A Perfect Murder - 25 in Hindi Thriller by astha singhal books and stories PDF | ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 25

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 25

भाग 25

“प्रीति! बहुत खुशी हुई तुझे इतने सालों बाद देखकर!” कविता ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा।

प्रीति भी मुस्कुराती हुई आगे बढ़ी और कविता को गले लगाती हुई बोली, “मुझे भी तुझे देख कर बहुत खुशी हो रही है। आज सालों बाद अपने कॉलेज की किसी सहेली से मिल रही हूँ।”

“वैसे प्रीति, तेरा घर तो बहुत आलीशान है! क्या शान है तेरी! नौकर-चाकर, गाड़ी, बंगला! मैं बहुत खुश हूँ तेरे लिए।” कविता ने अपनी खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा।

“आ बैठ यार! बता क्या लेगी?” प्रीति ने उसे प्यार से अपने आलीशान सोफे पर बैठाते हुए कहा।

“तेरे हसबैंड क्या करते हैं? बिज़नेस है क्या?” कविता ने उसके नज़दीक आकर बैठते हुए कहा।

“हाँ, एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का बिजनेस है।” प्रीति ने कविता की बात का उत्तर दिया और अपनी नौकरानी को आवाज़ लगाई, “कुसुम, नाश्ते में इडली सांभर तैयार है कि नहीं? जल्दी लेकर आओ।” फिर वो‌ कविता की तरफ देखते हुए बोली, “मुझे याद है तुझे इडली सांभर कितना पसंद है। जैसे ही गार्ड ने बताया कि तू आई है मैंने कुसुम को फौरन काम पर लगा दिया। पर तू बता कर आती तो ज़्यादा अच्छा होता। मैं और कुछ भी बनवाती तेरी पसंद का।”

“यार! तुझे सर्प्राइज देना था ना इसलिए नहीं बताया।”

“चल ठीक है। यहाँ बैंगलुरू किसी काम से आई है?” प्रीति के पूछने के अंदाज़ से ही कविता को समझ आ गया कि वो कुछ टटोल रही है।

“हाँ, ऑफिस के काम से आई हूँ।” कविता ने उसकी जिज्ञासा को और बढ़ाते हुए जवाब दिया।

“ऑफिस? तेरा कौन सा ऑफिस है?” प्रीति ने शंका भरे लहज़े में कहा।

“क्यों बहन? मेरा ऑफिस क्यों नहीं हो सकता?”

प्रीति ने तुरंत अपने बड़बोलेपन में जवाब दिया,
“तू तो प्राइवेट डिटेक्टिव है ना?”

“तुझे कैसे पता कि मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ? मैंने तो तुझे ना अभी कुछ बताया और ना ही उस दिन फोन पर।” कविता ने प्रीति से सच उगलवाने की कोशिश करते हुए कहा।

प्रीति को अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। अब क्या जवाब दे वो। अब तो सच बताना ही पड़ेगा। उसने‌ थोड़ी धीमी आवाज़ में कहा, “कविता, यार किसी से कहना मत। वो…अमोल ने बताया मुझे।”

“तू अमोल के कॉन्टेक्ट में है अभी भी?” कविता ने हैरत जताने का नाटक करते हुए कहा।

“नहीं…मतलब अभी कुछ समय से। कविता, उसका नाम इतना तेज़‌ मत ले यहां पर। अभी नाश्ता करके ऊपर मेरे कमरे में चलते हैं। फिर इत्मीनान से बातें करेंगे।” प्रीति बोली।

“ठीक है। पर प्रीति, एक बात बहुत अजीब लगी। तू बुरा मत मानना…पर तेरे पति तुझसे उम्र में काफी बड़े लगते हैं।” कविता ने प्रीति की दुखती रग पर हाथ रखना शुरू कर दिया।

“लगते हैं नहीं, बड़े हैं। दस साल उम्र में बड़े हैं।” प्रीति की आवाज़ में भारीपन था।

“और ये साथ में किस लड़के की तस्वीर है?” कविता ने अंजान बनते हुए पूछा।

“मेरे बेटे की।” प्रीति ने दो टूक शब्दों में जवाब दिया।

“क्या? बेटा? प्रीति तेरी शादी को ज़्यादा से ज़्यादा बारह या तेरह साल हुए होंगे। और ये लड़का लगभग बीस या बाइस साल का लग रहा है। क्या बोल रही है। मज़ाक मत कर यार!”

