Suman Khandelwal - 2 in Hindi Horror Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | सुमन खंडेलवाल - भाग 2

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सुमन खंडेलवाल - भाग 2

भाग -2

गाड़ी फिर रोज़ की तरह उसी उबड़-खाबड़ अभिशप्त रास्ते पर रेंगने लगी। पैदल चाल से क़रीब दो किलोमीटर ही आगे चला होऊँगा कि देखा सामने से एक दुबली-पतली सी औरत चली आ रही है। उसके बदन पर पीले रंग का सूट है। उसने रूबिया जैसे सेमी ट्रांसपेरेंट कपड़े का चूड़ीदार पजामा और कुर्ता पहन रखा है। कुर्ता घुटने से ऊपर और काफ़ी चुस्त था। 

उसे देखकर लगा जैसे यह तो फ़ैशन शो में रैंप पर चलने वाली ज़ीरो फ़िगर मॉडल है। गाड़ी की हेड-लाइट डिपर कर दी। वह मुश्किल से बीस-इक्कीस साल की एक बेहद गोरी युवती थी। कपड़े शरीर पर इस तरह टाइट थे कि शरीर की एक-एक रेखा स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसकी टी-शेप नाभि भी। यहाँ तक की अंदरूनी कपड़ों की बनावट भी साफ़-साफ़ दिख रही थी, जो गहरे गुलाबी रंग के थे। 

मैं उसकी नैसर्गिक सुंदरता में खोता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा था कि पता नहीं कब गाड़ी का स्टेयरिंग बाईं तरफ़ घूम गया, और वह गंदे नाले की गहराई में उतरने लगी। एकदम आख़िरी क्षणों में इस तरफ़ ध्यान जाते ही मैंने ब्रेक लगाया, लेकिन तब-तक बायाँ अगला पहिया सड़क से नीचे उतर चुका था। 

बड़ी मुश्किल से बैक करके गाड़ी को फिर से बीच सड़क पर ले आया। ध्यान फिर युवती पर गया तो देखा वह भी थोड़ी दूर पर रुकी, मेरी तरफ़ ही लगातार देखती हुई हँसती जा रही है। उसके दाँत इतने सुडौल और सफ़ेद हैं कि गाड़ी की लाइट में वाक़ई एकदम मोती की तरह चमक रहे हैं। 

मेरी निगाहें उसी पर स्थिर हो गईं। कुछ देर बाद उसकी हँसी बंद हो गई लेकिन चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान बनी हुई थी। अचानक ही मैंने महसूस किया जैसे कि वह मुझे अपने पास बुला रही है। मैंने गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ाई, मगर कुछ ही देर में महसूस किया कि मैं जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा हूँ, वैसे-वैसे वह भी पीछे खिसकती जा रही है। वह भी उल्टी चलती हुई। 

मैंने गाड़ी की स्पीड और बढ़ाई कि तुरंत उसके पास पहुँचूँ मगर यह समझते ही अचंभित रह गया कि हमारे उसके बीच की दूरी कम ही नहीं हो रही थी। फिर अचानक गाड़ी रुक गई। तभी उसने दाहिने हाथ से इशारा करके मुझे अपने पास बुलाया। मैं सम्मोहित सा उसे देखने लगा। उसने फिर बुलाया तो मैंने गाड़ी के एक्सीलेटर पर एकदम प्रेशर डाला। 

मगर बड़ा ग़ुस्सा आया ख़ुद पर कि मैं बंद गाड़ी को बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ। वह बार-बार मुझे बुलाने लगी तो मैं स्वयं पर से नियंत्रण खो बैठा, मुझे ध्यान नहीं रहा कि मैं गाड़ी स्टार्ट करूँ, आगे बढ़ूँ, बल्कि मैं एकदम झटके से नीचे उतरा और सीधे उसी की तरफ़ लपका। 

मगर फिर से वही बात कि मैं जितनी तेज़ी से उसकी तरफ़ बढ़ता, वह उतनी ही तेज़ी से दूर होती जाती। मैं रुकता तो वह भी रुक जाती और हाथ से इशारा करने लगती। मैं एकदम तेज़ी से उसकी तरफ़ लपक कर दौड़ने लगता, मगर हमारे बीच की दूरी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। 

