Pathreele Kanteele Raste - 17 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 17

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पथरीले कंटीले रास्ते - 17

 

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

17

 

फूलों में से झांकता हुआ गुणगीत का खिला हुआ गुलाब जैसा चेहरा उसे निमंत्रण देकर अपनी ओर खींच रहा था । उसकी मादक मुस्कान उसे घायल कर रही थी कि वह बेबस हो गया । उसे छूकर देखने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढाया ताकि वह गुणगीत का आगे बढा हुआ हाथ थाम ले पर हाथ जा लगा उस जेल की तंग कोठरी की दीवार से । हाथ शायद जोर से दीवार से टकराया था । वह दर्द से बिलबिला उठा । एक झटके से उसकी नींद टूट गयी । उसने आँखें मलते हुए इधर उधर देखा । गुणगीत यहाँ कहाँ थी । यहाँ तो जेल की ये संकरी मोटी मोटी दीवारे थी । चारों ओर पसरा सन्नाटा था । वह था और उसकी तन्हाई थी । उसने उठ कर जेल की कोठरी के दरवाजे से बाहर झांकने की कोशिश की । बाहर गहरा अंधेरा था । तारे टिमटिमा रहे थे । उसने सप्तऋषियों की मंजी ढूंढने की कोशिश की पर इस कोठरी और उसके दरवाजे की अपनी सीमाएँ थी । उसे सप्तऋषि कहीं दिखाई नहीं दिये । अंत में थक हार कर वापिस अपने चबूतरेनुमा बैड पर आ गया । अब क्या करे । अभी तो रात आधी भी नहीं बीती होगी । दिन तो जैसे तैसे बंधी सी कार्यशैली में जुते जुते बीत ही जाता था पर शाम होते ही गहरी घनी उदासी उस पर हावी हो जाती , उसका क्या करे ।
हथेली के पिछले हिस्से में लगी चोट ने उसे सपनों की दुनिया से खींच कर वर्तमान में ला खङा किया । वर्तमान हमेशा गम में डूबा हुआ ही होता है । अभाव चारों ओर घेरा डाले रहते हैं । अमीर लोग कितने खुशनसीब होते हैं । किसी भी चीज के लिए तरसना नहीं पङता । जो मन में इच्छा जागे , पैसों के दम पर पूरी हो जाती है । महलों जैसे घर । घर में हर तरह की सुविधाएँ । ढेर सारे चमचों जैसे दोस्त । आसपास मंडराती लङकियों का झुरमुट । मंहगे मोबाइल । लग्जरी गाङियाँ । नौकर चाकर आवाज देते ही सेवा करने को हाजिर । सब जैसे किसी और ही लोक की बात हो । सब कुछ जन्म लेते ही हथेली पर धरा हुआ मिल जाता है । कोई चिंता नहीं । न कोई तनाव । सब कुछ बेहद सुलझा हुआ । एकदम आसान । गरीबों की जिंदगी भी अपेक्षाकृत आसान होती है । कोई बङा सपना नहीं । छोटी छोटी जरुरतें । उनसे भी छोटी इच्छाएँ । सुबह उठते ही सत्तू या चना चबैना खाकर दिन भर मेहनत करना । रात को जितना कमा कर लाए उस हिसाब से पेट भर कर खाना और कहीं भी जमीन पर पङकर सो रहना । किसी बच्चे को न पढना है , न कोई नौकरी ढूंढनी है । दस बारह साल की उम्र तक नंग धङंग यहाँ वहाँ मिट्टी में लथपथ हुए खेलते रहेंगे । गर्मी , सर्दी धूल बारिश किसी की कोई चिंता नहीं । जहाँ दस बारह साल के हुए , किसी के यहाँ हजार पाँच सौ रुपये महीना पर दिहाङी कर लेंगे । कोई दुकान ढाबा , फैक्टरी , भट्ठा कोई तो झेल ही लेगा । धीरे धीरे यह रकम बढकर पाँच या छ हजार हो जाएगी । उसी में ये लोग गुजारा कर लेंगे । असली परेशानी तो मध्यम श्रेणी की है । समाज उन्हें जागने नहीं देता और उनके सपने उन्हें सोने नहीं देते । ये बंदे दिन भर उन सपनों का पीछा करते हुए भागा करते हैं कि सपने का कोई छोर तो हाथ में आ जाए पर सपना सामने से देखते देखते पंख लगाकर उङ जाता है । बेचारा बंदा उछलता ही रह जाता है कि अब सपने को पकङा कि तब पकङा । आखिर में वह बेचारा उछल उछल कर बेदम हो जाता है और सपना चंद कदम के फासले पर हवा में लहराता रहता है । थक हार कर आदमी उस सपने को भुलाने की कोशिश करता है फिर किसी दिन एक और सपना देखना शुरु कर देता है । फिर वह सपना भी एक दिन आँखों से ओझल हो जाता है । इसी कोशिश में आदमी बच्चे से जवान होता है और जवान से बूढा । फिर अपने बच्चों के माध्यम से अपने सपने पूरे होने के सपने देखने लगता है । और यह सपने देखते देखते एक दिन ये दुनिया छोङ कर अनंत में विलीन हो जाता है ।
