तृप्ति की उम्र अब शादी योग्य हो गई थी जिसके कारण उसकी माँ सीमा जी अब थोड़ी चिंतित रहने लगी थी।
चिंतित होने का कारण ये था कि वह अकेले ही अपने पति की मृत्यु के बाद से मुश्किल हालातों में, लोगों के घरों मे काम कर आज तक तृप्ति का पालन पोषण करती आई और साथ ही साथ उन्होंने उसे शिक्षित भी किया है , लेकिन अब तृप्ति की उम्र शादी योग्य हो गई थी। तृप्ति अभी विवाह नहीं करना चाहती थी क्योंकि वो अपनी माँ के संघर्षो को देखते हुए बड़ी हुई थी और इसीलिए वो कुछ करना चाहती थी जिससे अब उसकी बूढ़ी माँ को सहारा मिल सके, उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था कि उसकी माँ किसी के घर काम करे।
लेकिन सीमा जी ये नहीं चाहती थी क्योंकि उनकी तबियत अब नासाज रहने लगी थी। जिसके कारण वो तृप्ति का विवाह जल्द से जल्द कर देना चाहती थी।
अब उन्हें एक योग्य वर की तलाश थी। कईयों से उन्होंने अपनी बेटी के विवाह की बात चलाई, लेकिन उनकी मांगों को पूरा ना कर पाने के कारण कोई बात न बनी।
ऐसे ही वो आज सुबह फिर अपने काम पर जा रहीं थीं तभी उन्हें रास्ते मे गाँव के मोहनलाल जी मिल गए जो गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक है। मोहन जी ने उन्हें रोका और थोड़ी देर उनका हाल चाल लिया फिर वो कुछ सोचते हुए बोले "सीमा बहन मैंने सुना है आप अपनी बिटिया के लिए एक योग्य वर की तलाश में हैं"।
सीमा जी ने भी हाँ मे सिर हिलाते हुए कहा "जी भाई साहब अपने सही सुना है मैं बिटिया के लिए योग्य वर तो चाहती हूँ लेकिन अब तक वह मिले नहीं और जो मिले उनकी माँगों को पूरा कर पाना मेरे बस मे नहीं "इतना कह वो चुप हो गई। अब तो सीमा जी दिन ब दिन और चिंतित होती जा रही थी।
मोहन जी थोड़ी देर चुप रहे फिर उन्होंने कहा " बहन जी मेरी नजर में एक रिश्ता तो है, अगर आप कहें तो मैं बात चलाऊँ कुछ। " मोहन जी से भी अब उनकी चिंता देखी न जा रहीं थीं इसलिए उन्होंने उनकी मदद करने की सोची।
मोहन जी की बात सुन सीमा जी का चेहरा थोड़ा खिला जरूर लेकिन वो फिर से मायूस हो गई उन्होंने धीरे से कहा " भाई साहब मैं हा तो कर दूँ, लेकिन अगर उनकी मांगे बहुत अधिक हुई तो मैं पूरा नहीं कर पाऊँगी। और फिर से ये............ वह बोल ही रहीं थीं कि तभी मोहन जी ने उनकी बात बीच मे ही काटते हुए कहा " अरे नहीं नहीं बहन जी वो लोग ऐसे नहीं वो तो स्वयं ही दहेज लेने देने के खिलाफ है।"
सीमा जी तो ये सुन चकित ही रह गई " क्या......... आप सच कह रहे हैं भाई साहब" उन्होंने हैरानी से कहा।
तो मोहन जी मुस्कराते हुए बोले " हाँ सीमा बहन मैं सही कह रहा हूँ।"
सीमा जी ने कहा " अगर ऐसा है ये तो बहुत अच्छी बात है मैं तैयार हूँ, लेकिन वो अच्छे लोग तो है ना नहीं तो आगे चल कर बिटिया को कोई परेशानी हो " खुशी और चिंता के मिले-जुले भावों से वह बोली।
"अरे नहीं नहीं सीमा बहन ऐसी कोई बात नहीं वो बहुत अच्छे लोग हैं आप बेफिक्र रहिए" मोहन जी उन्हें आश्वस्त करते हुए बोले........ कुछ सेकेंड्स रुक वह फिर से बोले " सीमा बहन अगर आपकी हाँ है तो मैं बात चलाऊँ "
सीमा जी ने कुछ देर रुक कर आखिर मे हामी भर ही दी। हालांकि वो थोड़ी सी चिंतित जरूर थी।
