Saansat me Kante - 3 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | साँसत में काँटे - भाग 3

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साँसत में काँटे - भाग 3

भाग -3

उसके अब्बा ने कहा, “हमारा परिवार पाँचों वक़्त का नमाज़ी है। अल्लाह के ही बताए रास्ते पर चलता है, मज़हब के लिए ख़ानदान के कई लोग अपनी क़ुर्बानी दे चुके हैं।”

लेकिन दहशतगर्द अपनी ही बात करते रहे, उनके हिसाब से पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करना ही पूरा मुसलमान होना नहीं है। उन्होंने बार-बार क़ुरान के पारा दस, सूरा नौ, तौबा आयत पाँच की इस बात, “अतः जब हराम (वर्जित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों (बहुदेववादियों) को क़त्ल करो जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और हर घात में उनकी ख़बर लेने की लिए बैठो। फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उन्हें छोड़ दो।” का ज़िक्र करते हुए कहा कि “क़ुरान ए पाक में साफ़-साफ़ हुकुम दिया गया है कि मुशरिकों की ताक में रहो, घात लगा कर जहाँ भी पाओ उन्हें क़त्ल करो। इसलिए जो इस पर अमल नहीं करता, जिहाद में शामिल नहीं होता, तलवार नहीं उठाता, काफ़िरों के सिर क़लम नहीं करता, तो वह पूरा मुसलमान हो ही नहीं सकता।” 

वह ऐसी ही तमाम बातें करते रहे। उन्होंने खाना-पीना, बातचीत के दौरान उससे, उसकी बहनों और अम्मी से भी बदतमीज़ी की, अश्लील हरकतें कीं। सेना के ख़ौफ़ के चलते वो रात साढ़े तीन बजे चले गए। सशंकित और ख़ौफ़ज़दा इतने थे कि उनके मोबाइल जाते समय वापस किए और धमकी दी कि किसी से कुछ बात की तो पूरे परिवार को ख़त्म कर देंगे। 

इसके बाद वो आए दिन आने लगे, उसके भाइयों को संगठन में शामिल होने के लिए दबाव डालने लगे। छोटा वाला हमज़ा उन्हें ज़्यादा तेज़-तर्रार और फ़ुर्तीला लगा तो वो उसके एकदम ही पीछे पड़ गए। दोनों बड़े वाले उनकी नज़र में आलसी और कायर थे। 

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राइफ़ल की नोक पर उन दोनों से उन्होंने सामान इधर से उधर पहुँचाने, लोगों को संगठन में शामिल करने के काम में लगने को कहा, लेकिन जब अब्बू और भाइयों ने मना कर दिया तो उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों को बहुत पीटा, राइफ़ल की बटों से मारा, कहा कि, “तुम सब काफ़िर हो गए हो, मज़हब के काम से मुँह मोड़ रहे हो तुम्हें ज़िंदा रहने का भी हक़ नहीं है।” आख़िर जान बचाने के लिए उनकी बात मान ली गई। जिन बातों के कारण वो दूसरी जगह रहने आए थे, उसी में फिर और गहरे धँस गए। 

इसके बाद उन सब ने खाना भी बनवा कर खाया। उसके अब्बू, भाइयों को कमरे में बाँधकर डाल दिया। घर की सभी महिलाओं से बलात्कार किया। मर्दों के कलेजे फट गए कि दरिंदों ने न तो उसकी अम्मी को छोड़ा न ही बेटियों को। जाते-जाते किसी से कुछ कहने पर पूरे परिवार का सिर क़लम कर देने की धमकी भी दे गए। 

उनके जाने के बाद सभी महिलाएँ बदहवास पड़ी रहीं, कौन किसको क्या समझाए, घर के मर्दों को बंद कमरे से बाहर कैसे निकालें, कैसे अपनी लुटी-पिटी तार-तार हुई अस्मत के बाद उन्हें अपना मुँह दिखाएँ, उनके बँधे हाथ-पैरों की रस्सियाँ खोलें, उनकी नज़रों का सामना करें। 

उसकी अम्मी का दिल एक और बात से भी बैठा जा रहा था, कि तार-तार हुई अस्मत के बाद शौहर कहीं इसी वक़्त उसे तीन तलाक़ देकर घर से बाहर न निकाल दे। अक़्सर एक और निकाह करने की बात करता ही है। अस्मत लुटने को कहीं एक मौक़ा न मान ले। 

मगर रस्सियाँ तो खोलनी ही थीं, और उन्हें ही खोलनी थीं क्योंकि लड़कियों की हालत और भी ज़्यादा दयनीय थी। दरिंदे दहशतगर्दों की कामुक आवाज़ें, महिलाओं की यातना-भरी सिसकियाँ मर्दों ने भी सुनी थी। किसी के पास किसी से भी बताने, छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था। 

सभी सब-कुछ जानते थे कि दरिंदों ने क्या-क्या किया है। जीवन में ऐसा भी भयावह मंज़र देखने, भोगने को मिलेगा, ऐसे हालातों से गुज़रना पड़ेगा, उनके ख़्वाबों में भी कभी यह नहीं आया था, किसी ने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था। सबकी आँखों से आँसू बह रहे थे, सिसकियाँ निकल रहीं थीं। 

उसकी अम्मी को ऐसे में बार-बार टीका लाल मट्टू का परिवार याद आ रहा था, जब कुछ बरस पहले वह उनके पड़ोस वाले मोहल्ले में रहा करता था, तब दहशतगर्दों का निशाना सनातनी परिवार हुआ करते थे। 

