8. सबसे अदभूत नवरात्रि
गाना और नाचना सबका स्वभाव होता है और अनिवार्य भी। माना कि सबको अपने रुचि अनुसार गाना पसंद होता है पर गाने के बिना हमारा अस्तित्व ही अधूरा है। गुजरात में तो इसका त्यौहार मनाया जाता है इसीलिए हमारे यहां इस के पर पूरा नौ दिन का त्योंहार मनाया जाता है - नवरात्रि।
गली गली इस त्योहार का मनाया जाता है और जहां से हमने सीखा वह स्कूल कैसे बाकी रह सकता है इस लिए हर स्कूल में नौ दिन तो मुमकिन नहीं है किंतु एक दिन पूरा नवरात्रि ही बना दिया जाता है फर्क सिर्फ इतना होता है की नवरात्रि में रात्रि की जगह दिन यानी स्कूल टाईम होता है।
हम सब को गीत इतने पसंद थे की हम बुक में लिख कर गाते थे फिल्मी गाने। लेकिन ध्रुवी वह पुराने गुजरती गाने गाती थी। हम सब उसे गाना भी सिखाया करते थे। हालांकि मुझे नवरात्रि में झूमना पसंद नहीं, ना ही गाना उतना पसंद था फिर भी नवरात्रि का वह शानदार दिन मुझे अब भी याद है।
जिस दिन नवरात्रि का आयोजन किया था उसके पहले मिनी वेकेशन था। सब पारंपरिक परिधान में सज्ज थे। लड़कियों ने नवरात्रि में कोई कमी नहीं छोड़ी थी सिवाय रात्रि के। माही और में फॉर्मल कपड़े में थे बाकी सब फ्रेंड्स रंगबेरंगी चोली में खूबसूरत लग रही थी। टीचर्स में भी कोई कमी नहीं थी। उसमे भी कुछ अपवाद होते है जैसे मेना टीचर।
नवरात्रि का फंक्शन रिसेस के बाद में होता था पहले चार पीरियड पढ़ाई करनी पड़ती थी। मुझे सिर्फ देखने में ही मज़ा आता था खेलने में नहीं। क्रिशा और झारा तो खेलने के लिए बहुत उत्साहित थे और वह बहुत खूबसूरत तैयार हो कर आए थे और खेले भी खूबसूरत।
रिसेस खत्म होते है ही शुरू होती थी नवरात्रि। जिसमे गर्ल्स और बॉयज के अलग एक के बाद एक खेलते थे। हमेशा की तरह सबसे पहले गर्ल्स की बारी आई। हर साल इस नवरात्रि सेलिब्रेशन का आयोजन होता था। पर इस बार कुछ ऐसा हुआ जो किशोर विद्यालय के इतिहास में पहली बार था। गरबा करने के लिए उत्सुक लड़कियां गाना बजते ही चल दिए और हम वहां के वहा बैठे रहना चाहते थे लेकिन हम चाहे ऐसा कभी स्कूल में कभी हुआ कहा है? मेना टीचर जैसे पढ़ाई में कोई छूट न जाए और जबरदस्ती से, डांट के पढ़ने बिठाते थे वैसे ही डांट से नवरात्रि खेलने के लिए भी भेजते थे और में उनसे बचना चाहती थी पर मेरी कहा इतनी औकात?
में बचते बचाते एक कोने में बैठ गई ताकि में मेना टीचर की नज़र में ना आ पाऊं और सब के गरबा को देख पाऊं। तभी मेने नोटिस किया की दीपिका मेम भी मेरे तरह बैठे है शायद वह भी देखना पसंद करते होंगे।
“ कनकबेन, में तो भूल ही गई थी की आज नवरात्रि का सेलिब्रेशन है।”
“ हां, कई विद्यार्थी भी भूल गए है तभी वह नॉर्मल कपड़े में है।”
“अगर याद होता तो हम भी तैयार हो कर आते”
मेने सोचा की मेम तो वैसे भी हररोज खूबसूरत लगते है इसमें तैयार होने की क्या ज़रूरत। और कनक टीचर भले ही मेना टीचर के दोस्त थे फिर भी मस्ती करने में काम न थे। उसने नवरात्रि में जो एक्टिंग की थी 'माताजी' आने की। हिंदू धर्म में यह मान्यता है की किसी मनुष्य में दैवी शक्ति यानी माताजी का थोड़ी देर के लिए आगमन होता है और वह भक्तो की बाधाए दूर करते है। पर टीचर ने बहुत अच्छी एक्टिंग की थी।
तृषा टीचर को खेलते देख लग ही नहीं रहा था की वह टीचर है मानो अपनी टीचर की जॉब छोड़ स्टूडेंट्स बनकर गरबा खेलने आ गए हो। नसरीन टीचर भी कुछ कम न थे। यहीं यादें बनाने का दिन था जो आज भी नवरात्रि के दिनों में आंखो के सामने से गुजरता है।
दीपिका मेम ने बहुत ही अच्छा काम किया जो कभी पहले नही हुआ। उसने वीडियो शूटिंग किया नवरात्रि का। वरना स्कूल के दिनों में हमारे खूबसूरत पल की यादें को कैमरे में कैद करना मुमकिन ही नहीं होता जैसे कॉलेज में सब करते थे।
सब एक ही व्यक्ति का इंतजार कर रहे थे लड़के और लड़कियां। वह किसी फोन में ही बिज़ी थे - निशांत सर। जिसने हमारी 9th की नवरात्रि को शानदार और यादगार बनाया था। जब निशांत सर आए तो उसने सबका फेवरीट ‘टीटोडो’ (गुजराती गरबा के नृत्य का एक प्रकार) फिर मस्ती से सब और झूमे।