जतिन के कमरे से बाहर आने के बाद बबिता चुपचाप अपने कमरे मे चली गयीं और अपने कमरे मे जाने के बाद उन्होने देखा कि विजय बिस्तर पर पैर लटकाये हुये बैठे हैं ऐसे जैसे उनके जतिन के कमरे से आने का इंतजार कर रहे हों, उनके बगल मे बैठ कर बबिता ने कहा- आप भी खुश हो लीजिये, बोल दिया है आपके प्यारे बेटे से कि राजेश को अपने परिवार के साथ घर बुला ले...
बबिता की खिसियाहट मे की गयी इस बात का जवाब देते हुये विजय ने कहा- वो तुम्हारा भी बेटा है, ये "अपने बेटे" कहने का क्या मतलब है और तुमको भी तो खुश होना चाहिये...
विजय की इस बात पर बबिता ने कहा- लेकिन आप लोगो को तो लगता है ना कि वो मेरा दुश्मन है और मै उसके साथ बुरा करूंगी...
अपनी पत्नी बबिता की ये बात सुनकर जैसे ही विजय ने कहा "अरे पर!!" बबिता ने अपनी हथेली उनको दिखाते हुये कहा- बस करिये..!! अब मै इस बारे मे कोई बात नही करना चाहती हूं, आप लोगो को जो ठीक लगे आप लोग करिये, मै आप सब की खुशी मे अपनी खुशी ढूंढ लूंगी मेरी चिंता मत करिये और चिंता करिये तो इस बात की कि श्वेता के घरवालों को किस मुंह से और क्या कहकर मना करेंगे, मै सोना चाहती हूं मुझे और परेशान मत करिये...
ऐसा कहकर बबिता अपनी जगह पर जाने के बाद विजय की तरफ से मुंह फेर कर अपने बिस्तर पर लेट गयीं इधर दूसरी तरफ जतिन खुश था और सोच रहा था कि "कल सही टाइम पर राजेश को फोन करके सारी बात बता दूंगा...."
रात मे राजेश से बात करने के लिये की गयी प्लानिंग के हिसाब से जतिन ने अगले दिन अपने ऑफिस पंहुच कर सबसे पहले राजेश को कॉल कर दिया, उधर लखनऊ मे राजेश अपनी टीम की मंथली रिव्यू मीटिंग ले रहा था तो उसका फोन वाइब्रेटर पर लगा हुआ था जो उसने मीटिंग शुरू होने से पहले ही अपने बैग मे रख दिया था ताकि मीटिंग मे कोई डिस्टर्ब ना करे, इधर जतिन ने जब उसे कॉल किया तो उसने फोन नही उठाया... जतिन खुश था और वो जानता था कि राजेश के लिये भी ये बहुत बड़ी खुशखबरी है और इसी खुशी मे उसने दो तीन बार लगातार राजेश को फोन कर दिया पर हर बार यही होता था कि पूरी पूरी बैल जाती थी पर राजेश फोन नही उठाता था, जब राजेश ने तीन चार बार कॉल करने के बाद भी फोन नही उठाया तो जतिन को चिंता होने लगी और वो ये सोचने लगा कि "कहीं ऐसा तो नही है कि कल उसने राजेश को साफ साफ मना कर दिया था इसी वजह से राजेश उससे नाराज हो गया हो..." इसके बाद जतिन ने सोचा कि "थोड़ी देर इंतजार कर लेता हूं अगर फिर भी राजेश ने सामने से कॉल नही करी या मेरा फोन नही उठाया तो मै लखनऊ के लिये निकल जाउंगा पर आज राजेश से बात करके रहूंगा..."
यो सब बातें सोचते हुये काफी देर हो गयी थी पर राजेश का कॉल अभी तक नही आया था, काफी देर तक राजेश का कॉल ना आने पर जतिन ने सोचा कि" थोड़ी देर और इंतजार करता हूं फिर एक बार कॉल करके मै लखनऊ चला जाउंगा..."
जहां राजेश एक तरफ अपने ऑफिस की मीटिंग मे व्यस्त होने के कारण जान ही नही पाया कि जतिन उसे कॉल कर रहा है वहीं दूसरी तरफ जतिन कल की बात को लेकर जाने क्या क्या सोच रहा था और बेवजह ही परेशान हो रहा था...
जब और जादा देर हो गयी और राजेश ने ना तो फोन रिसीव किया और ना कॉलबैक किया तो जतिन ने सोचा कि "लग रहा है कि उसे लखनऊ जाकर ही राजेश से बात करनी पड़ेगी.." जतिन ये सोचकर लखनऊ जाने के लिये अपनी जगह से उठा ही था कि तभी.. उसकी पैंट की जेब मे पड़े उसके मोबाइल की रिंग बजने लगी, जतिन ने जब अपना फोन बाहर निकाल कर देखा तो चैन की सांस लेते हुये उसने फोन रिसीव किया और बोला- कहां हो राजेश भाई... नाराज हो क्या??
