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नौकरानी
राजवीर भागते हुए सोना के पास गया और उसे रोकने के बहाने से उसके सामने आकर खड़ा हो गया। “सोन! पहले मेरी बात सुनो! फिर जहाँ जाना है, चली जाना क्योंकि तुम भी यह जानती हूँ कि मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता।“ रघु और हरिहर भी वहीँ पहुँच गए। “तुम क्या कहना चाहते हो? “उसने उसे उस दिन छोले कुलचे के ठेले पर हुई सारी घटना बता दीं। “तुम सच कह रहें हो?” अब रघु भी बोल पड़ा, “यह बिलकुल सच कह रहा है, मैं भी उस दिन इसके साथ था।“ “तुम्हारे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, समझे।“ “ठीक है, मैं अपने बापू की कसम खाता हूँ।“ वह अब राजवीर को घूरने लग गई, “फिर यह किसकी हरकत है?” “ मुझे क्या पता!!” अब वह मुँह बनाते हुए बोला, “तुम चाहो तो उस छोले कुलचे वाले से पूछ सकते हो। इससे ज़्यादा मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। चल रघु खेलते हैं।“ वह अपने दोस्तों के साथ वापिस मैच खेलने निकल गया।
जमींदार ने बिरजू को बुलाकर कहा, “तुम कुछ काम धाम क्यों नहीं करते। तुम्हारा भाई सुधीर ही सब देखता रहता है। बिरजू ने कोई ज़वाब नहीं दिया तो वह सख़्ती से बोले, “आज से सारे गोदाम का काम तुम देखोंगे। “
बाबूजी कल चला जाऊँगा। अब रात होने वाली है।
“ठीक है, कल सुबह नाश्ता करने के बाद निकल जाना। समझें।“ उसने मन मसोसते हुए हाँ में सिर हिला दिया।
सोना अनमने मन से नदी के किनारे पहुँची, जहाँ पर किशन, सोमेश और नन्हें पहले से मौजूद है। उसके हाथ में एडमिट कार्ड है। उसने सोना को देखा तो मुस्कुराकर बोला, “क्यों सोना, आज अकेले, तुम्हारी दोस्त रिमझिम कहाँ है? “ “अपने नाना की दुकान देख रही हैं ।“ “यह क्या है?” “तुम ख़ुद ही देख लो।“ अब उसने हाथ से कार्ड लिया और उसे देखते हुए बोला, “ यार !! यह तो मेरा......” “हाँ तुम्हारा एडमिट कार्ड है” सोना ने बात पूरी की। “तुम्हारे पास कैसे आया? “ अब उसने राजवीर की कहीं बात उसको बता दीं। निहाल ने तो गुस्से में दाँत भींच लिए, “वह झूठ बोल रहा है।“ तभी नंदन भी आ गया और उसे वहाँ चल रही सारी बात मालूम हुई। उसने सिर खुजलाते हुए कहा, “नन्हें उस दिन बस में राजवीर और उसके दोस्त नहीं थें और उन्हें तो पता भी नहीं था कि एडमिट कार्ड मेरे पास है।“
तो पता लगा लिया होगा?
किससे ? मेरी तो उस नकचढ़े से कोई बात ही नहीं होती और कॉलेज में भी उसको कोई मुँह नहीं लगाता । नंदन ने सफ़ाई पेश की।
यानी कोई और ही है जो मेरे पीछे पड़ा हुआ है। नंदन ने हाँ में सिर हिलाया।
मगर आज जो नकल की क्लॉस में कहानी हुई, वो सब उसका किया धरा है। मुझे मारकर या एडमिट कार्ड चुराकर भी उस आदमी ने मेरा इतना नुकसान नहीं, किया जितना कि इस राजवीर ने किया है। अब नन्हें की त्योरियाँ चढ़ गई।
भैया ! आप सही कह रहें है। बाकी सब भी नन्हें की बात से सहमत है।
रात को नन्हें छत पर बिछी चारपाई पर लेटा राजवीर की हरकतों के बारे में ही सोच रहा है। तभी किशोर ने उसे टोकते हुए कहा,
तू माँ बापू से मेरी और राधा की शादी की बात करेंगा ?
