भाग–४०
मिहिर और निशी भी जल्दी राजीव के घर पहुंच गए । सभी राजीव को शांत करके उसके कमरे में भेज देते है ।मिहिर राजीव के साथ उसके कमरे में रुकता है बाकी सभी बाहर , सभी जाग कर रात निकालते है ।
मीशा को निशी सुलाने लेकर जाती है और जब तक वो सो नही जाती निशी उसके साथ होती है ।
रात को राजीव बार बार मिहिर से माफी मांगता है और मुझ को याद करके बिलखता है मिहिर उसे शांत रहने को कहता है ।
राजीव मेरे मोबाइल में अपनी तस्वीर देखता है , मीशा के साथ और मिहिर के साथ की हुई मेरी चैट्स पढ़ता है । और मेरे साथ गुजरे हर पल को याद करता है तो उसे एहसास होता है कि हर पल मैं ने बस उसे प्यार किया लेकिन वो समझ ना पाया। उसे खुद से नफरत होने लगी। उसने खुद का हाथ जोर से दीवार पर दे मारा।
मिहिर ने उसे चिल्लाते हुए कहा "ये क्या कर रहा है पागल हो गया है क्या?"
"क्या क्या नही कह दिया मैने उसे यार, उसका दिल कितना दुखाया मैने वरना उसके जैसी समझदार लड़की कभी ऐसा कदम ना उठाती।
"मैने उस दिन भी वैशाली की बातों को दिल से लगाकर शराब पी ली थी। जानते हो उसदीन वैशाली ने कहा था कीर्ति की जिंदगी में तुम हो, वो तुम्हे प्यार करती है । मुझे बहुत बुरा लगा कि उसने इतनी बड़ी बात मुझसे क्यों छुपाई, मैं समझ नही पाया उस वक्त की ये वैशाली की चाल थी ताकि मैं कीर्ति से दूर हो सकू और वो मेरे करीब आ पाए।"
"शांत हो जा राजीव"
"सच में मैने अपना नाम सही रखा था, रावण निकला मैं उस सीता सी पवित्र कीर्ति की जिंदगी का रावण। उसका हरण करके एक साल के लिए ले आया और उसे इतना प्रताड़ित किया कि वो मुझे छोड़ कर चली गई । "
"राजीव को शांत करना जरूरी है सोचकर मिहिर उसे दूध के साथ नींद की गोली दे दी ।
अगले दिन सम्राट अंकल और मीशा के ससुर जी मिहिर के साथ पुलिस स्टेशन गए ।
और राजीव और मेरे पापा हर उस जगह जहां मैं हो सकती थी कॉल करते या खुद पहुंच जाते ।
देखते ही देखते पूरे समाज में बात फेल गई की मैं भाग गई हूं । किसी किसी ने तो मेरे कैरेक्टर पर भी उंगली उठाई लेकिन राजीव किसी को जवाब अभी नहीं देना चाहता था बस कहने वाले को इस तरह घूरता की वो डरकर चुप हो जाता ।अभी उसकी प्रायोरिटी मेरा उसके पास होना थी। वरना वो इन लोगों को ऐसा जवाब देता कि बोलने के लायक ना रहते ।
बहुत ढूंढने पर भी मैं उन लोगों को नही मिली न मैने किसी को कॉन्टैक्ट किया । मोबाइल पास ना होने की वजह से पुलिस भी मुझे न ढूंढ पाई ।
धीरे धीरे सबको लगने लगा कि मैं मर चुकी हूं । लेकिन राजीव के मन में एक उम्मीद बाकी थी।
हर रोज राजीव मेरे फोन की तस्वीरों को देख कर उसके मेसेज पढ़कर दिन गुजारता । समय बहुत तेजी से गुजर जाता है देखते ही देखते 6 सालों का लंबा समय बीत गया । मैं उस दिन के बाद कभी किसी से नहीं मिली थी ।मैंने हर उस इंसान से नाता तोड लिया था जो मुझे राजीव की याद दिला सकता था । लेकिन मेरे पास उसकी एक याद थी। जिसके सहारे में अपनी जिंदगी गुजार रही थी।
6 साल बाद ,,,,
इन गुजरते दिनों में एक दिन राजीव कॉन्ट्रैक्ट पेपर अपने हाथ में लिए बालकनी में खड़ा था कि तभी उसे ऐसा एहसास हुआ जैसे मैं कहीं आसपास हूं। लेकिन शायद वो उसका भ्रम था । उसने कॉन्ट्रैक्ट पेपर को फिर से अलमारी में रख दिया ।
राजीव आज अपने किसी काम से दिल्ली जाने वाला था।
दिल्ली पहुंच कर उसने सारा ऑफिस वर्क निपटाया। और सड़क के किनारे चाय पीने लगा , तभी एक बच्चा जो सड़क के बीचोबीच खड़ा था उस पर उसकी नजर गई।
कौन था ये नया किरदार इस कहानी में ? क्या होगा आगे कहानी में जानने के लिए थोड़ा इंतजार । वैसे आपको कहानी कैसी लग रही है कॉमेंट करके बताइए ।