राजेश ने बिल्कुल सहज तरीके से ये सोचकर कि कल की बात का जो दुख मुझे हुआ है वो जतिन को नही दिखना चाहिये... जतिन से कहा- अरे नही नही जतिन भाई नाराज़गी किस बात की..? असल मे मै अपनी टीम की मंथली रिव्यू मीटिंग ले रहा था तो फोन वाइब्रेशन पर करके बैग मे रख दिया था इसलिये तुम्हारा फोन नही उठा पाया बाकि और कोई बात नही है...
राजेश की बात सुनकर जतिन ने कहा- राजेश भाई असल मे मैने इतनी बार इसलिये फोन किया क्योकि (थोड़ा हिचकिचाते हुये जतिन आगे बोला) वो... क्योकि... कल जो तुमने मुझसे बात करी थी ना मैत्री के लिये तो उसी सिलसिले में मैंने अपने घर पर बात करी थी तो असल मे मेरे मम्मी पापा मैत्री के मम्मी पापा और तुम्हारे घर के बड़ों से मिलना चाहते थे....
जतिन की बात सुनकर राजेश के चेहरे पर एक खुशी की लहर सी दौड़ गयी, वो जैसे खुशी के मारे फूला नही समा रहा था लेकिन अपने को संभालते हुये उसने जतिन से कहा- जतिन भाई मुझे गलत मत समझना पर तुम तो कह रहे थे कि तुम्हारी शादी कहीं और तय हो गयी है तो बाद मे तो कहीं कोई दिक्कत नही हो जायेगी ना, मुझे गलत मत समझना मै बस ऐसे ही पूछ रहा हूं...
जतिन ने कहा- नहीं नहीं राजेश मैं तुम्हे गलत समझ ही नहीं सकता मेरे भाई उल्टा मुझे तो मैत्री के लिये तुम्हारा प्यार देखकर बहुत अच्छा लगा और रही बात मेरी शादी की तो हां शादी तय तो हो गयी थी लेकिन अभी सिर्फ कुंडली मिली थी, मै और श्वेता एक दूसरे से नही मिले थे और मै वैसे भी उससे शादी नही करना चाहता, तुम बस एक दो दिन मे कानपुर मेरे घर आ जाओ बाकि की बाते करने के लिये पूरी जिंदगी पड़ी है...
जतिन की ये बात सुनकर राजेश ने उससे कानपुर आने का वादा किया और फोन कटने के बाद सोचने लगा कि "कहीं मै कोई सपना तो नही देख रहा ना"....
जतिन से बात करने के बाद से राजेश को यही लग रहा था कि कितनी जल्दी शाम हो और मै खुद ताऊ जी के घर जाकर इतनी बड़ी खुशखबरी उनको दूं..!! राजेश सोच तो शाम को घर जाने का रहा था पर उससे रहा नही गया और उसने दोपहर मे ही ऑफिस से छुट्टी ले ली और अपने ताऊ जी के घर के लिये निकल गया, रास्ते मे उसने एक जगह अपनी कार रोककर पूरी एक किलो मिठाई खरीदी और अपने पापा नरेश को फोन करके घर के सारे लोगो के साथ अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद के घर जाने के लिये कह दिया और अपने भाई सुनील को भी फोन करके कह दिया कि वो भी अपनी दुकान बढ़ाकर ताऊ जी के घर आ जाये, राजेश जब अपने ताऊ जी के घर पर मिठाई का इतना बड़ा डिब्बा लेकर खुशी से झूमता हुआ सा पंहुचा तो उसने देखा कि उसके घर के सारे लोग वहां आ चुके थे... राजेश को देखते ही उसकी मम्मी सुनीता ने पूछा- क्या हुआ बेटा इतनी जल्दी मे हमें यहां क्यो बुलाया और ऐसे मस्त सा झूम क्यो रहा है? बात तो बता कि क्या हुआ...
राजेश ने कहा- मम्मी हमारी तलाश पूरी हो गयी मैत्री के लिये एक बहुत बहुत... बहुत अच्छे परिवार से रिश्ता आया है, असल मे आप लोग जानते हो ना वो मेरा कानपुर वाला क्लाइंट दोस्त है जतिन... उसके साथ...!! मै कल कानपुर गया ही उससे इसी मुद्दे पर बात करने था...
राजेश की बात सुनकर उसके ताऊ जी जगदीश प्रसाद के घर मे जैसे कई महीनो बाद खुशियो की लहर सी दौड़ गयी थी, सब इतने जादा खुश थे मानो कोई बहुत बड़ा त्योहार आ गया हो घर मे, मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद और उसकी मम्मी सरोज की आंखे खुशी के मारे छलक रही थीं, ये खबर सुनने के बाद घर मे सब बहुत खुश थे सिवाय... मैत्री के!!
जहां एक तरफ सब खुश थे वहीं मैत्री ये खबर सुनकर जैसे डर सी गयी थी ये सोचकर कि "अब फिर से उसे वही सब झगड़े, बेवजह के ग्रहक्लेश और बेवजह के आरोप प्रत्यारोप झेलने पड़ेंगे....!!"
क्रमशः