Dhundh : The Fog - A Horror love story in Hindi Horror Stories by RashmiTrivedi books and stories PDF | धुंध: द फॉग - एक हॉरर लवस्टोरी - 8

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धुंध: द फॉग - एक हॉरर लवस्टोरी - 8

विला के अंदर प्रवेश करते ही वहाँ की चकाचौंध देख सभी की आँखें फटी की फटी ही रह गई थी, ख़ासकर शिवाय की!

एक मध्यमवर्गीय परिवार से आनेवाले शिवाय के लिए ऐसी शानो शौक़त देखकर एक बार चौंकना तो लाज़मी था। उसने क्रिस से कहा,"यार तुम तो सही कह रहे थे, असली पैराडाइस तो अंदर ही है। मैंने तो अपनी पूरी लाइफ में ऐसा बंगलो नहीं देखा यार। कितना सुपर है, अमेजिंग!"...

मैनेजर अशोक और पीटर भी वही खड़े थे। उन्होंने नीचे वाले हॉल में बहुत ही खूबसूरत डेकोरेशन कर रखा था। एक तरफ़ दीवार पर "हैप्पी बर्थडे क्रिस" लिखकर सजाया गया था। हॉल में ही मौजूद बड़े से डाइनिंग टेबल पर तरह तरह के पकवानों के साथ साथ एक बड़ा सा केक रखा हुआ था। साथ ही तरह तरह की कोल्ड ड्रिंक्स भी रखी गई थी। एक अच्छी बात यह थी कि गोवा जैसे शहर में जहाँ नशे के चीज़ों की कोई कमी नहीं थी,वहाँ यह अमीर घर के बच्चे अभी तक उसके चपेट में आए नहीं थे।

क्रिस ने एक नज़र सारी तैयारियों पर डाली और अशोक की तरफ़ देख मुस्कुराया। उसको अशोक की यही बात अच्छी लगती थी कि उसके बिना कुछ कहे ही वह उसकी पसंद और नापसंद को ध्यान में रखते हुए सारी तैयारियां कर लेता था।

तैयारियों का जायज़ा लेने के बाद पाँचों दोस्तों ने पूरे विला का घूमकर एक चक्कर लगाया। क्रिस ने सभी को अपना कमरा दिखाया और एक एक कमरा उनके लिए भी रेडी है यह भी बताया। फिर सब लोगों ने नीचे आकर केक काटकर बर्थडे सेलिब्रेशन शुरू किया।

क्रिस के एक इशारे से ही पूरे विला में पार्टी सॉन्ग्स बजने लगे और सभी उन गानों पर थिरकने लगे। एक तरफ़ जहाँ सब लोग पार्टी का मज़ा ले रहे थे,वही पीटर की नज़रें बार बार बड़ी सी घड़ी की ओर जा रही थी। वह चाहता था कि जल्दी से नौ बजे जाए और वह अपने घर के लिए निकल जाए। वह मन ही मन अपने आप को कोस रहा था कि क्यूँ उसने नौ बजे तक रुकने के लिए हामी भरी थी। उसे तो सात बजे का अंधेरा देखकर ही निकल जाना चाहिए था।

देखते ही देखते रात के नौ बजने ही वाले थे। पैराडाइस विला में पार्टी सॉन्ग्स की धूम मची हुई थी। घर का कुक और उसके साथी खाने का टेबल लगाकर अपने अपने घर जा चुके थे। क्रिस और उसके दोस्तों के अलावा विला में अशोक, पीटर और बाहर के दरवाज़े के पास अपने छोटे कैबिन में बैठा चौकीदार मौजूद था।

विला के आंगन में टहलते हुए अशोक अपने मोबाइल फ़ोन पर किसीसे बात कर रहा था। तभी अचानक पूरे विला की रोशनी चली गई। अभी तक गानों की आवाज़ से गूंज उठा विला एकदम से शांत हो गया था। इधर क्रिस और उसके दोस्तों के बीच अचानक गई लाइट से अफरातफरी मच गई थी। अशोक ने अपने मोबाइल फोन का टॉर्च ऑन किया और वह हॉल की तरफ़ बढ़ते हुए पीटर को आवाज़ देने लगा। बहुत देर तक पुकारने के बाद भी पीटर की ओर से कोई जवाब नहीं मिल रहा था। जब अशोक हॉल में पहुँचा तो देखा, क्रिस और उसके दोस्त भी अपने अपने मोबाइल फ़ोन के टॉर्च ऑन करके अँधेरे में खड़े थे।

अशोक की आवाज़ सुन क्रिस ने उससे पूछा,"क्या बात है अशोक अंकल, यह अचानक लाइट कैसे चली गई और गई भी तो अभी तक जनरेटर क्यूँ ऑन नहीं हुआ? क्या यहाँ जनरेटर नहीं लगा?"

अशोक ने जवाब में कहा,"मैं देखता हूँ क्रिस बाबा,लेकिन यह पीटर कहाँ चला गया? कब से आवाज़ लगा रहा हूँ उसको!"

