वर्ष 1999…. भारत के बेंगलुरु शहर में जून माह के अन्तिम सप्ताह की सुनहरी शाम का समय हो चला था| पुष्कर और आर्या, जो बचपन के मित्र थे, बेंगलुरु के एक बोर्डिंग स्कूल में आठवीं कक्षा से साथ में ही पढ़े थे| आज इन दोनों मित्रों के जीवन का एक बेहद खास दिन था, वो इसलिये क्योंकि आज इनका बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम जो आया था|
एक ओर जहाँ पुष्कर थोड़ा गम्भीर रहने वाला लड़का था, तो वहीं इसके विपरीत आर्या एक बेहद ही खुशमिज़ाज और चुलबुले स्वभाव वाली लड़की थी| मगर विपरीत स्वभाव होने के बाद भी पुष्कर और आर्या बचपन से ही एक-दूसरे के बहुत अच्छे मित्र थे|
आज इन दोनों का बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम आया था, और निःसंदेह दोनों के लिये ये बेहद ही खुशी वाला दिन भी था| मगर पुष्कर अपने परीक्षा परिणाम को जानने के बाद ज्यादा खुश नहीं था, क्योंकि उसको बारहवीं में केवल 56 प्रतिशत अंक ही प्राप्त हुये थे, और पुष्कर एक ऐसा लड़का हुआ करता था, जो पढ़ाई को लेकर काफी निष्ठावान रहता था| ऐसे में पूरी मेहनत करने के बाद भी कम अंक मिलने पर पुष्कर का दुखी होना तो स्वभाविक था|
पर एक तरफ जहाँ पुष्कर बारहवीं के परिणामों में अपने कम अंकों को लेकर दुखी था, तो वहीं दूसरी ओर वो आर्या के द्वारा बारहवीं में 78 प्रतिशत अंक प्राप्त करने की बात से काफी प्रसन्न भी था, और अपनी बचपन की मित्र को उसकी उपलब्धि पर एक छोटी-सी पार्टी देना चाहता था| पुष्कर ने आर्या को बेंगलुरु में अपने बॉयज हॉस्टल से कुछ 5-6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटे-से फ़ास्ट फूड के रेस्टोरेंट में पार्टी के लिये बुलाया|
आर्या अपने बोर्डिंग स्कूल के पास स्थित गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी| उसके पिताजी ने उसे बेंगलुरु में आने-जाने के लिये एक स्कूटी दिला रखी थी| इसी स्कूटी से आर्या पुष्कर से मिलने उस फ़ास्ट फूड के रेस्टोरेंट में तय किये गये समय पर पहुँची| पुष्कर इस रेस्टोरेंट में समय से पहले ही लोकल बस से यात्रा करके पहुँच चुका था|
यहाँ इन दोनों ने मिलकर फास्ट फूड का आनन्द लिया, आपस में ढेर सारी बातें करीं, और अपने परीक्षा परिणाम वाली शाम को बिल्कुल उसी तरह एन्जॉय किया, जैसे उस दौर के बच्चे किया करते थे|
पुष्कर की पार्टी के बाद आर्या ने अपनी स्कूटी से पुष्कर को रात्रि में 9:00 बजे के आस-पास उसके बॉयज हॉस्टल पर छोड़ा, और अपने गर्ल्स हॉस्टल की दिशा में निकल गयी| आर्या को एक अन्तिम बार उसके परीक्षा परिणाम की बधाई देकर उससे विदा लेकर पुष्कर हॉस्टल में अपने कक्ष में आकर खुशी से झूमते हुये अपने बिस्तर पर सोने के लिये लेट गया|
पुष्कर उस दिन अपने परीक्षा परिणाम को लेकर तो थोड़ा उदास था, लेकिन अपनी परम मित्र आर्या की सफलता को लेकर काफी ज्यादा खुश था| लेकिन पुष्कर को ये नहीं पता था कि एक दुःखद खबर उसका इंतजार कर रही थी|
