Fagun ke Mausam - 23 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 23

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फागुन के मौसम - भाग 23

जब दफ़्तर में लंच ब्रेक हुआ तब तारा राघव के पास आकर बोली, "राघव यार, तुम्हारे चक्कर में न तो मैंने आज सुबह नाश्ता किया और न ही टिफिन लेकर आयी हूँ।"

"तो अब मैं क्या करूँ?" राघव ने उसे घूरते हुए कहा तो तारा बोली, "खाना खिलाओ मुझे और क्या।"

राघव ने अपना टिफिन निकालकर मेज़ पर रखा तो तारा ने जानकी से भी खाने के लिए पूछा।

"मैं अपना टिफिन लेकर आयी हूँ।" जानकी ने कहा तो तारा बोली, "अच्छा, कम से कम अपनी कुर्सी से उठकर हमारे साथ तो बैठ जाओ।"

जानकी जब अपना टिफिन लेकर तारा और राघव के पास आयी तब राघव ने देखा वो लंच में रोटी और आलू की सूखी सब्जी का रोल बनाकर लायी थी।

राघव के टिफिन में भी तारा का पसंदीदा पनीर काठी रोल था जिसे देखते ही तारा चहकते हुए बोली, "तो बॉस को पता था उनकी ये एम्पलॉयी आज भूखे पेट दफ़्तर आने वाली है।"

"हम्म... कोई अपने पुराने दोस्त को भूल सकता है पर मेरी फ़ितरत ऐसी नहीं है।" राघव ने कहा तो तारा ने जानकी की तरफ देखा जो चुपचाप खाने पर अपना ध्यान लगाने की कोशिश कर रही थी।

राघव की नज़र एक बार फिर जानकी के चेहरे पर उलझने लगी थी जिसे तारा भी महसूस करते हुए धीमे-धीमे मुस्कुरा रही थी।

जानकी ने अपना एक रोल खत्म करने के बाद जब दूसरा रोल खाने के लिए उठाया तब राघव ने उससे कहा, "मिस जानकी, क्या आप अपने रोल से मेरा रोल एक्सचेंज करेंगी प्लीज़? वो क्या है न मुझे बचपन से ही ऐसे आलू वाले रोल बहुत पसंद हैं।"

"जी बिल्कुल।" जानकी ने अपने हाथ का रोल राघव की तरफ बढ़ाया तो राघव ने भी अपना टिफिन उसकी तरफ सरका दिया।

राघव ने जैसे ही आलू रोल का एक कौर खाया, उसने कहा, "अरे इसका स्वाद तो बिल्कुल वैसा ही है जैसा बचपन में माँ मेरे और वै...।"

"क्या कह रहे थे तुम? बात तो पूरी करो।" तारा के टोकने पर राघव ने कहा, "बस यही कि माँ भी पहले मुझे ऐसा ही रोल खिलाती थी।"

"सर आपका पनीर रोल भी बहुत अच्छा है।" जानकी ने प्रशंसा करते हुए कहा तो तारा बोली, "अच्छा तो होगा ही, राघव ने ख़ुद अपने हाथ से जो बनाया है।"

"वाह! आपको कुकिंग भी आती है?" जानकी ने हैरत से पूछा तो राघव ने कहा, "हाँ, इंसान को हर काम आना चाहिए क्योंकि ये ज़िन्दगी कभी-कभी हमें अकेलेपन के सिवा कुछ नहीं बख्शती।"

राघव के इन शब्दों का कुछ ऐसा असर हुआ कि अब लंच खत्म होने तक तारा और जानकी ने एक शब्द भी नहीं कहा।

अपने केबिन में जाने से पहले तारा ने राघव को याद दिलाते हुए कहा कि वो जल्दी से जल्दी जानकी के साथ अपनी ट्रिप प्लान कर ले ताकि उनका नया प्रोजेक्ट शुरू हो सके।

हामी भरते हुए राघव बोला कि वो शाम तक ही सब तय कर लेगा।

तारा के जाने के बाद राघव ने जानकी से कहा, "थैंक्यू, आज आपने मुझे मेरा बचपन याद दिला दिया।"

प्रतिउत्तर में एक मुस्कुराहट देते हुए जानकी वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गयी।

जब दफ़्तर के खत्म होने का समय हुआ तब राघव ने जानकी से कहा, "मिस जानकी, मैं सोच रहा था कि अगर हम अपनी गाड़ी से ही लुम्बिनी और कपिलवस्तु के ट्रिप पर चलें तो कैसा रहेगा? आपको कोई प्रॉब्लम है तो आप खुलकर बता सकती हैं।"

"नहीं, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। मुझे भी ऐसे रोड ट्रिप्स बहुत पसंद हैं।"

