Yaado ki Asarfiya - 7 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 7. शिक्षक दिन

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यादों की अशर्फियाँ - 7. शिक्षक दिन

7. शिक्षक दिन

रिसेस का वक्त था। सभी अपने अपने चहीते मित्र के साथ राउंड बनाकर नाश्ता कर रहे थे। हमारे ग्रुप का नाश्ता खत्म गया था। और अब ध्रुवी की मस्ती और मौज का पिटारा खुल गया था। धुलु और में उसकी बनाई हुई कागज़ की 'लुडो' खेल रहे थे। कुकरी की जगह पर हमारे नाम लिखी हुई चिट्ठी थी। और पासा वह खुद लेकर आई थी। दूसरे मित्र बाते कर रहे थे।

कनक टीचर नीम के घने पेड़ की छांव में बैठ कर किसी का लिस्ट बना रहे थे। उसके चारो और इतने स्टूडेंट्स जमा हो गए थे की वह खुद दिखाई नहीं पड़ते थे। लूडो को साईड में कर हम दोनो देखने गए और इसमें फस गए। टीचर आने वाले शिक्षक दिन पर को शिक्षक बनना चाहते थे उसके नाम और साथ में विषय की सूचि बना रहे थे। मुझे और ध्रुवी को देख हमे बुला लिया।

“ उरी, तुम्हारा नाम लिख रही हूं हा?”
“ नहीं टीचर, मुझे नहीं रहना” में तो टीचर की बात सुनकर चौक गई थी और इस लिए जट से ना बोल दिया। पिछले साल मुझे जबरदस्ती एक टीचर जो विज्ञान पढ़ाते थे, जो मुझे पसंद करते थे उसने मेरी एक ना सुनी और तो और मुझे मेरे सबसे वीक विषय गणित का टीचर बना दिया था। मेरा अनुभव ही आज ना बोल रहा था। कुछ भी हो कभी टीचर नहीं बनूंगी।
“तुम्हे रहना ही होगा, तुम्हारी बात नहीं सुनुगी। तुम तो होशियार हो तुम्हे तो सब कुछ आता होगा। तुम्हे क्या दिक्कत है? में लिख रही हूं। और ध्रुवी तुम? तुम्हे भी रहना है हा।”
ध्रुवी ने तो मुझसे भी जल्दी ना में उत्तर दे दिया।
“टीचर आप को नाम लिखना है तो लिख लो हम उस दिन नहीं आएंगे। फिर क्या करोगे”
हम ने मक्कम हो कर कहा फिर क्या कनक टीचर भी निरुत्तर रह गए।

आखिर में वह दिन आ ही गया और में और ध्रुवी सबसे पहले उपस्थित थे क्योंकि कनक टीचर ने हमारे नाम टीचर बनने में नही लिखा था।
सब विद्यार्थिनी साड़ी में सज्ज थी और इतनी खूबसूरत लग रही थी और उनकी चमक से असली टीचर भी फिक्के पड़ गए थे। प्रार्थना में दीपिका मेम की तरह एंकरिंग के लिए 8th स्टेंडर्ड की नंदिका खड़ी हुई। सच में उसने में की अच्छी नकल करी थी। फिर हम सब अपने अपने क्लास में चले गए थे। हम इंतजार कर रहे थे की पहली किसकी बारी आएंगी की तभी हमारी ही क्लास की रीति गुजराती पढ़ने के लिए आई। फिर 10th क्लास की प्रीति आई। इसका लेक्चर सबसे शानदार रहा सिर्फ हमारे लिए। उनका अनुभव तो बहुत खराब रहा होगा। ध्रुवी वैसे तो सबके साथ मस्ती करती थी लेकिन प्रीति के साथ ज्यादा ही करती थी । सबको वह दीदी कह कर पुकारती थी पर उसे नाम से ही पुकारती थी कभी कभी नाम के बदले ‘घोड़ा’ बुलाती थी। और उसने क्लास में जो टीचर बनकर आई थी अभी भी न छोड़ा । पूरे क्लास वह उसे चिढ़ाती गई और प्रीति टीचर भी न बन सकी और दोस्त भी।

फिर अमी दीदी का पीरियड आया जो अंग्रेजी पढ़ाने आए थे। उसने वह चेप्टर पढ़ाया जो दीपिका मेम ने नहीं पढ़ाया था। सबको खड़े कर ऊंची आवाज़ में पढ़ने के लिए कहा। निखिल की बारी आई। वह बेचारा अच्छे से उच्चारण नही कर पाया तो अमी दीदी ने टीचर की तरह डांट दिया। सच में अमी दीदी सही मायनों में टीचर बन गए थे। हमारे स्टूडेंट के लेक्चर में असली टीचर भी पीछे की बेंच में बैठे होते है। वह सब कुछ देख कर मार्क करते है फिर टीचर्स डे के प्रोग्राम में उसको रैंक देते है।

कुछ टीचर्स जो साड़ी पहनकर या सर जो शर्ट पहनकर भी स्टूडेंट्स ही बने रहते थे तो कोई असली टीचर्स से भी ज्यादा सख्त बने रहते थे। लेकिन कुछ टीचर्स ऐसे होते है जिसका पीरियड के बाद ऐसा लगे की यही आने चाहिए हररोज और शायद यही दिन होगा जब हमारे लिए अच्छे टीचर्स बुने जाते होंगे जो आगे चलकर अच्छे स्टूडेंट्स बुनते है। कुछ स्टूडेंट्स के भाग्य अच्छे होते थे जो डायरेक्ट प्रिंसीपाल बन गए थे जिसमे 10th और 12th के स्टूडेंट्स बनते थे। कुछ प्यून भी बनते थे।

पिछले दो पीरियड में 11:30 से 12:30 तक प्रोग्राम रहता था। यह प्रोग्राम खास इस लिए होता था क्योंकि प्रिंसिपाल भी स्टूडेंट होते थे और इस प्रोग्राम की सूचना प्यून बने विद्यार्थी ही देते थे। प्रोग्राम में तृषा टीचर आज बने हुए टीचर-सर को अपना अपना अनुभव सांझा करने के लिए कहते है। अधिकतम टीचर का अनुभव जिस क्लास में ज्यादा अच्छा हो उस क्लास को अच्छे क्लास का इनाम मिलता था और सभी क्लास को जो टीचर ज्यादा अच्छे लगे उसे अच्छे टीचर का इनाम दिया जाता था। इस इनाम की पुष्टि के लिए असली टीचर्स आज के टीचर्स और स्टुडेंट्स के क्लास में घूमते रहते। टीचर्स डे का महत्व क्या होगा? यही न की हम अपने टीचर्स की परेशानी को समझे और उसे कोऑपरेट करे और हम स्टूडेंट्स बनकर भी इस का अनुभव कर सकते है। टीचर्स भी कभी कभी यह जानकर हैरान रह जाते है की स्टूडेंट्स टीचर्स की भी भूमिका अच्छे से निभा लेते है।
में एक बार टीचर बनी थी और वह सबक आज तक नहीं भूली। टीचर्स डे में एक बार भाग लेना आवश्यक ही है ताकि आप समझ सको की आपको और आपके मित्रो के झेलकर और पढ़ाना बहुत ही मुश्किल कार्य है।