जतिन के साथ बातचीत करके तय कार्यक्रम के हिसाब से शनिवार की रात सागर कानपुर रेल्वे स्टेशन से सीधे अपनी ससुराल आ गये, सागर जब घर आये तो सबने देखा कि उनके हाथ मे मिठाई का एक डिब्बा था और वो खुशी से झूमते हुये से घर के अंदर आ रहे थे, घर के अंदर आने के बाद जब उन्होने जतिन को देखा तो तेज तेज कदमो से चलकर जतिन के पास गये और उसे गले लगाते हुये बोले- बहुत बहुत बहुत... बहुत सारी शुभकामनाएं भइया, आपका फोन आने से पहले ही ज्योति ने मुझे सारी बाते फोन करके बता दी थीं, मुझे ये खबर सुनकर इतनी खुशी हुयी कि मेरा मन तो हुआ कि मै ट्रेनिंग बीच मे ही छोड़ कर यहां आ जाऊं, भइया उस दिन आपको उदास देखकर मुझे बहुत तकलीफ हुयी थी लेकिन ज्योति ने जब उस रात भी मुझे कॉल करके मेरे जाने के बाद हुयी सारी बातें बतायीं तब मुझे तसल्ली मिली थी...
सागर की ये बात सुनकर जतिन ने हैरान होकर उनसे कहा- अच्छा जी आपने भी नोटिस किया था...?
जतिन की ये बात सुनकर पास ही खड़ी मुस्कुरा रही ज्योति ने कहा- सबसे पहले इन्होने ही तो नोटिस किया था भइया...
जतिन ने कहा- इन्होने कैसे नोटिस किया था, ये तो वॉशरूम मे थे ना...?
जतिन की ये बात सुनकर सागर और ज्योति दोनो हंसने लगे कि तभी उस दिन ड्राइंगरूम मे बैठकर फोन पर बात कर रहे विजय भी जतिन की चुटकी लेते हुये बोले- सागर उस दिन मेरे साथ ड्राइंगरूम मे ही बैठे थे जब तू मुंह लटकाये हुये सीधे अपने कमरे मे चला गया था मेरे देवदास!!
विजय के मुंह से जतिन के लिये "देवदास" शब्द सुनकर सब लोग हंसने लगे कि तभी जतिन ने आश्चर्यचकित होकर कहा- अच्छा...!!! तो मतलब ज्योति ने मेरे पीछे से चिल्ला के वॉशरूम वाली जो बात बोली थी सागर जी से वो इसलिये बोली थी कि कहीं मुझे बुरा ना लगे कि सागर रुम मे थे और मैने ध्यान नही दिया...
ऐसा कहकर जतिन ने ज्योति के सिर पर हल्की सी थपकी मारी और कहा- शैतानी कर दी तूने मेरे साथ, ये तो गलत बात है...
जतिन के ऐसा कहने पर सब लोग हंसने लगे, पूरे परिवार के इकट्ठा हो जाने से घर का माहौल भी बहुत हल्का और सागर के आने से बहुत खुशनुमा सा हो गया था इसके बाद सबने साथ बैठकर खाना खाया और खाना खाने के बाद सागर और ज्योति समेत बाकि सब लोग भी सोने के लिये अपने अपने कमरे मे चले गये|
इतने दिनों के बाद सागर को अपने सामने देखकर ज्योति थोड़े रुमानी अंदाज में सागर के सीने से लग कर बोली- इतने दिनों के बाद आपको देखा है मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, मुझे बहुत याद आती है आपकी जब कहीं टूर पर चले जाते हो!!
सागर ने भी उसी रुमानी अंदाज में बड़े प्यार से ज्योति को अपनी दोनो बांहो मे कसकर भरा और उसका माथा चूमते हुये वो बोले- मेरा भी अब दिल नहीं करता है तुम्हे और अपने नन्हू को छोड़कर कहीं जाने का लेकिन क्या करूं मजबूरी ही ऐसी आ जाती है कि जाना पड़ता है!! वैसे मेरे नन्हू के क्या हालचाल हैं?