"तो फिर अगर हम कल सुबह आठ बजे तक यहाँ से निकलेंगे तब एक बजे तक हम गोरखपुर पहुँच जायेंगे।
वहाँ लंच करने के बाद हम जब निकलेंगे तब शाम के लगभग पाँच-छः बजे तक हम आराम से लुंबिनी पहुँच जायेंगे।
फिर अगर शाम में कुछ मंदिर खुले रहें तो हम वहाँ चक्कर लगा लेंगे वर्ना रात में होटल में रुककर हम अगले दिन लुंबिनी घूमकर अपने नोट्स बना लेंगे और उसके अगले दिन हम वहीं से कपिलवस्तु के लिए निकल जायेंगे जो वहाँ से मात्र पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर है।"

"ठीक है सर, मैं कल ठीक आठ बजे अपने बैग के साथ आपसे यहीं मिलती हूँ।"

जानकी ने सहमति जताते हुए कहा तो राघव भी हामी भरते हुए पार्किंग की तरफ बढ़ गया।

उसके जाने के बाद जानकी ने तारा को इन्फॉर्म किया कि वो घर जा रही है तो तारा ने उससे राघव के विषय में पूछा।

"वो भी बस अभी-अभी निकला है।" जानकी के बताने पर तारा के चेहरे पर परेशानी की रेखाएं उभर आयीं।

"ठीक है, तुम जाओ। मैं भी कुछ देर में निकलूँगी।" तारा ने कहा और जल्दी-जल्दी अपना सारा काम समेटने के बाद उसने राघव को फ़ोन किया।

"राघव, कहाँ हो तुम?"

"घर पर।"

"तुम मुझसे मिले बिना क्यों चले गये?"

"मुझे लगा अब तो तुम्हारी नयी सहेली दफ़्तर में भी आ गयी है तो तुम्हारे पास मेरे लिए समय कहाँ होगा।"

राघव के इस तंज का कोई उत्तर दिये बिना तारा ने फ़ोन रखा और अपनी गाड़ी की तरफ चल पड़ी।

थोड़ी ही देर में जब वो राघव के घर पहुँची तब उसने देखा नंदिनी जी अभी तक आश्रम से नहीं लौटी थीं और राघव किचन में डिनर की तैयारी कर रहा था।

सब्जी काट रहे राघव के हाथ से यकायक छुरी लेते हुए तारा बोली, "तुमने दो दिन में मुझे जितने ताने मारे हैं इतने तो शायद मेरी सास भी नहीं मारेगी।"

"तारा, एक दोस्त के रूप में मैं तुम्हें किसी के साथ नहीं बाँट सकता समझी। तुम्हारी प्रायोरिटी लिस्ट में कोई मुझसे ऊपर हो ये मुझसे सहन नहीं होगा।
अच्छा होगा तुम ये बात समझ लो।"

"ओह बाबा, इतना पजेसिव तो यश भी मेरे लिए नहीं है।" तारा हँसते हुए बोली तो राघव यकायक उसके गले लगते हुए फूट-फूटकर रो पड़ा।

"राघव, क्या बात है? बताओ न। तुम इतने परेशान क्यों हो?" तारा ने उसके बालों को सहलाते हुए पूछा तो राघव सिसकियों के बीच बोला, "तारा, पता नहीं क्यों आजकल मुझे बहुत अकेलापन सा महसूस होता है। ऐसा लगता है मानों मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी नहीं है, कुछ नहीं।"

"राघव, ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हारी ज़िन्दगी में सब कुछ है। मेरे जैसी सिर चढ़ी दोस्त और हमारा वैदेही गेमिंग वर्ल्ड। बस एक हमसफ़र की कमी है तो वो भी जल्दी ही पूरी हो जायेगी।"

"नहीं, मुझे नहीं लगता वो कमी कभी पूरी होगी।" राघव स्वयं को संयत करने की कोशिश करते हुए तारा से अलग होकर बोला तो उसका हाथ अपने हाथों में थामकर तारा ने कहा, "तुम ऐसा क्यों सोचते हो?"

"क्योंकि तारा अगर उसे वापस आना होता तो अब तक आ चुकी होती।"

"किसे?"

"वैदेही को।"

"कौन वैदेही? तुमने आज तक मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया। क्यों राघव?"

"मुझे लगा तुम पूछोगी कि वैदेही गेमिंग वर्ल्ड में ये वैदेही कौन है लेकिन जब तुमने नहीं पूछा तो मेरा ख़ुद कुछ कहने का मन नहीं हुआ।"

"ओह राघव! कसम से मैं पूछना चाहती थी लेकिन फिर मुझे लगा कि तुम प्रभु श्री राम के भक्त हो तो बस इसलिए...।"

"कोई बात नहीं। अब जाने दो इन बातों को तारा।"

"नहीं राघव, आज तुम मुझे पूरी बात बताओगे समझे।"

राघव ने जब तारा को वैदेही और अपने बचपन की सारी बातें बतायीं तब तारा ने कहा, "राघव अगर तुम्हें लगता है कि वो लौटकर नहीं आयेगी तो तुम क्यों उसके इंतज़ार में ठहरे हुए हो? तुम्हें भी अपने जीवन में आगे बढ़ने का, ख़ुश रहने का पूरा अधिकार है।"

"पर ये मुझसे नहीं हो पायेगा तारा।"

