जतिन और उसके परिवार के मैत्री के घर के अंदर आने के बाद वहां का माहौल बहुत खुशनुमा हो गया था चूंकि राजेश और जतिन अच्छे दोस्त थे तो दोनो के बीच मे कोई भी हिचक नही थी इसलिये दोनो एक दूसरे से हंसी मजाक करते हुये ही घर के अंदर आये थे, अंदर आने के बाद राजेश ने जतिन से पूछा- और बताओ जतिन भाई, घर ढूंढने मे कोई दिक्कत तो नही हुयी ना...
जतिन ने कहा- नहीं नहीं कोई दिक्कत नही हुयी गूगल देवता ने हमे यहां आराम से पंहुचा दिया...
जतिन की बात सुनकर राजेश हंसने लगा कि तभी सरोज ने अपने बगल मे बैठे राजेश के छोटे भाई सुनील से धीरे से कुछ कहा जिसके बाद अपनी ताई जी की बात सुनकर सुनील अपनी जगह से उठा और अंदर चला गया, सुनील के अंदर जाने के करीब पांच मिनट बाद राजेश और सुनील दोनो की बहुयें एक बड़ी सी ट्रे मे रखी कांच की सुंदर सी कटोरियो मे सबके लिये गुलाब जामुन ले कर आ गयीं, उनके ड्राइंगरूम मे आने के बाद सरोज ने जतिन और उसके परिवार से उन दोनो का परिचय कराते हुये कहा - ये हमारी दो बहुयें हैं, ये राजेश की बहू नेहा और ये सुनील की बहू सुरभि...
अपनी ताई सास के अपना परिचय करवा देने के बाद नेहा और सुरभि दोनो ने जतिन और उसके पूरे परिवार से हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर बड़े ही हर्षित और सभ्य तरीके से मुस्कुराते हुये नमस्ते करी इसके बाद सरोज ने बबिता की तरफ देखकर कहा- बहन जी आप लोग पहली बार हमारे घर आये हैं लीजिये सबसे पहले मुंह मीठा कीजिये...
इधर गुलाब जामुन की ट्रे को ड्राइंगरूम मे रखी मेज पर रखने के बाद नेहा और सुरभि दोनो अंदर रसोई मे चले गये ताकि चाय बना कर मैत्री को चाय के साथ जतिन और उसके परिवार के सामने ड्राइंगरूम मे भेज सकें...
जहां एक तरफ नेहा और सुरभि खुशी खुशी मैत्री को ड्राइंगरूम मे भेजने की तैयारी कर रही थीं वहीं दूसरी तरफ मैत्री अपने कमरे मे बैठी खिसियाते हुये सोच रही थी कि "रवि से शादी के बाद जो उनके घर का माहौल था वो तो मै सह ही रही थी फिर भी सच्चे दिल से सब निभा रही थी, वहां हालात आज नही तो कल ठीक हो ही जाते काश कल रात के सपने की तरह रवि आज मेरे साथ होते तो मुझे फिर से इन परिस्थितियों से होकर ना गुजरना पड़ता, मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है ये सब"... मैत्री खिसियाये जा रही थी और यही सब बाते सोचकर दुखी हो रही थी और उसका इस तरह से दुखी होना कहीं ना कहीं जायज़ भी था, कोई भी सच्ची, सहज, संस्कारी भारतीय स्त्री ये नही चाहेगी कि उसे इस तरह की परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़े जिस तरह की परिस्थितियों से होकर आज मैत्री गुजर रही थी, कोई भी भारतीय स्त्री ये कभी नही चाहेगी कि उसके पवित्र, पतिव्रता शरीर और सोच पर उसके पति के अलावा कोई और पुरुष स्पर्श करे.... (और भगवान ना करे कि किसी भी लड़की को अपने जीवन मे दूसरी शादी जैसी परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़े वो भी इन हालातो मे)
लेकिन दूसरी तरफ मैत्री समझदार थी वो ये भी जानती थी कि कहीं ना कहीं उसके मम्मी पापा अपनी जगह बिल्कुल सही हैं जो उसे इस विधवा नाम के दंश से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं पर मैत्री को इन सब चीजो का दुबारा से होना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और सब कुछ बहुत अजीब सा लग रहा था...
मैत्री ये सब सोचकर परेशान हो ही रही थी कि तभी उसकी बड़ी भाभी नेहा उसे लेने उसके कमरे मे आयीं और बोलीं- दीदी आप ठीक हैं ना चलिये बाहर चलकर सबसे मिल लीजिये...
अपनी भाभी नेहा के "चलने" के लिये कहने पर पहले से ही खिसियायी और भावुक मैत्री जैसे टूट सी गयी और बहुत दुख करके फफकते हुये आंखो मे आंसू लिये अपने होंठ बाहर निकालकर रोती हुयी सी बोली- भाभी मुझे ये सब कुछ बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है, मुझे बहुत घुटन सी हो रही है...
