Dhundh : The Fog - A Horror love story in Hindi Horror Stories by RashmiTrivedi books and stories PDF | धुंध: द फॉग - एक हॉरर लवस्टोरी - 13

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धुंध: द फॉग - एक हॉरर लवस्टोरी - 13

पीटर के चले जाने के बाद अशोक ने गौर किया, क्रिस आम दिनों के मुक़ाबले बहुत शांत नज़र आ रहा था। हमेशा अपने दोस्तों के साथ घूमने वाला वो आज का पूरा दिन अकेले रहना चाहता था। वैसे भी अभी शहर में हर तरफ़ आनेवाले क्रिसमस की चमक-धमक थी तो कॉलेज और पढ़ाई से सबको छुट्टी मिल चुकी थी। उसका तो वैसे भी यह कॉलेज का आख़री साल था। उसके बाद तो उसे अपनी ग्रैनी का बिज़नेस ही संभालना था।

अशोक ने क्रिस को बिना बताए उसकी ग्रैनी को कल रात के वाक़िये के बारे में बताने की ठान ली थी लेकिन उसे डर भी था कि लियोना गोमेज़ इन सब बातों को आसानी से मानने वाली नहीं थी। बदकिस्मती से जब उसने लियोना से बात करने की कोशिश की तो उनसे कॉन्टैक्ट ही नहीं हो पाया।

इधर क्रिस अपने ही ख़यालों में खोया विला के आंगन में टहल रहा था। एक साथ कई सवाल उसके दिमाग़ में आवाजाही कर रह थे। क्या सचमुच इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा भटकती है? आख़िर क्या होता होगा मरने के बाद? क्या इंसान भूत या प्रेत बन यहाँ-वहाँ भटकता है? क्या सच में अतृप्त आत्माएँ अपना बदला लेने वापिस आती हैं? क्या सच में क्रिस्टीना की आत्मा इस विला में रहती है? क्या वह सपने में देखी गयी लड़की क्रिस्टीना ही थी? आख़िर उसके साथ क्या हुआ होगा?

ऐसे अनगिनत सवाल क्रिस के दिमाग़ में घूम रहे थे लेकिन अफ़सोस इनमें से किसी भी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था।

बहुत देर तक यूँ ही टहलने के बाद उसकी नज़र साइड में फूलों से सजी छोटी सी बगिया पर पड़ी। उसने देखा,बगिया के चारों ओर के रंगबिरंगी फूल बहुत अच्छे से खिले थे बस बगिया के बीचों बीच ही कुछ फूलों की पूरी एक कतार मुरझाई सी लग रही थी। यही बात उसने कल भी ग़ौर की थी लेकिन ऐसा क्यूँ था? इतने फूलों में बस वही बीच की जगह ऐसी सूखी और मुरझाई सी क्यूँ पड़ी थी? उसने फूलों की क्यारियों के पास ही रखे पानी के डिब्बे को उठाया और उन सूखे मुरझाए जमीन और फूलों पर पानी डाला।

उसके आश्चर्य की तब सीमा ही नहीं थी जब उसने देखा, बहुत देर पानी डालने के बाद भी वहाँ की जमीन बिल्कुल सूखी पड़ी थी!

हो न हो इस विला में कुछ तो गड़बड़ है,अब इस बात का कुछ कुछ एहसास उसे भी होने लगा था! तभी उसे अपना ध्यान इन सब चीज़ों पर हटाने की तरकीब सूझी। उसने अशोक को बुलाया। फिर एक कागज़ पर लिखकर कुछ सामान की लिस्ट दी जिसे वो तुरंत मंगवाना चाहता था और वो ख़ुद पास ही पड़ी कुल्हाड़ी से ठीक उसी जगह खोदने लगा जहाँ की जमीन और फूल मुरझाए हुए से पड़े थे!

उसकी यह हरकत देख अशोक भी हैरान था। उसने बड़ी ही हैरानी से पूछा,"क्रिस बाबा, आप यह क्या कर रहे है? क्या कोई बात हुई है?"...