अभी पुष्कर खुश मन से अपने बिस्तर पर लेट कर सोने की तैयारी ही कर रहा था, कि तभी उसके कमरे के दरवाजे को किसी ने बाहर से खटखटाया| पुष्कर ने अपने बिस्तर से उठकर अंगड़ाई लेते हुये धीरे से जाकर अपने कमरे का दरवाजा खोला| दरवाजे के बाहर उसने अपने हॉस्टल के वार्डन को खड़ा हुआ पाया|
वार्डन ने पुष्कर को जल्दी से नीचे रिशेप्शन पर चलने की बात करते हुये बताया कि उसके लिये एक जरूरी फ़ोन कॉल आया है| खुशमिजाज स्वभाव वाले वार्डन के चेहरे पर गम्भीरता वाले भाव देखकर पुष्कर को कुछ गड़बड़ लगा, और वो अपने कमरे को ऐसे ही खुला हुआ छोड़कर भागता हुआ नीचे लॉबी में स्थित रिशेप्शन पर पहुँचा, और हाँफते हुये उसने टेलीफोन के रिसीवर को उठा कर अपने कान पर लगाया|
बात करने पर पता चला कि दूसरी तरफ से आर्या की माताजी फोन कॉल पर थीं| वो काफी घबराई हुयी लग रहीं थीं, और बात करते-करते लगातार रोये जा रही थीं| ज्यादा रोने की वजह से उनका गला बैठ गया था, इसलिये फोन पर उनकी आवाज भरभराई हुयी सुनाई दे रही थी|
आर्या की माताजी ने पुष्कर को रोते हुये बताया कि अभी कुछ देर पहले बेंगलुरु के किसी सरकारी अस्पताल से उनके पास फोन आया है कि आर्या का रोड एक्सीडेंट हो गया है| उसको गर्ल्स हॉस्टल के मार्ग पर पीछे से किसी ऑटो ने तेज टक्कर मारी थी| ये खबर पाकर पुष्कर एकदम सन्न रह गया| उसे लगा कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो आर्या ने मुझे बॉयज हॉस्टल पर ड्रॉप किया था, और इतनी सी देर में ऐसा कैसे हो सकता है|
पुष्कर को ये सुनकर एक गहरा झटका लगा था| परन्तु, पुष्कर ने जैसे-तैसे करके खुद को समझाया, और अपने को अन्दर से मजबूत करते हुये उसने आर्या की माताजी और पिताजी से फोन कॉल पर बात की, और अस्पताल का पता पूछा| पर अभी भी उसकी हिम्मत आर्या के पास अस्पताल जाने की नहीं कर पा रही थी|
मगर ऐसे समय में पुष्कर आर्या को अकेला भी नहीं छोड़ना चाहता था| आर्या के माताजी-पिताजी को तो बेंगलुरु पहुँचने में काफी समय लगने वाला था| इसलिये पुष्कर ने बॉयज हॉस्टल में रहने वाले दो-तीन मित्रों को साथ में लेकर आर्या के पास अस्पताल जाने का निर्णय लिया| टैक्सी से सफर करने के थोड़ी ही देर में पुष्कर अपने दोस्तों के साथ अस्पताल पहुँच गया|
जब पुष्कर अस्पताल पहुँचा, तब आर्या का ऑपरेशन चल रहा था| ऑपरेशन थिएटर के बाहर आर्या के गर्ल्स हॉस्टल में रहने वाली कुछ लड़कियाँ मौजूद थीं| उनसे बात करने पर पुष्कर को पता चला कि आर्या के साथ कितनी खतरनाक दुर्घटना घटित हुयी थी| साथ ही इन लड़कियों से बात करने पर पुष्कर को ये भी पता चला कि जब पीछे से ऑटो आर्या की स्कूटी में तेजी से टक्कर मारकर वहाँ से भाग गया, उसके बाद वहाँ भीड़ में खड़े लोग गम्भीर अवस्था में घायल पड़ी आर्या को बस देखते ही रहे| उनमें से किसी ने भी आगे आकर आर्या की सहायता नहीं की|
