"शांत हो जा लड़के....शांत हो जा...." उन्होने मूड कर मेरी तरफ देखते हुए कहा,"जानता हूं बहुत से सवाल है तेरे पास जिनका तुझे जवाब चाहिए, पर कुछ सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब तुझे पहले जानना ज्यादा जरूरी है।'' उनकी बात ने फिर एक नया सवाल खड़ा कर दिया, एक के बाद एक सवाल खड़े हो रहे थे और जवाब एक का भी नहीं मिल रहा था।
"मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं कि आप क्या कहना चाहते हैं मुझे बस मेरी आंशिका को बचाना है....क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं बस इतना बताइये?"सवालों के इस खेल ने मुझे पागल बना दिया और मेने चिल्लाते हुए उस इंसान से पूछा जिसने मिले अभी 5 मिनट ही हुए और उसने मेरे अंदर एक अजीब सी हलचल मचा दी लेकिन बदले में जो जवाब मिला उसने फिर मुझे हैरान कर दिया।
मेरी बात सुनकर उन्होंने मुस्कुराते हुए मंदिर की ओर देखकर कहा,"तेरे आज मैं मुझे उसके बीते कल की वो झलक मिलती है जो कई सालो पहले उससे लड़ा था,वो भी तेरी तरह ही था बिल्कुल ज़िद्दी,अड़ियल हमेशा अपने मन की करने वाला पर जब एक वक्त आया तब उसने अपनी परवाह नही की और खुद कुर्बान हो गया।"
"कौन है जो पहले उससे लड़ा था? आप किसकी बात कर रहे है?" मैंने अपने बैचेनी के चलते फिर पूछ लिया पर उसके बदले मुझे जो जवाब मिला उसने मुझे अंदर तक हिला के रख दिया,"तुम्हारे पिता की....हां हर्षित ही नाम था उस लड़के का।"
उनकी बातें सुनकर मैं सोच मैं पड़ गया,मेरे डैड यह कब आए थे और इस जगह से उनका क्या रिश्ता है,अगर ऐसा कुछ था तो मां ने मुझे क्यों नही बताया यही सब सवाल दिमाग़ मैं घूम रहे थे।
“देखिए प्लीज़ आप जो कोई भी है.. प्लीज़ मेरी मदद कीजिए... मेरी आंशिका को बचा लीजिये, वो इस वक्त बहुत तकलीफ़ में है, please....मेरी मदद करें"यह बातें सोच-सोचकर अब मैं थक चुका था इसलिए मैंने हाथ जोड़े उनके सामने खड़ा हो गया।मुझे अपने सामने हाथ जोड़ के खड़ा देख उनकी आंखों की रंगत बदल गई उन्होंने थोड़े गुस्से के साथ कहा,"बार-बार ऐसे हाथ जोड़ने से अपनी लाचारी दिखाने से क्या सब रास्ता मिल जायेगा? ऐसे ही नर्म दिल का रहा तो आपने प्यार को क्या किसी को भी नही बचा पाएगा।"उनका का गुस्सा देख मेरे जुड़े हाथ खुद ब खुद नीचे हो गए और आंखों से सारी लाचारी दूर हो गई।
"तो क्या करूं आप ही बताईए,इसके अलावा मैं और क्या कर सकता हूं, हर मुमकिन कोशिश कर ली पर मेरे हाथ कुछ नही लग रहा जितना वक्त बचा है वो भी मेरे हाथ से निकल रहा है।"
"तुझे किसे लगा की वो तुझे ऐसे ही खाली हाथ जाने देगा"इतना कहकर वो मंदिर के अंदर गए और एक छोटी थैली जैसा कुछ अपने हाथ मैं लेकर बाहर आए,"पहले खुद को कमज़ोर समझना बंध कर और इसे अपने पास रख,इससे वो उस आत्मा के चंगुल से आज़ाद तो नहीं हो पायेगी पर तू उसे ढूंढ जरूर लेगा। अभी तुझे बहुत कुछ जानना और समझना बाकी है अतीत के कुछ ऐसे लम्हे है जिससे तेरा कल जुड़ा हुआ है।"उनकी बाते सुनकर मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि ये इंसान जो भी है वो मेरे कल से कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ है।
"आप कौन है और मेरे बारे मैं इतना सब कैसे जानते है?"