ज्योति ने चुटकी लेते हुये कहा- अच्छा है और बहुत शैतान है, अभी से इतनी शैतानी करता है कि क्या बताऊं और अब तो कभी कभी मेरे शरीर मे अपनी उपस्थिति का एहसास कराता रहता है, ऐसा लगता है जैसे कह रहा हो कि "मम्मा मुझे जल्दी से बाहर बुलाओ और अपनी गोद मे उठा लो..."
ज्योति के मुंह से अपने बच्चे की शैतानियों का जिक्र सुनकर सागर थोड़े से भावुक हो गये और भावुक होते हुये वो ज्योति से बोले- सच में यार अब तो ये लगता है कि कितनी जल्दी वो दिन आये जब मै अपने बच्चे को अपनी गोद मे उठाकर उसे खूब सारा प्यार करूं...
सागर को इस तरह से इमोशनल होते देख ज्योति ने मुस्कुराते हुये उनके बालों में हाथ फेरा और फिर से उनके सीने से लग गयी इधर अपने इमोशन्स को कंट्रोल करके माहौल को हल्का करते हुये सागर ने ज्योति की चुटकी लेते हुये कहा- अच्छा एक बात बताओ... उस दिन जब मै कह रहा था कि कहीं जतिन भइया का कोई चक्कर वक्कर तो नही है तो तुम मुझपे गुस्सा करने लगी थीं और देखो वही निकला.... ( ऐसा कहकर सागर हंसने लगे)
ज्योति ने भी मजाकिया अंदाज मे कहा- ओ हैलो... कोई चक्कर वक्कर नही था मेरे भइया का, वो तो भइया और मैत्री को मिलना था इसलिये नियति ने उन्हे मैत्री को पहली बार देखते ही उनसे जोड़ दिया था और इसीलिये भइया परेशान हो रहे थे, वो क्या है ना कि जब भगवान को दो दिलो को मिलाना होता है ना तो वो ऐसे ही खेल खेलते हैं जैसे भइया और मेरी होने वाली भाभी के साथ खेला है!!
ज्योति की बात सुनकर सागर ने कहा- हां ये बात तो है, अब मुझे ही देख लो... मै भी तो ऐसे ही पागल सा हो गया था तुमसे पहली बार मिलकर...
अपनी बात कहते हुये सागर ने ज्योति का माथा चूम लिया इसके बाद ज्योति.. सागर की बात सुनकर थोड़ी सी शर्माती हुयी बोली- ओहोहोहो बड़े आये पागल सा हो गया था..!! हट्ट... (ऐसा कहते हुये ज्योति ने सागर की नाक खींच ली)
ज्योति के इस तरह से अपनी बात बोलने पर गहरी सांस छोड़ते हुये सागर ने कहा- अच्छा है यार भइया की भी शादी हो जाये तो सब अच्छा हो जायेगा, उनको भी तो अंदर ही अंदर एक जीवनसाथी की कमी महसूस होती होगी ना बस वो कह नही पाते हैं किसी से...
ज्योति ने कहा- हां सही कह रहे हो आप.. वो अपने लिये कभी कुछ मांग ही नहीं पाते हैं लेकिन उन्होंने पहली बार जो मांगा वो एकदम परफेक्ट मांगा है, आपने मैत्री की फोटो नहीं देखी अगर देखते तो आप भी यही कहते कि मैत्री और भइया एक दूसरे के लिये ही बने हैं, मैत्री को इतनी कम उम्र में इतना कुछ सहना पड़ा है लेकिन उन्हें भी अभी अंदाजा नहीं होगा कि अब उनके जीवन में कितनी सारी खुशियां आने वाली हैं, उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं होगा कि वो हमारे लिये कितनी स्पेशल हो चुकी हैं अभी से..!! अब बस वो मेरी भाभी बनकर घर में आ जायें तो मेरे भइया को भी अर्धांगिनी मिल जाये जो उनके अपरिभाषित प्रेम को हमेशा के लिये अपने दिल में संजो के रखें!!
ऐसे ही एक दूसरे से बातें करने के थोड़ी देर बाद ज्योति और सागर दोनों सो गये..
अगले दिन यानि रविवार को जैसा तय हुआ था उसी कार्यक्रम के हिसाब से जतिन ने राजेश को फोन करके कन्फर्म कर दिया कि हम लोग थोड़ी देर मे ही लखनऊ के लिये निकल रहे हैं....