क्रिस ने अपना काम जारी रखते हुए कहा,"क्या आपने देखा नहीं अशोक अंकल, हम जब से यहाँ आए हैं इस बाग का बस इतना ही हिस्सा बंजर पड़ा है जो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है! मैं यहाँ एक पानी का फव्वारा यानी एक फाउंटेन बनाऊँगा। आप बस वह सामान जो मैंने बताया है वो मंगवा दीजिए।"

"क्या? पानी का फव्वारा? अरे मगर माली भी यह काम आसानी से कर लेगा। आपको यह सब करने की ज़रूरत नहीं हैं!",अशोक ने उसे समझाते हुए कहा।

"मैं बोर हो रहा हूँ अंकल! मुझे करने दीजिए प्लीज!",ऐसा कहते हुए क्रिस ने कुल्हाड़ी से ज़मीन पर वार करना शुरू किया।

अशोक काफ़ी देर तक क्रिस को समझाता रहा लेकिन वो किसकी सुनने वाला था! वो तो बस उस सूखी पड़ी जमीन को खोदने में व्यस्त हो चुका था। उसे अपना काम करते देख अशोक भी सामान की लिस्ट लिए वहाँ से चला गया।

थोड़ी देर की खुदाई के बाद अचानक उसकी नज़र मिट्ठी में दबी एक क़िताब पर पड़ी। उसने अपने हाथ से आसपास की मिट्टी दूर कर उस क़िताब को बाहर निकाला। उसने देखा वो तो एक डायरी थी,जो शायद कई वर्षों से वहाँ दफ़न थी! डायरी के हाथ आते ही क्रिस ने आगे की खुदाई बंद कर दी।

डायरी लेकर वो बाग से बाहर आया और पास ही बनी सीढ़ियों पर बैठ गया। उसने देखा, डायरी लगभग पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी। पिछले और आख़री पन्ने तो एक तरह से मिट्टी हो चुके थे। बस बीच के कुछ पन्नों पर कुछ कुछ लिखावट दिख रही थी। अपने मिट्टी से सने हाथों से क्रिस ने डायरी के बचे-खुचे पन्नों को पढ़ने की कोशिश की....

ऐ मेरी ज़िंदगी, तुम क्या हो?
कुछ अधूरी ख्वाहिशें... या...कुछ खूबसूरत मुस्कुराहटें....
चंद खोए हुए सपने... या... कुछ अनसुनी आहटें....

या फिर हो तुम...कुछ दिलों में थमे हुए तूफ़ान...
या धीमी धीमी मद्धम सी बरसात....

ऐ मेरी ज़िंदगी, तुम क्या हो?
कुछ अनकहे अल्फाज़....या चंद सुकून भरे लम्हात....

या फिर हो तुम....कोई नादान सी सोच...
या हो कोई गहरा सा जज़्बात...

है उलझनें तेरी राहों में बेशुमार....
फिर भी यहाँ जीने की कोशिशें होती है बेहिसाब....
ऐ मेरी ज़िंदगी, तुम क्या हो?....ऐ मेरी ज़िंदगी, तुम क्या हो?....

क्रिस्टीना....

उस डायरी में लिखी उन पंक्तियों को पढ़ क्रिस जैसे उन में डूब सा गया था। पढ़ते पढ़ते जब वो आख़िरी पंक्ति पर पहुँचा तो उसे वो नाम दिखा जिसे वो आज सुबह से भूलाने की कोशिश कर रहा था...क्रिस्टीना...!

वो नाम देखते ही एक ही पल में फिर से लाखों विचार क्रिस के मस्तिष्क में घूमने लगे। वो सोचने लगा,"अब एक बात तो तय है, यह विला वाक़ई में क्रिस्टीना का है....तो क्या वो अब भी यहाँ आत्मा बनकर भटक रही है?! आख़िर उसके साथ क्या हुआ था? क्या पीटर ने जो कहानी बताई थी वो सच थी? तो क्या क्रिस्टीना की माँ का भी इससे कोई लेना-देना था?"....

सीढ़ियों पर बैठा हुआ वो बस सोचता ही रहा....उसे तो पता भी नहीं चला कि कब वहाँ एक गहरी सी धुँध ने आकर उसे घेर लिया था...

क्रमशः ....
रश्मि त्रिवेदी