12. दीपिका मेम की अच्छाई
दिसम्बर की कातिल ठंडी ने अपनी औकात दिखनी शुरू कर दी थी। सुबह हमे जिससे सबसे ज्यादा प्यार था तो वह ब्लैंकेट , छोड़ने ने का मन ही नही होता था फिर भी उठना पड़ता था क्योंकि स्कूल जाना था और अगर लेट जागे तो लेट पहुचेंगे फिर जो सज़ा मेना टीचर ने तय की थी भयानक थी। जो भी लड़का लेट आए उसे ठंडे आरस के ऊपर बिना कुछ बिछाए बैठना पड़ता था। ठंडी को जेसे सज़ा बना दिया था टीचर ने। पर मेरे लिए सबसे ज्यादा फेवरीट सीज़न थी - विंटर। हालांकि ठंडी मुझे ज्यादा लगती थी फिर भी में स्वेटर पहनकर नही आती थी क्योंकि मुझे अच्छा लगता था की दीपिका मेम मुझे प्यार से कहे, " उरी, कल स्वेटर पहनकर आना वरना जम जाओगी कुल्फी की तरह" जवाब में सिर्फ स्माइल ही देती थी। वैसे धुलु नहीं पहनती थी क्योंकि उसे ठंड नही लगती थी। मेना टीचर भी कहते थे मगर धमकाकर। दूसरे दिन फिर मे नही पहनती थी और न ही मेरे फ्रेंड्स। इसबार तो दीपिका मेम ने प्यार से डांटा, " अगर कल तुम नही पहनकर आई तो में अपना स्वेटर तुझे दे दूंगी फिर भले ही मुझे ठंड लग जाए और बीमार पड़ जाऊ और फिर पूरे क्लास की पढ़ाई बिगड़ेगी।" मेम की बात का इतना असर हुआ की दूसरे दिन ठंडी कम थी फिर भी हम स्वेटर पहनकर आए। मेम की यह बात ही सबको उनकी और आकर्षित करती हैं। क्लास का सबसे तोफानी स्टूडेंट निखिल और उनके दोस्त भी मेम के पीरियड का इंतज़ार करते थे। जिनसे सभी टीचर्स परेशान होते थे उनको मेम अच्छे से ट्रीट करते थे। इसलिए कोई भी ऐसा न था जो मेम को पसंद न करता हो।
और दूसरा पवन जो इतना चलता था की हमारे क्लास का दरवाज़ा बंद करना मुश्किल हो जाता था। कभी कभी तो बॉयज को न जाने क्या हो जाता था की वह हमे बंद भी नही करने देते और कहते की हमे ठंड नही लगती अगर आपको लगती है तो स्वेटर पहन लो। फिर दीपिका मेम आते तो पहले हमे सुनाते फिर हमारा पक्ष लेते। कभी कभी वही बॉयज इतने अच्छे हो जाते के दरवाज़ा पवन के तेज़ झोंके से खुल ना जाए इस लिए अपना और हमारा बेग रखने में मदद करते थे।
नसरीन टीचर के जाने के बाद यह ही थे जो हमारी तकलीफ समझते थे। क्योंकि तृषा टीचर हमे पढ़ाते नही थे और बाकी थे मेना टीचर।
***
जो उस दिन मेरे साथ हुआ वह किसी के साथ नहीं होना चाहिए था। में तो पहले से पढ़ाई के लिए चिंतित थी और वह भी बोर्ड के लिए कौन नहीं होता? इसी लिए मैने 10th की प्रीति से पूछा की तुम्हारे पास जो ग्रामर की बुक है वह मुझे सिर्फ देखने के लिए देना क्योंकि मुझे इंग्लिश बहुत अच्छी लगती थी। पर में तय नहीं कर पाती की क्योंकि मुझे इंग्लिश अच्छी लगती है इसलिए मेम अच्छे लगते थे या मेम अच्छा पढ़ाते थे इसलिए इंग्लिश अच्छी लगती थी। खेर, जो भी हो। प्रीति ने कहा की में देखकर बताती हूं। मेने रिसेस में यह बात कही थी तो रिसेस खत्म होते ही जय सर जो गणित के टीचर थे उनका पीरियड हमारे पास वाले क्लास में था। वह आए और इंग्लिश की ग्रामर की बुक मुझे दे दी और दूसरे क्लास में चले गए अपना पीरियड लेने। यह कार्यक्रम देख लिया हेमा मेडम ने जो हेड थे स्कूल के। उन्होंने पहले सर को बुलाया और पूछा की क्यों उसने बुक दी। फिर मुझे! मुझे कभी भी इस तरह गलती करने की आदत नहीं की मुझे उस ऑफिस में जाना पड़े और आज बुलाया तो में डर गई।
" ये बुक किसकी है?"
" प्रीति की।"
" सर ने तुम्हे क्यों दी?"
