Pagal - 41 in Hindi Love Stories by Kamini Trivedi books and stories PDF | पागल - भाग 41

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पागल - भाग 41

भाग –४१
उसने देखा ट्रैफिक बहुत ज्यादा था और सामने से गाड़ियां आ जा रही थी। तभी राजीव दौड़कर गाड़ियों को रोकते हुए उस बच्चे के करीब जाकर साइड में ले आता है।

"बेटा तुम ठीक हो?"
"मम्मी , मुझे मम्मी के पास जाना है" बच्चा इतना कहकर रोने लगता है बच्चे की उमर कुछ 4–5 साल के बीच की होगी। राजीव आसपास देखता है तो उसे एक आदमी उसकी और दौड़कर आता हुआ दिखाई देता है।
"राजू बेटा , इस तरह आप कहां चले गए थे। मैने आपसे कहा था ना वही खड़े रहने को ,?"
"पापा " कहकर वो बच्चा उस आदमी से लिपट जाता है।
"थैंक यू भाई साहब , वो आदमी कहता है और फिर राजीव को कुछ अलग तरह से देखता है। "
"आपको अपने बच्चे का ध्यान रखना चाहिए " राजीव थोड़े कठोर शब्दों में बोला।
"जी जी " कहकर वो आदमी वहां से जाने लगा । राजीव को बड़ा अजीब लगा। उसके हाव भाव कुछ अलग थे ।
वो आदमी लौटकर आया और बोला, "भाईसाहब क्या आपका नंबर मिल सकता है!"
राजीव को फिर अजीब लगा, "क्यों?"
"दरअसल इसकी मम्मी आपको जरूर धन्यवाद करना चाहेगी। तो आप अगर नंबर दे देते तो?"
राजीव ने कुछ देर सोचने के बाद अपना नंबर दे दिया।।
"अंकल आप मेरी मम्मी से मिलने आओगे?"
"कहां है आपकी मम्मी?"
"काशी"
"चलो बेटा देर हो रही है । " उस आदमी का व्यवहार राजीव को बड़ा ही अजीब लग रहा था। ना नाम पूछा ना कोई बात सीधा नंबर ले लिया।
"बाय अंकल "राजू ने कहा ।
"बाय बेटा" राजीव कहकर अपने शहर के लिए रवाना होता है।


राजीव घर आकर उस बच्चे के बारे में सबको बताता है और बताते बताते उसे याद आता है कि कीर्ति को काशी जाने का बहुत मन था । उसके मन में एक उम्मीद जागती है, अगले दिन ही वह काशी के लिए रवाना होता है।

काशी पहुंच कर वह मंदिर दर्शन करने जाता है और प्रार्थना करता है कि भोलेनाथ उसे उसकी कीर्ति से मिलवा दे। तभी वो बच्चा राजीव के शर्ट की आस्तीन को खींचता है । राजीव उसे देखकर पूछता है
"अरे आप यहां?"
"आप मम्मी से मिलने आए है?" बच्चा मासूमियत से पूछता है।
"वो, हां आपने बुलाया था ना तो मैने सोचा आपकी मम्मी से मिल लूं"
"तो मिल लीजिए, "
"कहां है?"
"वो रही ," बच्चे ने इशारा किया तो राजीव ने उस और देखा । वो लड़की राजीव को ही देख रही थी और पत्थर की तरह जम गई थी।

उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।
वो लड़की मैं थी । उस बच्चें की मां मैं कीर्ति ।
वो मेरे पास आने लगा तो उस बच्चे के पिता जो उस दिन राजीव को मिले थे वे मेरे कंधो को पकड़ कर राजीव को देखने लगे । जैसे वो मुझ पर अपना हक जता रहे हो। राजीव के कदम रुक गए।
राजीव अब उसके दिल्ली में किए गए अजीब व्यवहार का कारण समझ गया था।
ना मैने राजीव से कुछ कहा, ना राजीव मुझ से कुछ कह पाया।

