9. दिवाली की छुट्टियां
नवरात्रि में खूब मज़ा करने के बाद परीक्षा हमारा इंतजार कर रही थी। मुझे मौखिक परीक्षा के बाद नसरीन टीचर की बहुत याद आई थी। उसकी जगह गौरव सर को संस्कृत विषय को सोंप दिया गया। सभी विषय के सिलेबस खत्म हो चुके थे। सामाजिक विज्ञान के विषय में भी ऐसा ही था। नीरज सर भी अपनी हंसी मजाक और ज्ञान अपने साथ लेकर स्कूल छोड़कर चले गए थे और उनकी जगह हेता टीचर यानी भूरी टीचर जिसकी हाईट लगभग गौरव सर की लंबाई से आधी होंगी। गौरव सर जितना जल्दी स्टाफ रूम से क्लास पहुंच जाते थे उतनी ही देरी से धीरे धीरे हेता टीचर पहुंचते थे। खेर, उसने जो पढ़ाया वह समझ तो नहीं आया फिर भी उसने सिलेबस खत्म कर दिया था।
दीपिका मेम की क्लास में तो रीडिंग ही करवाते थे। मेरा काम था की में टीचर से सवाल पूछना। मुझे पहले तो डर लगता पर जब से मेने दीपिका मेम के मुं से यह सुना था की पढ़ने के लिए कभी भी ‘ लेट गो ‘ मत करना, कभी भी नही तब से में कही भी पढ़ने के बारे कोई भी प्रश्न किसी से भी पूछने के लिए हिचकिचाई नही, अभी तक नहीं। यह मेरे लिए गुरुमंत्र था या कहो वरदान था मेम की तरफ से।
और एक वरदान था की उनका हमारे कमज़ोर इंग्लिश को ललकारना। पहले दो तीन पीरियड में मेम बहुत बार कहा था की आप यहाँ तक पहुंच गए और आपको इतना नहीं आता। तभी मेने निश्चय किया था की पहली वीकली टेस्ट में पूरे मार्क लाऊंगी पर नही ला पाई किंतु यही जुनून मेरी पावरफुल इंग्लिश का कारण है और एक दिन मार्क आ ही गए। मेम के कारण ही मेने आगे जाकर इंग्लिश विषय में ही अपने करियर की नीव रखी।
मेमने मेरे सभी प्रश्नों के संतोषपूर्वक उत्तर दिए। मेरा दूसरा काम था मेरे मित्रो को समझाना। फ्रेंड्स को एक फ्रेंड बेस्ट टीचर से भी ज्यादा अच्छे से पढ़ा सकता है। मुझे तो इसमें आनंद ही मिलता था। खास कर ध्रुवी को समझाने का मज़ा ही कुछ और होता था क्योंकि मस्ती भी उनकी साथ होती थी।
हमारी परीक्षा शिस्तबद्ध होती थी। रोल नंबर के अनुसार बिठाया जाता। सुबह 8 बजे से 10 बजे तक एक्जाम होती थी। पेपर्स टीचर्स ही सेट करते थे, इसलिए चिंता का विषय नहीं था पर एग्जाम के साथ चिंता फ्री में आती थी। में तो एक्जाम में चोरी करने के सख्त विरोध में थी और न में करती और न किसी को करने देती। माही भी मेरी तरह होशियार थी पर वह सबका भला - मतलब की ' लिखवाने ' में मानती थी पर में उसे भी डांट दिया करती। एक के बाद एक पेपर्स आते गए और हम देते रहे । और आ गया जिनकी हम यानी हर एक स्टूडेंट्स राह देखता है। पर में नही क्योंकि हमे यह अंदेशा था ही की अगले साल ध्रुवी दूसरी स्कूल में चली जायेंगी हालाकि वह भी जाना नही चाहती थी इसलिए मुझे यह लगता था की वह शायद न भी जाए। में यह वेकेशन नहीं चाहती थी पर मेरा थोड़ी ना चलता। सच कहूं तो ऐसे दोस्त और दीपिका मेम, नसरीन टीचर , तृषा टीचर जेसे टीचर्स हो तो कोई ऐसा नहीं कहेंगा की स्कूल नहीं जाना। पर कहते है ना की सब्र का फल मीठा होता है और दूरी के कारण प्रेम बढ़ता है। यहां भी वेकेशन की दूरी के कारण हमारी मस्तियां और शैतानियां भी बढ़ी । एक ऐसे रिश्ते से मेरी पहचान हुई जिसका मुझे अंदाजा नहीं था । वेकेशन के बाद मेरे जीवन में अविस्मरणीय घटना घटित हुई जिसने मेरी जिंदगी का नया मोड़ दिया।
दिवाली का वेकेशन काफी छोटा होता है पर मुझे बड़ा लगा क्योंकी में दोस्तो से मिलने के लिए बेकरार थी। अब हम मिलेंगे दिवाली के बाद।