Saathi - 1 in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | साथी - भाग 1

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साथी - भाग 1

13 June 2024

Wednesday

‘साथी’

अस्वीकरण

 

यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और सिर्फ़ मनोरंजन के उद्देश्य से बनाई गई है। कहानी में दर्शाए गए पात्र , संस्थाएं और घटनाएं काल्पनिक है। इनका उपयोग दृश्यों, पात्रों और घटनाओं को नाटकीय बनाने के लिए किया गया है। कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से या किसी वास्तविक घटना से कोई सम्बंध नहीं है। किसी भी प्रकार की समानता महज़ एक संयोग है या फिर अनजाने में हुआ है। कहानी का उद्देश्य किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति को बदनाम करना नहीं है। कहानी का कंटेंट, कहानी के लेखक और कहानी से जुड़े किसी भी शख़्स (व्यक्तियों) का उद्देश्य किसी भी तरह से किसी व्यक्ति, समुदाय या वर्ग, किसी भी धर्म या धार्मिक भावनाओं या मान्यताओं का अपमान या ठेस पहुंचाना नहीं है। कहानी में कुछ अभिव्यक्तियों का उपयोग विशुद्ध रूप से दृश्यों को नाटकीय बनाने के लिए किया गया है। कहानी का लेखक या कहानी से जुड़ा कोई भी व्यक्ति, किसी भी व्यक्ति द्वारा इस तरह के अभिव्यक्तियों के उपयोग का समर्थन नहीं करता है।

परिचय

प्रेम का कोई परिचय नहीं होता. प्रेम कभी किसी में कोई अंतर नहीं करता. प्रेम में कोई छोटा बड़ा नहीं होता. प्रेम में कोई अमीर गरीब नहीं होता. प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, प्रेम का कोई दायरा नहीं होता. प्रेम की कोई जाति, कोई धर्म नहीं होता. प्रेम में कोई लिंग भेद भी नहीं होता. प्रेम कोई रंग नहीं देखता कोई रूप नहीं देखता. वैसे ही प्रेम का कोई नाम भी नहीं होता प्रेम तो बस प्रेम होता है जो बस हो जाता है क्यूंकि प्रेम एक अनुभूति है प्रेम एक एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. बस इसलिए मैंने इस प्रेम कहानी में इसके पात्रों को (कोई नाम नहीं दिया, कोई जाति कोई धर्म नहीं दिया.) ताकि आप सभी पाठक गण इस कहानी को पढ़ते हुए पक्षपाती ना हो और कहानी के साथ न्याय कर सकें और मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी लोग ऐसा ही करेंगे क्यूंकि समझदार लोग ही शब्दों को समझें बिना भी भावनाओं को समझने की कला रखते है... बस यही सोचकर कुछ अलग करने की कोशिश की है 🙏🏼

भाग -1

फोन की घन्टी बज रही है किन्तु सामने से कोई फोन उठा नहीं रहा है. घन्टी दो तीन बार पूरी-पूरी बज-बज के बन्द हो गई पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया. फोन करने वाले को पहले तो मन मे शंका उत्पन्न हुई किन्तु कुछ ही पल में उसे यह एहसास हुआ, की हो सकता है सामने वाला व्यक्ति जान बूझकर ही फोन नहीं  उठा रहा हो. आखिर सालों पुराना झगड़ा जो है. इतनी आसानी से यदि बात ख़त्म होनी होती तो ना जाने कितने समय पहले ही खत्म हो गयी होती लेकिन सामने वाले को भी इतना तो सोचना ही चाहिए कि यदि इतने सालों के झगड़े के बाद भी फोन करने वाला व्यक्ति उसका फोन रिचार्ज करवा रहा है तो कम से कम एक बार उसका कॉल ही उठा ले मगर नहीं, अहम जो इतना बड़ा है साहब का ऐसे कैसे इतनी आसानी से कॉल उठा लेंगे छोटे नहीं हो जायेंगे. जाने दो, मेरी भी कौन सी अटकी पढ़ी है, ना ही मैं मरा जा रहा हूँ उस से बात करने के लिए. पता नहीं मेरी ही अकल पर पत्थर पड़ गये थे जो मेरे मन में उससे बात करने का विचार आया.

खैर मैंने वादा किया था सो निभा रहा हूँ, ‘समझ लुँगा कि रिचार्ज के रूप में दान किया करता हूँ मैं’ और जब तक जिन्दा हूँ कराता रहुँगा रिचार्ज, कभी तो सामने वाले को एहसास होगा पर हाँ अब कभी अपनी तरफ से कॉल नहीं करूँगा. उसका अहम बड़ा है तो मैं भी कोई सड़क पर नहीं पड़ा हूँ, सोचते-सोचते सिगरेट को एश ट्रे में मसलते हुये वो शख्स उठा और उठकर अपनी गाड़ी में बैठकर वहाँ से चला गया. पर पता नहीं क्यों वह पिछले कुछ दिनों से परेशान है उसके मन में अजीब अजीब ख्याल आ रहे हैं. वह रात को ठीक से सौ नहीं पाता. रातों को अचानक उसकी नींद खुल जाती है. अजीब सी बैचेनी होती है. जिसे उसने फोन किया था उससे बात करने की इच्छा होती है, दिल चाहता है, बात हो पर दिमाग मना करता है. फोन करने पर भी सामने से कभी फोन नहीं उठता. फोन पर बस थैंक्स का मैसेज आता है पर इसके आगे कोई और संदेश नहीं आता. कोई खेर खबर तक नहीं मिलती ना लिखकर बात हो पाती है, ना फोन पर ही बात होती है.

