Do Bund Aanshu - 3 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | दो बूँद आँसू - भाग 3

Featured Books
Categories
Share

दो बूँद आँसू - भाग 3

भाग -3

वह यह भी कह रही थीं कि “जब भगवान राम लंका विजय कर वापस आए तो उनके भाई भरत जो चौदह वर्षों तक राज सिंहासन पर बड़े भाई राम की खड़ाऊँ रखकर राजकाज चलाते रहे, उन्होंने अतिशय प्रेम सम्मान के साथ बड़े भाई को सिंहासन पर बिठाया। 

“ऐसी श्रेष्ठ सनातन संस्कृति है हमारी। हमारी संस्कृति में ऐसा नहीं हुआ कि राज-सत्ता के लिए पिता-पुत्र, भाइयों के मध्य युद्ध होते रहें, एक-दूसरे का शिरोच्छेद करते रहें, बड़े भाई का सिर काट कर थाल में सजा कर पिता के पास भेजते रहें। 

“लुटेरे आक्रान्ता मुग़लों के यहाँ तो यह सबसे ज़्यादा हुआ। दरिंदे औरंगजेब ने ही अपने बड़े भाई दारा का सिर काट कर थाल में सजा कर अब्बा शाहजहाँ के पास भेज दिया, जिसे उसने पहले ही क़ैद में डाल दिया था, फिर आधा पेट भोजन-पानी देकर भूख से तड़पा-तड़पा हत्या कर दी थी।”

वह बोलती ही जा रही थीं कि आगे चलकर भगवान राम ने लक्ष्मण को एक बड़ा भू-भाग भेंट किया, जहाँ उन्होंने लक्ष्मणपुर नाम का नगर बसाया। उसी नगर का नाम अठारहवीं सदी में विदेशी आक्रांता, विदेशी लुटेरे, डकैतों में से एक असफ-उद-दौला ने बदलकर लखनऊ कर दिया। 

“इन्हीं आक्रांताओं ने वहाँ लक्ष्मण टीले पर बना मंदिर तोड़कर मस्ज़िद बना दी और पीढ़ी दर पीढ़ी मक्कार, झूठे, भारतीय सनातन संस्कृति से घृणा करने वाले, मन-गढ़ंत इतिहास लिखने वाले विदेशी, वाम-पंथी, कांग्रेसी, मैकाले के मानस पुत्रों ने यही लिखा, पढ़ा, समझाया, स्थापित किया कि यह नवाबों की नगरी, नज़ाकत नफ़ासत तहज़ीब की नगरी लखनऊ है। 

“जबकि सच यह है कि उत्कृष्ट शिष्टाचार, सम्मान, श्रेष्ठतम जीवन मूल्यों की स्थापना करने वाले लक्ष्मण की बसाई है यह नगरी। अगर हम जीवन में भगवान राम द्वारा स्थापित जीवन मूल्यों को आत्म-सात कर उसे अपने आचरण में ढालेंगे, तो उच्च जीवन स्तर पाएँगे। जीवन आत्म-संतुष्टि से भरा होगा।”

इसी बीच उनको सुन रही साध्वियों में से किसी ने कोई प्रश्न किया जिसे सकीना पूरा समझ नहीं पाई, क्योंकि उसकी आवाज़ कम आई, लेकिन गुरु माँ की आवाज़ वह स्पष्ट सुन रही थी। वह उसे बड़े प्यार-स्नेह से समझा रही थीं कि “हम-लोग जब-तक स्कूली किताबों के अलावा अपने धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक इतिहास का गहन अध्ययन नहीं करेंगे, उनके मर्म को नहीं समझेंगे, तब-तक स्वयं को जान ही नहीं पाएँगे, सत्य से अनभिज्ञ रहेंगे। 

“कैसे झूठ लिखाया, पढ़ाया, समझाया, स्थापित किया जाता है उसे इस एक उदाहरण से ही सरलता से समझा जा सकता है। जैसे स्कूली शिक्षा के दौरान हमें यह पढ़ाया-समझाया गया कि ग्रह नौ होते हैं, यह पंद्रह सौ इकहत्तर में जन्में जर्मन वैज्ञानिक जोहान्स केप्लर ने बताया। हम यही जानते-समझते हैं, लेकिन यह तथ्य कितना बड़ा धोखा, मिथ्या है इस एक श्लोक से ही स्पष्ट हो जाता है। 