क्या मेरा भी ऐसा ही अंत हो जाएगा , उसने सोचा और सोचते ही पूरे बदन में एक सिहरन भर गयी । उसने अपना ध्यान इन सब बातों से हटाया । काश इस समय वह हीर या सस्सी फिर से कानों में सुनाई दे जाती । उसने सोचा कि वह आदमी या लङका वह जो कोई भी है , आज गा क्यों नहीं रहा । आज ही क्या , पिछले दो तीन दिन से वह आवाज उसे सुनाई नहीं दी । कई दिन से वह उस लङके से मिलना चाह रहा है पर एक संकोच हमेशा उसके आङे आ जाता है । नहीं सुबह वह हर हाल में उस लङके का पता करेगा और संभव हुआ तो उससे मिलेगा ।
अहह कितना मीठा गाता है । क्या सुंदर और रसीली आवाज है । लगता है जैसे सरस्वती माता की उस पर खास कृपा है । गले में कितना दर्द भरा है । एक ही रात उसने उस अज्ञात लङके की आवाज सुनी थी और तब से ही उसका मुरीद हो गया है ।
यही सब सोचते सोचते आखिर आसमान में लाली छाने लगी । तारे धीरे धीरे गायब हो गये । संतरी ने आकर ताले खोलने शुरु किये तो वह निकल कर बाहर की खुली हवा में आ गया । थोङी देर पेङ की छांव में खङे होकर फेफङों में ताजा हवा भरी फिर नल पर हाथ मुँह धोने पहुँचा तो सामने से गणेश चला आ रहा था – हाँ भाई सत श्री अकाल । कैसे हो ।
जेल में जैसा हो सकता हूँ , बस उतना ही ठीक हूँ ।
ठीक है । उतना ही ठीक होने से भी चलेगा गणेश ठहाका मार कर हँस पङा । रविंद्र हैरान सा उस लङके को देखता रहा । अचानक उसे हीर गाने वाले लङके की याद आई – सुन भाई , वह न चारेक दिन पहले कोई बङी मीठी आवाज में हीर गा रहा था । उसके बाद सुनाई नहीं दिया । क्या तुम उसे जानते हो ।
वो गगन , यहीं पास की संगत मंडी का रहने वाला है । दस दिन की फरलो पर घर गया है । अगले हफ्ते लौट आएगा । आते ही फिर से गीत गाने बैठ जाएगा । आप सुनते रहिएगा टप्पे और बोलियाँ ।
अच्छा टप्पे और बोलियाँ भी गाता है क्या ?
और क्या करेगा अब । तब तो जरा से शक पर अपनी यारनी के पेट में किरच घोंप दी । फिर उसके सिरहाने बैठा रोता रहा । पुलिस आई तब भी नहीं भागा । पुलिस ने पकङ कर जज के सामने पेश कर दिया तो बोला – जज साहब , मैंने उसे कई बार टोका था कि ऐंवे ही हर एक से बातें मत किया कर ।पर मेरी डांट खाकर वह हँस हँस दुहरी हो जाती । मैं खीज खीज जाता । एक दिन सङक के मोङ पर खङी होकर किसी लङके से बातें कर रही थी कि मुझे गुस्सा आ गया और मैंने किरच मार दी । वह तुरंत मेरे हाथों में लुढक गयी । पूरी लहू लुहान हो गयी थी उस समय जैसे किसी ने शादी का सुर्ख जोङा पहना हो ।
जज साहब ने तीन चार पेशी के बाद फैसला सुनाया और उसे उम्र कैद की सजा सुना दी । वह हाथ जोङ कर अपने लिए फांसी की सजा मांग रहा था ताकि जल्दी से मर कर अपनी रानो के पास पहुँच जाए पर कोर्ट के फैसले कैदी की मरजी से थोङा न होते हैं । अगर जज सब मुजरिमों की फरियाद सुनने लग जांएँ तब तो हो गये कोर्ट के फैसले ।
गणेश उसके हाथ में नीम की दातुन पकङा कर चला गया । रविंद्र काफी देर तक दातुन हाथ में पकङे वहीं सुन्न खङा रहा । उसकी और गगन की कहानी कितनी मिलती जुलती है । गुणगीत ने भी कबी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया । हमेशा बहते झरने की तरह हँस देती तो उसके उजले बाँतों की चमक से हर तरफ उजास फैल जाती । गगन की प्रेमिका तो स्वर्ग चली गयी । उसकी अपने ससुराल चली जाएगी । वह न जाने कब तक सोच में डूबा रहता कि योगा और व्यायाम की घंटी बजी तब वह होश में आया । उल्टा सीधा दातुन कर वह भी मैदान की ओर चल दिया । देह से वह बेशक योग क्रियाएं कर रहा था पर मन उसका अशांत हो रहा था ।


बाकी फिर ..