प्रत्यन्चा की शादी डाक्टर सतीश से तय तो हो गई लेकिन प्रत्यन्चा शायद खुश नहीं थी,क्योंकि अभी उसने अपनी पूरी सच्चाई सबको नहीं बताई थी और इसके अलावा भी एक बात और थी उसके मन में और वो बात थी धनुष का उदास होना, वो धनुष को दुखी करके ये शादी नहीं करना चाहती थी,उसने धनुष का चेहरा देखा था, वो शायद इस रिश्ते से बिलकुल भी खुश नहीं था....
उस रात धनुष ने खाना नहीं खाया और वो आज घर में नहीं ठहरा आउटहाउस चला गया,ये सब प्रत्यन्चा को अच्छा नहीं लगा,लेकिन वो भला क्या बोलती,वो उससे कुछ कहती तो धनुष फिर से उससे लड़ने लग जाता,इसलिए कुछ ना बोलने में ही उसने भलाई समझी....
सुबह हो चुकी थी,प्रत्यन्चा ने सबके लिए सुबह की चाय बनाई लेकिन धनुष आज चाय पीने नहीं आया, तब भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से कहा....
"जा! बेटी! उसे आउटहाउस में ही चाय देकर आजा"
"जी! ठीक है", ऐसा कहकर प्रत्यन्चा धनुष को चाय देने आउट हाउस चली आई,उसने दरवाजे पर दस्तक दी ,लेकिन धनुष ने दरवाजा नहीं खोला,तब प्रत्यन्चा ने दरवाजों पर धक्का दिया तो दरवाजे खुदबखुद खुल गए,तब प्रत्यन्चा ने सोचा शायद धनुष दरवाजा बंद करना भूल गया होगा,वो भीतर पहुँची तो उसने देखा धनुष शराब की बोतल लेकर सोफे पर अधलेटा सा था,तब प्रत्यन्चा उसके पास पहुँचकर उससे बोली...
"चाय लाई हूँ आपके लिए"
"अरे! तुम...तुम कब आईं",धनुष ने शराब के नशे में लड़खड़ाते शब्दों में कहा...
"अभी आई",प्रत्यन्चा बोली...
"यहाँ क्या करने आई हो",धनुष ने नशे में पूछा...
"जी! कहा ना कि चाय देने आई हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
"मुझे अब चाय की जरूरत नहीं है,अब मुझे इसकी ज्यादा जरूरत है",धनुष ने बोतल हाथ में उठाकर कहा...
"आपने फिर से शराब पीना शुरु कर दिया",प्रत्यन्चा ने गुस्से से पूछा...
"क्यों? तुम्हें अच्छा नहीं लगा",धनुष ने पूछा...
"आपने तो छोड़ दी थी ना!",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! मुझे किसी ने छोड़ दिया तो मैंने इसे फिर से पकड़ लिया",धनुष नशे में बोला...
"ये क्या कह रहे हैं आप?",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"सही ही तो कह रहा हूँ,किसी ने नहीं समझा मुझे और जिसने मुझे समझा ,वो समझकर भी नासमझ बनी हुई है",धनुष नशे में बोला...
"कहना क्या चाहते हैं आप?",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"क्या कहूँ मैं तुमसे,जब तुमने मुझे समझा ही नहीं,तुम भी सबकी तरह निकली प्रत्यन्चा!,उन सभी लड़कियों के जैसी जो मेरे दिल के साथ खेलतीं रहीं",धनुष रुआँसा होकर बोला...
"मतलब क्या है आपके कहने का",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"अब मतलब पूछने से क्या फायदा,अब तो तुम्हारी शादी डाक्टर सतीश से तय हो चुकी है",धनुष बोला...
"साफ साफ कहिए कि क्या कहना चाहते हैं आप",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"ओह...तो तुम सुनना चाहती हो मेरी बात,चलो इतना रहम तो आया मुझ पर",धनुष ने हँसते हुए कहा...