" मुझे पता नहीं। मेने तो रिसेस में प्रीति को सिर्फ इतना ही कहा था की मुझे यह बुक देखनी है तुम फ्री हो तब देना। मेने नहीं कहा था की मुझे अभी ही चाहिए। सच में।" मैने कांपते हुए कहा।
" तो यह सर ने क्यों दी?"
" मुझे कुछ नहीं पता सच में। सर ने मुझे सिर्फ इतना ही कहा की प्रीति ने भेजी है।"
" अच्छा? तो प्रीति से ही पूछ लेते है।" फिर प्यून को आवाज लगा कर कहा," 10th की प्रीति को बुलाओ।"
प्रीति आई। भगवान की कृपा से प्रीति पलटी नहीं अपने शब्दों से वरना मेडम ने पूरा प्लान ही बनाकर रखा था मुझे डांटने के लिए। प्रीति ने भी वह ही कहा जो मैने कहा था।
" सर आपके नौकर है क्या? आप उनसे अपनी बुक की आप ले करेंगे?
" सर इसके क्लास की और जा रहे थे तो मेने...."
" तो क्या? तुमने भेज दिया अपने काम के लिए? " मेडम ने प्रीति और मुझे डांटा। में यह नहीं समझ पाई की मेरी क्या गलती थी? सिर्फ इतनी की मेने प्रीति से बुक मांगी? उसने सर से भिजवाई तो में क्या करू? सर ने दी तो में मना कैसे करू? लेनी तो पड़ेगी ही।
और इतना ही नहीं प्रीति को डांट कर जाने दिया और मुझे वहा ही रोका। कहा की मुझे पता है की तुम मेरे ऑफिस की बहार क्यों बैठती हो । यहा से क्या दिखता है वह सब। आज के बाद यहां दिखनी नहीं चाहिए। में समझ गई उनका इशारा किसकी और था। पर में यह नहीं समझ पाई की जो मेडम अक्सर मेरी तारीफ मेरे पेरेंट्स से करते रहते थे वह अचानक इतने क्यों बदल गए थे। शायद हम 10th की और जा रहे थे इसलिए।
ऐसे टीचर्स के बीच में निशांत सर, दीपिका मेम और तृषा टीचर ही थे जो हमे कंफर्ट दे सकते थे जेसे कोई बच्चा अपने मम्मी से या पापा से डांट खाकर पापा या मम्मी से या दादा दादी से कंफर्ट ढूढते है। में नहीं हम सब अब मेम से कंफर्ट पाते थे। इसमें भी जब मेम ने यह कहा की..
" देखो, सबकी इंडेक्स। लाईन बाय लाईन नहीं है देखो।" फिर थोड़ी देर रुक कर बोले, " कोई बात नहीं वैसे भी मुझे सिर्फ यही साल तो रहना है। अगले साल आपको जो करना है वह करना। " हम सब चौक गए।
" आप अगले साल नहीं आओगे मेडम?" निखिल ने हम सबकी ओर से पूछ लिया।
" नहीं, 90% तो नहीं सिर्फ 10% ही पोसिबिलिटी है। आप निराश मत हो में आप सबके लिए प्रे करूंगी की आपको मुझ से भी अच्छा टीचर मिले।"
पता नहीं क्यों पर मुझे उस 90% का डर नहीं उन 10% पर विश्वास था।
***
दो - तीन दिन हो गए थे। आज भी मेम नहीं आए थे। मुझे बहुत बुरा लगा और सोचा की एक दिन मेम के नहीं आने से मुझे अच्छा नहीं लगा तो अगर वह 10th में नहीं आए तो क्या होगा? मेने उस दिन मेम को व्हाट्सएप किया की वी मिस यू। और दूसरे दिन मेम हाजर। मुझे अच्छा भी लगा और चौक भी गई। जब मेम मुझे उस नीम के पेड़ नीचे मिले तो उसने बताया की मेरा गला खराब था तो में कैसे आऊं? पर जब तेरा मेसेज आया तो लगा की जाना चाहिए बच्चे मिस कर रहे होंगे। मेने भी कहा की माफ करना, आपको मेरी वजह से आना पड़ा आप तो स्वेटर पहनते हो फिर भी? मेने मज़ाक किया।
उस मानो 10% जीत गया। मुझे यकीन हो गया था अगर हम सब मिलकर मेम को रोंकेंगे तो वह जरूर रुक जाएंगे। झारा तो हमेशा मेरे साथ खड़ी थी तो मेरी चिंता 0% हो गई और 10% पर विश्वास ज्यादा। उसने कहा था, " तुम चिंता मत करना अगर मेम नहीं माने ना तो हम आँसू बहाकर मनाएंगे। मुझे पक्का यकीन है वह आँसू से मान ही जाएंगे।
यह सच था की 90% हमेशा ज्यादा ही होता है।