आख़िर मैं थक कर, बुरी तरह हाँफता हुआ बैठ गया सड़क पर। मेरी साँसें कुछ सँभली तो मैंने सिर उठाकर सामने देखा तो यैलो ब्यूटी क्वीन ग़ायब थी, वहाँ कोई नहीं था। मैं कुछ डरा, पीछे से आती जीप की लाईट में इधर-उधर देखा लेकिन मनहूस सन्नाटे को तोड़ती कीड़ों-मकोड़ों की आवाज़ों, बदबू के सिवा वहाँ और कुछ नहीं था। 

मैं स्वयं में वापस लौटा, वापस जीप की तरफ़ मुड़ा तो देखा वह मुझसे क़रीब चालीस-पचास मीटर पीछे छूट गई थी। उसकी हेड-लाइट अभी तक ऑन थी। जीप की तरफ़ चलते हुए मैं अचरज में पड़ गया कि रोज़ एक घंटा समय जिम में बिताने वाला मैं, कुछ मीटर दौड़ कर ही कैसे इतना ज़्यादा थक गया कि लग रहा है जैसे कई बीघे खेत जोत कर आ रहा हूँ, पैर ज़मीन पर रखे नहीं जा रहे थे, मन कर रहा था कि वहीं लेट जाऊँ। 

मगर भयानक बदबू से भरा, वह पूरा भयावह माहौल जीप की तरफ़ धकेलने लगा। पसीना-पसीना होता तेज़ क़दमों से जीप के पास पहुँचा तो यह देख कर होश उड़ गए कि उसके सारे दरवाज़े खुले हुए थे, जबकि मुझे अच्छी तरह याद था कि अपनी आदतानुसार मैंने नीचे उतरते ही अपनी साइड का दरवाज़ा बंद किया था। बाक़ी दरवाज़े तो बंद ही थे। 

मेरी घबराहट और बढ़ गई कि दरवाज़े तो मैं बंद करके गया था, अंदर न जाने कौन है, हत्यारों, डकैतों का यह पसंदीदा क्षेत्र है, कहीं मेरी हत्या कर जीप, मेरी महँगी घड़ी, चेन, मोबाइल लूटने के लिए डकैत अंदर बैठे तो नहीं हैं। पैंट की जेब में मोबाइल निकालने के लिए हाथ डाला कि उसकी टॉर्च ऑन करूँ लेकिन, फिर गड़बड़ हुई, याद आया कि उसे तो जीप में ही डैशबोर्ड पर छोड़ गया था। 

मैंने मन ही मन कहा, लगता है आज कुछ बहुत बुरा होने वाला है, ये सब-कुछ लूट कर मुझे मार कर यहीं झाड़ियों में फेंक देंगे, मेरी सड़ी हुई डेड बॉडी की बदबू से लोगों को कई दिन बाद पता चलेगा कि मैं कहाँ हूँ। और ज़्यादा परेशान मैं तब हो गया, जब मुझे उसी समय कोई याद आ गया। सोचा यदि मेरे हत्यारों ने मेरे मोबाइल का डेटा वायरल कर दिया तो उसका भी जीवन . . . मुझे उसकी भी चिंता होने लगी। बड़ी सावधानी से मैंने जीप के अंदर झाँका, वहाँ कोई नहीं मिला। 

मेरी जान में जान तब आई जब मुझे मोबाइल सामने डैशबोर्ड पर जैसा छोड़ गया था वैसा ही मिल गया। मैंने जल्दी से मोबाइल उठाया, गाड़ी के अंदर की लाइट ऑन की और पीछे जाकर सारे दरवाज़े बंद किए। अब मेरे सामने समस्या यह थी कि चाहते हुए भी मैं वहाँ से यू-टर्न लेकर वापस नहीं लौट सकता था, क्योंकि सड़क बहुत पतली थी, यू टर्न सम्भव ही नहीं था। आख़िर मैं आगे उसी कॉलोनी में पहुँचा, चाय की दुकान पर चाय पी। 

उस दिन मैंने गाड़ी में चाय नहीं मँगाई बल्कि उस होटल के अंदर बैठा। बैठते ही मेरी आँखें कैश काऊंटर के ठीक ऊपर लगी एक महिला की फोटो पर जा टिकीं। वह उसकी शादी के समय की फोटो थी जिस पर माला टँगी हुई थी, मतलब कि वह ब्रह्मलीन हो चुकी थी। फोटो देखते ही मैं एक नई उलझन में फँस गया। वह मुझे बहुत ही जानी-पहचानी लग रही थी। 