"अभी यह सब बातें करने का वक्त नहीं है मेरी अभी कुछ सीमाएं जिसके ऊपर जाकर मैं तुझे कुछ नही बता सकता पर इतना जरूर कह सकता हूं कि सबसे पहले तुझे उसे पकड़ना होगा जो उस जगह पर घूम रही है अगर वो ऐसे ही बाहर घूमती रही तो ना जाने कितने लोगो की मौत का कारण बनेगी।" दांत भींचते हुन बूढ़े आदमी ने मुझे जवाब दिया।
"कैसे?" मेरे पूछने पर उनको मुझे घूरा और बस घूरते रहे, अब मेरे पास एक रास्ता था, एक उम्मीद थी आंशिका को बचाने की,कुछ देर तक मैं उनसे बात करके वापस जाने के लिए मुदा था कि उनकी आवाज मेरे कान में पड़ी।
"ये पत्थर की मूर्ति कभी बोलती नहीं...लेकिन रास्ता हर किसी को जरूर दिखाती है।" उस आदमी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा और श्रेयस की तरफ घूरने लगा, श्रेयस समझ गया कि वो क्या कहना चाहते थे,"अब जा, यह वक्त बहुत कीमती है....जाके इस वक्त को इस्तमाल कर.....'' उनके कहते ही श्रेयस अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चला, श्रेयस के जाते ही उस आदमी ने मंदिर के अंदर देखते हुए कहा,इतने सालो बाद फिर वही मौत का मंज़र सामने आएगा पर इस बार यह ध्यान रखना की उसके जिंदगी से प्यार छीन ना जाए क्योंकि आखिर मैं कोई एक यादों मैं तड़पता रह जाता है,इतना कहने के बाद उन्होंने आसमान की तरफ देख तो हल्के काले बादल सूरज को ढकने लगे थे।
आज एक बात तो समझ गई कि जहां विश्वास हो वहां पत्थर भी भगवान होता है और जहां विश्वास ना हो वहां प्यार भी धोखा लगता है, आज मेरे पास जो उम्मीद वापस आई थी वो सिर्फ मेरे प्यार के उस विश्वास की वजह से आई थी जिसे मैंने कभी कुछ नहीं समझा था, सही कहा उस आदमी ने ये पत्थर की मूर्ति कभी बोलती नहीं लेकिन फिर भी जवाब सबको देती है, बस उसके जवाब देने का तरीका कुछ अलग होता है, लेकिन इस बार मैं अपनो के लिए लडूंगा। सोचते हुए जंगल में से निकलते हुए जब रिज़ॉर्ट वापस आया तो गेट पे घूम रही ट्रिश पे नज़र पड़ी जो इधर उधर चक्कर लगा रही थी।
"ट्रिश" मेरी आवाज सुनते ही उसने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा, "कहां था इतनी देर तक?"
"मदद मांगने गया था"
"मैं कुछ समझी नहीं और तेरे हाथ मैं यह क्या है?" उसने वो थैली की तरफ देखते हुए कहा।
"सब बताता हूं चल अंदर आ" मेरे पीछे पीछे वो भी अंदर आ गई, अंदर घुसते ही मेरी नज़र मिलन और प्रिया पे पड़ी जो दीवार का सहारा लिए खड़े थे और गहरी सोच मैं डूबे हुए थे, "सब गए क्या?" उन्हें देखते ही मुँह से यहीं निकला और मेरी आवाज़ सुनकर दोनो ने मेरी तरफ देखा और मेरे पास आये।
"हां सब गए" पीछे से ट्रिश ने मेरे पास खड़े होते हुए कहा।
"तो तुम क्यों नहीं गए?" मैंने मिलन और प्रिया की तरफ देखते हुए कहा क्योंकि ट्रिश को कहना बेकार ही था।
"कैसी बात कर रहा है यार, माना की मैं उस शैतान से लड़ नहीं सकता लेकिन मैं अभी तक जिंदा हूं तो उसकी कोई तो वजह होगी ही ना और अब में उसकी वजह को सही जगह लगाना चाहता हूँ " मिलन की बात सुनकर बहुत खुशी हुई,ऐसे मौके पे दोस्तों का विश्वास और उनका साथ क्या हो रहा है ये मुझे अब पता चल रहा था।
"श्रेयस, आंशिका मेरी बेस्ट फ्रेंड है और मैं यहाँ अपनी फ्रेंड के लिए ही रुकी हूँ और इस डिसीजन को लेने का पूरा हक है मुझे" प्रिया की बात का कोई जवाब नहीं दे पाया, बल्कि मैं दोनों की बात का कोई जवाब नहीं दे पाया, असल में वो बातें इतनी सही थी कि मैं उन्हें कहता भी तो क्या?