" ठीक है मैं उनसे बात करके शाम तक आपको बताता हूँ" इतना कह वो अपने घर की ओर निकल गए और सीमा जी भी अपने काम पर चली गई।
शाम को सीमा जी अपने काम से लौटे कुछ ही वक्त हुआ था कि उन्हें मोहन जी का फोन आ गया और उन्होंने बताया कि लड़के वाले मिलना चाहते है आप से। सीमा जी भी इसके लिए राजी हो गई।
दो दिनों बाद लड़के वाले सीमा जी के घर आए दोनों परिवारों मे अच्छी बात चित हुई और रिश्ता पक्का हो गया। अब लड़का अच्छा था, कमाऊ भी, बड़ों का सम्मान, कहा जाए तो सीमा जी की नजरों में वो सर्वगुण सम्पन्न था और परिवार वालों के तो कहने ही क्या उनके बारे में तो हम पहले ही जान चुके हैं। और लड़के वालों को भी लड़की पसंद थी। रहीं बात दहेज की तो उनकी कोई मांग न थी उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया कि भगवान का दिया उनके पास सब कुछ है, आप अपनी खुशी से जो चाहें दे सकती है।
जिसके बाद सीमा जी की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। इसी के साथ लगे हाथ शादी की तारीख भी पक्की हो गई दो महीने बाद की।
शादी इतनी जल्दी है सीमा जी ये जान थोड़ी चिंतित हो उठी और कहने लगी कि इतनी जल्दी तैयारी कैसे हो पाएगी। जिसे सुन वहां मौजूद मोहन जी के साथ और भी गांव वालों ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि वह इस बात की चिंता ना करें हम सब सम्भाल लेंगे, आखिर तृप्ति हमारी भी तो बिटिया है।
शादी की तैयारियों में ये दो महीने कब बीत गए पता ही न चला और आज शादी का दिन था
खूब धूम धडाके से बारात आई। सभी गाँव वालो ने मिल कर उसका स्वागत किया।
कुछ वक्त बाद शादी भी पूरी हो गई और विदाई की भी घड़ी आ गई। इसी के साथ दोनों माँ बेटी के करुण क्रंदन से सभी गाँव वालो की आँखें नम हो चली।
कुछ देर बाद सीमा जी अपनी बेटी को डोली मे बिठाने के बाद लड़के और उसके घर वालों के सामने अपने हाथों को जोड़ आँखों में आंसू लिए कहने लगी " अब से ये आपकी अमानत हैं समधी जी, अगर मेरी बेटी से कोई भूल हो जाए तो उसे नादान समझ क्षमा कर दीजियेगा धीरे-धीरे सब जान समझ जाएगी।"
तो लड़के के पिता ने कहा "अब से वह हमारी बेटी की तरह है इसीलिए आप बेफिक्र रहिए"।
इसी के साथ बारात अब वापस चली गई।
इधर सीमा जी आँखों मे आंसू लिए जाती हुई गाड़ियों को देखती रही। उनके पति के इस दुनिया से जाने के बाद एक उनकी बेटी ही थी जो उनके अकेलेपन का सहारा थी और अब वह भी उनसे दूर हो गई, लेकिन वो ये सोच खुश थी कि उनकी बेटी एक अच्छे घर मे ब्याही गई है और अब वो हमेशा खुश रहेगी।
शादी को कुछ दिन बीत गए थे और अब तक तृप्ति के जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
लेकिन अब तृप्ति को अपने प्रति उन लोगों के व्यवहार में कुछ बदलाव नजर आने लगे थे। लेकिन उसने इस बात को नजरअंदाज कर दिया।
अब तो दिन ब दिन उनका व्यवहार बदलता जा रहा था और अब वह लोग उसे छोटी-छोटी बातों पर ताने कसने लगे थे। अगर वह किसी चीज को हाथ भी लगा देती तो उसे ये कहा जाता था कि वह अपने मायके से ये सारा समान नहीं लेकर आई इसलिए इन पर उसका कोई हक नहीं।
