पहाड़ों की छाया में बसा गाँव कभी शांत हुआ करता था. लेकिन हाल ही में, एक भयावह अफवाह ने गाँववालों को दहला दिया है. गांव के बुजुर्ग "मुंज्या" की बातें करते हैं, एक आत्मा जो पेड़ों में रहती है और गाँववालों को डराती है. कुछ का कहना है कि यह एक क्रोधित देवता है, वहीं अन्य का मानना है कि यह किसी की हत्या का बदला लेने वाली आत्मा है.
एक रात, एक युवक, मोहन, जंगल से लकड़ी काटकर लौट रहा था. हवा में एक अजीब सी सरसराहट हुई और उसने "मुंज्या" फुसफुसाते हुए सुना. आतंकित होकर मोहन ने भागना शुरू कर दिया, लेकिन अदृश्य हाथों ने उसे जकड़ लिया. जब तक सहायता के लिए पुकार कर पाता, तब तक जंगल में एक खौफनाक सन्नाटा छा गया. अगले दिन, मोहन को बेहोश पाया गया, उसकी आँखों में दहशत जमी हुई थी. गाँव में दहशत फैल गई, सभी को अब "मुंज्या" का डर सताने लगा
मोहन तो बच गया लेकिन जंगल से लाया गया वो अकेला नहीं था. उसके साथ एक अदृश्य भय, एक सन्नाटा रह गया. गाँव में बीमारियाँ फैलने लगीं, फसलें मुरझाने लगीं. कुछ का कहना था कि मुंज्या का कोप बढ़ गया है. गाँव के मुखिया ने पुजारी को बुलाया. पूजारी ने जंगल में गहरे प्रवेश किया और लौटकर कहा, "मुंज्या कोई आत्मा नहीं, बल्कि एक बीमारी है. एक दुर्लभ जंगली फफूंद जो पेड़ों से फैलता है. ये बीमारी दिमाग को प्रभावित करती है, भ्रम पैदा करती है और अंततः मौत का कारण बनती है."
गाँववालों ने राहत की सांस ली. जंगल को आग लगा दी गई, फफूंद साफ हो गया. गाँव धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा. लेकिन कुछ रातों बाद, जब मोहन अकेला सो रहा था, उसने फिर सुना, "मुंज्या..." इस बार आवाज उसके कमरे के अंदर से आई थी.
मोहन की रूह कांप गई. उसने धीरे से उठकर कमरे का निरीक्षण किया - सब कुछ वैसा ही था, फिर भी उस भयावह फुसफुसाहट ने कमरे को भर दिया. अचानक, अलमारी के पीछे से एक धुंधली सी आकृति निकली. मोहन चीखने के लिए मुंह खोल ही नहीं पाया. फिगर धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ा, मानो उसे पहचानना चाहता हो.
तभी, बाहर मुर्गे बांग देने लगे. आकृति रुक गई, जैसे सूरज की पहली किरणों से बच रही हो. एक क्षण के लिए सब कुछ जम गया, फिर आकृति अलमारी के पीछे गायब हो गई. सन्नाटा फिर छा गया, जिसे सिर्फ मोहन के तेज श्वासों ने तोड़ा.
सुबह होते ही मोहन गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति के पास गया. बुजुर्ग ने कहानी सुनकर सिर हिलाया और कहा, "मुंज्या बीमारी थी, ये तो ठीक है. लेकिन जंगल की आत्माओं को भगाने के लिए हमने जो अनुष्ठान किया था, उसमें एक चूक हो गई. हमने उन्हें शांत करने के बजाय और क्रोधित कर दिया है."
अब गाँव पर एक नया खतरा मंडरा रहा था - एक क्रोधित आत्मा, जिसका रूप अस्पष्ट था और जो सिर्फ रात में ही सामने आता था.
मोहन निराश होकर गाँव के बाहर जंगल की सीमा पर पहुंचा. शाम ढल रही थी, पेड़ों के लंबे साए खौफनाक लग रहे थे. तभी उसे याद आया - बुजुर्ग ने जंगल की आत्माओं को शांत करने की बात कही थी. उसने इंटरनेट पर खोज शुरू की और देर रात तक पढ़ता रहा.
फिर उसने एक प्राचीन मंत्र पाया, जो कथित तौर पर आत्माओं को शांत करने के लिए इस्तेमाल होता था. हालाँकि, मंत्र का प्रयोग करने की चेतावनी भी दी गई थी - गलत उच्चारण भयानक परिणाम ला सकता है. मोहन हिचकिचाया, लेकिन गाँव को बचाने की जिम्मेदारी भारी थी. उसने मंत्र को याद किया और जंगल में प्रवेश कर गया.
पेड़ों के बीच का वातावरण घना हो गया. हर आहट डरावनी लग रही थी. मोहन ने हिम्मत जुटाकर मंत्र का उच्चारण किया. हवा में एक सनसनाहट हुई और अचानक, एक भयानक चेहरा पेड़ के तने से सामने आया. मोहन की चीख निकल गई, मंत्र अधूरा रह गया.
फिर कुछ अजीब हुआ. भयानक चेहरा धीरे-धीरे बदलने लगा. क्रोध मिट गया, चेहरे पर शांति छा गई. एक क्षण में, आकृति पारदर्शी हो गई और जंगल में गायब हो गई.
सन्नाटा छा गया. मोहन थक कर एक पेड़ के सहारे बैठ गया. वह जीत गया था, उसने गाँव को बचा लिया था. लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि उसका एक पैर जमीन से ऊपर है. धीरे-धीरे नीचे देखने पर उसने पाया कि वह हवा में तैर रहा है, वही पारदर्शी आकृति उसे जंगल की गहराई में ले जा रही है. मोहन की चीख जंगल में गुम हो गई
कहानी का अंत यहीं नहीं है, बल्कि एक नए रहस्य की शुरुआत है. क्या जंगल की आत्मा ने मोहन को बचाया था या अपने साथ ले गई थी?