सुबह सुबह नहा धो कर मैं सेकेंड फ्लोर की बालकनी में आ कर बैठ गया... करीबन छ: सवा छ: बज रहे थे
सीढ़िया चढ़ते हुए जब आ रहा था तो सभी कमरों के बाहर लगे कूलर सररर सरर्र कर रहे थे, किसी कमरे में बत्ती चालू थी तो कहीं अलार्म बज रहा था..
सुबह सवेरे भोर के साथ जागना तो सब चाहते है लेकिन बिस्तर को दिन भर के लिए अलविदा कहना जरा मुश्किल नजर आता है इसी डर से अलार्म लगाते है और बेझिझक हो कर मस्त सूअर की भांति निद्रालोक में चले जाते हैं परंतु अलार्म तो मशीन है वो अपनी प्रमादभावना से बंधे नहीं रहते तय समय पर बज जाते है और निद्रलोक का वह प्राणी अपने उस प्रण की वहीं धज्जियां उड़ा कर अलार्म को बंद कर वापिस अपने प्रमाद काल में चला जाता है...अब चाहे अलार्म बजे या हिरोशिमा नागाशाकी हो,, निगोड़ी अपनी नींद पूरी किए बिना न उठेंगे...
खैर यह तो बासठ नंबर मकान की रोज़ की बात है, जहां सुबह सवेरे टंकी खाली रहती है और कुछ लड़के अपना पायजामा पकड़े रहते है तो कुछ संडाश में बैठे इंस्टाग्राम में रील देख रहे थे ... यह उनका शौक नहीं था मजबूरी थीं क्योंकि पानी अक्सर मिशन के बीच में ही रुक जाता था अब मिशन अबार्ट करने से बचने के लिए अक्सर कुछ सैनिक उसे पोस्टपोन कर देते थे और ध्यान भटकाने हेतु कुछ मनमोहक दृश्यों से समय व्यतीत करते थे जब तक की पानी की सप्लाई नहीं हो जाती थी...
मकान मालिक... नहीं नहीं, "मकान मालकिन" का स्वभाव थोड़ा अटपटा सा है, पानी का नाम सुनते ही उनके मुख से सहसा एक स्वर में निकलता...'पानी तो खत्म हो गया'......
लड़के तो अब इसे जवाब भी नहीं मानते थे... वे इसे इस प्रकार नकार देते थे जैसे अठारवी लोक सभा के चुनाव के समय एक विख्यात दलबदलु नेता ने विपक्षी गठबंधन से प्रधानमंत्री की कुर्सी को नकार दिया था,,,
मैं इन रोज की खटपट के साथ बालकनी में बैठा सामने का नजारा देख रहा था जहां हर छत कहीं न कहीं मध्यवर्ग की अलग अलग रूपों में परिभाषा दे रही थी.....
कुछ एक घरों में नीम के पेड़ दिख रहे थे तो विश्वेशेवर नाथ महादेव मंदिर के पास आंवले का वृक्ष भी झूल रहा था तो पास ही में एक बेल दीवार पर चढ़ रही थी, मंदिर के सामने बील का पेड़ था जिस पर बीलव्वपत्र कुछ पंचमुखी तो कुछ तीनमुखी थे....
हल्की हल्की सुनहरी धूप आने लगी थी सामने मोबाइल टावर पर गोल गोल सी आकृति कैप्टन अमेरिका की शील्ड के समान चमक रही थी..
हर मकान पर काली और सफेद टंकिया पलथी मारे बैठी हुई थी ...और हर खिड़की बालकोनी में लगे कूलर नजर आ रहे थे,,पक्षी लगातार आने वाली सुबह का अपने कुंजल गान से स्वागत कर रहे थे लेकिन इस मनोरम वातावरण के बीच अचानक एक अनचाहने वाला इरिटेटिंग अलार्म बजा..
कूलरों की सरसरार्ट की तो कानो को आदत हो गई थी लेकिन बीच बीच में ये अलार्म छुरे जैसा काटता है..
थोड़ी देर तुन तुन करके ये फिर म्यूट हो गया.... और निगोडी अभी तक नींद में व्यस्त है....
हर छत पर कहीं हनुमान जी तो कहीं राम जी की ध्वजा लहरा रही थी तो वहीं एक छत पर आजादी के पछत्तर वर्ष पूरे होने के अमृत महोत्सव का राष्ट्रध्वज भी शायद पिछले दो वर्षो से पवन के साथ अपनी गति में लहरा रहा था...
ऊपर आसमान के मध्य में शुक्ला पक्ष की अष्टमी का चंद्रमा दिख रहा था तो वहीं पूर्व से ऊपर उठता हुआ सूर्य अपने सात घोड़ों वाले रथ पर आ रहा था... जहां में बैठा हूं मुझे कुछ यही दृश्य दिख रहे थे....
कुछ घरों में स्कूल यूनिफॉर्म पहने बच्चे दौड़ रहे थे तो कुछ घरों में मंदिर जाती महिलाएं, वहीं एक तरफ बुजुर्गों का एक झुंड ठिठलाते हुए आ रहा था तो दूसरी ओर दूधवाला बाइक का हॉर्न बजाते हुए ..... कहीं से एक वरिष्ठ व्यक्ति लूंगी पहने घर के बाहर पेट पर हाथ फेर रहा था तो एक उसी उम्र के श्री मान अपने पालतू कुत्ते के साथ टहल रहे थे,, पीछे से एक मतवाली धुन बजाते हुए एक नगर निगम की गाड़ी आई घर से कचरा निकलवाने....
इन्हीं सब दृश्यों के मध्य एक नजर पड़ी बस्ता लेकर जूते पहने भागते हुए एक युवक की जो शायद कोचिंग के लिए जा रहा था और भागते भागते अपनी जेबों को संभाल रहा था की कहीं कमरे की चाबी और फोन तो न भूल गया हो और तेज कदमों से चले जा रहा था...तभी एक बार फिर से अलार्म बजा .... और इस बार अलार्म के साथ कूलर की आवाज बंद हुई और रोशनदान में सफेद रोशनी दिखी .....अंतोगत्वा दूसरे परमाणु विस्फोट से पहले निगोड़ी की निद्रालोक से वापसी हो गई और संडास के बाहर अब वेटिंग लिस्ट में एक और सदस्य जुड़ गया.....गौरतलब है की इस बीच पानी की आपूर्ति शुरू हो गई और स्थगित मिशन पुनः प्रारंभ हो गया...........अब कुर्सी से उठ कर में भी सीढियां उतरते हुए आज के इंडियन एक्सप्रेस को पलटते हुए सुब्रमण्यम जयशंकर का आर्टिकल टटोलने लगा.........।