विजयेंद्र सिंह जाट समुदाय के बहुत प्रतिष्टित जमींदार थे भगवान कि कृपा से उन्हें किसी प्रकार कि कोई कमी नही थी धन दौलत इज्जत शोहरत सभी था कमी थी तो सिर्फ एक वारिस कि उन्हें एक ही बेटी थी जिसका नाम बड़े प्यार से उन्होंने एव उनकी पत्नी पल्लवी ने सर्वप्रिया रखा था।
सर्वप्रिया जैसा नाम वैसा ही गुण रूप रंग बौद्धिक क्षमता में सर्वप्रिया का कोई जवाब नही था ऐसा लगता था जैसे ईश्वर ने सर्वप्रिया को बहुत समय निकाल कर सृष्टि को उपहार के रूप में उसे विजयेंद्र सिंह को पुत्री के रूप में सौंपा है ।
जब सर्वप्रिया का जन्म हुआ था तब कुल पुरोहित पंडित दिग्विजय शर्मा ने बताया था कि यह कन्या विलक्षण प्रतिभा कि धनी होगी लेकिन इसे जीवन मे बहुत विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए संघर्ष करना होगा और यह समय सामाज के समक्ष नारी गौरव के नए प्रतिमान स्थापित करेगी।
विजयेंद्र सिंह एव पल्लवी सर्वप्रिया को पाकर पुत्र न होने कि व्यथा को भुला चुके थे और पूरे परिवार में पति पत्नी के अलावा सर्वप्रिया ही थी कुल तीन लोंगो का भरा पूरा परिवार खुशियों का संसार किसी के लिए भी सौभाग्य हो सकता है।
विजयेंद्र सिंह का चचेरा बड़ा भाई था कर्मवीर सिंह वैसे तो वह भी सामाजिक स्थिति धन बैभव इज़्ज़त प्रतिष्ठा में विजेन्द्र सिंह से कम नही था और अपने चचेरे छोटे भाई का बहुत सम्मान करता था लेकिन उसके पुत्र शक्ति सिंह एव शार्दूल सिंह उसे चाचा विजयेंद्र सिंह के खिलाफ अक्सर इधर उधर कि मंगणन्त किस्से कहानियां बताकर कान भरते रहते थे ।
कर्मबीर सिंह बेटों कि बात पर ध्यान नही देते और भाई विजयेंद्र से सदैव सौहार्दपूर्ण सम्बन्धो को बनाए रखते लेकिन कहते है कि (जाके प्रभु दारुण दुःख दीन्हा ताके मति पहले हर लीन्हा) कुछ ऐसा ही सच कर्मबीर सिंह के जीवन मे घटता जा रहा था ।
कर्मबीर सिंह के बेटे बड़े हो चुके थे और धीरे धीरे कर्मवीर सिंह के अधिकारों पर अतिक्रमण करने लगे कर्मवीर सिंह एक तरह से मात्र घर के वरिष्ठ मुखिया नाम मात्र के रह चुके थे कर्मवीर सिंह कि पत्नी श्रद्धा को भी अपने बेटों कि बातों पर ही भरोसा रहता पति कर्मवीर सिंह जब भी समझाने कि कोशिश करते कहते भग्यवान तुम्हारे बेटे कलयुग कि कालिमा से परिपूर्ण कुछ भी सच देखने समझने में असमर्थ नही है तब श्रद्धा कहती आप तो अपने ही बच्चों को कोसते रहते है आप सठिया गए है तब कर्मवीर सिंह पत्नी श्रद्धा से कहते तुम्हारे दोनों बेटों शक्ति और शार्दूल को पढ़ाने कि बहुत कोशिश किया मैंने लेकिन स्कूल में कभी सहपाठियों से लड़ने भिड़ने में प्रतिदिन नया बखेड़ा खड़ा करते तो कभी स्कूल के शिक्षक प्रधानाध्यापक से परिणाम यह हुआ कि तुम्हारे दोनों बेटों को आस पास के किसी स्कूल में कोई भी दाखिला देने से डरता जब दोनों को शहर पढ़ने के लिए भेजा तब दोनों ने वहाँ भी नया बखेड़ा खड़ा कर दिया स्कूल कि छात्राओं को ही अश्लीलता से भरे संदेश भेजने लगे और वहाँ भी मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि