Hotel Haunted in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 57

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 57

"सर पे लगी चोट गहरी तो है लेकिन श्रेयस ठीक है क्योंकि वो दिमाग के हिस्से पे नहीं लगी।" ट्रिश और अविनाश सामने खड़े बातें कर रहे थे और उनकी आवाज मेरे कानों में पड़ रही थी, आंखें हल्की खुली थी और ढूंढते हुए उनको चेहरे को देख रही थी।
"तुझे इतना सब कैसे पता अवि?"
"डैड डॉक्टर है इसलिए थोड़ा बहुत पता है।" अविनाश ने शांति भरे लहजे में कहा,"ट्रिश..." मैंने आवाज लगाई तो उसने मेरी तरफ देखा और वो मेरे पास आई,"अब कैसा लग रहा है?"उसने मेरे माथे को सहलाते हुए कहा?
"पानी...." मेरे कहते ही उसने मुझे पानी पिलाया और मैं पानी पिते ही उठकर बैठ गया,"क्या कर रहा है तुझे आराम की जरुरत है?" ट्रिश ने मेरे अचानक से उठ जाने पर मुझे टोका, मैंने सामने देखा तो अविनाश मेरी तरफ़ देख रहा था, मैंने उस पर से नज़र हटाई और पूछा "बाकी सब कहां है?"


"सब जल्द से जल्द यहां से जाने के लिए समान पैक कर रहे हैं।"अविनाश ने मेरी ओर देखकर जवाब दिया, उसका जवाब सुनकर में कुछ सोचने लगा, बड़ा ही नाजुक पल था यह क्योंकि एक सही फैसला मुझे आंशिका के पास कर सकता था और गलत उससे दूर लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? मैं अपना विश्वास बुरी तरह से हार चुका था क्योंकि मुझे लगा था की मेरे प्यार में इतनी ताकत है कि वो आंशिका को खोज पायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ, सोचते हुए श्रेयस की सांसें इतनी भारी हो गई की ट्रिश भी घबरा गई, "श्रेयस तू अपने दिमाग पर ज़ोर मत डाल,तेरी तबीयत ठीक नहीं है, तुझे अभी आराम की सख्त जरूरत है " ट्रिश ने मेरे सर को सहलाते हुए कहा, मैं जानता था की वो मेरी बहुत care करती है लेकिन अगर में अपनी परवाह करता रहा तो यह वक्त भी हाथ निकल जाएगा फिर मेरे पास खोने के लिए कुछ नही बचेगा इसलिए मुझे मेरी फिक्र नहीं थी।
"तू जानती है ट्रिश की इस वक्त मेरे लिए क्या जरूरी है" मैंने भी दबी आवाज में अजीब से स्वर में कहा।
"मैं जानती हूं श्रेयस लेकिन अगर तू ठीक रहेगा तभी तो तू कुछ कर पाएगा भरोसा रख खुद पर,ईश्वर उसकी मदद जरूर करता है जो खुद पर भरोसा रखता है,मुझे पूरा यकीन है कि वो भी तेरे इस भरोसे को जरूर देखेगा और तेरे इस मुश्किल घड़ी में तेरी मदद भी करेगा,तू बिलकुल चिंता मत कर मैं भी हूं तेरे साथ।" ट्रिश ने आखिरी में जो कहा, उसने मैंने सुना ही नहीं क्योंकि उसने पहले जो कुछ कहा, उसने मुझे कुछ ऐसा याद दिलाया जिसे मैं चाहकर भी कभी उस दिशा मैं सोच नहीं पाता,वही जो मेरे लिए बस एक मूरत थी जिस पर में विश्वास नहीं करता था लेकिन वो करती थी।


इन्हीं सब बातों के बारे में सोते हुए मैं खिड़की के पास खड़ा हुआ बाहर की तरफ देख रहा था, इस वक्त कमरे में श्रेयस के अलावा और कोई नहीं था सामने खड़े घने जंगल में दूर-दूर तक कोहरा फैला हुआ था तभी मुझे उस कोहरे में किसी इंसान की आकृति दिखाई दी उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह इस तरफ ही आ रहा हो।वह आगे बढ़ते हुए एक पेड़ के पास आकर खड़ा हो गया देखने से ऐसा लग रहा था मानो को मुझे अपने पास बुला रहा हो,पर कोहरे की वजह से उसका चेहरा देखना मुश्किल था, कुछ देर वह इंसानी आकृति मेरे सामने खड़ी रही और धीरे-धीरे उसे जंगल में ओझल होने लगी, मैं फौरन कमरे से बाहर निकाला और उस जंगल की ओर जाने लगा, नीचे खड़े हुए सभी लोग मुझे ऐसे देखकर हैरान रह गए, ट्रिश मिलन के साथ सभी मुझे कमरे में वापस जाने के लिए कहने लगे पर मैं किसी तरह उनकी बातो को नजरंदाज करके दौड़ते हुए रिसोर्ट के बाहर निकल गया।