"हाँ! कहिए ना! मैं सुनना चाहती हूँ आपकी बात",प्रत्यन्चा बोली....
तब धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"तुम इतने दिनों से मेरे साथ रह रही हो ,तुम्हें मेरी आँखों में कुछ दिखाई नहीं दिया,कभी तो मेरे दिल की बात समझी होती तुमने ,लेकिन तुमने कुछ नहीं समझा प्रत्यन्चा....कुछ नहीं समझा,तुम मेरे लिए केवल दोस्त नहीं हो ,दोस्त से बढ़कर हो,मैं तुमसे प्यार करने लगा था,लेकिन तुम्हें कहाँ फुरसत है मुझे समझने की,अब तो तुम अपने उस सतीश बाबू को अपनी पलकों में बिठाओ,उससे प्यार करो,उसके नखरे उठाओ और मैं यहाँ ये शराब पी पीकर तुम्हारे बिन यूँ ही मर जाऊँगा,मेरी मय्यत पर आओगी ना कि नहीं आओगी,मुझे यकीन है कि तुम नहीं आओगी.....अब जाओ यहाँ से मुझे अकेला छोड़ दो"
ये कहकर धनुष ने शराब की बोतल उठाई और एक साँस में गटक गया,इसके बाद वो सोफे पर लुढ़क गया, लेकिन प्रत्यन्चा ने उसे उठाने की कोशिश नहीं की,क्योंकि प्रत्यन्चा का बदन काँप रहा था,उसके होंठ सिल चुके थे और धनुष की बात सुनकर उसकी आँखों से लगातार आँसू बहे जा रहे थे,धनुष उसके बारें में ऐसे भाव रखता है ये उसे आज मालूम हुआ था,उसके झगड़े में इतना प्यार छुपा था ये वो नहीं जानती थी.....
इसके बाद प्रत्यन्चा आँसू पोछती हुई आउटहाउस से वापस चली आई...
वो घर में पहुँची तो उसकी आँखों में आँसू देखकर भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"लगता है कि वो फिर से लड़ गया तुमसे",
"हाँ! वे गहरी नींद सो रहे थे,मैंने चाय पीने के लिए जगा दिया तो नाराज़ हो गए,बोले कि अब नाश्ते के लिए पूछने मत आना,दोपहर का खाना लेकर ही आना यहाँ,मैं तक सो लेता हूँ",प्रत्यन्चा अपने आँसू पोंछते हुए बोली...
प्रत्यन्चा की बात सुनकर भागीरथ जी बोले...
" तू परेशान ना हो बेटी! वो तो है ही ऐसा,बात बात पर गुस्सा करता है,तू अब दोपहर खाना लेकर ही आउटहाउस जाना"
"जी! ठीक है दादाजी!",
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गई,फिर खूब जी भर कर रोई और रोते हुए मन में सोचती रही...
"आप मुझे चाहते हैं,ये बात आपने मुझसे कही क्यों नहीं,आपकी बातों और आपके गुस्से को मैंने कभी इस नजरिये से देखा ही नहीं,मुझे माँफ कर दीजिए धनुष जी! मैंने आपका दिल दुखाया है"
जब प्रत्यन्चा जी भर के रो चुकी तो फिर वो स्नान करने गई,नहाकर आई तो मंदिर में वो केवल माथा टेककर और दिया जलाकर वापस आ गई,आज उसका विधिवत पूजा करने का मन नहीं था,क्योंकि गैरमन से पूजा करने पर पाप लगता है,इसलिए उसने विधिवत पूजा नहीं की,फिर वो रसोईघर में आकर नाश्ता बनाने लगी,सबको खिलाने के बाद जब वो अपना नाश्ता लेकर बैठी तो उससे खाया ना गया और उसने परोसी थाली यूँ ही छोड़ दी,इसके बाद वो फिर से अपने कमरे में चली गई, लेकिन उसका वहाँ भी मन ना लगा, उसके मन में एक अजीब सी उथल पुथल सी मची हुई थी,कुछ देर के बाद वो फिर से दोपहर का खाना बनाने नीचे उतरी और उसने फटाफट खाना बनाया,आज उसने केवल दाल,सब्जी और रोटी ही बनाई क्योंकि इससे और ज्यादा खाना बनाने का मन नहीं था उसका,फिर उसने विलसिया से कहा कि वे सबको खाना खिला दे ,क्योंकि मैं धनुष बाबू का खाना लेकर आउटहाउस जा रही हूँ,फिर वो नींबू पानी और खाना लेकर आउटहाउस पहुँची,दरवाजा खुला था तो वो भीतर चली गई,उस समय भी धनुष सोफे पर ही लेटा था लेकिन होश में था,उसने जैसे ही प्रत्यन्चा को देखा तो उससे पूछा....
