Chhah Bindiya - 1 in Hindi Biography by अजय भारद्वाज books and stories PDF | छह बिंदियाँ - 1

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छह बिंदियाँ - 1

लुई ब्रेल सिर्फ 5 साल का था जब उसकी आंखों की रोशनी चली गई वह बहुत होशियार था और अन्य लोगों जैसी ही जिंदगी जीना चाहता था उसकी सबसे ज्यादा रुचि पढ़ने में थी पेरिस के अंधशाला में भी उसके लिए कोई किताबें नहीं थी इसलिए उसने खुद के लिए एक नई वर्णमाला रची इस प्रणाली में वह आंखों से नहीं बल्कि किताबों को उंगलियों के पोरो से छूकर पड़ सकता था उसकी प्रणाली इतनी क्रांतिकारी थी कि आज भी नेत्रहीन लोग उसका इस्तेमाल करते हैं इस प्रेरक कहानी में अजय भारद्वाज ने एक ऐसे शख्स की जीवन कथा को दर्शाया हे जो नेत्रहीनों के जीवन में रोशनी की एक किरण लाया और जिसने दुनिया भर के नेत्रहीनों को पढ़ना सिखाया जिस दिन मे पैदा हुआ उस दिन मेरे पापा ने सारे गाँव के लोगो से कहा यह मेरा बेटा लुई ब्रेल हे पड़ोसियों की जुबान चली उन्होंने फुस्फुसाया बहुत छोटा हे जिंदा नी बचेगा पर मै जिंदा रहा बचपन मे मै बहुत उत्सुक था और मेरी आँखे हर चीज को बारीकी से देखती थी माँ का प्यारा चेहरा मेरे पालने से झूलती झालर खाने की मेज पर रखी डबलरोटी का आकार मै हर चीज को बहुत ध्यान से देखता था धीरे धीरे मै बड़ा हुआ एकदम अच्छा और बलवान जब मैं अपने भाई की चोडी पीठ पर बैठकर बेकर की दुकान पर जाता या अपनी बहनो के साथ मिलकर मुर्गियों को चुग्गा डालता तो गाँव वाले मुस्कराते और हाथ हिलाते कितना सुंदर है वो कहते और होशियार भी मेरी बहने कहती जब मै तीन साल का हुआ तो मुझे हरेक गांववाले का नाम याद था मै पेड़ पर बैठे पक्षियों को भी गिन सकता था मै जो भी कहानी सुनता मै उसका एक एक शब्द दोहरा सकता था पर जो कुछ पापा करते उसे देखने मे मुझे सबसे ज्यादा मजा आता था लोग दूर दूर से पापा के पास घोड़ों की जीन बनवाने आते थे या फिर चमड़े की लगाम की मरम्मत करवाने आते पापा के हाथ मे जादू था वो सख्त से सख्त चमड़े की पट्टियों से भी चिकनी और उपयोगी लगाम बना सकते थे मै एकदम पापा जैसा ही बनना चाहता था जब भी मै उनके औजार को छुता तो पापा मुझे डाट देते और कहते उसे मत छुओ फिर मुझे प्यार से समझाते लुई तुम अभी बहुत छोटे हो थोड़ा बड़े होने का इंतजार करो बहुत छोटा यह शब्द मुझे अच्छे नि लगते थे मै जल्दी बड़ा और बलवान होना चाहता था काश मै पापा को अपना हुनर दिखा पाता चमडा काफी चिकना था सुजा बहुत नुकीला था मुझे सिर्फ चिल्लाना आता था पापा पापा.......... पा.... पा उस दिन मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई एक नर्स ने मेरी आँख पर पट्टी बांधी मुझे दुबारा सुनाई पड़ा मत छुओ मेरी आँख मे जबरदस्त खुजली थी मेरे हाथ पेड़ों के पक्षियों की जैसे बहुत छोटे और तेज थे मै उन्हे आँखों से दूर नही रख सकता था मै अपनी तबियत को और खराब नही करना चाहता था पर मैने वही किया खुजलाने से रोग दूसरी आँख मे भी फेल गया अंत में अँधेरा छा गया मै कुछ भी नही देख सकता था न पेड़ न पक्षी न चेहरा न झालर और न ही डबलरोटी पांच साल की उम्र मे मै पूरी अंधा था गांववाले फुसफुसाते बेचारा लुई कितना होशियार बालक था अब उसका का क्या होगा

जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करे
अजय भारद्वाज