रिजॉर्ट से बाहर निकलकर मैं चलते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था क्योंकि सर पर लगी चोट की वजह से शरीर में कमजोरी और आंखों के सामने थोड़ा सा धुंधलापन जा रहा था पर मुझे इस वक्त उसे दर्द से बढ़कर आंशिका को ढूंढना था जिसके मिलने की एक उम्मीद ट्रिश की वजह से मिली थी। मैं आगे बढ़ते हुए जंगल के बाई हिस्से में पहुंच गया,वैसे इन घने पेड़ों की वजह से वक्त का पता नहीं चलता था पर आसमान से देखकर लग रहा था कि शाम होने वाली थी, मुझे कुछ दूरी पर आदमी की परछाई दिखती और ऐसे करते में जंगल से बाहर निकल कर एक खुले मैदान जैसे इलाके में आ गया।


आज तक जहां रिसोर्ट के काले अंधेरे में मैंने वक्त गुजारा था वो अंधेरा सामने निकले सूरज की पीली रोशनी मैं सब गायब हो गया,वह जगह जंगल से काफी अलग थी, सामने मैदान पर छाए कोमल घास की परत, कहीं जगह पर खिले फूल और कुछ ही दूरी पर मंदिर था, जो आसपास के पेड़ों से ढका हुआ था, जिसके पास से शांत झरना बहकर निकलता था,आज फिर से कुदरत मेरे गांव पर मरहम का काम कर रही थी, जो मेरे मन को सुकून दे रहा था, मेरा ध्यान मंदिर की तरफ गया और बड़े ही अनबने मन से मैं उसकी ओर बढ़ने लगा।



मेरा विश्वास हमेशा से प्यार और उस यार को देने वाले मेरे अपनों पर रहा है, कभी उसपर नहीं रहा जिसमें मेरा प्यार विश्वास करता है क्योंकि वह जो सिर्फ बैठकर सुनता है और देखता है, जिसे सब 'भगवान' कहते हैं पर मेरे लिए इस शब्द का कोई महत्व नहीं था क्योंकि वो केवल आंखें खोले लोगों को अपने उन अंधे नियमों में बांधे रखता है और इसी नियम में मेरा प्यार विश्वास रखता है। जैसा मुझे प्यार पर विश्वास है, वैसा ही उसका इस पर विश्वास है और आज मैं उसके विश्वास के साथ आया हूँ। मंदिर में आज मेरा यह पहला कदम था इस उम्मीद में कि यह कदम मुझे मेरी जिंदगी से मिलवाने का रास्ता दिखाएगा,जब इंसान पूरी तरह टूट जाता है तब वो उस चीज को पाने के लिए हर वो मुमकिन कोशिश कर लेता है जिसके लिए उसका मन राजी नहीं होता, धीरे-धीरे बढ़ते कदमों से मैं सीढियों चढ़ रहा था इसी उम्मीद के साथ की शायद सभी की तरह मेरे अंदर भी उसका विश्वास भर जाएगा। ऊपर पहुँचते ही मैं उससे रुबरु हुआ जो एक शिवलिंग के रूप मैं मंदिर के गर्भगृह मैं बिराज रहा था और उस शिवलिंग के पीछे मां जगदंबा की भी मूरत थी, धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए मैं बिछौने के बाद खड़ा हो गया, ऊपर लगी घंटी को मैंने बजाया जिसका शोर इस खामोशी में दूर तक गूंजा और फिर सामने देखने लगा।


कुछ पल ऐसे ही खड़ा रहा, सामने देखता रहा, क्योंकि समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं, कैसे कहूं? ना तो आज से पहले मैंने 'भगवान' से कभी मांगा था और ना ही पता था कि मांगते कैसे हैं, मैंने तो जो मांगा हमेशा अपनी मां से मांगा, मेरे लिए वही मेरा भगवान था। पर आज वह नहीं है, तो यह घड़ी मैं मेरी मदद करने वाला भी कोई नहीं है, जो मुझे रास्ता दिखा सके इसलिए मैने हिम्मत करके बोलना शुरू किया।
"सब कहते हैं जब इंसान कोई मुश्बिल मैं होता है या खुद रास्ता नहीं ढूंढ पाता है तो वह रास्ता ढूंढते हुए आपके पास आता है, वैसे ही आज मैं भी आपके पास आया हूं।"कहते हुए मैं अपना सर जुकाकर घुटनों के बल बैठ गया और अपने हाथ जोड़ लिए,"अजीब लग रहा होगा आपको कि जो इंसान आपको पत्थर समझता है वही आपके सामने हाथ जोड़े बैठा है, हाँ मैं बैठा हूं क्योंकि यह सब मेरे लिए उतना ही अजीब है जितना अजीब एक नवजात शिशु के लिए होता है, जब वह इस दुनिया में आता है तो उसकी आँखों के सामने नये-नये अजीब चेहरे आते हैं, उस पल वह यह समझ नहीं पाता कि वह कौन है?वो डर जाता है,अकेला मेहसूस करता है इसलिए वह रोता है और तब उसे एक नरम गोद का एहसास मिलता है,उसे अपनापन महसूस होता है तब उसे समझ आता है कि ये है वो इंसान जिसने उसे जन्म दिया है,जिसने मेरे इस जीवन के लिए कष्ट सहा है और वही 'मां' होती है,जिसे मैंने अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यार किया,पूरी दुनिया मैं जिसे सब कुछ माना वो भी आज आपके पास आ गई है,अब कुछ बचा है तो सिर्फ प्यार है और वो भी मुझसे दूर जा रहा है...." इतना कहकर मैं चुप हो गया क्योंकि होंठ कांप रहे थे,आँखें भर चुकी थीं, गला भारी हो गया था और दिल तो कल के बाद से ही उम्मीद हार चुका था...."आप खुद जगत जननी शक्ति स्वरूपा हो मां,आज मेरे साथ मेरी मां नही है इसलिए आपको उस मां का दर्जा देकर आपको सब कुछ मानकर आज मैं आपके पास आया हूं,मदद करो मेरी प्लीज....मदद कर.....मेरी लिए नहीं तो कम से कम उसके लिए मदद कर जो तुझ पर विश्वास रखती है...." इतना कहते ही श्रेयस सुबकते हुए रोने लगा और अपना सर झुका लिया,उसने मन के अंदर से वो सब कह दिया जैसे वो अपनी मां से बात करता था,जैसे आज अपने आप को उसके हवाले कर दिया हो।