दोनों बेटों को फिर गांव वापस लाना पड़ा बड़ी मुश्किल से तुम्हारे दोनों बेटों ने गिरते पड़ते बी ए पास तो कर लिया लेकिन उनकी डिग्री मात्र कागज का टुकड़ा है जो शिक्षा विद्यार्थी के आचरण ज्ञान में कोई सकारात्मक परिवर्तन ना कर सके वह शिक्षा मात्र कागज का टुकड़ा और औपचारिकता ही हो सकती है इतना सब कुछ जानते हुए भी तुम अपने बेटों के पक्ष में वकालत कर रही हो तो मैं तो यही कहूंगा कि माँ पृथ्वी कि तरह ही होती है जो संतानों के लाख अपराध को भी क्षमा कर देती है और अपनी ममता का आंचल सदैव उनके मुस्कान के लिए वज्र बनाकर दुर्गा कि तरह खड़ी रहती है ।
श्रद्धा तुम एक समझदार माँ हो तुम्हे ममता से अलग पुत्र मोह त्याग कर अपनी संतानों के बेहतर भविष्य के लिए सोचना समझना चाहिए एव उनका मार्गदर्शन करना चाहिए मेरी बात तो तुम्हारे बेटे सुनते नही सुनते ही हवा में उड़ा देते है अब तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है माँ होने के नाते कि तुम उन्हें उनके लिए उचित मार्गदर्शक बन कर उनका मार्गदर्शन करो शायद जाट कुल के गौरव तुम्हारे बेटे बन सके।
श्रद्धा पति कर्मवीर सिंह कि बातों को बड़े ध्यान से सुनती लेकिन उनके पास बेटों के पक्ष में तर्क अजीबो गरीब रहते वह कहती अजी हमारे बेटों में क्या कमी है ?आप तो सदा उनमें कमी ही निकालते रहते है श्रद्धा पति कर्मबीर कि शिक्षा पर कहती हमारे बेटों में क्या कमी है आपकी कौन सी बात नही मानते आपके हर आदेश को कर्तव्यनिष्ठ होकर पालन करते सिर्फ दोनों बेटे यही चाहते है कि विजयेंद्र सिंह और आप के पिता के बीच जो बटवारा हुआ था वह सर्वप्रिया के विवाह के बाद पुनः एकीकृत हो जाए क्योकि आपके छोटे भाई विजयेंद्र सिंह को कोई पुत्र तो है नही पुत्री सर्वप्रिया के विवाह के बाद उन्हें इतनी बड़ी जमींदारी कि क्या आवश्यकता यदि उन्होंने अपनी जमीन जायदाद अपने जामाता अर्थात सर्वप्रिया के पति को दे दिया तो पता नही कौन होगा जो हम लोंगो के सीने पर मूंग दलेगा जाट कुनबे को यह कभी स्वीकार नही होगा यह सोच हमारे बेटों कि कहां से गलत है पारिवारिक परम्परा प्रतिष्ठा एव जाट समाज कि इज़्ज़त के लिए ही तो मर रहे है हमारे बेटे।
कर्मबीर सिंह पत्नी श्रद्धा से कहते भाग्यवान तुम्हारी मति मारी गयी है मैं विजयेंद्र से दस वर्ष बड़ा हूँ मेरी उम्र है साठ वर्ष और विजयेंद्र कि उम्र पचास वर्ष सम्भव है उसे ईश्वर कि कृपा से जीवन के तीसरे पन में पुत्र रत्न कि प्राप्ति हो जाए कम से कम सर्वप्रिया के विवाह तक तो हमे तुम्हारे बेटों शक्ति और शार्दूल को अपने चाचा के साथ नेक बर्ताव करना चाहिए जब भी कर्मवीर सिंह पत्नी श्रद्धा से इस प्रकार कि बात करते पत्नी श्रद्धा कहती अजी आप पर तो भातृ प्रेम का भूत चढ़ा है आप ना तो भरत है ना लक्ष्मण ना ही शत्रुघ्न वह त्रेता युग था अब कलयुग है जिसमे पुरुषार्थ कर्म ही श्रेष्ठ है ना कि नैतिकता मर्यादा कर्मबीर सिंह चुप हो जाते कहते भाग्यवान तुम्हे समझाने से क्या फायदा ?