“मज़ाक तो…ज़िन्दगी ने मेरा उड़ाया है यार। मैं खुद एक मज़ाक बनकर रह गई हूँ।” प्रीति ने दुखी स्वर में कहा।

इतने में कुसुम नाश्ता ले आई। प्रीति ने अचानक अपना स्वर बदल लिया और मुस्कुराते हुए बोली,
“कविता, आ गए तेरे पसंदीदा, इडली सांभर!”

“ओह! थैंक्स प्रीति।” कविता ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया।

दोनों ने नाश्ता किया। फिर कविता प्रीति से बोली,
“चल मुझे अपना घर तो दिखा।”

प्रीति उठते हुए बोली, “हाँ, आ जा, ऊपर से शुरू करते हैं। कुसुम तुम दोपहर के खाने का इंतज़ाम करो। और जो पकवान मैंने बताए वो ही बनाने हैं।”

“जी मेमसाब।” ये कह कुसुम वहाँ से चली गई और प्रीति ने थोड़ी राहत की सांस ली। फिर वो कविता को लेकर ऊपर वाली मंज़िल की तरफ चल पड़ी।

“आ कविता, ये है मेरा कमरा।” प्रीति ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा।

कविता जैसे ही अंदर घुसी वो चौंक गई। वो कमरा कम आलीशान हॉल ज़्यादा लग रहा था। खूबसूरती से सजाया हुआ। हर तरफ दीवार पर सुंदर पेंटिंग लटकी थीं। कविता गौर से उन्हें देख रही थी। हर तस्वीर अपने आप में कुछ कह रही थी। पर सभी तस्वीरों में एक बात समान थी, निराशा, तड़प और सूनापन। इन तस्वीरों से कविता ने प्रीति की मन: स्थिति का अंदाजा लगा लिया था।

कविता ने नज़रें घुमा कर पूरे कमरे का मुआयना किया। एक खूबसूरत से टेबल पर कुछ तस्वीरें रखीं थीं। उसने पास जाकर देखा तो ये तस्वीरें कॉलेज की ग्रुप फोटो थीं।

“वाह! प्रीति, तूने अब तक संभाल कर रखीं हैं!”

“और क्या! खूबसूरत यादों को भला कोई फैंकता है।” कविता ने अपनी खिड़की का पर्दा हटाते हुए कहा।

सूर्य की किरणें उसके चेहरे को छू रहीं थीं। पर उसके उदास चेहरे के भाव को बदल नहीं पाईं।
कविता भी उस खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। वहां से नीचे का बगीचा और उसमें खिले अनगिनत फूल दिखाई दे रहे थे। मनोरम दृश्य था।
पर कविता प्रीति की आँखों में समाई उस कहानी को जानने के लिए ज़्यादा उत्सुक थी। दोनों वहीं रखी कुर्सियों पर बैठ गए।

“प्रीति, अब बता क्या बात है बहन? तेरा चेहरा साफ कह रहा है कि कोई बात है जो तुझे परेशान कर रही है।” कविता ने उसका मन टटोलते हुए कहा।

“समझ नहीं आ रहा कविता की कहां से शुरू करुं।” प्रीति ने बुझे मन से कहा।

“इस घर में शादी कैसे हुई? वो भी अपने से इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति से? कॉलेज में तेरी और अमोल की प्रेम कहानी बहुत चर्चित थी। सबका मानना था कि तुम दोनों एक दूसरे से शादी ज़रूर करोगे। फिर ऐसा क्या हुआ? जात-पात बीच में आ गई क्या?”

“जात-पात नहीं, स्टेटस, अच्छी नौकरी बीच में आ गई। मेरे पिताजी को अमोल पसंद था, पर अमोल के पास उस समय एक ढंग की जॉब नहीं थी। उसने पिताजी से पांच साल मांगे। वो सरकारी नौकरी की तैयारी में लगा था। पर पिताजी को मुझे घर से विदा करने की बहुत जल्दी थी। उन्होंने अमोल को पांच साल देने से मना कर दिया। बेचारे ने मेरी खातिर अपनी सरकारी नौकरी का सपना भी त्याग दिया, और नौकरी ढूंढने में लगी गया। कुछ समय बाद एक नौकरी हाथ आई उसके। ठीक-ठाक तनख्वाह थी। पर मेरे पिताजी ने उसकी खूब बेइज्जती की। मुझे आज भी याद है वो दिन जब अमोल मिठाई लेकर घर आया था।

क्रमशः
आस्था सिंघल