“हम सभी सनातनी हमारी सुबह शुभ हो, इसके लिए प्रातः इस श्लोक का उच्चारण करते हैं, आज भी किया कि ‘ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥’ अर्थार्त समस्त नौ ग्रहों से हम प्रार्थना करते हैं कि वो हमारी सुबह को शुभ बनाएँ। 

“यानी कि यह श्लोक लिखने वाले हमारे ज्ञानी पूर्वज को नौ ग्रहों, उनके महत्त्व की पूर्ण जानकारी थी, तभी वह यह श्लोक लिखने के लिए प्रेरित हुए। यह ‘वामन’ पुराण के चौदहवें अध्याय में है। जिसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा है। अपेक्षाकृत इस छोटे पुराण के कुल पंचानवे अध्याय में दस हज़ार श्लोक हैं। 

“अर्थात हमारे पूर्वजों ने दसियों हज़ार साल पहले यह ज्ञान तब प्राप्त कर लिया था जब केप्लर का नामो-निशान नहीं था, उनके पूर्वज कंदमूल खाते, आदिम युग में जी रहे थे। जंगलों गुफाओं में पशुओं की भाँति विचरण कर रहे थे। 

“हमारी ही बातों, खोज को चोरी करके, पूरी धृष्टता के साथ वापस हमें ही परोसा गया यह कहते हुए कि हम सनातनी अज्ञानी कूपमंडूक रूढ़िवादी हैं। और हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते, उन्हीं की ग़लत बातों को सही मान कर चलते रहते हैं।”

इसके बाद गुरु माँ और विस्तार में जाती हुई गुरु वशिष्ठ, भगवान राम, तीनों भाइयों के प्रसंग बताने लगीं, जिन्हें सुन-सुन कर सकीना को सीरियल में देखे गए वह दृश्य इतने बरसों बाद ख़ासतौर से याद आने लगे, जिनमें भाइयों के आपसी प्यार सम्मान की पराकाष्ठा थी। उसने सोचा कि लड़कों में इन बातों का, ऐसे भाई-चारे का तोला-माशा भर भी असर होता तो वो आपस में लड़ते ना, न ही मुझको इस तरह धोखे से ज़हर देकर सैकड़ों किलोमीटर दूर, घर के बाहर सड़क पर फेंकते। 

वह भी तो इन सबके आपसी मार-पीट झगड़ों से परेशान रहते थे। ख़ुद इतने दबंग न होते तो यह सब उन्हें भी बाहर फेंकने में देरी न करते। लेकिन ग़लती तो हम-दोनों की ही थी। हमने इन्हें अच्छी तरबियत दी होती तो न चारों सही, एकाध तो सही रास्ते पर चलता। वही बुढ़ापे का सहारा बनता। कम से कम आख़िर के दिनों में इसकी तो फ़िक्र न करनी पड़ती कि पता नहीं कोई मुझे सुपुर्द-ए-ख़ाक करेगा कि नहीं, दो गज ज़मीन मिलेगी भी कि नहीं।

सकीना का न तो बीती बातों को याद करना सोचना-विचारना रुका, न ही उसके आँसू। और आख़िर दवा के प्रभाव में आकर आँसू बहाते-बहाते वह किसी समय सो गई। 

दोपहर हो गई थी। आश्रम की एक सेविका ने आकर खिड़की के पल्ले खोल कर पर्दे हटा दिए। चमकीली नर्म धूप से हाल नहा उठा। सकीना के चेहरे पर भी धूप पड़ रही थी। उसकी आँखें खुल गईं। सेविका ने उसके पास आकर बहुत धीरे से पूछा, “अब आप की तबीयत कैसी है?”

सकीना ने कहा, “अब पहले से बहुत ठीक लग रही है।” वह उठ कर बैठ गई। दवा ने अच्छा असर दिखाया था। उसे अब बुख़ार बिल्कुल भी नहीं लग रहा था। सेविका ने उससे कहा, “भोजन का समय हो रहा है। आप भोजन आश्रम के सभी लोगों के साथ करेंगी या आपका भोजन यहीं पर भिजवा दिया जाए।”

सकीना सेविका की विनम्रता, आश्रम के लोगों के सेवा-भाव से अब-तक एकदम अभिभूत हो चुकी थी। अब वह पूरे होशो-हवास में थी। सेविका की बात सुनकर वह बहुत भावुक हो गई। उसने हाथ जोड़ लिए। उस के होंठ फड़क रहे थे। उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या उत्तर दे। उसके फिर पूछने पर आश्रम में आने के बाद वह दूसरी बार बोली, “मेरे साथ आप सब लोग कैसे . . .” संकोच में वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाई। 