"बहुत हो गया इमोशनल ड्रामा तुम तीनों का, अब कुछ काम की बात करें" ट्रिश मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, मेंने अपनी नज़रें उठाई तो तीनों मेरी आँखों के सामने मेरे कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे"तो अब क्या करना है?" ट्रिश की आवाज़ में गज़ब का जोश था।
"वैसे भी तू जबसे वापस आया तू कुछ बदला हुआ लग रहा है और यह तेरे हाथ मैं क्या है?" मेरे जवाब देने से पहले मिलन ने अपनी शंका जताने वाली आदत से मजबूर होकर कहा।
"सब बताता हूं पर आज कुछ ऐसा हुआ है जिसे सुनकर तुम तीनों भी विश्वास नहीं करोगे" मेरी बात सुनकर तीनों एक दूसरे की शकल देखने लगे।
"ऐसा क्या हुआ है?" ट्रिश ने मुझे घूरते हुए पूछा।
"मैं अभी जिस चीज़ को सुन के आ रहा हूँ उसके बाद सब कुछ बदला सा लग रहा है।" मेरी इतनी बात सुन कर ट्रिश बोल पड़ी,"तू ठीक से बताएगा की नही?"
"मैं अभी एक आदमी से मिला।"
"आदमी?!!?" मिलन ने चौंकते हुए कहा।
"हाँ मिलन, आज एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे कुछ ऐसी बात कही जिसे सुनकर उस इंसान को एक बाबा कहना गलत नहीं होगा।"
"मैं अभी भी कुछ नहीं समझा" मिलन ने कहा तो प्रिया ने भी उसकी बात को दोहराया।
"थोड़ा साफ़ साफ़ बता प्लीज" ट्रिश ने बेचैनी भरी आवाज़ में कहा।
"जब मुझे कोई रास्ता नहीं मिल रहा था तो मैं आंशिका की बताई हुई उस जगह पहुंचा जहां हर कोई मदद के लिए सर झुकाता है और वहीं मुझे एक बुढ़ा इंसान मिला जिसने मुझे कुछ सच से रूबरू कराया।"
"मतलब.....कैसा सच?" तीनों की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। "यही सच जिसे हम में से कोई नहीं जानता लेकिन वह जानता है, उसे इस जगह से जुड़ी हर एक बात के बारे में पता है मिलन, वह इंसान उस शक्ति के बारे में जानता है जिसने आंशिका को अपने कब्ज़े में ले रखा है लेकिन इससे भी बड़ी बात जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया वह यह है कि वह मुझे भी जानता है।" मेरी बात खत्म हुई तो जो शॉक मुझे ये बात सुन के लगा था वही शॉक इन तीनो को भी लगा, मिलन ने अपना चश्मा उतार लिया और मुझे घूरने लगा।
"ये क्या कह रहा है श्रेयस तू?" मिलन ने चौंकी हुई आवाज़ में पूछा, "ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस इंसान को तू पहली बार देख रहा हो वो तुझे जानता है, तू हमें सब कुछ बता कि आखिर क्या बात है?" ट्रिश के इतना कहते ही मैंने सब कुछ बताना शुरू किया जो भी बात हुई मेरे और उस आदमी के बीच हुई थी,जिस बात का मुझे अंदाज़ा था वही हुआ, तीनो बिल्कुल उसी तरह से हक्के बक्के खड़े थे जैसे मैं उस आदमी के सामने खड़ा था।
"This is Impossible" मेरी बात खत्म होते ही ट्रिश ने खुले मुंह से कहा।
"इतना सब कुछ देखने के बाद मुझे 'Impossible' शब्द से नफरत हो गई है..." मिलन की आँखें पूरी खुली हुई थी।
"एक पल के लिए मैं भी सोच में पड़ गया था लेकिन मैं इस सच्चाई को नहीं ठुकरा पाया।" इतना कह के मैं शांत हो गया और बाबा की कहीं बातें मेरे दिमाग में घूमने लगी।
"तो अब... अब कैसे और क्या करें हम... तुझे क्या लगता है वो आदमी सही कह रहा है श्रेयस?" प्रिया जो काफी देर से चुप थी उसने अपनी जिज्ञासा दिखाई लेकिन मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
"इतना सब सुनने के बाद मेरे पास शक करने की कोई वजह नहीं है."