ठंडी हवाएं हल्की-हल्की आवाज करती हुई इस घने कोहरे में मंदिर के चारों तरफ घूम रही थीं और श्रेयस आखिरी उम्मीद रखे मंदिर के बीच में सर झुकाए बैठा था तभी बाहर उस घने कोहरे में दो आंखें अपनी नजरे गढ़ाए श्रेयस को ही देख रही थी,कुछ पल ऐसे ही बैठा रहा फिर अपनी बिगड़ी हुई सांसों को संभालने लगा और अपने चेहरे को हाथ से साफ करते हुए खड़ा हुआ,अपनी आंखों मैं वही बेरुखी लिए की यह जवाब नहीं देंगे कि तभी उसके कानो मैं एक आवाज सुनाई दी,"जो इसे अपना मानकर इसके पास आता है उसे वो कभी खाली हाथ वापिस नही जाने देता।"ये बात सुनकर वो जल्दी से मंदिर के बाहर निकल गया तभी उसने अपनी नज़रें दाईं की ओर घुमाई तो उसे कोहरे मैं ढकी हुई एक परछाई दिखाई दी,ना जाने क्यों पर उसकी नज़र वहीं जम गई,उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, अचानक हवा तेज़ हवा का झोका आया,जिसने उस कोहरे को बीच से चीर दिया और उसके सामने एक 65-67 साल का बुजुर्ग आदमी आ गया,सफेद बाल,चेहरे पर झुरिया,थोड़ी बढ़ी हुई दाढ़ी और बदन पर कमीज के साथ धोती पहने हुई थी,साथ ही उसके हाथ मैं एक झाड़ू था जिसे देखकर यह समझ आ सकता था कि यह कोई गांव वाला होगा जो मंदिर की साफ सफाई करता है पर इन सबसे बढ़कर श्रेयस का ध्यान उसके चेहरे पर था जिस पर एक अलग ही शांति के साथ एक मुस्कान फैली हुई थी।श्रेयस कुछ देर तक उसे घूरता रहा पर उस बूढ़े इंसान को देख के ऐसा लग रहा है था कि ये पागल है और सिर्फ उसका वक्त बर्बाद कर रहा है,अपनी नजरे घुमाकर वापस लौटने के लिए मुड़ा ही था कि उसके कानो मैं फिर शब्द पड़े,"तेरे पास ताकत तो है पर तरीका गलत है,ऐसे करेगा तो वो सिर्फ तुझे अपने पीछे दौड़ाएगा।" उनकी वो हल्की आवाज़ जब कानों में पड़ी तो मेरे बढ़ते कदम रुक गए और आंखें ऐसे खुल गई मानो मेरी आत्मा मेरी आंखों से निकल गई हो, मैं तुरंत मुदा और उनको देखने लगा जो मुझे अजीब नज़रों से घूर रहे थे। मैं तेज कदमों से आगे बढ़ा और उनके करीब जाकर खड़ा हो गया,"क्या कहा आपने....क्या कहा अभी?" तेज चलती सांसों से मेने पूछा,"मन को शांत रख ये वक्त इस तरह बैचेन का नहीं बल्कि अपनी हिम्मत को बढ़ाने का है।" उन्होंने मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए उन्होंने इतना कहा और फिर उस झाड़ू से वहा की सफाई करने लगे श्रेयस बस उन्हें यह सब करते हुए देख रहा था,"कौन हैं आप और क्या जानते हैं आप, क्या आप मेरी आंशिका को बचा सकते हैं, क्या आप बता सकते हैं कि ये क्या हो रहा है?"मेने एक के बाद एक सवाल पुछ डाले क्योंकि सामने खड़े इंसान ने एक उम्मीद जगा दी थी।



To be Continued......