Pagal - 47 in Hindi Love Stories by Kamini Trivedi books and stories PDF | पागल - भाग 47

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पागल - भाग 47

भाग –४७

"क्या काम है आप लोगों को मुझसे" मैने कहा
तो मेरी आवाज पर सभी ने पलट कर देखा।

"कीर्ति , तुम कैसी हो ?" कहते हुए मिहिर की आंख नम हो चली थी।

"मैं ठीक हूं " मैने कठोरता से कहा। मेरी आंखे नम नही थी। ना ही मुझ में कोई इमोशंस बचे थे। वक्त ने या परिस्थितियों ने ना जाने किन हालातों ने मुझे ऐसा बना दिया था। मैं पुराने किसी भी रिश्ते में जाना नही चाहती थी। इसलिए अब तक भाग रही थी।

"कीर्ति तुम जानती थी ना हम लोग तुम्हे ढूंढ रहे है?"
"ऐसा क्यों किया तुमने?"
दोनो मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रहे थे।

"आप लोग बैठिए" मैने उनसे कहा।
दोनों अब सोफे पर बैठे बस मुझे ही लगातार देखे जा रहे थे ।मैने दोनों को पानी दिया ।
राजीव मेरे पास आकर पूछने लगा
"मम्मी ये लोग कौन है?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया।
अभिषेक उसे कंधे से पकड़ कर अपनी मां के पास ले गया। अभिषेक की मां समझ चुकी थी कि वो चाहता है राजीव वहां उपस्थित ना रहे।
"चलो राजीव बेटा ,, मैं आपको एक प्यारी सी परी की कहानी सुनाती हूं , ये बड़े लोगों की बातें अब मुझे भी समझ नही आती हम इनकी मीटिंग में क्या करेंगे चलो चलते है । " कहते हुए वह राजीव को उसके कमरे में ले गई।

"क्या चाहते है आप लोग? और यहां क्यों आए है?"मैने पूछा ।
"ऐसे क्यों बात कर रही हो कीर्ति?"जीजू ने पूछा
अभिषेक भी अब कीर्ति के नजदीक आकर बैठ गया था और उसने कीर्ति के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे आराम से बात करने के लिए आंखों आंखों में उसे इशारा किया।

"जीजू , मिहिर , मैं आप लोगो से विनती करती हूं कि यदि आप राजीव की तरफदारी करते हुए या उसके कहने से यहां आए है तो आप लोग चले जाइए यहां से। "
मेरी ये बात सुनकर वो दोनों एक दूसरे की और देखने लगे।

"कीर्ति हम राजीव की तरफदारी करने आए जरूर है मगर उसने यहां हमे नही भेजा। ना ही हम तुम्हे ले जाने आए है। हम जानते है तुम्हारा अब एक परिवार है। हम लोग बस ये चाहते है कि तुम राजीव को समझाओ कि वो भी अब अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करे।"

"वो धीरे धीरे आगे बढ़ेगा अपनी लाइफ में , बिज़नेस संभाल रहा है ना घर भी संभाल लेगा उसके लिए मुझे समझाने की जरूरत नहीं है" मैने कहा।
"राजीव सबकुछ त्याग कर 6 महीने से काशी में साधु बना घूम रहा है , जबसे उसने तुम्हे आखिरी बार देखा वो वापिस ही नही लौटा ।"
ये सुनकर मेरे दिल में बहुत दर्द होने लगा , राजीव मेरा पहला प्यार था । चाहे मैं कितनी भी कठोर होने का दिखावा कर रही थी लेकिन मैं थी एक इमोशनल फूल, व्यक्ति का नेचर कभी नही बदलता बस वो ऊपर से ऐसा दिखा सकता है कि वो बदल चुका है। लेकिन मैने उस दर्द को अपने चेहरे पर कहीं भी बयान नही होने दिया । मैं बहुत स्ट्रॉन्ग हो चुकी थी। मैंने कठोरता से कहा
"ये भी मेरी समस्या नहीं है । अगर वो साधु बनना चाहता है तो ये उसका फैसला है उसकी जिंदगी है । मेरे कहने से वो थोड़ी मान लेगा।"
"मान लेगा कीर्ति, अब तुम ही उसे समझा सकती हो।"
"अभिषेक इनसे कह दो कि यहां से चले जाए , मैने अपनी जिंदगी की जंग अकेले लड़ी है , राजीव को भी वो ही करना होगा ।" मै अपनी जगह से उठकर उनकी तरफ पीठ घुमा कर अभिषेक से बोली।
इससे पहले की मिहिर और जीजू कुछ और कहते अभिषेक ने उनसे कहा
"देखिए इस वक्त आप लोग यहां से चले जाइए प्लीज"
अभिषेक ने उनसे विनती की तो वो मेरी और देखते हुए भारी मन से बाहर आ गए।

"अब हम क्या करेंगे जीजू?" मिहिर ने कहा
"एक आखिरी उम्मीद थी कीर्ति, लेकिन वो अपनी जिंदगी में आगे निकल चुकी है अपने सारे रिश्तों को पीछे छोड़कर , सही भी तो है इतने साल उसने भी तो अकेले जिंदगी की लड़ाई लड़ी है। कीर्ति की जिंदगी की किताब से हमारे राजीव का चैप्टर गायब हो चुका है। राजीव को अब हमें ही समझना होगा । कि उसे भी अब कीर्ति नाम का चैप्टर अपनी जिंदगी की किताब से फाड़ कर फेंक देना पड़ेगा।" "आप सही कह रहे है जीजू, हम कल राजीव को समझाकर अपने साथ ले जायेंगे।"

क्या जीजू और मिहिर समझा पाएंगे राजीव को ? क्या राजीव अब अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेगा ? क्या वो फिर कीर्ति से मिलेगा?" इन सवालों के जवाब आपको मिलेंगे इसी कहानी के आगे के एपिसोड्स में ।