नेहा जानती थी कि मैत्री ऐसा व्यवहार क्यो कर रही है और वो भी इस खुशी के मौके पर इसीलिये बड़े होने का फर्ज निभाते हुये वो मैत्री के बगल मे बैठ गयी और बड़े ही प्यार से मुस्कुरा कर उसके आंसू पोंछते हुये उसने मैत्री का सिर अपने कंधे पर चिपका कर कहा- दीदी मै जानती हूं कि आपके मन मे क्या चल रहा है लेकिन कभी कभी हमें उस तरफ ही चलना पड़ता है जिस तरफ हमें परिस्थितियां ले जाती हैं, आप एक कदम आगे बढ़ाइये मुझे पूरा विश्वास है कि उस एक कदम के बाद आपके जीवन मे खुशियां फिर से लौट आयेंगी, विश्वास मानिये जतिन जी और उनके घरवाले बहुत अच्छे हैं और आपके भइया आज से नही बल्कि कई सालों से जतिन जी को जानते हैं, आप भरोसा रखिये अब जो भी होगा वो आपके जीवन मे खुशियां ही खुशियां भर देगा....
अपनी भाभी नेहा के इतने प्यार से समझाने पर मैत्री ड्राइंगरूम मे जाने के लिये मान गयी और अपने आप को संभालते हुये बड़ी मासूमियत से बोली- ठीक है भाभी मै तैयार हूं लेकिन मै सबके सामने रो दी तो...?
मैत्री के इतनी मासूमियत से अपनी बात कहने पर नेहा ने उसके सिर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरकर मुस्कुराते हुये कहा- रो दीं तो कोई बात नही सब जानते हैं कि आपके साथ क्या हुआ है, किसी से कुछ छुपा नही है पर यकीन मानिये वो लोग इतने अच्छे हैं ना कि आप रो ही नहीं पाओगी....
जहां एकतरफ मैत्री के दिल मे एक दुख था फिर से इन सब चीजो से होकर गुजरने का वहीं दूसरी तरफ ड्राइंगरूम मे बैठा जतिन जैसे मैत्री के दिल की बात को अपने दिल मे महसूस कर रहा था, उसे मैत्री को लेकर एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी और यही बेचैनी अपने दिल मे लिये जतिन सबके सामने थोड़ा हिचकिचाते हुये बोला- अम्म्म्... देखिये मै आप सबसे कुछ कहना चाहता हूं, असल मे मुझे थोड़ा अजीब लगता है वो हाथ मे चाय की ट्रे लेकर आना और बाकी चीजें... अम्म् असल मे मै चाहता हूं कि मैत्री बिल्कुल नॉर्मल जैसे आमतौर पर हम घर पर आये मेहमानो से मिलने आते हैं वैसे ही वो आये, हमे चलवा कर या कोई कमी तो नही है ये भावना अपने दिल मे रखकर मैत्री को नही देखना है अगर उचित लगे तो मैत्री को बिल्कुल आराम से और सहज तरीके से यहां आने दीजिये...
असल मे जतिन ये बात समझता था कि किसी भी लड़की के लिये ये चीजे आसान नही होती हैं क्योकि उसने ज्योति को इसी तरह से सागर और उसके घरवालो के सामने जाने से पहले घबराते और घबराहट मे कांपते हुये देखा था, ये ही कारण था कि वो चाहता था कि मैत्री बिल्कुल नॉर्मल तरीके से खाली हाथ उन सबके सामने आये...
जतिन की बात सुनकर मैत्री की मम्मी सरोज अंदर ही अंदर बहुत खुश हुयीं और जतिन की बात से हामी भरते हुये खुद उठकर घर के अंदर मैत्री के पास चली गयीं, मैत्री के पास जाकर उन्होने देखा कि वो किचन मे अपनी दोनो भाभियो के साथ खड़ी है और चाय के साथ ड्राइंगरूम मे जाने की तैयारी कर रही है, मैत्री को देखकर मुस्कुराते हुये सरोज ने कहा- बेटा तू ऐसे ही चल चाय तेरी भाभियां ले आयेंगी....
सरोज की बात सुनकर जैसे ही नेहा बोली- पर ताई जी..!!
सरोज ने बीच मे ही उसे रोक कर मुस्कुराते हुये कहा- अरे बेटा जतिन जी ने कहा है कि बिना किसी फॉर्मैलिटी के बिल्कुल सहज तरीके से मैत्री को आने दीजिये और उनकी बात कैसे टाल सकते हैं हम...
सरोज की ये बात सुनकर कि "जतिन ने ऐसा कहा है" नेहा और सुरभि दोनों को एक अलग तरह की ही खुशी महसूस होने लगी और ये सोचकर कि "जतिन जी कितने अच्छे हैं नेहा ने सरोज से कहा- ताई जी कितनी अच्छी बात बोली है ना जतिन जी ने और हम उनकी इतनी अच्छी बात कैसे टाल सकते हैं आखिरकार वही तो इस पूरे आयोजन में हमारे हीरो हैं उनकी बात तो माननी ही पड़ेगी...
नेहा के जतिन को हीरो बोलने पर नेहा, सुरभि और सरोज तीनो हंसने लगे और उसकी ये बात सुनकर उस समय मैत्री भी थोड़ा सा मुस्कुरा दी इसके बाद सरोज ने कहा- अच्छा मैं मैत्री को लेकर जा रही हूं तुम लोग चाय और नाश्ता लगा देना....
ऐसा बोलकर सरोज ने मैत्री को चलने के लिये बोला और उसे लेकर ड्राइंगरूम की तरफ जाने लगी...
क्रमशः