।

लेकिन जब जस्टिन ने तमाम बातें साफ़-साफ़ कह दी थीं तो मदर के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था। तब वह खीझकर आउट ऑफ़ कंट्रोल हो गईं थीं. शॉक्ड इसलिए हुईं थीं कि उनका जो बेटा उनकी ही बातों को सच, सही मानता था वह उसी के सामने कंप्लीटली एक्सपोज़ हो गई थीं। उनका एक-एक सच झूठ निकला था।

जस्टिन लोगों के सामने अपनी इंसल्ट बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। इसलिए मदर से बराबर भिड़ गया था। उन मदर से जो अपने झूठ को भी सच साबित करने के लिए फ़ादर के सामने भी एक स्टेप भी कम रखने को तैयार नहीं होती थीं। तो उसके सामने कैसे कमज़ोर पड़तीं। जस्टिन तो दूसरे हॉस्पिटल में जाने, या नौकरी छोड़ देनेे, उस आदमी से संबंध ख़त्म करने के लिये कह रहा था तो वह यह कैसे बर्दाश्त कर लेतीं।

जस्टिन भले ही अपनी जगह सही था, लेकिन सच यह भी तो है कि जो संबंध इतने सालों से बने हुए हों वह एक मिनट में, एक दिन में कैसे ख़त्म हो जाएँगे। मदर जस्टिन से इसलिए भी नफ़रत करने लगी थीं, क्योंकि जब फ़ादर के ना रहने पर चौथे दिन वह आदमी दुख प्रकट करने के लिए घर आ गया तो हॉस्पिटल के उस फॉर्मेसिस्ट को जस्टिन ने दरवाज़े से ही बुरी तरह इंसल्ट कर के भगा दिया था।

उस व्यक्ति की इंसल्ट से मदर इस क़दर नाराज़ हुई थीं कि जस्टिन से साफ़ कह दिया कि, "मैं अपनी लाइफ़ अपनी तरह से जीने की हक़दार हूँ। तुम मेरे बेटे हो, तुम्हें मैंने यह अधिकार नहीं दिया कि तुम यह डिसाइड करो कि मैं क्या करूँ, क्या ना करूँ, ओके यंग ब्लड।" जस्टिन भी उखड़ गया था। उसने तब वह बातें भी कहीं जो एक बेटे को माँ से किसी भी हालत में नहीं कहनी चाहिए थीं। मदर ने तब यही कहा था। 

उन्होंने जो बातें बताईं उसे सुनकर मुझे भी लगा था कि जस्टिन को वह बातें नहीं कहनी चाहिए थीं। मदर ने भले ही बड़ी ग़लती की है। फिर सोचा जब इतने दिनों बाद सुनकर, एक लड़की होकर, मदर की बातों से दिमाग़ फट रहा है। ख़ून उबल रहा है तो वह तो लड़का है। एक मर्द है, उससे तो मदर से बहस तब हुई थी जब लोहा बिल्कुल गर्म था। जब फ़ादर के लिए की गई लास्ट प्रेेयर की गूँज भी शांत नहीं हुई थी।

मैंने मदर से उस समय बहुत सोच समझकर कहा, मॉम इतना सब कुछ हो चुका है, अब तो डैडी भी नहीं रहे। यह पूरे यक़ीन के साथ पूछ रही हूँ कि आप जो सच होगा वही कहेंगी। हमारे बीच यहाँ प्रभु यीशु भी मौजूद हैं। केवल इतना बता दीजिए कि क्या आप उस इंसान को छोड़ नहीं सकतीं जिसके कारण फ़ादर नहीं रहे। घर में हमेशा उस आदमी के कारण फ़साद होता रहा। तुम्हारा बेटा तुम्हें हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। मैं अपना कहूँ तो अब कितने दिन आपके साथ रह पाऊँगी बता नहीं सकती। मेरी इन बातों का मदर ने कुछ जवाब नहीं दिया। चुप रहीं। मैंने दो बार रिपीट किया तो भी नहीं बोलीं। फिर ज़्यादा प्रेशर डाला तो बोलीं।