एक दिन एक मधुशाला में बैठकर कुछ दो पैग पीने के बाद आज फिर एक बार कॉल किया, इस बार भी हमेशा की तरह फोन नहीं उठा और निराशा ही हाथ लगी. फिर आचानक ही मन यादों मे खो गया, बचपन मे चला गया यादों का परिंदा उडा और सीधा बचपन के उस पेड़ पर जा बैठा, जहाँ वह दोनों पहली बार मिले थे. अनाथ आश्रम था उस जगह का नाम, जहाँ दो नन्हे हमउम्र बालक कब एक दुसरे के दोस्त बने और कब एक दुसरे का एक ऐसा साहारा जिसके बिना जीवन जीने के विषय मे सोचना भी असंभव सा लगता था. युँ तो उनका रिश्ता दो भाईयों के जैसा दिखता था तो कभी दो गहरे दोस्तो जैसा दिखाई देता, तो कभी दो जिस्म एक जान टाईप. लेकिन उनके रिश्ते का रूप समय के साथ-साथ ऐसा बदला- ऐसा बदला कि शायद स्वयं उन्हे भी यह समझ नहीं आया कि वह इतना कैसे बदल गये. एक दुसरे के प्रति समर्पित रहते-रहते कब उनके इस समपर्ण में आकर्षण की परिभाषा को एक दुजे के प्रति बदल दिया.

अचानक से कब दोनो में से एक दुसरे के प्रति एक स्त्री और एक पुरुष के जैसे मनोभवाओ से दूसरे को देखने लगा और दूसरा भी एक स्त्री की तरह ही उसे प्यार करने लागा. पहले तो उन दोनों  का यह रिश्ता कई सालो तक अनाथ आश्रम और बाहारी दुनिया से छिपा रहा. लेकिन फिर एक दिन जब एक स्त्री मनोभाव वाले व्यक्ति को एक परिवार गोद लेने के लिये आया और दोनों के मन में एक दुसरे से बिछड़ जाने का डर मन में समाया, तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि वह क्या करें. पहले तो उन्होंने मना किया कि उन्हें एक दुजे से अलग ना किया जाये पर अनाथ आश्रम के मालिक ने उनकी एक ना सुनी तब उन्होंने तय किया कि वह उन लोगो से हाथ जोड़कर प्रार्थना करेंगे कि यदि वह एक को गोद ले ही रहे है तो दूसर को भी लेलें और यदि यह संभव ना हो तो कोई दूसरा बालक चुन ले मगर किसी भी कीमत पर उनको एक दूसरे लग ना किया जाये.

समय आने पर उन्होंने ऐसा किया भी, तब आश्रम के मालिक ने तंग आकर उनसे पूछ ही लिया. ‘आखिर ऐसी भी क्या बात है, जो तुम दोनो बिल्कुल ही एक दुसरे से अलग नही हो सकते. आखिर एक ना एक दिन तो यह होना ही है. तो फिर आज ही क्यो नहीं...? दोनों बच्चे आश्रम के मालिक की ऊँची आवाज सुनकर इतना डर गये कि उन्होंने अपना सच वहाँ सबके सामने बता दिया. उनका सच सुनकर आश्रम के मालिक के साथ उन दंपतियों की आँखे भी फटी के फटी रह गयी.

लेकिन आश्रम के मालिक को अपनी और अपने आश्रम की इज्जत बचानी थी. नतीजन उसने उन दोनों बच्चों को आश्रम से निकाल दिया. बच्चे अब बिल्कुल सड़क पर थे, ना तो उनके पास रहने को घर था और ना ही खाने को कुछ था. ना पैसे ना ही सर छिपाने की कोई जगह. करें तो क्या करें...! कहा जाये, उनकी समझ में कुछ नही आ रहा था. चलते-चलते दोनों ट्रेन  स्टेशन के पास पहुँच गये. वहाँ उन्होने सड़क किनारे मजदूर गरीब औरतों को खाना बनाते देखा तो दोनो की भूख जाग गयी पर खाना कहाँ ऐसे मिलने वाला था. उनमें से एक ने लोगों से भीख मांगना प्रारम्भ किया मगर किसी ने उसे एक पैसा भी नहीं दिया. दोनों ही बालक देखने में बहुत ही सुन्दर दिखते थे. फिर उसकी देखा देखी दूसरे ने भी अपने साथी के लिये भीख मांगना शुरू किया, बहुत देर तक दोनों को केवल एक ही ताना सुनने को मिला कि हाथ पैर सलामत है तो भीख क्यों मांगते हो काम करो- काम करो, उस रात तो दोनों को कहीं से कुछ ना मिला।

अगली सुबह जब चाय वाले का मुंह ताक रहे थे दोनों तो उसने दया करते हुये पूछा काम करोगे ?? तो पैसे भी दूंगा और चाय भी मिलेगी. दोनों बालकों ने एक दूसरे की तरफ देखा और हाँ मे गरदन हिला दी. उसने कहा यह चाय के गिलास धोने का काम है कर लोगे ? एक भी गिलास फूटना नहीं चाहिए और ग्राहक को हाथ में ले जाकर भी चाय देनी होगी ? दोनों ने हाँ कर दी. एक गिलास धोता और दुसरा चाय के गिलास ग्राहकों को देता. एक महीना ऐसे ही निकल गया. दोनो चाय और पाव के भरोसे जिन्दा रहे और फुटपाथ पर सोकर दिन काटने लगे.

जारी है ...!