और जब तृप्ति ने उनके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की तब तो लोग उसे शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने, अब तो आए दिन उसके साथ मारपीट भी करते और और उसे ठीक से खाना भी नहीं देते।
इधर सीमा जी भी बहुत परेशान रहने लगी थी जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा था। क्योंकि कुछ दिनों से उनकी बात तृप्ति से नहीं हो पा रहीं थी, कारण ये कि जब भी वो तृप्ति से बात करने के लिए फोन करती तो हमेशा कभी उसकी सास फोन उठाती या फिर ससुर और ये कह कर फोन रख देते की वह अभी व्यस्त हैं। अब बेटी का ससुराल था इसीलिए सीमा जी ने ज्यादा बोलना ठीक न समझा।
आज फिर से तृप्ति के ससुराल में उसे दहेज के लिए मारा पीटा जा रहा था, लेकिन आज तृप्ति ने भी मौका मिलते ही अपनी माँ को फोन लगा उसके साथ हो रहीं प्रताड़ना को बता दिया। जिसे सुन कर तो सीमा जी स्तब्ध रह गई, तभी उनके कानो में तृप्ति की आवाज गूंजी जो उनसे कह रहीं थीं "माँ........माँ मुझे बचा लो..... माँ........और इसी के साथ उसकी आवाज़ आना बंद हो गई थी। उन्होंने जैसे तैसे कर खुद को सम्हाला और अपने घर से मोहन जी के घर की ओर भागी कुछ मिनट बाद ही वो उनके घर पहुची तभी मोहन जी उन्हें बाहर की तरफ आते दिख गए।
उन्होंने रोते रोते ही मोहन जी को सब कुछ बता दिया, ये सब सुन तो वह बहुत ज्यादा हैरान हुए लेकिन खुद को सम्हाल, उन्होंने समझदारी दिखाते हुए पुलिस को फोन कर दिया और सारी बातें उन्होंने पुलिस को बता दी।
कुछ देर बाद पुलिस के साथ साथ सीमा जी और मोहन जी तृप्ति के ससुराल पहुच चुके थे, लेकिन शायद उन्होंने पहुंचने में बहुत देर कर दी, जब वो घर के अंदर पहुचें तो चारो तरफ खून ही खून फैला हुआ था और घर का छोटे-मोटे समान इधर उधर बिखरे पड़े थे जिसका संकेत हाथापाई की ओर था और घर के हॉल में तृप्ति की लाश पड़ी थी, जिसके सिर से खून बह रहा था, उसका पूरा शरीर खून से सना हुआ था। बहुत ही बेरहमी से तृप्ति को मारा गया था।
इस वक्त घर में कोई न था सभी इस घटना को अंजाम दे घर से फरार हो चुके थे।
अपनी बेटी को इस तरह मृत अवस्था में देख सीमा जी बेसुध हो जमीन पर गिर पड़ी।
वही मोहन जी के आँखों से अश्रु धारा पानी की भाँति बहने लगे। बहुत ही भयानक मंजर था वो जिसे उन पुलिस वालों की आँखों में नमी ला दी।
पुलिस ने तृप्ति की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और सीमा जी को भी अस्पताल भेज दिया।
दो दिन बीत चुके थे तृप्ति की हत्या को और उसके हत्यारे ससुरालवालों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
उनसे पूछताछ के दौरान पता चला कि जब तृप्ति अपनी माँ को सब बता रहीं थीं तभी पिछे उसके पति ने उसके सिर पर डंडे से वार किया था। जिसके बाद तृप्ति ने खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से उन्हें खुद से दूर कर रहीं थीं जिसके कारण उनके बीच हाथ पाई हुई थी, लेकिन वो ज्यादा देर खुद को बचा न पाई और उन तीनों ने उसे बड़ी ही बेरहमी से मार डाला।
जिसके बाद उन तीनों को पुलिस ने जेल भेज दिया।
समाप्त...........
सभी से आदर पूर्वक निवेदन है कि दहेज ना ही खुद लीजिए और ना ही दी दीजिए।
कहानी पढ़ने के लिए आपका हृदय की गहराई से धन्यवाद। 🙏
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