क्या आरक्षण अब भी आवश्यक है?
शुरू में ही एक स्पष्टता। मैं ज्ञातिवाद में नहीं मानता। ईश्वर एक से ही शरीरों को जन्म देता है।
सरखे यानि सरखे। किसीको भी कोई भी कारण से कुछ भी ज्यादा नहीं।
आरक्षण जब दिया गया था, तब शायद सही होगा, अब 76 साल बाद , 5 पीढ़ीओ के बाद नहीं है। आरक्षण ज्ञातिओं के बीच की खाई ज्यादा चौड़ी करता है।
एक मित्रने लिखा था , देश का आधा नौकरी करने वाला वर्ग कर्ज में डूबा है। दिखावे से ज्यादा उसकी मजबूरी है।
यह आधा वर्ग बेचारा सवर्ण मध्यम वर्ग है। अब सरकारी नौकरियां करीब सौ प्रतिशत आरक्षित वर्गो ने रोक ली है। सवर्ण पीढ़ी कम वेतन में प्राइवेट में काम करने को मजबूर हो गई है।
उच्च शिक्षा भी खर्च हो सके इतने में उन्हें मिल रही है और सवर्णों को खूब महंगी शिक्षा लेनी पड़ती है। अत: ,अब ज्यादा मध्यम वर्गीय बच्चे कम पढ़ सकते है।
और आज की झरूरत के मुताबित रहने के लिए लोन लेनी पड़ती है। मुश्किल से दो अंत एक होते है।
खुद आंबेडकरजी ने ही आरक्षण दस साल के लिए ही कहा था।
जय हो वर्तमान राजद्वारीओ की। 80 साल बाद भी मत बैंक के लिए वे इसे चिपक रहे है।
आगे यह है की उन आरक्षित लोगों को सभी सुविधाएं लगभग मुफ्त में मिलती है और टैक्स बेचारे सवर्ण लोग पर ज्यादा है। अत : उनकी जनसंख्या ही ज्यादा हो रही है। परिणाम स्वरूप मत बैंक उसकी बड़ी हो गई है। सवर्ण बेचारा बन गया है।
इसी बात पर बड़ी भारी मात्रा में इमिग्रेशन हो रहा है।
70झ तक ऐसा ट्रेंड था कि सवर्ण, us में भी ब्राह्मण ज्यादा पढ़ते थे। व्यापारी वर्ग के बच्चे मेट्रिक तक पढ़कर धंधे में लग जाते थे। फिर वे ग्रेजुएट होने लगे। उच्च शिक्षा में आज जितनी स्पर्धा न थी।
फिर गांवों से शहर की और माइग्रेशन शुरू हुआ। कृषिकार लोग बी एस सी एग्रीकल्चर होने लगे। लेकिन बहुत बड़ा वर्ग यहां तक नहीं मिलने पर विदेश जा कर मजबूरी से वहां स्थायी हो गया।
मेडिकल, इंजीनियरिंग इत्यादि में सवर्ण बच्चों को मुश्किल ज्यादा थी पर kidi तरह आज के सामने तब कम मुश्किल से हो जाता था।
सवर्ण इंजीनियर पढ़ाई के बाद भी बेकार रहने लगे। एक वर्ग ने तब के राष्ट्रपति वी वी गीरी को पत्र लिखा। उन्हों ने कहा कि अगर आप बेकार है तो जूते पोलिश कर लो!
यह बात आंखें खोल देने वाली है।
यह लंबे समय से चले आरक्षण ने हमारी संस्कृति के मूल में कुठाराघात किया है।
यहां सवर्ण पीढ़ी तकों से वंचित होते भारी मात्रा में विदेश चली गई। वहां बड़ी कठिनाईयां झेल ली ताकि उनके मां बाप कुछ सुख चैन से रह सके। यह ट्रेंड करीब 1978 से शुरू हो गया और सब से ज्यादा ‘85 - ‘90 तक चला।
बाकी था तो मंडल कमीशन ने आरक्षण 33 से 50 प्रतिशत कर दिया। कुटुंब नियोजन भी हिंदू और सवर्णो तक ही सीमित रहा।
अब सभी वर्ण, सभी लोग ज्यादा से ज्यादा पढ़ने तो लगे लेकिन इतनी कालेज कहां थी?