"तुम सोचकर देखना, हो सकता है अब तुम्हारे आस-पास कोई ऐसा हो जिसे तुम्हारा दिल पसंद करता हो।"

"हम्म...चलो अब मैं खाना बनाता हूँ। सॉरी मैंने यूँ रोकर तुम्हें भी परेशान कर दिया।"

"चुप रहो। क्या तुम जानते नहीं कि ये आँसू कितने ख़ास होते हैं।"

"मतलब?" राघव ने पतीले में सब्जी छौंकते हुए पूछा तो तारा भी उसका हाथ बँटाने के उद्देश्य से आटा निकालकर गूँधते हुए बोली, "मतलब ये कि मुस्कुराते तो हम अजनबियों को देखकर भी हैं लेकिन रोते बस उसके सामने हैं जो हमारे सबसे अपने होते हैं।"

"ये बात तो है।" राघव ने सहमति जतायी तो तारा बोली, "और आई एम रियली वेरी सॉरी, मैंने तुम्हें हर्ट किया। अब ऐसा कभी नहीं होगा। मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता है राघव, कभी नहीं।"

"जानता हूँ मैं, फिर भी पता नहीं क्यों तुम्हारा यूँ मुझे छोड़कर अकेले जाना बहुत खल गया मुझे।"

"चलो इसी बहाने मुझे ये तो पता चला कि मेरा राघव मेरे लिए कितना पजेसिव और कितना बड़ा जलकुकड़ा है।" तारा ने हँसते हुए आटे का पाउडर राघव के गालों पर लगाते हुए कहा तो राघव भी उससे बदला लेते हुए खिलखिलाकर हँस पड़ा।

तारा ने आटा गूँधकर रखा ही था कि यश ने उसे फ़ोन किया।
तारा उससे बात करने बाहर ड्राइंग-रूम में चली गयी तो राघव भी चूल्हे पर चाय चढ़ाकर उसके आने की प्रतीक्षा करने लगा।

फ़ोन पर तारा की बुझी हुई आवाज़ महसूस करके यश ने चिंता जताते हुए कहा, "क्या बात है तारा, तुम इतना लो साउंड क्यों कर रही हो?"

"क्योंकि मैं बहुत परेशान हूँ यश।"

"किस बात से?"

"अरे ये हमारे प्रभु राम जी और माता सीता की वजह से।"

"क्यों, क्या हो गया अब? जानकी के डॉक्यूमेंट्स तो ठीक थे न? उसे राघव के केबिन में जगह तो मिल गयी न?"

"वो तो मिल गयी लेकिन सुनो तुम प्लीज़-प्लीज़ रात में मुझे फ़ोन करना तब मैं तसल्ली से तुम्हें सब कुछ बताऊँगी।"

"ठीक है पक्का।"

"देखो भूल मत जाना।"

"नहीं भूलूँगा स्वीटहार्ट। वैसे तुम हो कहाँ राघव के साथ गंगा घाट या घर पर?"

"राघव के घर पर। अब डिनर करके ही मैं अपने घर जाऊँगी।"

"चलो ठीक है। फिर मैं डिनर के बाद तुमसे बात करता हूँ।"

"हाँ ठीक है।" फ़ोन रखने के बाद तारा वापस रसोई में जा ही रही थी कि राघव चाय की प्याली लेकर आते हुए बोला, "तुम तसल्ली से चाय पियो। मैंने तुम्हारे घर पर फ़ोन कर दिया है कि डिनर के बाद मैं तुम्हें घर छोड़ दूँगा।"

"ये बढ़िया किया तुमने।" तारा ने मुस्कुराते हुए चाय की प्याली उठायी तो राघव भी अपनी प्याली उठाकर तारा के साथ चियर्स करते हुए बोला, "मैं कल सुबह आठ बजे जानकी के साथ लुंबिनी के लिए निकल रहा हूँ।"

"तो सारी प्लानिंग हो गयी?"

"हाँ और मैंने जानकी को भी बता दिया है। हमें वापस लौटने में चार दिन लग जायेंगे, तब तक तुम दफ़्तर में सब कुछ देख लेना।"

"ये सही है। चलो अब चार दिन मैं सब पर बॉस होने का रोब झाड़ूँगी।" तारा एक बार फिर खिलखिलायी लेकिन राघव ने गंभीरता से उसकी तरफ देखते हुए कहा, "तारा, तुम्हें सचमुच लगता है मुझे जानकी के साथ इस ट्रिप पर अकेले जाना चाहिए?"

"हाँ राघव, अगर मुझे कोई भी डाउट होता तो मैं दफ़्तर में ये प्रस्ताव ही नहीं रखती। जानकी बहुत स्मार्ट और इंटेलिजेंट है, वो तुम्हें और हमारी टीम को निराश नहीं करेगी।"

"ठीक है, तुम्हारे विश्वास पर मेरा भी विश्वास है।" राघव गहरी साँस लेते हुए बोला तो तारा ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए इस विश्वास को और भी दृढ़ कर दिया।
क्रमश: