Devil Ceo's Sweetheart in Hindi Love Stories by Saloni Agarwal books and stories PDF | डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 2

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 2

अब आगे,

 

रूही के सगे पिता अमर ने लगभग गुस्से में चिल्लाते हुए, अपनी सगी बेटी रूही से कहा, "तूने एक बार भी मेरी इज्जत की नही सोची, आज तूने साबित कर ही दिया कि तू मेरी औलाद है ही नही, और तो और ये सब करने से पहले एक बार अपनी मरी हुई सगी मां सरस्वती का ही सोच लेती..!"

 

बचपन से ही रूही अपनी सौतेली मां कुसुम, सौतेली बहन रीना और सौतेले भाई के जुल्म सहती आई थी पर उस को लगता था कि उस के पिता अमर उस से बहुत प्यार करते थे पर आज उन्होंने भी साबित कर दिया कि रूही, उनके लिए कोई मायेने नही रखती थी और वो अब अपने सगे पिता अमर पर एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं थी..!

 

इस छोटी सी उम्र में आज रूही को इतना बड़ा धोखा मिल गया था जिसे वो अपनी पूरी जिंदगी भर भुला नहीं सकती थी क्योंकि रूही की जिंदगी में तो उस के सगे पिता अमर ही सब कुछ थे..!

 

और आज उस के सगे पिता अमर ने कह दिया था कि वो, उन की औलाद है ही नही है जिसे सुन कर रूही अब कुछ कहने लायक नही बची थी, ये सब बाते रूही के दिल और दिमाग में घूम रही थी और उस की आंखो से आंसू निकले ही जा रहे थे..!

 

अपनी सौतेली बेटी रूही को देख कर, रूही की सौतेली मां कुसुम ने अपने गुस्से मे अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "देख अब और मार नही खानी तो जल्दी से काम पर लग जा क्योंकि बहुत काम पड़ा हुआ है, और सुन अगर तू मुझे पांच मिनट में रसोई घर में नजर नही आई न तो देख मै तेरा क्या हाल करती हूं..!"

 

रूही की सौतेली मां कुसुम, अपनी सौतेली बेटी रूही को ये सब बोल कर अपनी सौतेली बेटी रूही के कमरे से जा चुकी थी पर रूही की अभी भी आंखो से आंसू निकले ही जा रहे थे वो तो अपनी सुध बुध खो चुकी थी..!

 

करीब पांच मिनट बाद,

 

रूही की सौतेली मां कुसुम फिर से अपने गुस्से में तमतमाते हुए अपनी सौतेली बेटी रूही के कमरे में अंदर आई और अपनी सौतेली बेटी रूही के हाथ को कस के पकड़ते हुए, अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "क्या तुझे मेरी बात समझ में नही आई या फिर कल रात की तरह फिर से मार खानी है..!"

 

अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही ने दर्द से कराहते और रोते हुए अब अपनी सौतेली मां कुसुम से कहा, "नही...प्लीज ऐसा मत करना..!"

 

अपनी सौतेली बेटी रूही की बात सुन कर अब उस की सौतेली मां कुसुम ने अपनी सौतेली बेटी रूही का मुंह पकड़ कर अब अपनी सौतेली बेटी रूही से कहा, "तो अब चुप चाप से घर के कामों में लग जा..!"

 

अपनी सौतेली मां कुसुम की बात सुन कर अब रूही दर्द से कराह कर उठ गई और जेसे तेसे कर के अपने कमरे के बाथरूम मे चली गई और फिर फ्रेश हो कर बाहर आ गई..!

 

और रसोई घर की तरफ मुड़ गई उस के सगे पिता अमर सुबह सुबह ही अपने ऑफिस के काम से बनारस से बाहर जा चुके थे, रूही को अब अपनी सौतेली मां कुसुम, सौतेली बहन रीना और सौतेले भाई के साथ ही घर में रहना था इसलिए अब वो अपने कामों में लग गाई..!

 

क्योंकि जब तक उस के सगे पिता अमर घर पर होते थे तो उस की सौतेली मां कुसुम उस से कोई काम नही करवाती थी और उस को एक राजकुमारी की तरह ही रखती थी..!

 

पर जेसे ही उस के सगे पिता अमर घर के बाहर चले जाते थे तो उस की सौतेली मां कुसुम, सौतेली बहन रीना और सौतेला भाई उस का जीना हराम कर देते थे..!

 

रूही के पूरे शरीर में दर्द हो रहा था और उस का मन तो करता था कि वो कही जाकर आत्महत्या कर ले पर शायद से ये भी उस के नसीब में नहीं था क्योंकि उस ने बहुत बार कोशिश करी थी पर हर बार नाकाम ही रही..!

 

इसलिए उस ने सोच लिया था कि अब उस के बाके बिहारी (भगवान) ने जो कुछ भी उस की किस्मत में लिख दिया वो उस को न तो बदल सकती थी और न ही मिटा सकती थी तो वो इन सब चीजों को एक कड़वी हकीकत समझ कर उस का सामना करेगी..!

 

रूही घर का सारा काम करके अपने कमरे मे आ गई पर भूख के कारण उस की हालत बहुत ज्यादा खराब होने लगी थी क्योंकि उस को खाना बनाने के बाद बर्तन में लगा जूठा खाने तक की भी इजाज़त नहीं थी..!

 

अपने कमरे में अकेले बैठी रूही अब अपनी सगी मां सरस्वती की इकलौती तस्वीर को देखते हुए उन से कहने लगी, "क्यू मां, आप मुझे इस नर्क में छोड़ के अपने बाके बिहारी (भगवान) के पास चली गई और तो और मुझे लगता था कि कम से कम पापा तो मुझ से प्यार करते थे पर अब पापा भी मुझे प्यार नही करते और उन को तो लगता हैं कि मै, उन की औलाद ही नही हु और वो तीनों भी मुझे बहुत मारते पीटते हैं और अच्छा व्यवहार भी नही करते, ढंग से खाना तक नहीं देते और वो तीनों बहुत ज्यादा बुरे है..!"

 

To be Continued....

 

हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोबेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल मातृभारती" पर।