nakal ya akal-13 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 13

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नक़ल या अक्ल - 13

13

वक्त

 

राजवीर और रघु उसे बहुत ध्यान से देख रहें हैं,   अब वह उसे सवालियाँ नज़रों से देखता हुए बोला, “यार! राजवीर यह सब क्या है? “ वही तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा  कि  यह किसकी  हरकत है, “  इतने में  कुलचे वाला  एक प्लेट और रखकर जाने लगा तो राजवीर ने उससे  पूछा,  “सुन भाई!! यह तुझे कहाँ से मिला?”  उसने भी उसे ध्यान से देखा फिर सोचते हुए बोला,  “कुछ  दिन पहले एक लड़का और एक लड़की यहाँ पर छोले कुलचे खाने आए थें,  उसी लड़के ने पकड़ा दिया था।“ “क्या तू उस लड़के को जानता  है?” “ नहीं,  मैं क्यों जानूँगा,  वे लोग भी आपकी तरह मेरे ग्राहक थें।“ यह कहकर वह वापिस ठेले पर चला गया। 

 

राज!  अब इस नन्हें के एडमिट कार्ड का क्या करें?  उसने कुल्चे का एक कौर मुँह में डालते हुए पूछा। 

 

करना क्या है?  मैं इसे अपने पास रख लेता हूँ।  उसने उसे अपनी ज़ेब में डालते हुए कहा।

 

तभी ट्रेक्टर आ  गया और दोनों उसमे सवार हो गए। रास्ते में  रघु ने पूछा,  “एडमिट  कार्ड न मिला तो  नन्हें  पेपर देने नहीं जा पाएगा।“

 

वो नन्हें हैं,  अब तक तो उसने दूसरा एडमिट कार्ड भी निकलवा लिया होगा पर मैं कुछ और सोच रहा हूँ?

 

वो क्या ???

 

यही कि यह हरकत किसकी होगी? पहले नन्हें को पीटा गया और उसके बाद उसका एडमिट कार्ड  गायब कर दिया गया। 

 

होगा  कोई?  हमें  क्या  करना है!! अगर नन्हें पेपर न दे तो हमारे  लिए तो अच्छा ही है।

 

हम्म!! राजवीर ने सिर तो हिला दिया,  मगर उसके मन  में  अब भी उथल पुथल  मची हुई  है। 

 

 

सोनाली और रिमझिम को भी पता चल गया कि नन्हें का एडमिट कार्ड मिल गया है। वह शाम को वहीं नदी के किनारे लगे पेड़ के नीचे बैठे, नन्हें को इसकी बधाई देने आ गई है। मगर नन्हें ने उन्हें  बुझे मन से ज़वाब दिया,

 

मुझे इस एडमिट मिलने की इतनी ख़ुशी  नहीं हुई।

 

क्यों ??? दोनों हैरान है।  अब उसने उन्हें वो घूस देने वाली बात बताई तो वो दोनों उसे समझाते  हुए बोली,

 

तुमने थोड़ी न कुछ गलत किया है!! जिन्होंने किया है,  वह अपने आप भुगतेंगे और वैसे भी हिंदुस्तान में  तो पता नहीं क्या क्या हो रहा है,  यह तो बड़ी  मामूली  सी बात है।  यह आवाज़  रिमझिम की है। 

 

मैं  भी इस बात से सहमत हूँ,  अब सोनाली भी बोल पड़ी। फिर सोमेश और नंदन भी वहीं आ गए और उन्होंने नन्हें को सब भूलकर पेपर की तैयारी करने के लिए कहा। अब नंदन ने किताब खोल ली और सब पढ़ने लग गए। 

 

 

जमींदार  गिरधारी  चौधरी  अपने संगे साथियों के साथ अपने खेत देखने निकला है।  खेत उसके है पर खेती के लिए उसने कितने ही मजदूरों को काम पर लगाया हुआ है। कुछ के खेत उसके पास गिरवी पड़े है,  वह किसान अपने खेतों पर काम तो करते हैं पर खेती का आधा पैसा जमींदार को देना पड़ता है।  आज जब वह अपने खेत देखने निकला तो उसने देखा कि निहाल का बापू लक्ष्मण प्रसाद कुछ किसानों के साथ बैठा हुआ है और सभी मुरली कुमार की बातों को ध्यान से सुने रहें हैं । 

 

उसने अपने  मुंशी  रामलाल से पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?