सम्भवतः ईश्वर ने इस जाट कुल को किसी नई परम्परा के लिए ही चुना है जिससे सबकी मति मारी गयी है पत्नी श्रद्धा यही कहते नही थकती चुप रहो जी शुभ शुभ बोलो तुम तो सठिया गए हो।
विजयेंद्र सिंह एव उनकी पत्नी पल्लवी धर्म भीरू शौम्य मिलनसार एव छल प्रपंच कि दुनियां से अन्जान बेटी सर्वप्रिया को ही पल प्रहर देखकर खुश रहते और ईश्वर से सदैव शान्ति एव बेटी कि रक्षा का आशीर्वाद मांगते सर्वप्रिया ने भी अपने माता पिता कि अभिलाषा जो भी बेटी को लेकर उनके सपनों एव कल्पनाओं में थी और जिसे उसने उनकी भावनाओं एव नेत्रों में देखा समझा था उसे सार्थकता प्रदान करने के लिए जी जान से कड़ी मेहनत कर रही थी ईश्वर उसे सफलाओ के शिखर पर आरूढ़ करता जा रहा था ।
सर्वप्रिया ने दिल्ली एव देश के प्रतिष्ठित स्कूलों से शिक्षा ग्रहण कर रही थी पिता विजयेंद्र सिंह एव माँ पल्लवी ने कलेजे पर पत्थर रखकर कलेजे के टुकड़े जैसी बेटी को अपने से दूर शिक्षा के लिए भेजा था भाई कर्मवीर के बेटों कि कृत्यों सोच से बेफिक्र भेजा था ।
सर्वप्रिया ने भी अपने माता पिता को अपनी कड़ी मेहनत से हर पल प्रहर गौरवान्वित किया विजयेंद्र सिंह एव पत्नी पल्लवी सिंह बेटे न होने के सोच से बहुत दूर निकल चुके थे उन्हें सर्वप्रिया में ही अर्धनारीश्वर ईश्वर का स्वरूप बेटी बेटे जैसा दिखता सर्वप्रिया किसी भी बेटे से कम नही थी
वह माँ पल्लवी और पिता विजयेंद्र सिंह की प्रत्येक आशाओं पर खरी उतरती जा रही थी ।
सर्वप्रिया सीबीएसई कि हाई स्कूल और इंटरमीडिएट कि परीक्षाओ में सर्वोच्च रही उसके बाद उसने अखिल भारतीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा में भी सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया और उसे भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एम बी बी एस में प्रवेश मिल गया सर्वप्रिया जब भी दिल्ली में अध्ययन के दौरान मोबाइल का प्रयोग सिर्फ अपने माता पिता से बात करने के लिए करती सुबह जब उठती पिता एव माता का आशीर्वाद लेती और शाम को दिन भर कि गतिविधियों से माता पिता को अवगत कराती आधुनिक सामाजिक मीडिया फेसबुक इंस्टाग्राम आदि से उसका कोई दूर दूर तक रिश्ता नही था यदि किसी विषय मे जानकारी कि आवश्यकता होती तो वह अवश्य मोबाइल से डाटा आदि एकत्र करती उसकी दुनियां किताबो एव उद्देश्यों तक सीमित थी जो उसके माता पिता का सपना था उसका स्कूल में भी बहुत सीमित दायरा था मित्र मंडली भी एक दो ही तक सीमित थी ।
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में एडमिशन लेने के उपरांत लगभग चार वर्षों बाद वह अपने गांव आ रही थी इन चार वर्षों में जब भी जरूरत महसूस होती सर्वप्रिया के माता पिता उससे मिलने चले जाते ।