विकास भी इतना धीमा था कि योग्य कमाई देती नौकरियां भी सवर्ण वर्ग को नसीब न थी।
कलम की एक ही लकीर ने मंडल कमीशन द्वारा आरक्षण 50 प्रतिशत से भी बढ़ा दीया। क्वोटा के अंदर क्वोटा .. बढ़ता ही गया।
2000 से तो यह स्थिति काबू के बाहर हो गई।
अब यू एस भी कितने को समाए? सब कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जहां जाकर कमा सके, जा कर बसने लगे। रूस और चाइना तक में उच्च शिक्षा वालों ने दुकान खोल दी।
मजबूरी थी, वहां भी पढ़ने जाने लगे। अब यूक्रेन में हुआ ऐसा भी हाल कभी हुआ, अधूरी पढ़ाई छोड़कर भागना पड़ा।
अगर यह पूरी पीढ़ी यहां पढ़ी होती, यहां संतोष की कमाई मिली होती तो देश ने जो 2015 के बाद प्रगति की वह कितनी ज्यादा, कितनी पहले होती?
एक दो मार्क से एडमिशन से वंचित ये सब विदेश गए क्यों की यहां आरक्षण दरवाजे बंद किए था।
उन सब के मां बाप यहां अकेले रहने को बाध्य हो गए।
इसने जन्म दिया ओल्ड एज होम्स और सिर्फ वयस्कों के लिए बनी टाउनशिप।
बेचारे संतान चाहते हुए भी हर छे महीने aa नही सकते।
इस अकेली रहती, सुविधा वंचित आज की पीढ़ी के लिए आरक्षण ही जिम्मेदार है।
एक वर्ग को जो शिक्षा आठ दस हजार में मिलती है वही दूसरे वर्ग को तीस चालीस लाख में! मां बाप की पूरी जिंदगी की कमाई खा जाती है।
ऐसी आजादी के बाद यह पांचवी पीढ़ी हाईस्कुल में आ चुकी है। चार पीढ़ी तो आरक्षण का लाभ प्राप्त कर चुकी है।
अब तो खत्म करो इस अनामत को!
मोरारजीभाई देसाई ने 1995 में ही कहा था, अब सवर्ण या पिछड़ी जाति के भेद को भूल जाओ। आरक्षित लोग संकुचित रहेंगे तो जैसे नदी को सागर में मिलना ही पड़ता है, अन्यथा वह सुख जाएगी। इसी तरह अब अपने को पिछड़े कहे जाने वाले वर्ग को भी सब के साथ सामान्य प्रवाह में धूल मिल जाना होगा।
हां, कुछ खराबी, जैसे ग्राम विस्तारों में दलित दिखा वर यात्रा निकाल नहीं सकता, कुछ लोग रोकते है, ऐसा बांध होना चाहिए। कुछ जगह गांवों में इन्हे पानी भी अलग जगह से लेना पड़ता हे, यह बंद होना चाहिए और सरकारी मशीनरी उस पर कार्यवाही कर सकती है।
लेकिन इस के लिए खाली आरक्षण यावद चंद्र दिवाकरो चालू रखने से यह बंद नहीं हो जाएगा।
शहरों में कोई एसे रोकता नहीं है। पानी भी बड़ी टंकी से सब को एक ही मिलता है।
आरक्षण जिसे आगे लाना चाहिए इसे का नहीं सकता, कुछ लोग ही इसका लाभ उठा रहे है और समाज, अर्थतंत्र, संस्कृति को बड़ा नुकसान हो रहा है।
अत: अब 80 साल बाद तो आरक्षण बंद होना चाहिए।