Sanyasi in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 5

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सन्यासी -- भाग - 5

इसके बाद सुरबाला मुस्कुराते हुए जयन्त के कमरे से चली गई,सुरबाला के जाने के बाद नलिनी ने जयन्त से पूछा....
"जय! क्या तू सच में एक दिन सन्यासी बन जाऐगा?"
अपनी माँ की बात सुनकर जयन्त मुस्कुराते हुए उनसे बोला...
"क्या पता...हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है,ये तो दुनिया वालों पर निर्भर करता है कि वो मुझे क्या बनाते हैं?"
"बेटा! ये तेरी जिन्दगी है,इसका फैसला तो तेरे हाथ में होना चाहिए कि तू क्या बनना चाहता है",नलिनी बोली....
"लेकिन माँ! दुनियावालों का मिजाज़ देखकर भरोसा उठ है मेरा सब पर से,सब के मन में केवल स्वार्थ और लालच ही भरा पड़ा है,हर कोई केवल दूसरों को कुएँ में धकेलकर खुद को बचाना चाहता है,जिस पर भरोसा करो वही पीठ में छुरा घोंप देता है,ये सब देखकर मेरा इस संसार से मन सा उचट गया है", जयन्त बोला...
"दुनिया ऐसी है तो तू ऐसी दुनिया के लिए सन्यासी बन जाऐगा,भला! तू क्यों उनके कर्मों की सजा भुगतेगा, अच्छे से पढ़ाई करके ब्याह कर,गृहस्थी बसा,तू क्यों इस दुनिया की फिकर करता है,क्या तूने सारी दुनिया का ठेका ले रखा है",नलिनी बोली...
"नहीं! माँ! बस जी ऊब गया है मेरा इस सब दिखावे से",जयन्त बोला...
"सुन! ये पागलों जैसी बातें मत किया कर,अभी तेरी उमर ही क्या है जो तेरा इस दुनिया से जी ऊब गया है, मैं अब जाती हूँ जरा देखूँ तो मेहरी ने ठीक से बरतन साफ किए या नहीं,मेरी नजर उस पर से क्या हट जाती है ,वो सारा काम ऐसे ही जल्दी जल्दी समेटकर चल देती है",नलिनी बोली...
"यही तो माँ !तुमने अपनी सारी दुनिया इसी गृहस्थी के इर्दगिर्द समेटकर रख ली है,तुम्हारी इच्छा नहीं होती कि कभी अपनी पसंद का भी कोई काम लो,थोड़ा सा अपने लिए भी जी लो"जयन्त बोला....
"बेटा! हम औरतों की कभी कोई इच्छाएंँ नहीं होतीं,ना मायके में और ना ही ससुराल में,हम औरतें इच्छाएँ तो पैदा करती हैं,लेकिन फिर उन्हें ज़मीन में गाड़ देती हैं, फिर वे इच्छाएंँ दोबारा उगतीं नहीं है मर जातीं हैं और बस फिर दफन होकर जातीं हैं,हम औरतें अपनी इच्छाएंँ दफन इसलिए कर देतीं हैं क्योंकि हमें पता होता है कि वे इच्छाएंँ कभी पूरी नहीं होगीं",नलिनी बोली...
"तो ऐसा करके दम नहीं घुटता तुम स्त्रियों का",जयन्त ने पूछा...
"घुटता तो है,लेकिन.....",नलिनी ये कहते कहते चुप हो गई...
"माँ! रुक क्यों गई...आगे कहो",जयन्त बोला...
"रहने दे बेटा! ऐसी बातें करने से क्या फायदा,जो सदियों से चलता चला आ रहा है,उसे ही चलने दे ना! हमारी माँएँ भी ऐसा ही जीवन जीती आई हैं और उनकी माँओं की माँओं ने भी ऐसा ही जीवन जिया है,सो जो अब तक नहीं बदला,वो आगे भी नहीं बदलेगा",नलिनी बोली...
"बदल सकता है माँ! कोशिश तो करके देखो, पता है माँ जिन्दगी जीने के दो तरीके होते हैं,पहला कि जो जैसा चल रहा है उसे चलने दो और दूसरा ये कि जो होता आ रहा है उसे बदलने की कोशिश करो", जयन्त बोला...
"सुन! अब मैं तेरा और भाषण सुनना नहीं चाहती,तेरा भाषण सुनने के अलावा मेरे पास और भी बहुत से काम हैं,समझा तू! इसलिए अब मैं यहाँ से जा रही हूँ"
और ऐसा कहकर नलिनी जयन्त के कमरे से चली गई....
