Parasite in Hindi Classic Stories by ABHAY SINGH books and stories PDF | पैरासाइट

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पैरासाइट

पैरासाइट, याने पिस्सू !!!
खून चूसने वाला,

दूसरे के दिये पर जीने वाला, औरो को खाकर जीने वाला.. हिंदी में परजीवी कहते है।

परजीवी का अस्तित्व स्वतंत्र नही होता। उसे जिंदा रहने के लिए किसी का आश्रय चाहिए।
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यह आश्रय देने वाला, परपोषी कहलाता है। अंग्रेजी में उसे होस्ट कहते है।

सत्य यह है कि दुनिया परपोषी-परजीवी सम्बन्धो का एक जाल है। हर जीव, जीवन मे दोनो भूमिकाओं में होता है। याने कभी आप परपोषी होते है,

किसी को खून पिलाकर पालते है।
कभी परजीवी होते है,
किसी का जीवन रस पीकर जीते हैं।
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सभी परजीवी, हत्यारे नही होते। स्मार्ट परजीवी वह होता है, जो खुद पर नियंत्रण रखता है। अपनी भूख,अपनी सँख्या,अपने असर पर।

याने अकबर बनकर होस्ट को जीने नही देते, सलीम बनकर मरने भी नही देते। होस्ट, बेचारा अनारकली की तरह न ठीक से जीता है..

न मरता है।
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पर बहुधा होस्ट और पैरासाइट में बड़े अच्छे सम्बन्ध बन जाते है। जैसे कि लाइकेन..

यह शैवाल और कवक का एक सहजीवी सम्बन्ध होता है। जिसके कारण शैवाल, सूखी पथरीली चटटानो पर जी सके। मिट्टी बनाई, धरती पर जीवन का आधार बनाया।

आज भी बहुत सी जीवन रक्षक दवाएं, हम इन लाइकेन से प्राप्त करते हैं। यह आदर्श सम्बन्ध है।
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लेकिन हर परजीवी लिहाजदार तो होता नही। कुछ ऐसे भुखमरे भी होते है, जो सटासट खून चूसकर होस्ट को मार डालते है।

एक बार एंट्री भर मिल जाये,अपनी सँख्या इतनी बढा लेते है, कि होस्ट का शरीर बीमार हो जाता है। जर्जर होकर मर जाता है।

तब कुछ परजीवी होस्ट के साथ खत्म हो जाते है, कुछ अंडे या स्पोर जैसे सूक्ष्म रूपों में बचकर, सही वक्त का इंतजार करता है।

बिल्कुल किसी राजनीतिक दल की तरह..
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हाल में संसद में कांग्रेस को परजीवी दल बोला गया। शास्त्रीय नजरिये से देखें तो स्टेटमेंट, निहायत ही अनसाइंटिफिक और एंटायर एमए वाली गलत शिक्षा का नतीजा दिखता है।

कांग्रेस, तो आज पगलू किस्म की उपकारी, और परपोषी दल है। तृणमूल कांग्रेस हो, या राष्ट्र्वादी कांग्रेस, वाइएसआर कांग्रेस हो, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल - सभी कांग्रेस के जनाधार पर खड़े है।

कांग्रेस उनसे नेगोशिएट करती है, प्रतिस्पर्धा करती है, पर खत्म नही करती। जिस डीएमके और कम्युनिस्ट ने उसका आधार छीन अपनी जगह बनाई, उन्हें भी अपने लंबे शासनकाल में जीने, चलने और बढ़ने का मौका दिया।

और उन्हें आज खुशी खुशी, इंडिया गठबंधन में समेटे हुए है। राहुल की यह नई कांग्रेस है, जो लाइकेन की तरह, अच्छा सहजीवी सम्बंध बना चुकी है।

इससे फेडरलिज्म, सहयोगी सरकारें, क्षेत्रीय आकांक्षाओ का लोकतन्त्र में सम्मान जैसी स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक निकले हैं। याद रहे, इस देश ने सबसे ज्यादा ग्रोथ..

सबसे सुंदर समय तब देखा, जब मिली जुली सरकारे, क्षेत्रीय शक्तियों से सामंजस्य कर देश चलाती थीं।
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परजीवी तो उस दिन ट्रेजरी बेंचेज में बैठे थे। ऐसे परजीवी, जो जिससे भी चिपके, उसका सत्यानाश कर दिया।

कभी मुस्लिम लीग से चिपक कर जिये, कभी जेपी के आन्दोलन से खाद पानी लिया। दोनो को चूसकर, अलग हो गए।

आप क्षेत्रीय शक्तियों का नाम लेते जाइये, जिनसे ये जुड़े।आज हर एक, अपने अस्तित्व का संघर्ष करता मिलेगा।

शिरोमणि अकाली दल 1 सांसद तक सिमट चुका। शिवसेना खण्ड खण्ड है। जेडी यू चुनाव दर चुनाव घटती गयी, जेडीएस अपने न्यूनतम पर है।

अन्नाद्रमुक निपट गयी, मायावती खत्म हो गयी।
राकांपा ( अजीत) और जगनमोहन सांस नही ले पा रहे। नवीन पटनायक लोकसभा और उड़ीसा दोनो से साफ हो गए।

चंद्रबाबू की तेलगुदेशम साथ है, लेकिन किसी को याद हो, की NDA में अटल के समय NTR फेक्शन वाली टीडीपी हुआ करती थी। खत्म हो गई।
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हर एक का जनाधार, उसका मास बेस, उसके नेता, उसका संगठन- आरएसएस भाजपा ने चर लिया। ये बढ़ गए, और पोषण देने वाला, बुलाने, बिठाने, जगह देने वाला खत्म हो गया।

अगर परजीवी की शास्त्रीय परिभाषा निकाली जाए, तो विज्ञान की किताबों में लिखे तमाम लक्षण तो भाजपा आरएसएस के लिए लिखे दिखाई देंगे।
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और ये सहजीवी नही, पैथोजेनिक पैरासाइट है।
याने जहां होंगे, वहां तरह तरह की बीमारियां होंगी।

जब ऐसे पैरासाइट का प्रकोप होता है, तो ताप बढ़ता है। बुखार आता है, सूजन होती है, आंखों से पानी निकलता है, भूख प्यास मिट जाती है। शरीर से खून चुक जाता है। इंसान बड़बड़ाने लगता है, मौत आंख के सामने नाचती है।

यह भारतीय समाज का हाल है।
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नीम हकीम ऐसे में बुखार की दवा देते है, आँखों मे दवा डालते हैं। खून उधार मांगकर चढ़ाते हैं।

पर ये महज लक्षणों का इलाज है, बीमारी का नही। बीमारी अगर परजीवी की वजह से है, तो परजीवी का इलाज करना होगा।

आपको कीड़े पहचानने पड़ेंगे।
फिर कीड़े मारने की दवा खानी पड़ेगी।