मैं उसने क्या कहूँगा?
यही कि दहेज़ का लालच छोड़े और उसकी शादी अगले महीने मुझसे करवा दें। अब नन्हें ने गहरी साँस ली और कहा, “ठीक है, करता हूँ, बात।“ वह अब करवट बदलकर सो गया।
सोनाली भी निहाल के बारे में सोचते हुए सो गई पर उसकी बहन निर्मला की आँखों में नींद नहीं है। उसका पति सुनील उसे कल लेने आने वाला है। मगर वो वहाँ जाना नहीं चाहती। हाँलाकि अभी गर्मी की छुट्टियॉं बची हुई है, मगर उसकी सास बीमार है, जिसके कारण वह उसे जल्दी लेने आ रहा है। ‘आख़िर ऐसा क्या करो कि वहाँ जाना नहीं पड़े।‘ यही सोचते हुए वह अपनी नींद से आँख मिचौली खेल रही हैं।
अगली सुबह, जब निहाल के बापू खेतों पर जाने लगे तो उसने फिर किशन की शादी की बात छेड़ी, मगर उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि “दहेज़ भले ही बाद में दे दें, मगर जो दो लाख रुपयों की बात हुई है वो तो पहले दे सकते हैं।“ उसकी अम्मा ने भी अपनी पति लक्ष्मण प्रसाद का ही साथ दिया। अब किशन अपना सा मुँह लेकर बापू के साथ खेतों के लिए निकल गया।
राधा के बापू ने बंसी से शादी की बात आगे बढ़ाई तो वो तो पहले से ही तैयार है। साहिल भी राधा जैसी सुन्दर और सुशील जीवन संगिनी मिलने से चहक रहा है। मगर राधा का मुँह उतरा हुआ है, उसने हिम्मत करकर अपने बापू को कहा कि “वह साहिल से शादी नहीं करना चाहती।“
क्यों बेटा? अच्छा कमाता है। शहर में रहता है और हाँ थोड़ा अपंग है, मगर उससे क्या होता है।
आप हमारे भाई जतिन के लिए कोई लंगड़ी बीवी ले लेंगे।
उसके बापू ने राधा को घूरा और फिर गुस्से में बोला, “अगर खूब सारा दहेज़ मिल रहा होगा तो ज़रूर ले आऊँगा।“ यह कहकर वह पैर पटकते हुए वहाँ से चले गए और राधा की आँखों में आँसू आ गए। अब उसकी माँ पार्वती ने उसे समझाते हुए कहा, “ देख ! बेटा अगर किशोर के बापू दहेज़ न लें या हमारी हैसियत के हिसाब से हमारी बात मान ले तो हमें कोई दिक्कत नहीं है।“
दोपहर को राधा ने अम्मा के फ़ोन से किशन को फ़ोन किया तो उसने उसे अपने खेतों में आने के लिए कहा।
निर्मला के बापू ने उसे बताया कि सुनील उसकी अम्मा की तबीयत खराब होने की वजह से उसे लेने नहीं आ सकता है। यह सुनकर वो खुश हुई ही थीं कि तभी उसका बापू बोल पड़ा, “उसने कहा है कि गोपाल को कहें कि तुझे घर छोड़ आए।“ उसने मुँह बनाते हुए कहा “मेरी ख़ुद की तबीयत ठीक नहीं है तो मैं उसकी माँ की देखभाल कैसे करोगी।“ वह भी अब पेट पकड़कर लेट गई। उसके बापू ने कहा, “ठीक है, मैं उसे मना कर देता हूँ। कुछ भी हो जाए मैं उस घर में वापिस नहीं जा सकती, मुझे उस आदमी ने नौकर समझ रखा है पर मैं किसी की नौकरानी नहीं हूँ।“ अब अगली बार के लिए कोई और बहाना सोचना पड़ेगा।‘ उसने मन ही मन कुढ़ते हुए कहा।