नलिनी के जाने के बाद जयन्त ने एक दो लड्डू खाएँ,फिर वो कपड़े बदलकर पढ़ने बैठ गया,शाम के करीब सात बजे तक वो पढ़ता रहा,इसी बीच उसके कमरे में उसकी छोटी बहन सुहासिनी चाय रखकर गई थी,लेकिन वो पढ़ने में इतना मगन था कि उसने चाय पी ही नहीं और चाय यूँ ही रखी रखी ठण्डी हो चुकी थी,वो अभी पढ़ ही रहा था कि उसका भतीजा यानि की सुरबाला का बेटा जो अभी पाँचवीं कक्षा में पढ़ता है,जिसका नाम अतुल है,वो कोई गणित का सवाल लेकर उसके पास आया और उससे बोला....
"छोटे चाचा! इस समीकरण को मैं इतने देर से हल करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन हर बार इसका जवाब गलत आ रहा है"
"दिखा भला! तू कहाँ पर गलती कर रहा है",जयन्त अतुल से बोला...
इसके बाद जयन्त ने अतुल के समीकरण हल करने का तरीका देखा फिर जयन्त को फौरन ही गलती पकड़ में आ गई और वो अतुल से बोला....
"तू यहाँ पर गलती कर रहा था,देख अब आ गया ना सही जवाब"
"हाँ! चाचा! अब समझ आ गया मुझे कि कहांँ पर गलती हो रही थी",अतुल बोला....
जब अतुल का सवाल हल हो गया तो अतुल की छोटी बहन मिट्ठू जयन्त के पास खेलने के लिए आ पहुँची,वो अभी दो साल की है और अपनी टूटी फूठी तोतली जुबान में बहुत प्यारी प्यारी बातें करती है, जयन्त उससे बहुत प्यार करता है और जैसे ही मिट्ठू उसके पास आई तो जयन्त अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़कर उसके साथ खेलने में लग गया.....
अब घर के सभी पुरुष अपने अपने काम से फुरसत होकर घर को लौट आएँ थे,इसलिए नलिनी और दोनों बहूएँ ने फटाफट रसोई सम्भाल ली और झटपट रात का खाना टेबल पर लगा दिया,फिर सबने रात का खाना खाया और अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए,नलिनी जयन्त का खाना उसके कमरे में ही दे आई थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि बाप बेटे में दोबारा कोई बहसबाजी हो,पुरूषों के खाना खाने के बाद घर की सभी महिलाओं ने खाना खाया और फिर अपने अपने कमरे में सोने चली गईं....
अभी रात के लगभग साढ़े ग्यारह ही बजे होगें कि शिवनन्दन जी के मँझले बेटे प्रयागराज के कमरे से चीखने चिल्लाने की आवाज़े आने लगी और कुछ देर के बाद ऐसा लगा कि प्रयागराज ने अपनी पत्नी गोपाली के साथ मारपीट शुरु कर दी है,गोपाली रोएँ जा रही थी और प्रयागराज उस पर ताबडतोड़ हाथ उठाएँ जा रहा था,लेकिन किसी में भी उनके बीच हो रहे झगड़े को रोकने की हिम्मत नहीं हो रही थी, जयन्त ये सोचकर चुप था कि अभी कोई तो बोलेगा,लेकिन जब कोई नहीं बोला तो जयन्त खुदबखुद प्रयागराज के कमरे की ओर आया और दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोला....
"मँझले भइया! दरवाजा खोलिए,क्या कर रहे हैं आप?"
फिर प्रयागराज ने दरवाजा खोलते ही जयन्त से पूछा....
"तू ! यहाँ क्या रहा है"
"और आप क्या कर रहे हैं?",जयन्त ने प्रयागराज से पलटकर सवाल पूछा...
"ये मेरी पत्नी है और मैं चाहे कुछ भी करूँ इसके साथ",प्रयागराज बोला...
"आप ऐसा नहीं कर सकते,वो कोई मूक जानवर नहीं है जो आप उन्हें पीटे जा रहे हैं",जयन्त बोला....
"जा पीटूगा मैं उसे,तू क्या बिगाड़ लेगा मेरा",प्रयागराज बोला....
"मैं बहुत कर सकता हूँ"
और ऐसा कहकर जयन्त प्रयागराज को धक्का देकर उसके कमरे में घुस गया,उसने देखा कि गोपाली फर्श पर पड़ी है और उसके होंठ से खून निकल रहा है,वहीं बिस्तर पर पड़ा उसका चार महीने का बच्चा जोर जोर से रो रहा है,तब जयन्त ने गोपाली को फर्श से उठाया और बच्चे को गोद में लेकर करके वो गोपाली से बोला....
"छोटी भाभी! जाओ तुम सुहासिनी के कमरे में सो जाओ,तुम्हें ऐसे कसाई पति के कमरे में सोने की कोई जरूरत नहीं है"
और फिर जयन्त गोपाली को सुहासिनी के कमरे में ले आया और उसके बच्चे को उसकी गोद में देते हुए बोला...
"तुम आराम से यही सो जाओ,मैं सुबह मँझले भइया से निपट लूँगा"
और ऐसा कहकर जयन्त अपने कमरे में आ गया...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...