ऐसे ही दहशतगर्दों ने मट्टू परिवार पर दिन-दहाड़े हमला किया था, महिलाओं की अस्मत खुले-आम तार-तार की, फिर सबके सामने ही पूरे परिवार को काफ़िर मुशरिक कहते हुए गोलियों से छलनी कर दिया था। उन्हें भद्दी-भद्दी गलियाँ देते हुए ए। के। ४७ राइफ़ल की पूरी मैगज़ीन उनके सिरों में झोंक दी थी। 

सभी के सिरों के परखच्चे उड़ गए थे, किसी को भी पहचाना नहीं जा सकता था। इसके बाद शेष बचे सनातनी परिवार रातों-रात पलायन कर गए थे। यह सभी व्यावसाई समृद्ध परिवार थे, जिनकी सम्पत्ति इन्हीं सब लोगों ने लूट ली थी। 

तब इन्हें यही दरिंदे दहशतगर्द फ़रिश्ते लगते थे, उनके लिए पलक पाँवड़े-बिछाते थे, उन्हें कन्धों पर बिठा कर नारा ए तकबीर, अल्लाह हू अकबर, नारा लगाया करते थे। सनातनियों की रेकी कर उन्हें बताया करते थे। लेकिन अब उसकी अम्मी उन्हें मन ही मन शैतान कह रही थी, कोस रही थी कि, बहकावे में आ कर इन दरिंदों को वह लोग मज़हब का रहनुमा, फ़रिश्ता मानने लगे, जिन सनातनियों को इनकी ही तरह वो शैतान काफ़िर मानती थीं, असली शैतान तो ये ही निकले। 

बेचारे सनातनी, क्या-क्या बीती होगी उन पर, हो न हो उनकी आहें ही हैं जो अब हमें तबाह कर रहीं हैं, न जाने अब आगे क्या होगा, ये दरिंदे जो हाल कर रहे हैं, लगता है वो दिन दूर नहीं जब सनातनियों की तरह मोमिनों को भी कहीं और ठिकाना बनाना पड़ेगा, लड़कियों की अस्मत अब इनके मुँह लग गई है, अब ये रोज़ ही आ धमकेंगे। 

बाक़ी बची रात बीती लेकिन कोई किसी से एक लफ़्ज़ नहीं बोला, महिलाएँ घुट-घुट कर सिसकती रहीं, अम्मी उसकी कई बार बेहोश हुईं। मार की चोटों, इज़्ज़त के धूल में मिलने से आहत हतप्रभ मर्द बुतशिकनों के कारण बुत से बन गए। 

सब को ऐसा लग रहा था जैसे अब जीवन में कुछ बचा ही नहीं है। उसकी अम्मी की तरह उसके अब्बू को भी अपने एक ख़ानदानी बुज़ुर्ग की बात याद आ रही थी, जो दहशतगर्दी के लिए कहते कि ये वो आग है जो आख़िर में जलाने वाले को ही जलाती है। 

उसके अब्बू चाहते थे कि पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाई जाए, सेना को सूचना देकर इन दहशतगर्दों को ढेर करवा कर बदला लिया जाए। लेकिन उसकी अम्मी, लड़कियों ने मना कर दिया। 

बड़े भाई ने कहा, “पुलिस में जाने से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा, उलटे वो हमसे ही पैसे वसूलेगी, बेइज़्ज़त करेगी, परेशान करेगी। पुलिस तो ख़ुद ही उन से डरती है, पुलिस होकर भी इन दहशतगर्दों को हफ़्ता देती है, कि उनकी जान बख्शे रहें। हाँ सेना को ज़रूर बताएँगे वो इन . . . को” गंदी गाली देते हुए कहा, “ढेर करेगी, इनसे बदला लेने का इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है, ये सिर्फ़ दहशतगर्द हैं, मज़हब के नाम पर दरिंदगी कर रहे हैं। हम इनके झाँसे में आकर बर्बाद हो गए।” मगर इस बात पर भी पूरा कुनबा रज़ामंद नहीं हो सका। पूरी घटना परिवार के दिलों में ही दफ़न होकर रह गई। 

मगर उन दरिंदे दहशतगर्दों के मुँह में गोश्त रोटी की दावत, महिलाओं, जवान लड़कियों के बदन की आदत लग चुकी थी। वो हफ़्ते भर बाद ही अचानक ही फिर आ धमके फिर वही सारी कहानी दोहराई। 

इस बार उसके अब्बू ने कश्मीर से पलायन कर दिल्ली में बसने का इरादा ज़ाहिर किया तो उसकी अम्मी ने कहा, “वहाँ हम सब दो दिन में ही मारे जाएँगे। वहाँ काफ़िरों का जमावड़ा है। यहाँ पर जिस तरह हम-लोग काफ़िरों के ऊपर ज़ुल्मों-सितम होते देखते रहे, दहशतगर्दों को उन्हें मारते-काटते, उनकी औरतों की अस्मत लूटते देखते रहे, ख़ुश होते रहे कि काफ़िरों को सज़ा मिल रही है और उनको बचाने के बजाय दहशतगर्दों का साथ देते रहे। जम्मू से लेकर दिल्ली तक सारे काफ़िर यह जानते हैं, ऐसे में हम उनके बीच में जाएँगे तो वो हम से बदला लेंगे।”