गांव एव आस पास के क्षेत्र में सर्वप्रिया कि सफलता के चर्चे हो रहे थे जिसे सुनकर चाचा कर्मवीर सिंह तो बहुत खुश थे लेकिन सर्वप्रिया कि चाची श्रद्धा एव चचेरे भाईयों के सीने पर जैसे सांप लोट रहा था लेकिन कर भी क्या सकते थे मजबूरन कहते सर्वप्रिया हमारे ही चाचा कि बेटी खानदान कि अभिमान है।
पिता विजयेंद्र सिंह ने बेटी कि सफलता पर गांव एव इलाके के सभी जाट समाज के एव अन्य सभी समाज के लोंगो के लिए भोज का आयोजन कर रखा था।
गांव इलाके के सभी लोंगो को सर्वप्रिया के आने का इंतजार था आखिर इंतजार समाप्त हुआ ।
सर्वप्रिया अपने गांव जब आयी माँ ने बेटी कि आरती उतारी सारे गांव वाले सर्वप्रिया की सफलता के लिए एव जाट समाज का नाम रोशन करने के लिए उसे बधाई शुभकामनाएं दी हर व्यक्ति अपने अपने अंदाज में सर्वप्रिया का अपनी आल्लादित भवनाओ से स्वागत अभिनंदन कर रहा था।
सर्वप्रिया कि सफलता के उपलक्ष्य में विजयेंद्र सिंह पत्नी पल्लवी पुत्री सर्वप्रिया के साथ मंदिर गुरुदारों एव सभी धर्मों के देवालयों में गए और बेटी के सफलता के लिए ईश्वर के प्रति कृत्यता व्यक्त करते हुए भविष्य कि सफलता के लिए प्रार्थनाएं किया और लौटकर बेटी कि शानदार उपलब्धि के उपलक्ष्य में पूर्व निर्धारित भोज का बड़े धूम धाम से आयोजन किया जिसमें छोटे भाई कर्मवीर सिंह तो निर्विकार भतीजी कि सफलता कि शान में डूबे थे किंतु शक्ति सिंह शार्दूल एव माँ श्रद्धा सिर्फ दिखावे के रूप में सम्मिलित होकर कुटिल मुस्कानों से अतिथियों का स्वागत कर रहे थे जबकि तीनो के मन मे खतरनाक योजना पल रही थी जिससे निश्चिन्त पूरा जाट समुदाय समाज की नाज़ बेटी सर्वप्रिया को आशीर्वाद दे रहा था तो उसके जीवन मे कोई बाधा न आए इसके लिए प्रार्थना कर रहा था यह दौर सप्ताह तक चला ।
गांव में सभी कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद सर्वप्रिया ने अपने माता पिता चाचा चाची एव चचेरे भाईयों से अनुमति आशीर्वाद लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गयी ।
इधर श्रद्धा शक्ति सिंह एव शार्दूल ने सर्वप्रिया के इर्द गिर्द जाल बुनना शुरू कर दिया जिससे की उचित समय पर
उसे परिवार से ही हटाया जा सके इसके लिए उन्होंने दिल्ली में जाट व्यवसायी मिल्की सिंह को मोहरे के रूप में चुना मिल्की सिंह को उसके व्यवसाय में कुछ आर्थिक सहयोग देकर उसे अपने स्वार्थ मतलब के लिए ऊपयोगी बना लिया ।