तभी अचानक उस अँधेरे में हॉल में मौजूद बड़ी सी घड़ी में नौ बजे के ठोके बजने लगे। अचानक आई उस आवाज़ से एक पल के लिए सभी डर गए थे। जेनेट और वेनेसा की तो चीख़ ही निकल पड़ी थी!

उनकी चीख़ सुनकर अतुल ने कहा,"इन लड़कियों को तो बस चीख़ने का बहाना चाहिए, कुछ हुआ नहीं की लगी चिल्लाने! अरे भाई, घड़ी में नौ बजे के ठोके बज रहे हैं और कुछ नहीं!".... उसकी बात सुन सबकी हँसी निकल आई और वहाँ का डरावना माहौल फिर से कुछ खुशनुमा हो गया।

अशोक ने अपने मोबाइल का टॉर्च घड़ी की ओर करते हुए कहा," अच्छा तो नौ बज गए, तभी यह पीटर दिखाई नहीं दे रहा है। भाग गया वह डरपोक कहीं का!"...

"डरपोक! डर?? किस बात का डर अंकल?", अतुल ने पूछा।

उसका सवाल सुन जब अशोक को महसूस हुआ कि उसने पीटर के बारे में जो कहा वह उसे सबके सामने नहीं कहना चाहिए था,तो उसने बात को संभालते हुए कहा,"नहीं, दरअसल वह अपनी बीवी से डरता है, इसीलिए घर जल्दी भाग गया। वह सब जाने दीजिए, आप लोग इधर ही रुकिए मैं अभी जनरेटर रूम से देखकर आता हूँ,आख़िर प्रॉब्लेम क्या है!"...

अशोक अपने मोबाइल की रोशनी से अंधेरे को चीरते हुए विला के बाहर गया। उसने जाकर गेट के चौकीदार से कहा कि वह जनरेटर रूम में जाकर देखे की वह शुरू क्यूँ नहीं हुआ है। चौकीदार तुरंत उस तरफ़ बढ़ गया। लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी चीख़ों से सारा विला गूंज उठा!

उस चीख़ सुन अशोक, क्रिस और बाकी सब लोग भी जनरेटर रूम की ओर भागे। तभी अचानक लाइट्स आ गई। सभी ने देखा,चौकीदार पसीने से लथपथ उनकी ओर ही भागा आ रहा था। भागता हुआ वह अशोक से टकराकर नीचे गिर पड़ा। फिर संभलते हुए उठने लगा।

अशोक ने संभालते हुए पूछा,"क्या हुआ, ऐसे चीख़ क्यूँ पड़े तुम?"

चौकीदार ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा,"वो... वो ...उधर.. रूम में... ज..जनरेटर रूम में कोई है! कोई सफ़ेद कपड़ों में! लड़की.. लड़की...वो..वो बोली..."च...चले ज..जाओ!"...

उसकी बात सुन अशोक और शिवाय भागते हुए जनरेटर रूम की ओर गये। लाइट्स आ चुकी थी तो उन्होंने उस रूम की लाइट ऑन करके देखा तो वहाँ कोई नहीं था। दोनों भागकर वापिस सबके पास लौट आए।

अशोक ने चौकीदार की ओर देखते हुए पूछा,"क्या? क्या बक रहे हो? पी रखी है क्या तुमने?"

चौकीदार ने पीछे हटते हुए अपने माथे का पसीना पोंछा। तभी अतुल आगे बढ़कर चौकीदार के पास गया और उसे सूंघते हुए कहने लगा,"सही कहा अंकल, इसने पी रखी है और नशे में कुछ भी बड़बड़ा रहा है!"....

चौकीदार ने डरते हुए कहा,"नहीं साब...मैं देखा किसी को उधर..माँ कसम!"

"क़सम-वसम छोड़ो और जाओ यहाँ से! कल से ड्यूटी पर आना नहीं, छुट्टी हो गई है तुम्हारी इधर से!", अशोक ने उसे फटकार लगाते हुए कहा।

"नहीं साब, ऐसा मत करो। एक बार माफ़ कर दो, दोबारा नहीं करूँगा! मुझे नौकरी से मत निकालो।", चौकीदार ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

फिर क्रिस ने आगे बढ़ अशोक से कहा,"जाने दीजिए अंकल, इसे माफ़ कर दीजिए। आज मेरा जन्मदिन है,मैं नहीं चाहता आज के दिन किसी के साथ कुछ बुरा हो। लाइट्स भी आ गई है, चलिए हम अंदर चलते हैं।

अशोक ने क्रिस की बात मानते हुए चौकीदार से कहा,"ठीक है। पहली ग़लती समझ माफ़ कर रहा हूँ। कल से ड्यूटी पर पिया तो नौकरी से हाथ धो बैठोगे,समझें?"

अशोक की बात सुन चौकीदार चुपचाप अपने कैबिन में लौट गया और बाकी सब भी विला के अंदर चले गए। लेकिन अशोक की नज़रें जनरेटर रूम की ओर लगी थी और न चाहते हुए भी उसके दिमाग़ में एक नाम गूंज रहा था,"क्रिस्टीना".....

क्रमशः
रश्मि त्रिवेदी