"तुम सुबह चाय देने आई थी क्या,क्योंकि चाय से भरा कप अभी भी टेबल पर रखा हुआ है"?
"जी! आई थी!",प्रत्यन्चा ने धीरे से कहा...
"उस समय मैंने कोई बतमीजी तो नहीं की तुमसे,क्योंकि उस समय मैं नशे में था और मुझे अब सुबह की कोई भी बात ध्यान नहीं है"धनुष ने कहा...
"नहीं! बस चाय पीने के लिए मना किया था",प्रत्यन्चा बोली...
"तब ठीक है",धनुष ने कहा...
"लीजिए! खाना खा लीजिए!",प्रत्यन्चा बोली...
"अभी तो तुम जिद करके खाना खिला देती हो,फिर जब तुम चली जाओगी तो मुझे कौन खाना खिलाएगा" धनुष ने प्रत्यन्चा से रोआँसे होकर कहा...
"इसलिए जितने भी दिन हूँ मैं यहाँ तो मुझसे झगड़िए मत",प्रत्यन्चा बोली...
"नहीं झगड़ूगा...कभी नहीं झगड़ूगा ...लेकिन तुम मुझे छोड़कर मत जाओ ना!", ये कहते कहते धनुष रो पड़ा....
"ये क्या, आप तो रो रहे हैं",प्रत्यन्चा भी ये कहते कहते रो पड़ी....
"तुम भी तो रो रही हो",धनुष बोला...
"आप रोए तो आपको देखकर मुझे भी रोना आ गया",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मुझ जैसे झगड़ालू इन्सान से तुम्हें मुक्ति मिल रही हो",धनुष आँसू पोछते हुए बोला...
"अच्छा! ये सब छोड़िए,ये नींबू पानी पी लीजिए,आपका सिरदर्द चला जाऐगा",प्रत्यन्चा बोली...
"अब ये दर्द तो जिन्दगी भर नहीं जाने वाला प्रत्यन्चा!",धनुष बोला...
"ऐसा क्यों?",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"बस यूँ ही",धनुष बोला...
"लीजिए! अब नींबू पानी पीकर खाना खा लीजिए",प्रत्यन्चा बोली...
"मन नहीं है खाने का",धनुष बोला...
"जिद़ नहीं करते,चुपचाप खा लीजिए",प्रत्यन्चा रुआँसे होकर बोली...
"तुम खिला दो ना अपने हाथों से जैसे पहले खिलाया करती थी",धनुष ने गुजारिश की..
"अच्छा! चलिए ! मैं खिलाती हूँ आपको"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा धनुष को खाना खिलाने लगी और धनुष खाते हुए प्रत्यन्चा को देखते जा रहा था और अचानक ना जाने क्या हुआ उसे वो फफक फकककर रो पड़ा......
उसे रोता देखकर प्रत्यन्चा भी अपने आँसू ना सम्भाल सकी और वो भी रोने लगी,दोनों के अविरल आँसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि दोनों के बीच कितना गहरा अनकहा सा और अनछुआ से नाता है,लेकिन तब भी दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहा और प्रत्यन्चा धनुष को खाना खिलाकर वापस आ गई...
क्रमशः....
सरोज वर्मा....