मिल्की सिंह को जिम्मेदारी सौंपी कि वह सर्वप्रिया कि हर गतिविधियों पर पैनी दृष्टि रखें एव जब भी उचित अवसर प्राप्त हो उसे रास्ते से हटा दे मिल्की सिंह अपनी जिम्मेदारी पर मुश्तैदी से लग गया सारी साजिशों से अनजान बेखौफ सर्वप्रिया अपने उद्देश्य पथ पर आगे बढ़ती जा रही थी।
एक दिन सर्वप्रिया मेडिकल के अपने अन्य सहपाठियों के साथ अवकाश के दिन कुछ समय निकाल कर दिल्ली चाँदनी चौक घूमने के उद्देश्य से निकली चाँदनी चौक में ही मिल्की सिंह का छोटा किंतु आकर्षक रेस्टोरेंट भी था वैसे तो उसका होजरी का होल सेल व्यवसाय था किंतु उसने व्यवसायिक विविधता के लिए चाँदनी चौक में एक रेस्टोरेंट भी खोल रखा था वह रेस्टोरेंट पर कभी कभी ही बैठता किंतु जब उसे मालूम हुआ कि सर्वप्रिया अपने दोस्तों के साथ चाँदनी चौक आयी है तो वह सारे काम छोड़कर चाँदनी चौक स्थित अपने रेस्टोरेंट पर जा बैठा और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि किसी तरह से सर्वप्रिया उसके रेस्टोरेंट तक पहुंच जाए ।
कहते है भविष्य को सिर्फ ईश्वर ही जानता है और वही उसके लिए रास्तों का निर्माण करता है यह बात सर्वप्रिया पर बिल्कुल सटीक बैठती जा रही थी।
सर्वप्रिया अपने साथियों के साथ मिल्की रेस्टोरेंट पहुंच ही गयी ज्यो वह रेस्टोरेंट में दाखिल होने को हुई मिल्की सिंह स्वंय गेट पर खड़ा हाथ जोड़कर सर्वप्रिया का अन्य साथियों के साथ स्वागत करता बोला हमारे तो भाग्य ही जाग गए इतने ग्राहक एक साथ आए आज भगवान हमारे ऊपर मेहरबान है।
जब सर्वप्रिया अपने मित्रों के साथ टेबल पर बैठी तब मिल्की स्वंय मीनू लेकर सबके टेबल पर गया और सबका आर्डर लेकर सबके टेबल तक आर्डर पहुंचाया जब सर्वप्रिया और उसके सभी दोस्त खाली हो गए तो सबसे आगे सर्वप्रिया काउंटर पर पहुंची और वह बिल का भुगतान करने लगी तब उसने देखा कि वेटर आर्डर ले रहे है और सर्व कर रहे है और उसे और उसके साथियों को सर्व करने वाला तो मालिक था जो अब काउंटर पर बैठा है वह अपने आपको रोक न सकी आश्चर्य से बोली हमे समझ नही आ रहा है कि आप मालिक है या वेटर मिल्की बोला बहन मैं ही इस रेस्टोरेंट का मालिक मिल्की सिंह हूँ वो तो जब मैंने देखा कि मेरे रेस्टोरेंट में एक साथ आठ दस ग्राहक आ रहे है तो मैं खुद आप लोंगो कि सेवा में खड़ा हो गया जिससे कि आप लोंगो को किसी प्रकार की परेशानी ना हो सर्वप्रिया ने मिल्की सिंह के प्रति आभार व्यक्त किया और बिल भुगतान करके अपने साथियों के साथ जाने को हुई तभी मिल्की को लगा यही उचित अवसर है भवनाओ के सम्बंध के आमंत्रण का मिल्की बोला एक मिनट बहन सर्वप्रिया ने मुड़कर पीछे देखा मिल्की सिंह उसे ही बुला रहा था वह बोली क्या बात है ?हिसाब किताब में कोई गड़बड़ी हो गयी क्या ?