इधर जतिन से बात होने के बाद लखनऊ मे राजेश ने भी जतिन और उसके परिवार के स्वागत की तैयारियां जोर शोर से शुरू कर दी थीं, राजेश जानता था कि फर्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशन होता है इसलिये वो पहली बार जतिन और उसके परिवार के अपने ताऊ जी के घर आने पर किसी तरह की कोई कमी नही रखना चाहता था, राजेश के साथ उसका भाई सुनील भी उसी जोश से सारी तैयारियां करवा रहा था जिस जोश से राजेश काम मे लगा हुआ था और उन दोनो के साथ उन दोनो की बीवियां नेहा और सुरभि भी बराबर से काम करने मे लगी हुयी थीं, जतिन और उसके परिवार के स्वागत की तैयारियों में लगी राजेश की बीवी नेहा ने काम के बीच मे मैत्री से कहा- दीदी हम लोग सारी तैयारियाँ कर लेंगे और आप आराम से अपने कमरे मे बैठो आज हमे ही सारा काम करने दो, आज आपका ही दिन है आप ब्यूटी पार्लर हो आओ तब तक...
अपनी भाभी नेहा की बात सुनकर मैत्री ने उखड़े हुये मन से कहा- नही भाभी मै पार्लर नही जाउंगी मै जैसी हूं उन्हे वैसा ही पसंद करना है तो करलें नही तो जैसी उनकी मर्जी...
नेहा जानती थी कि मैत्री इस शादी के लिये पूरी तरह से तैयार नही है इसलिये उसकी बात सुनकर वो मुस्कुराई और बोली- चलिये ठीक है कोई बात नहीं... वैसे आप बिना पार्लर जाये भी बहुत प्यारी लगती हो, आप आराम से अपने कमरे में बैठो बाकि कुछ मत सोचो....
इस बात के थोड़ी देर बाद ही जतिन और उसका परिवार अपनी कार से मैत्री के घर के दरवाजे पर आकर रुका तो मैत्री की मम्मी सरोज और पापा जगदीश प्रसाद के साथ नरेश, उनकी पत्नी सुनीता, राजेश और सुनील भी दरवाजे पर उनका स्वागत करने आ गये, इसके बाद सरोज ने बड़े ही हर्षित तरीके से खुश होते हुये तिलक लगाकर सबका अपने घर मे स्वागत किया, इधर अंदर मैत्री के कमरे मे लगी खिड़की से नेहा और सुरभि ये सब होते देख रही थीं और जतिन की पर्सनैलिटी देखकर खुश हो रही थीं.. खिड़की से बाहर झांकते झांकते सुरभि की नजर जब बेड पर बैठी मैत्री पर पड़ी तो उसने देखा कि मैत्री बहुत जादा घबराई हुयी है, घबराहट के मारे उसका चेहरा लाल हो रखा है और वो अपने दोनो हाथो की हथेलियो को एक दूसरे से घबराहट के मारे रगड़े जा रही है, मैत्री को ऐसा करते देख कर सुरभि खिड़की से हटकर मैत्री के पास आयी और बड़े ही प्यार से उसके गालो को सहलाते हुये बोली- दीदी आप बिल्कुल घबराइये मत जतिन जी और उनके परिवार की हल्की सी झलक से ही महसूस हो गया है कि अब जो भी होगा वो बहुत अच्छा होगा!!
सुरभि के इस तरह प्यार से अपनी बात कहने पर मैत्री जो पहले से ही बहुत नर्वस थी... सुरभि से खिसियाते हुये बोली- भाभी मुझे ये सब ठीक नही लग रहा है, मैं आप सबकी खुशी में खुश होना चाहती हूं पर हो नहीं पा रही हूं, बताइये मैं क्या करूं?
सुरभि ने कहा- दीदी मेरे जेठ जी और आपके राजेश भइया ने आपके लिये बहुत अच्छा परिवार देखा है, पहली नजर मे ही उन्हे देखकर ये समझ आ गया कि आप उनके साथ बहुत खुश रहोगी, आप बिल्कुल चिंता मत करो हम सब हैं ना आपके साथ और अतीत की कड़वी यादो को भूलकर आगे बढ़ने मे ही भलाई होती है, भरोसा रखिये अब सब अच्छा ही होगा...
क्रमशः