पुष्कर को पता चला कि दुर्घटना वाली जगह से गुजर रही आर्या के हॉस्टल की एक लड़की की नजर जब आर्या पर पड़ी, तब वो आर्या को जैसे-तैसे एक टैक्सी में डालकर अस्पताल लाई थी, और उसी ने इस घटना की जानकारी वहाँ की पुलिस को भी दी थी, और उसी ने आर्या के बैग से मिली नोटबुक से नम्बर लेकर अस्पताल के टेलीफोन से कॉल करके उसके एक्सीडेंट की सुचना उसके घर पर पहुँचाई थी| इसके बाद उस लड़की ने अपने हॉस्टल आकर आर्या की सहेलियों को भी उसकी दुर्घटना की सूचना दी थी, जिसके तुरन्त बाद उसके हॉस्टल की सहेलियाँ आर्या के पास अस्पताल पहुँच गई थीं|
काफी देर ऑपरेशन थिएटर के बाहर इन्तजार करने के बाद डॉक्टर बाहर निकलकर आयीं| उन्होंने वहाँ पुष्कर सहित प्रतीक्षा कर रहे आर्या के सभी मित्रों को ये दुःखद समाचार सुनाया कि अब आर्या इस दुनियाँ में नहीं रही| साथ ही उन्होंने बताया कि आर्या को अस्पताल लाने में काफी देर हो गई, अगर उसको समय रहते अस्पताल लाया गया होता, तब कुछ उम्मीद करी भी जा सकती थी|
ये खबर सुनकर अस्पताल में मौजूद आर्या के दोस्त सन्न रह गये| आर्या अब उन्हें छोड़कर हमेशा के लिये जा चुकी थी| आर्या के माताजी-पिताजी, परिवारी जनों, और मित्रों को उसकी मौत की खबर सुनकर गहरा झटका लगा था| लेकिन इस एक घटना का सबसे गहरा और बुरा असर पुष्कर के दिमाग पर पड़ा था|
आर्या के साथ घटी इस दुर्घटना के बाद पुष्कर ने कहीं भी आना-जाना, लोगों से मिलना-जुलना, बातें करना लगभग बंद ही कर दिया था| पुष्कर इस घटना के बाद लगभग दो से तीन साल इस सदमे से उबार नहीं पाया था| आर्या पुष्कर के लिये केवल उसकी एक सच्ची दोस्त ही नहीं थी, बल्कि वो उसे अपनी छोटी बहन भी मानता था| शायद इसलिये भी पुष्कर के दिमाग पर आर्या के साथ घटी इस घटना का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था|
पुष्कर को रह-रह कर आर्या की बातें याद आतीं| जब वो रात में सोने की कोशिश करता, तो उसे आर्या के साथ बिताया वो आखिरी दिन याद आता| पुष्कर अब अपने माताजी-पिताजी के पास घर पर आ चुका था, और दिन-प्रतिदिन पुष्कर की हालत बिगड़ती ही चली जा रही थी| पुष्कर को रातों में ठीक से नींद नहीं आ पाती थी, और दिनभर वो अपने कमरे में बंद, बदहवास-सा बिस्तर पर पड़ा रहता था|
पुष्कर की ये हालत देखकर उसके माताजी-पिताजी भी काफी परेशान रहने लगे| उन्होंने कई डॉक्टर्स से सम्पर्क किया, लेकिन पुष्कर की हालात में कोई सुधर नहीं हुये| वो अभी भी उसी डिप्रेशन की अवस्था में था| इधर पुष्कर के माताजी-पिताजी से जब आर्या के माताजी-पिताजी को पुष्कर के बारे में पता चला, तो ये सुनकर उनको भी काफी दुःख हुआ|
पुष्कर और आर्या के माताजी-पिताजी ने पुष्कर को समझाने की, उसे दूसरे कामों में व्यस्त करने की बहुत कोशिश की| परन्तु, उसकी हालात में कोई सुधार नहीं हो रहा था, बल्कि उसकी स्थिति समय के साथ और खराब होती जा रही थी| इस बात से अब पुष्कर और आर्या के माताजी-पिताजी, परिवारी जनों, और करीबी मित्रों की चिंता और अधिक बढ़ गई|