मैं उसे जितना ध्यान से देखता, मुझे वो और ज़्यादा जानी-पहचानी लगती। मैं याद करने की कोशिश करने लगा कि क्या मैं इससे कभी मिला हूँ, यह कौन है? मुझे ऐसा क्यों फ़ील हो रहा है? मुझे ज़्यादा समय नहीं लगा, याद आ गया कि यह बरसों पहले पड़ोस में किराए पर रहने वाली खंडेलवाल फ़ैमिली की सबसे बड़ी लड़की सुमन खंडेलवाल है। 

यह याद आते ही अनायास ही मुँह से निकल गया ‘ओह सुमन यह क्या, क्या हो गया था तुम्हें?’ मन एकदम उदास हो गया। जब पड़ोस में रहती थी तो हम-दोनों बहुत क़रीब आ गए थे। इतना कि छिप-छिपा के घंटों एक-दूसरे में खोए रहते थे। शादी से लेकर बच्चों तक की योजनाएँ बनाते, एक से बढ़ कर एक सपने देखते थे। मैं उसे देवी कहता था, वेनिस की देवी। क्योंकि चित्रों में वेनिस की देवी जैसी दिखती है, वो मुझे बिलकुल वैसी ही दिखती थी। 

अंग-प्रत्यंग बिलकुल वैसे ही। एकदम सफ़ेद संगमरमर सा चमकता हुआ श्वेत रंग, वैसी ही चिकनी त्वचा। रेशम से काले बाल, काली आँखें, छोटे-छोटे ब्रेस्ट, पतली सी कमर, कुछ अंदर को दबे हुए पेट पर कैपिटल टी का शेप लेती नाभि, बारिश की बूँदों से बनने वाले बुलबुलों की बनावट से, छोटे-छोटे नितम्ब, गोल पतली सुडौल जाँघें। मैं सम्मोहित सा उसे देर तक देखता ही रहता था, उसे कपड़े पहनने ही नहीं देता, तो वह मुरली की सी मीठी सुरीली आवाज़ में किसी के आने का डर दिखा कर, जल्दी से पहन कर भाग जाती थी। 

मगर हमारी इस रुपहली दुनिया को ही एक दिन ग्रहण लग गया। उसके फ़ादर अचानक ही एक दिन ग़ायब हो गए। काफ़ी ढूँढ़ा गया, पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गई, लेकिन उनका पता नहीं चला। देखते-देखते कई महीने निकल गए। मेरी उस समय कोई इनकम नहीं थी, फिर भी जैसे-तैसे जो भी पैसे इकट्ठा कर पाता वह सब उसे दे देता। 

मकान-मालिक ने भी कई महीने तक किराया नहीं लिया। लेकिन तीन-चार लोगों का परिवार भला ऐसे कब-तक चलता। अंततः मकान का किराया, घर का ख़र्चा चलना मुश्किल हो गया। तो एक दिन उसकी माँ बच्चों को लेकर पैतृक आवास अल्मोड़ा ज़िले, उत्तराखंड वापस चली गईं। 

कुछ ज़रूरी सामान छोड़कर बाक़ी सब बेच दिया। जो पैसा मिला, उससे कुछ लोगों के क़र्ज़ वापस किए और वापस जाने की व्यवस्था की। संयोग से जिस दिन वह गई, उस दिन मैं रिश्तेदारी की एक शादी में दो-तीन दिन के लिए बाहर गया हुआ था। लौटने पर पता चला तो मुझे बड़ा धक्का लगा। 

मेरे पास कोई भी ऐसा संपर्क सूत्र नहीं था कि मैं उससे संपर्क करता। उसका मोबाइल नॉन-पेमेंट में कटा हुआ था। मुझे उस पर इस बात के लिए भी ग़ुस्सा आया कि शिफ़्ट होने की बात उसने एक बार भी नहीं बताई। यदि उसके गाँव का एड्रेस होता मेरे पास, तो मैं उससे मिलने ज़रूर जाता, चाहे वह देश-दुनिया के किसी भी कोने में होता। उसका एड्रेस ढूँढ़ने की मेरी हर कोशिश बेकार हो गई। समय बीतता गया, मगर उसकी यादें बनी रहीं, कभी भी पूरी तरह दिमाग़ से बाहर नहीं हुईं।