सेविका ने उसकी मनोदशा का अहसास कर बड़े प्यार से उसके हाथों को पकड़ लिया, कहा, “आप को रंच-मात्र भी संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम अखिल ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को अपना मानते हैं, उनमें परमात्मा का स्वरूप देखते हैं, हमारे साथ आपके भोजन करने से, हम में से किसी को कहने को भी कोई संकोच नहीं होगा। 

“लेकिन हम आपकी भावनाओं का भी पूरा सम्मान रखने का प्रयास करेंगे। गुरु माँ आपकी स्थितियों को देखती हुई चाहती हैं कि आप सभी लोगों के बीच आएँ। आप जो मानसिक रूप से बहुत ज़्यादा परेशान हैं, जिसके कारण आपका स्वास्थ्य ख़राब हो रहा है, वह सभी के बीच अच्छे वातावरण में आने से ठीक हो जाएगा। 

“जैसे दिन और रात होते हैं, वैसे ही जीवन में सुख-दुख भी आते-जाते रहते हैं। हमें दोनों को जीवन का हिस्सा मानते हुए, एक समान रूप में लेकर चलना चाहिए। ऐसे भाव में चलने से कष्ट हमें परेशान नहीं कर पाते, हम उनका सफलता-पूर्वक समाधान ढूँढ़ लेते हैं।”

सेविका की बातों से सकीना का संकोच कम हो गया, उसकी हिम्मत बढ़ी और वह सभी के साथ भोजन करने के लिए तैयार हो गई। सेविका उसको एक सेट कपड़ा देकर चली गई। 

सैकड़ों साध्वियों के साथ शुद्ध सादा शाकाहारी भोजन करके सकीना वापस अपने बेड पर आ गई। अब वह अपने को पूरी तरह स्वस्थ महसूस कर रही थी। साध्वियों ने उसके साथ बातें कीं। किसी ने उससे कहने को भी ऐसी कोई बात नहीं की जिससे उसके हृदय को ज़रा भी कष्ट होता है। सभी का व्यवहार ऐसा था जैसे सब न जाने कितने वर्षों से उसके साथ हैं। 

उसे याद नहीं आ रहा था कि कभी उसने इसके पहले ऐसे शांति-पूर्ण माहौल में ऐसा शुद्ध भोजन किया हो। ऐसा सुकून भी वह जीवन में पहली बार महसूस कर रही थी। उसे महसूस हो रहा था जैसे आश्रम के कोने-कोने में सुकून की बारिश हो रही है। 

मगर गुरु माँ की यह बात याद आते ही वह तनाव में आ गई कि मैं दोपहर में आपसे बात करूँगी। वह इस बात को अच्छी तरह समझ रही थी कि बातचीत में वह उसकी परेशानियों का सबब भी पूछेंगी। और तब वह उनको क्या बताएगी? 

उसका जो सच है, उसे सुनकर, जिस तरह से वह, पूरे आश्रम-वासी उसकी मदद कर रहे हैं, उसे आश्रम का ही सदस्य मानकर चल रहे हैं, कहीं उससे नफ़रत न करने लगें, उसे लड़कों की तरह ही आश्रम से निकाल कर सड़क पर न फेंक दें। यहाँ से भी फेंकी गई तो सड़क पर भीख माँगने, तिल-तिल कर मरने के सिवा और कोई रास्ता नहीं होगा मेरे पास। 

उन्हें क्या यह बताऊँगी कि मेरी कमज़र्फ़ नामुराद औलादों ने पहले गला दबा-दबा कर सम्पत्ति अपने नाम करवा ली, फिर धोखे से ज़हर देकर बेहोश किया और आठ-नौ घंटे गाड़ी चला कर चार सौ किलोमीटर दूर लाकर कूड़े की तरह सड़क पर फेंक दिया। 

क्या उन्हें यह बताऊँगी कि मेरे शौहर ने ग़ैर-क़ानूनी हथियारों और लड़कियों-औरतों की ख़रीद-फरोख़्त करके सारी दौलत कमाई थी। बार-बार उन्हें पुलिस ने पकड़ा, जेल गए और जब इंतकाल हुआ तो उनके ऊपर आठ-नौ मुक़द्दमे चल रहे थे।