"चलो राजीव" मैने उस बच्चे का हाथ पकड़कर उसे खींच कर ले जाते हुए कहा।

राजीव के मन में उथल पुथल मची हुई थी। उसने सम्राट अंकल को फोन किया
"अंकल , मैं कीर्ति से मिला"
"क्या? कैसी है वो? क्या कर रही है? कहां है? "
"काशी में"
"उसे मना कर लेकर आजा बेटा"
"अंकल मैं उसके पति और बच्चे से भी मिला"
सम्राट अंकल अब चुप हो गए।
"अंकल मेरी समझ नही आ रहा की मैं क्या करू? उसने अपने बेटे को राजीव कहकर बुलाया । अगर वो मुझसे प्यार नही करती है तो उसने अपने बेटे का नाम राजीव क्यों रखा और प्यार करती है तो दूसरी शादी क्यों की?"
"देख बेटा, ऐसे समय में तुझे खुद से अपना निर्णय लेना होगा, ठंडे दिमाग से सोच और जो तुझे सही लगे वही कर"
"हम्मम " कहकर राजीव ने कॉल काट दिया।
पूरा दिन वो काशी की गलियों में मुझे ढूंढता रहा।वो तय कर चुका था वो उसे लिए बिना नहीं जायेगा ।
शामको गंगा दशाश्वमेध घाट पर आरती के समय पहुंचा। वो बहुत थक चुका था , उसके बाल बिखरे हुए थे। कपड़े अस्तव्यस्त और मेले कुचेले। आज राजीव किसी पागल की तरह दिख रहा था । हां आज राजीव पागल हुआ था मेरे। प्यार के लिए।

वाराणसी में गंगा आरती दशाश्वमेध घाट पर शाम के समय सूर्यआस्त के बाद की जाती है।
गंगा नदी के पानी के साथ-साथ गंगा आरती की मान्यता धार्मिक तौर पर बहुत है.देश के कोने-कोने से और विदेशी लोग गंगा आरती करने और देखने आए हुए थे.
दशाश्वमेध घाट पर आरती के समय मेले जैसा माहौल बन जाता है। गंगा के तट पर शाम होते होते माहौल भक्तिमय होने लगा। पुजारियों की भीड़ के साथ में यहां देश भर से आए लोगों की भीड़, शंखनाद, घंटी, डमरू की आवाज और मां गंगा के जयकारे के बीच गंगा की आरती होती है. राजीव सबकुछ सुन पा रहा था लेकिन उसे उस भीड़ में खुद की हालत की जरा भी फिर नही थी ।

अंततः वह एक निर्णय पर पहुंचता है।
वह सम्राट अंकल को फोन करता है और कहता है
"अंकल , मैं एक बार कीर्ति की जिंदगी खराब कर चुका हूं , दोबारा अपने स्वार्थ के लिए उसे उसके हंसते खेलते परिवार से अलग नहीं करूंगा। मैं कीर्ति की यादों के साथ यही काशी में बस जाऊंगा , कभी कभी उसके दर्शन हो जायेंगे जीने के लिए वही काफी है ।
अंकल मैं सन्यास ले रहा हूं " इतना कहकर राजीव खड़ा होकर अपने दोनो हाथो को सिर के ऊपर उठाकर जोड़ता है और गंगा को नमस्कार करके आरती में शामिल होता है।

अगले दिन वह नदी में डुबकी लगाकर भगवा वस्त्रों को धारण कर लेता है । और भोलेनाथ से कहता है जिसके साथ तुम हो वो कभी अकेला नहीं हो सकता महादेव , मुझे अपनी शरण में ले ।🙏🙏🙏🙏

हर हर महादेव का नारा लगाकर राजीव काशी के भक्तिमय माहौल में रच बस जाता है। लेकिन क्या इस तरह राजीव और कीर्ति की कहानी का यहां अंत हो जाता है।



" कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कहीं जमीन तो कहीं आसमां नही मिलता । "

सच्चा प्यार अक्सर अधूरा रह जाता है ।
हालाकि मैं (कीर्ति) अभी काशी में ही हूं । और कभी ना कभी तो राजीव से मेरी मुलाकात होगी। तब क्या होगा जब मैं राजीव को इस रूप में देखूंगी? कुछ वक्त इंतजार कीजिए।