"लेकिन हम उसे पकड़ेंगे कैसे उस बाबा ने कोई तरीका तो बताया ही नहीं, कोई तो आईडिया देना चाहिए था" मिलन ने सही सवाल को उठाया लेकिन मेरे पास इसका जवाब भी था,"मेरे पास आईडिया है।"
"क्या?!" प्रिया के पूछते ही मैंने अपना आईडिया बता दिया, यानी वो आईडिया जिसका पहला पड़ाव मुझे बाबा ने दिया था मैंने बस उस पड़ाव को पार करने का हल निकाला था।
"हम बस चार हैं... हम कैसे कर पाएंगे... ये सब सुनने के बाद मुझे तो अब हल्का डर लग रहा है श्रेयस" प्रिया ने मेरा आईडिया सुनने के बाद चिंता दिखाते हुए कहा।
"प्रिया, तूने मेरी बात शायद ध्यान से नहीं सुनी, मेरी मानो तो शायद ये बहुत अच्छा है कि सब चले गए और ये बात मैं क्यों कह रहा हूँ इसके बारे में मैंने तुम्हें अभी बताया था।" मेंने अपनी बात स्पष्ट की जिसे सुनके प्रिया के चेहरे पर हल्का डर छा गया जो कि बिल्कुल स्वाभाविक था और उसे देख मैंने कुछ सोचा और उस चीज़ पे दुबारा ज़ोर डाला जिस चीज़ को मैंने इनसे पहले भी पूछा था।
"मैं फिर से कह रहा हूँ प्लीज़ तुम तीनों चले जाओ, इस लड़ाई में कुछ भी हो सकता है.. और मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से....." मैं इतना ही कह पाया कि तीनों ने मुझे रोक दिया।
"टाइम बहुत कम है....अब काम पे लग जाएं क्या?" मिलन ने चश्मा पहनते हुए कहा, उसके जवाब से ये समझ आ गया कि इनमें से कोई नहीं मानेगा इसलिए मैने थैली मैं हाथ डालकर अन्न सबके हाथ मैं एक रुद्राक्ष रखते हुए कहा।
"ठीक है....तो ये लो....इसे अपने पास रखो, जैसे भी रखो, लेकिन ये तुम लोगों के शरीर से अलग नहीं होना चाहिए किसी भी कीमत में.. किसी भी कीमत में मतलब किसी भी..." मेंने अपना हाथ आगे किया तो दोनों ने मेरे हाथ पर रखी चीज़ को उठा लिया, लेकिन ट्रिश ने नहीं लिया, मेंने उसकी तरफ देखा तो वो एक अजीब सी नज़रों से मुझे घूर रही थी, मुझे कुछ अजीब लगा पर फिलहाल में चुप रहा।
मिलन:- "हम दोनों तेरी बताई हुई चीज़ का इंतज़ाम करते हैं।"
"ध्यान से करना, जो भी करना, हर पल चौकन्ने रहना, इसके होते हुए तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता लेकिन फिर भी वो शक्ति बहुत ताकतवर है, कुछ भी कर सकती है, थोड़ी देर में हम यही मिलेंगे।" मेने अपनी बात बेहद सीधे रूप से और बिल्कुल स्पष्ट रूप से मिलन को समझाया क्योंकि एक भूल जिंदगी से दूर कर सकती थी।
"हम संभलकर रहेंगे" मिलन के कहने के बाद हम सभी ने एक-दूसरे की आँखों में देखा, बेहद ही कश्मकश से भरा पल था, सही कर रहे हैं या गलत कुछ नहीं पता पर एक-दूसरे के लिए कर रहे हैं और उसी की वजह से आज बिना कुछ पाने की इच्छा से कुछ बहुत बड़ी चीज़ खोने की कुर्बानी लगाने जा रहे हैं। दोनों के जाते ही मैं अपने कमरे में वापस लौटा, पीछे पीछे ट्रिश भी मेरे साथ रूम में एंटर हुई और अंदर घुसते ही उसने अपना सवाल किया,"श्रेयस अभी भी सोच ले"