 

होना क्या है,  हुज़ूर,  यह मुरली  किसानों का नेता  बना फिरता है। आए दिन,  ऐसे ही जमघट लगाकर बैठ  जाता है। उसने मुँह बनाया। जमींदार भी वहाँ से थोड़ी दूरी पर कुर्सी लगाकर बैठ गया। जब मुरली की सभा खत्म हो गई तो वह वहाँ से गुज़रा और ज़मींदार ने उसे रोकते हुए पूछा, “क्यों रे!! मुरली, यह क्या नाटक लगा रखा था?”

 

यह नाटक नहीं, गिरधारी जी हकीकत है। 

 

नेता बनना है, क्या!!!

 

वो वक्त बताएगा। फ़िलहाल तो मैं इन किसानों को बता रहा हूँ कि सरकार ने तुम्हारे लिए क्या क्या नई  योजनाएँ निकाली है।

 

यह सब कहने की बातें है। उसने मुँह चिढ़ाया।

 

नहीं जी !! बहुत कुछ है,  जिसे किसान को जानने की ज़रूरत है। अच्छा राम राम !! वह हाथ जोड़कर चला गया। जमींदार उसे गौर से देखता रहा,  35-37 साल के इस मुरली में कितना परिवर्तन आ गया  है। जब इसके बापू ने क़र्ज़ के बोझ तले दबकर ख़ुद को फाँसी लगा ली थीं,  तब इसकी  आवाज नहीं निकलती थीं। इसकी माँ ने लोगों के खेतों में मजदूरी करकर, इसका और अपने परिवार का लालन-पालन  कितनी मुश्किल से किया। इसे  पढ़ाया,  लिखाया और यह स्कूल  के बाद नेतागिरी करने लग गया । अब यह समता पार्टी का प्रचारक बना फिरता है। इसकी बीवी सरकारी स्कूल में  टीचर है। जो खेत,  इसके बापू ने गँवाएँ थें,  वह इसने वापिस  ले लिए है।  इसके दोनों बच्चे  भी अब आराम से पढ़  रहें हैं।  माँ इसकी पिछले साल गुज़र गई थीं। 

 

हुज़ूर! क्या सोच रहें हैं?

 

यही कि  वक्त एक सा नहीं रहता। 

 

वक़्त  की  यही तो खासियत है कि वह एक सा नहीं रहता। यह सुनकर जमींदार ने मुंशी को धूरा तो वह इधर-उधर देखने लगा। 

 

अपने घर में दोस्तों के साथ पढ़ाई करता राजवीर बोला,  “आज से  गिनती शुरू होती है,  अब ठीक नौ  दिन बाद हमारे पेपर है।  सबने हाँ में सिर  हिलाते हुए,  किताबों को देखना शुरू कर दिया ।

 

वहीं  दूसरी  और निहाल भी सोना और नंदन के साथ अपनी पढ़ाई ज़ोरो शोरो से कर रहा है।  अगर दोनों में से किसी को कोई दिक्कत आती तो वे लोग बेझिझक  होकर उससे  सवाल पूछते और वह भी पूरी मुस्तेदी से उनके सवालो का जवाब देता । 

 

राजवीर को पढ़ते हुए पता नहीं क्या सूझा कि वह एक छोटा सा कागज़ लेकर उस पर लिखने लगा। हरिहर ने उसे टोकते हुए कहा,

 

राज! यह क्या कर रहा है?

 

दिखाई नहीं दे रहा है कि लिख रहा हूँ।

 

 

दिख तो रहा है,  मगर इतना बारीक़ किसके लिए लिख रह है?

 

यारो!  यह जो सवाल दिए गए है, यह मेरी समझ से बाहर है इसलिए इनके फार्मूले लिख रहा हूँ।

 

इसे नक़ल कहते हैं।

 

हाँ और अपनी चालू भाषा में फर्रे कहते हैं। यह सुनकर सब उसका मुंह ताकने लगे।

 

अगर चेकिंग हो गई और तू पकड़ा गया तो पेपर से बाहर ।

 

“पकड़ा गया तो न, मेरा नाम राजवीर है और वीर ऐसे छोटी छोटी चीजों से डरते नहीं है।“ अब उसको नकल बनाते देखकर बाकी भी बनाने लग गए। उन्हें पता है, राजवीर जमींदार का बेटा है, इसका कोई क्या ही बिगाड़ लेगा  और हो सकता है, इसके साथ का हमें भी फ़ायदा हो जाएँ। मगर कौन किसे फ़ायदा देगा यह तो आने वाला वक्त ही बतायेंगा।