काफी समय गुजरने के बाद जब अमेरिका के न्यू यॉर्क में रहने वाली पुष्कर की कजिन स्वाति दी, जोकि उम्र में पुष्कर से लगभग साढ़े-चार साल बड़ी थीं, उन्होंने पुष्कर के माताजी-पिताजी से कहकर आगे की पढ़ाई के लिये पुष्कर को अपने पास न्यू यॉर्क बुला लिया| पुष्कर की स्थिति को देखते हुये स्वाति दी ने उसे कॉउंसलर के पास सेशंस के लिए भेजा| समय के साथ कॉउंसलर के सेशन और अमेरिका के बदले हुये माहौल में धीरे-धीरे पुष्कर की स्थिति में सुधार दिखने लगे|
जब पुष्कर पूरी तरह से ठीक हो गया, तो उसने निश्चय किया कि एक दिन वो खुद का ऐसा कुछ यूनिक काम करेगा जिससे कि किसी दुर्घटना के समय किसी भी व्यक्ति को तुरन्त सहायता न मिल पाने की मुश्किल घड़ी का सामना नहीं करना पड़े, और कभी किसी के साथ कुछ बुरा घटित न हो| ऐसा द्रढ़-निश्चय करने के बाद आने वाले वर्षों में पुष्कर ने न्यू यॉर्क वाली अपनी कजिन स्वाति दी, जोकि न्यू यॉर्क की एक सुप्रसिद्ध आई0टी0 कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थीं, से प्रेरणा लेते हुये तकनीकी के क्षेत्र में पहले न्यू यॉर्क से बैचलर और अन्य डिप्लोमा सर्टिफिकेट कोर्स और फिर बाद में इंग्लैंड के कैम्ब्रिज से मॉस्टर्स और पी0एच0डी0 की शिक्षा प्राप्त की|
वर्ष 2015 में इंग्लैंड से भारत लौटने के बाद पुष्कर ने आई0टी0 सेक्टर के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष दक्षता रखने वाले अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर एक एन0जी0ओ0 कम हैल्प लाइन पोर्टल की शुरुआत करी, जिसपर कोई भी व्यक्ति बेहद कम चरणों में इस पोर्टल पर स्वयं को रजिस्टर कर सकता था, और किसी भी जगह पर घटने वाली दुर्घटना की जानकारी बड़ी आसानी से इस पोर्टल पर साझा कर सकता था| पुष्कर के इस एन0जी0ओ0 ने आसपास के सभी प्रमुख अस्पतालों, स्थानीय पुलिस और वॉलेंटियर करने वाले कुछ ग्रुप्स को भी अपने साथ लिया था, जो पोर्टल पर दुर्घटना की कोई भी जानकारी मिलते ही उस स्थान पर जाकर उस घायल व्यक्ति की सहायता करते थे|
धीरे-धीरे पुष्कर की ये हैल्प लाइन पोर्टल सुविधा पूरे देश में काफी प्रसिद्ध हो गई| समय के साथ इस मुहीम में और भी काफी सारे लोग और विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रसिद्ध हस्तियाँ भी जुड़ते चले गये| समय के साथ पुष्कर ने तकनीकी में आये दिन होने वाले बदलावों तथा नई-नई तकनीकी और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज को सीखना और उनके साथ स्वयं को ढालना जारी रखा|
पुष्कर आज भी अपनी इस हैल्प लाइन पोर्टल और अन्य माध्यमों से अपने उस संकल्प को निरन्तर पूरा करने में लगा हुआ है, जो संकल्प उसने अपने बचपन की परम मित्र की मृत्यु के बाद डिप्रेशन से उबरने के बाद लिया था|
लेखक
अँकुर सक्सेना “मैडी”
[ANKUR SAXENA “MADDY”]
author88ankur@outlook.com
सांगानेर, प्रताप नगर,
जयपुर, राजस्थान
दिनांक: 29-जून-2024