"क्या?" मेने उसकी तरफ देखते हुए कहा,"तू कैसे एक ऐसे इंसान पे विश्वास कर सकता है जिससे तू कभी नहीं मिला, जिसके बारे में तू नहीं जानता, तू सिर्फ़ एक अजनबी की बात पे इतना विश्वास करके इतने बड़े कदम नहीं रख सकता।" उसकी आवाज़ में मेरे लिए फ़ैसले के लिए बाग़वत थी।
"मैं कुछ समझा नहीं, ट्रिश या फिर तू नहीं समझी, मैंने अभी नीचे कहा कि वो आदमी मुझे जानता है यहाँ के बारे में जानता है, अभी मैंने तुम सब को बताया कि क्या कहा उस आदमी ने और तू फिर ये कह रही है कि मैं क्यों विश्वास कर रहा हूँ?" मेरे लिए उसका ये सवाल पूछना वाकई चौंकाने वाला था।
"मैं तेरी बात समझ रही हूँ लेकिन मेरा सवाल अभी भी वही है कि अगर उस इंसान को इतना सब पता है तो उसने अभी तक खुद कुछ क्यों नहीं किया, मेरी बात ठंडे दिमाग से सोच, कुछ तो बात होगी इसके पीछे हमें संभल के रहना चाहिए या फिर ये कहूँ कि हमे उस इंसान पे इतना भरोसा नहीं करना चाहिए" ट्रिश की बात सुन कर न जाने क्यों पर मेरा अंदर से कंट्रोल टूट गया।
"कैसे नहीं करूँ भरोसा उस इंसान पे, कैसे नहीं करूँ उस पे भरोसा जिस इंसान ने आंशिका के मिलने की उम्मीद दिखाई है, कैसे ना विश्वास करूँ उस पर ट्रिश, तू खुद बता?" मेने थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा। मेरी बात सुन कर कुछ पल वो शांत मुझे घूरती रही और बड़े धीमे आवाज़ में बोली, "सिर्फ इसलिए कि वो हमारी मदद आंशिका को बचाने के लिए कर रहा है इसका मतलब ये नहीं कि हम उस पर इतना भरोसा कर सकते हैं" ट्रिश की ये बात सुन कर मुझे ऐसा लगा मानो वो कुछ और कहना चाह रही हो लेकिन उसे तोड़ मोड़ के ऐसा बोल रही हो, "वो माँ पापा को भी जानता है ट्रिश....वो माँ पापा को जानता है.....अब भी तुझे कुछ और कहना है?"मैने अपने दोनो हाथों को उसके गालों पर रख दिया और उसकी ओर देखकर कहा,"मुझे अच्छे से पता है, ट्रिश तू क्या कहना चाहती है लेकिन मेरा यकीन कर, मेरे लिए जितनी जरूरी आंशिका है उतने ही तुम सब भी, मैं तुम सभी को कुछ होने नहीं दूंगा और अगर तुम में से किसी को भी कुछ हुआ तो ना ही मैं कभी खुश रह पाऊंगा, तूने हमेशा मुझ पर भरोसा रखा है तो मैं चाहता हूँ कि मेरे इस मुश्किल वक्त में मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरे पे भरोसा रखे। मैं आज ज़िन्दगी के दो पहलू पे खड़ा हूँ, ट्रिश और तू अच्छे से जानती है कि वो दो पहलू कौन से हैं।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपनी बात कही तो वो मेरी आँखों में देखती रही पर बोली कुछ नही।मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ में वही रुद्राक्ष रख दिया जो अभी मेंने मिलन और प्रिया को दीया था फिर कमरे से निकल गया।
श्रेयस के बाहर जाते ही, ट्रिश की आँखों से आंसू छलक आया, अभी अभी श्रेयस जो कह के गया शायद कोई और नहीं समझता लेकिन उसके इन बंधे हुए शब्दों के पीछे की सरलता वो समझ गई थी पर कुछ ऐसा भी था जो श्रेयस नहीं समझ पाया था, ट्रिश ने अपनी आंखें साफ की, श्रेयस की दी हुई चीज़ को जेब में डाला और फिर अपने काम में लग गई।
To be Continued.......