मिल्की बोला नही बहन आपकी भाषा व्यवहार से लगा जैसे आप किसी जट कि बेटी है आप ?सर्वप्रिया ने कहा हां मैं जट कि ही बेटी हूँ तब मिल्की ने तुरंत दूसरा सवाल किया कहां कि रहने वाली हैं सर्वप्रिया बोली हस्तिनापुर पुर के पास खांडव गांव अब मिल्की को विश्वास हो चुका था कि सर्वप्रिया भवनात्मक रूप से स्वतः करीब होती जा रही थी सर्वप्रिया और मिल्की कि वार्ता को उसके साथी बड़े शांत भाव एवं गम्भीरता से सुन रहे थे मिल्की बोला मैं भी तो वहीँ पास के गाँव जोगेश्वर का रहने वाला हूँ कही तुम भाई विजयेंद्र सिंह जी कि वही बेटी तो नही हो जिसने अव्वल स्थान पाकर आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में प्रवेश लिया है ?सर्वप्रिया बोली हां मिल्की काउंटर से उठा बोला बहन हम आपके चरण पखारेंगे और उसने तुरंत वेटरो से थाली में साफ पानी लेकर आने के लिए आदेश दिया वेटर तुरंत थाली में पानी लेकर हाज़िर हो गए मिल्की ने सर्वप्रिया के पैर पखारने के लिए बड़ी मिन्नतें कि और बोला बहन आपके चचेरे भाई शक्ति एव शार्दूल हमारे बहुत पुराने दोस्त है कम से कम इस नाते तो मुझे जाट समाज की अभिमान हमारी बहन के पैर पखारने दो ।
सर्वप्रिया के लाख ना नुकुर करने पर उसके दोस्तों ने सर्वप्रिया से अनुरोध किया तब सर्वप्रिया पैर पखारने देने के लिए तैयार हुई मिल्की ने सर्वप्रिया के पैर पखारे और सर्वप्रिया समेत सभी को मिल्की रेस्टोरेंट की विशेष डिस रसमलाई भेंट कि जाते जाते उसने सर्वप्रिया का मोबाइल नम्बर ले लिया लेकिन सर्वप्रिया ने बहुत स्प्ष्ट कह दिया कि वह किसी से भी मोबाइल से बात नही करती सिवा माता पिता के मिल्की बोला बहन जब कोई बहुत इमरजेन्सी होगी तभी हम आपसे बात करेंगे ।
सर्वप्रिया अपने दोस्तों के साथ जाने लगी मिल्की जैसे आते समय दरवाजे पर स्वागत करने के लिए खड़ा था वैसे ही वह सर्वप्रिया उसके दोस्तों को दरवाजे तक छोड़ने के लिए गया ।सर्वप्रिया के दोस्त मिल्की सिंह कि रास्ते भर तारीफ करते नही थकते सिर्फ सी वी एस(चैतन्य विष्णु स्वामीनाथन) को छोड़ वह बार बार यही कहता रहा सर्वप्रिया मिल्की नियत का ठीक इंसान नही हो सकता भले ही तुम्हारे गांव का है तुम्हारे जाट समाज का है और तुम्हारे चचेरे भाईयों का दोस्त है।
सर्वप्रिया एव उसके अन्य दोस्तो ने कहा स्वामीनाथन तुम्हे वेवजह शक करने की आदत है फिर भी स्वामीनाथन ने कहा कि सर्वप्रिया तुम सोच समझ एव संयमित सन्तुलित कदमो एव विचार से मिल्की से किसी प्रकार का सम्बंध भविष्य में रखना इसकी आंखों में सुअर का बाल है और नियत से कुटिल है अतः जरा संभल कर सर्वप्रिया एव उसके दोस्त होस्टल के अपने अपने रूम में चले गए ।
कहानीकार - नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश